गंडामन हादसे की है छठी बरसी

16 जुलाई 2013 को हुआ था हादसा

Chhapra: छह साल पहले सारण मे ऐसी घटना घटी, जिसने प्रदेश ही नही देश और विदेश मे सभी को झकझोर कर रख दिया. घर से माँ ने अपने बच्चों को अपनी हाथों से सजा-संवार के स्कूल के लिए भेजा था. वो क्या जानती थी कि मेरा लाल कभी घर लौट कर नही आएगा. सारण के लिए ये काला दिन साबित हुआ. विद्यालय में ज़हरीली खिचड़ी खाने से 23 मासूम बच्चे काल के गाल में समा गए.

मीड डे मील खाना के बाद हुआ हादसा

सारण के धर्मासती गंडामन गाँव के सरकार स्कूल मे मिड डे मिल योजना के तहत दोपहर का भोजन खाने के बाद बच्चे बीमार पड़ने लगे. बच्चों की हालत देखते हुये छपरा सदर अस्पताल और पटना पीएमसीएच रेफर किया गया. जैसे जैसे समय बीतता गया एक-एक करके 23 बच्चे काल के गाल मे समाते गए. छपरा से लेकर पटना तक मातम छा गया.

इतनी बड़ी घटना को देश के बड़े अखबारों ने अपने पहले पृष्ट पर तो जगह दी ही, विदेशों के अखबारों ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया.

तीन साल बाद कोर्ट ने सुनाया फैसला

तीन साल बाद मिड डे मील मामले में छपरा सिविल कोर्ट ने 2016 में इस मामले में आरोपितों के खिलाफ सज़ा का एलान किया. अदालत ने धर्मासती गंडामन गांव के सरकारी स्कूल की तत्कालीन हेडमास्टर मीना कुमारी को 17 वर्ष की सज़ा सुनाई. उनपर तीन लाख 25 हजार का जुर्माना भी लगाया गया. एक धारा में दस साल की सजा सुनायी गयी. धारा 304 में दस साल की सजा और ढाई लाख रुपया जुर्माना. धारा 308 में सात साल की सजा और सवा लाख रुपया जुर्माने की सजा मिली.

बताते चले कि विश्व की सबसे बड़ी योजना जिसमें बच्चों को दोपहर का भोजन उपलब्ध कराया जाता है, उसे खाकर बच्चों की मौत से सभी स्तब्ध थे. आज भी उस दिन को याद कर लोगों के रौंगटे खड़े हो जाते है.

रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकार भी सहमें

इस घटना पर उस वक्त बेहद करीब से नजर रखने वाले और रिपोर्टिंग करने वाले कुछ पत्रकारों से भी हमने बातचीत की और जाना कि आखिर उस दिन का मंजर कैसा था.  जब एक के बाद एक बच्चे छपरा सदर अस्पताल में गंभीर हालत में पहुंच रहे थे और चिकित्सकों के साथ साथ प्रशासन पुलिस और स्थानीय लोग और मीडिया कर्मी बच्चों की सहायता उन्हें एम्बुलेंस से उतारने और इलाज कराने में जुटे थे.

सारण के वरिष्ठ फोटो जर्नलिस्ट विकास कुमार उनमें से एक है, जिन्होंने इस घटना की पल पल की तस्वीरों को अपने कैमरे में कैद किया. उस समय को याद कर विकास सहम जाते है. कहते हैं कि तस्वीर लेते लेते एक समय ऐसा आया जब हम सब बच्चों की मदद में जुट गए. फ़ोटो लेना जिम्मेवारी थी और बच्चों की मदद करना दायित्व.

घटना के बाद सरकार ने उठाये कदम

हालांकि की इस घटना के बाद सरकार ने मिड डे मील की गुणवत्ता सम्बन्धी कई कदम भी उठाये. बहरहाल घटना के बाद से सरकार ने गांव को सुविधा मुहैया कराई है. विद्यालय का भी नया भवन बना है और कई अन्य विकास के कार्य भी हुए है. इस सब के बीच जिन्होंने अपने घरों के चिराग को खो दिया उन्हें वे याद कर विकास के बीच अपने बच्चे को आज भी तलाशते है. विकास तो हुआ पर बच्चे लौट के फिर नही आ सकते.

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हिंदी फिल्म और भोजपुरी फिल्म जगत में कई फिल्मों का किया है निर्देशन 

(कबीर की रिपोर्ट)
जब आंखों में सपने हो, मजबूत और नेक इरादे हो तो कामयाबी देर ही सही इंसान के कदम चूमती दिखाई देती है. मेहनत में ईमानदारी हो तो उस इंसान को सफल व्यक्ति बनाने से कोई नही रोक सकता. सारण से निकलकर दिल्ली और फिर माया नगरी पहुंचकर अपने हुनर और काबिलियत की बदौलत फिल्मीस्तान में जगह बनाना आसान नहीं होता लेकिन ऐसा कर दिखाया है सारण जिले डेरनी स्थित सूतिहार बजराहां के रहने वाले सुधांशु त्रिपाठी ने.

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सुधांशु त्रिपाठी ने हिंदी फिल्म और भोजपुरी फिल्म जगत में कई फिल्मों का निर्देशन किया है. तो कई फिल्मों में बतौर कलाकार काम किया है. सुधांशु त्रिपाठी बताते हैं कि बिना संघर्ष किसी इंसान को कामयाबी नहीं मिली है. जब आप संघर्ष नहीं करेंगे तो कामयाबी आपको नहीं मिलेगी. अपने हुनर पर भरोसा करते हुए कामयाब होने के लिए आपको संघर्ष करना होगा. उन्होंने कहा कि पिता मणिकांत त्रिपाठी एवं घर के पूरे सदस्यों द्वारा उन्हें पूरी आजादी मिली और सहयोग भी भरपूर मिला, जिसकी बदौलत वह आज इस मुकाम पर पहुंचे हैं.

उन्होंने कहा कि जब वह राजधानी दिल्ली से मुंबई माया नगरी पहुंचे तो उन्होंने काफी संघर्ष किया. मेहनत की बदौलत ही उन्होंने भोजपुरी फिल्म हिंदी फिल्म और दूरदर्शन पर आने वाले कई सीरियल में निर्देशन का काम किया. सुधांशु त्रिपाठी ने छपरा के सारण एकेडमी से अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की, वहीं इंटर की पढ़ाई जगदम कॉलेज से पूरी की. इंटर की पढ़ाई के बाद 4 सालों तक लगातार देश की राजधानी दिल्ली में एक्ट वन में थिएटर किया. अपने अनुभव बताते हुए सुधांशु त्रिपाठी कहते हैं कि हिंदी फिल्म जगत में केसी बोकाडिया और सुभाष घई जैसे दो सीनियर डायरेक्टरों से निर्देशन की तकनीक सीखी है. खासकर सुभाष घई के साथ काम कर बहुत कुछ सीखा है. टेक्निक के साथ काम कैसे बेहतर किया जाए.

जब मायानगरी मुंबई पहुंचे तो काफी संघर्ष के बाद उन्हे फिल्म भोले शंकर, शक्ति, हथकड़ी, जाल, मुन्ना मवाली, टाइगर जिंदा है जैसी फिल्मों का निर्देशन करने का मौका मिला और उन्होने बखूबी निभाया भी. उन्होंने कहा कि बचपन से ही फिल्मों में अभिनय करने और काम करने का सपना था, उस जुनून ने आज मुझे यहां लाकर खड़ा किया है. साथ ही साथ उनका कहना है कि सारण के युवाओं को अगर इस क्षेत्र में रुचि है तो उनका भरपूर सहयोग उन्हें मिलेगा.A valid URL was not provided.

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पांचवा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस आज मनाया जा रहा है. इस साल योग दिवस की थीम है क्लाइमेट एक्शन (Climate Action). दुनियाभर में 21 जून को योग दिवस मनाया जाता है. पीएम मोदी के सुझाव के बाद संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने का ऐलान करके पूरी दुनिया को स्वस्थ रहने का मंत्र दिया.

यह दिन लोगों में योग के प्रति जागरूकता पैदा करता है कि कैसे योग हमारे शरीर को स्वस्थ और निरोगी बनाए रखने के लिए जरूरी है. अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की शुरुआत भारत की पहल के चलते हुई. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में 27 सितंबर 2014 को दुनियाभर में योग दिवस मनाने का आह्वान किया था. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रस्ताव आने के बाद सिर्फ तीन महीने के अंदर इसके आयोजन का ऐलान कर दिया था.

महासभा ने 11 दिसंबर 2014 को यह ऐलान किया कि 21 जून का दिन दुनिया में योग दिवस (Yoga Diwas) के रूप में मनाया जाएगा. जिसके बाद दुनिया भर के लोग हर साल 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस (International Yoga Day) के रूप में मनाते हैं.

 

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एक समय था जब क्रिकेट या फुटबॉल विश्वकप शुरू होते ही खेल प्रेमियों में अलग सा उत्साह भर जाता था. भारत में खास कर क्रिकेट का क्रेज सिर चढ़ कर बोलता है. ऐसे में अपने पसंदीदा खिलाड़ियों के पोस्टर दीवालों पर चिपका कर, वर्ल्ड कप में कौन सा मैच कब खेला जाएगा इसकी सारिणी की कतरन को अखबार से काट कर खेल प्रेमी रखते थे. मुहल्ले में भी चर्चा खेल खिलाड़ी और उसके हो चुके या आज होने वाली मैचों की होती थी. फिर एक जगह इकट्ठा होकर विश्व कप के मैचों को देखा करते थे. स्पोर्ट्स के समान बेचने वाले दुकानों में बैट और अन्य खेल सामग्री की खरीद भी बढ़ जाती थी.

समय के साथ यह सब डिजिटल हो गया है. बहुत कुछ बदल गया है. अब दीवालों पर खिलाड़ियों के पोस्टर भी नही दिखते. मैचों के शेड्यूल भी अब मोबाइल में डिजिटली सेव हो जा रहे है. स्कोर भी वही दिख जा रहा है. मैच भी देखे जा सकते है. वही खुद का टीम चुनने वाले कई गेम भी मौजूद है.   

इन सब से आज के दौर के बच्चे और युवा समाज से दूर होते नजर आ रहे है. शायद वैसा माहौल जैसा कि 90 की दशक में हुआ करता था आज नही मिल रहा. व्यक्ति अपनी मोबाइल में व्यस्त है और उसकी दुनिया भी उतने में ही सिमट गई सी प्रतीत होती है. हालांकि आईपीएल के समय कुछ हद तक वैसा माहौल दिखता है. 

नए दौर में बहुत कुछ बदल गया है. अब यह बदलाव खेलों पर भी हावी है. पहले के दौर में लोग अपने पसंदीदा खिलाड़ी को फॉलो करते थे चाहे वह किसी भी देश का क्यों ना हो, पर अब वह पाकिस्तानी है हम उसे फॉलो क्यों करें ऐसी भी मानसिकता बढ़ी है. खेल व्यक्ति को समाज से जोड़ता है पर मोबाइल के युग में मुहल्ले का प्ले ग्राउंड मोबाइल का स्क्रीन बन गया है और पसंदीदा खिलाडी दीवालों के पोस्टरों से अब कंप्यूटर के डेस्कटॉप पर नजर आने लगे है. जिससे माहौल भी बदला है और खेल और खिलाड़ियों के प्रति रुझान भी कम हुआ है.

 

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विश्व पर्यावरण दिवस प्रत्येक वर्ष 5 जून को मनाया जाता है. यह दिवस धरती पर लगातार बेकाबू होते जा रहे प्रदुषण और ग्लोबलवार्मिंग जैसे कारणों से निपटने के लिए धरती और मानव जाति के बीच तालमेल बनाने के लिए मनाया जाता है.

इस दिवस को प्रत्येक साल अलग अलग थीम के साथ मनाया जाता है. इस बार की थीम है ‘Beat Air Pollution’ है.

संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर लाने के लिए 1972 में इस दिवस को मानाने की घोषणा की थी. इसे संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन में चर्चा के बाद शुरू किया गया था. पहला विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून 1974 को मनाया गया था.

 

 

Photo Courtesy: google

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हिन्दी पत्रकारिता दिवस प्रत्येक वर्ष 30 मई को मनाया जाता है. आज ही के दिन 1826 ई. पंडित युगल किशोर शुक्ल ने कलकत्ता से प्रथम हिन्दी समाचार पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन आरंभ किया था. ‘उदन्त मार्तण्ड’ का अर्थ ‘समाचार सूर्य’ है. पंडित युगल किशोर शुक्ल ने ही भारत में पत्रकारिता की शुरुआत की थी.

‘उदन्त मार्तण्ड’ के आरंभ के समय किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि हिन्दी पत्रकारिता इतना लंबा सफर तय करेगी. युगल किशोर शुक्ल ने काफी समय तक ‘उदन्त मार्तण्ड’ को चलाया और पत्रकारिता की. लेकिन कुछ समय के बाद पर्याप्त धन के आभाव में इस समाचार पत्र को बंद करना पड़ा.

पत्रकारिता में आज काफी बदलाव आया है. पत्रकारिता अब केवल पत्रकारिता न रहकर एक बड़ा व्यापार बन गया है. बीते 193 वर्षों में हिन्दी अखबारों व समाचार पत्रिकाओं के क्षेत्र में काफी तेजी आई है. हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत बंगाल से हुई और इसका श्रेय राजा राममोहन राय को दिया जाता है. राजा राममोहन राय ने ही सबसे पहले प्रेस को सामाजिक उद्देश्य से जोड़ा और भारतीयों के सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक हितों का समर्थन किया.

उन्होंने समाज में व्याप्त अंधविश्वास और कुरीतियों पर प्रहार किए और अपने पत्रों के जरिए जनता में जागरूकता पैदा की. राम मोहन राय ने कई पत्र शुरू किए जिसमें साल 1816 में प्रकाशित बंगाल गजट अहम है, जो भारतीय भाषा का पहला समाचार पत्र था. लेकिन 30 मई 1826 को कलकत्ता से प्रकाशित ‘उदन्त मार्तण्ड’ हिन्दी भाषा का पहला समाचार पत्र माना जाता है.

‘उदन्त मार्तण्ड’ से शुरू हुआ हिन्दी पत्रकारिता का ये सफर आज बरकरार है.

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शहर भर में मजदूर जैसे दर-बदर कोई न था,
जिसने सबका घर बनाया, उसका घर कोई न था…

मजदूर सिर्फ वह नहीं जो घर बनाता है, मजदूर वह भी है जो किसी दूसरे संस्था में काम करते हुए पगार लेता है, बशर्ते जिसे हम मजदूर कहते हैं, वह उसे राजमिस्त्री या लेबर कहा जाता है, जो दूसरों के सपनों के आशियाने को बनाता है. वहीं जो पगार पर काम करता है वह अपने सपनों की इमारतों को खड़ा करता है.

शायद मजदूरी सब करते हैं, भले ही किसी की पगार प्रतिदिन मिल जाती है तो किसी की पगार महीने में मिलती हो. किसी की पगार ज्यादा है तो किसी की कम. मजदूर दिवस पर मजदूर मनोज कुमार ने बताया कि लोगों को सोचना चाहिए कि घरों में लाखों रुपए खर्च कर देते हैं, लेकिन जब हम दिन भर जीतोड़ मेहनत करके शाम में पगार लेते हैं, लोग पैसे देने में आनाकानी भी करते हैं, घर मे महंगी से महंगी वस्तु लगाने के लिए नहीं सोचते लेकिन उनके सपनों को एक मजदूर पूरा करता है उन्हें पैसे देने कतराते हैं. मजदूर दिवस हमारे लिए तो शायद बना ही नहीं अगर हमारे लिए मजदूर दिवस पर छुट्टी पर जाए तो शाम में घर लौटने पर चूल्हा भी नहीं जलेगा.

बताते चलें कि भारत में पहली बार 1 मई 1923 को हिंदुस्तान किसान पार्टी ने मद्रास में मजदूर दिवस मनाया था. 1 मई को 80 से ज्यादा देशों में राष्ट्रीय छुट्टी होती है.

मजदूर दिवस की शुरुआत कनाडा में 1972 में हुई. यह मजदूरों के अधिकारों की मांग के लिए शुरू किया गया था. मजदूर दिवस को उत्सव के रूप में पहली बार अमेरिका में 5 सितंबर 1882 को मनाया गया. दुनिया के कई देशों में मजदूर दिवस ‘मई डे’ के रूप में मनाया जाता है.A valid URL was not provided.

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Chhapra: छपरा के रितेश देश के 2018 बैच के आईएएस/आईपीएस अधिकारियो को प्रशिक्षण देंगे. रितेश को मसूरी में स्थित लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन के निदेशक की ओर से गेस्ट लेक्चरर के लिए विशेष रूप से आमंत्रित किया गया है. दरअसल आईएएस की प्रवेश परीक्षा में सफल हो जाने के बाद उन आईएएस अधिकारियों को 2 साल की ट्रेनिंग दी जाती है. हालांकि रितेश उन्हें 24 से 26 अप्रैल तक तीन दिवसीय ट्रेंनिग देंगे.

जानिये रितेश के बारे में

आपको बता दें कि छ्परा के साधनपुरी निवासी रितेश सिंह के द्वारा ही बनाये ऐप, ‘इकोवेशन’ से ही सारण के सरकारी हाई स्कूलों में डिजिटल क्लास चलाया जाता है. सारण में इस योजना को उन्नयन सारण का नाम दिया गया. छपरा में  100 से ज्यादा विद्यालयों में इसकी शुरुवात दसवीं क्लास के बच्चों की तैयारी के लिए किया गया है. साथ ही आगामी सत्र में 9 वीं क्लास के बच्चों के लिए भी स्मार्ट क्लास शुरू कर दिये जायेंगे.  

इकोवेशन के फाउंडर रितेश ने बताया कि वो उन अधिकारियों को शिक्षा और तकनीक को जोड़कर शिक्षा व्यवस्था में सुधार को लेकर कई अहम बातें बताएंगे. उन्होंने बताया कि शिक्षा के क्षेत्र में स्टार्टअप को आईएएस अधिकारी के सहयोग से ही आगे बढ़ाया जा सकता है. अगर स्टार्टअप वाले युवा आईएएस अधिकारियों के साथ मिलकर काम करें तो स्टार्टअप काफी आगे जाता है और समाज के लिए भी कुछ बेहतर मिलता है. उन्होंने बताया कि उन्नयन बांका और उन्नयन सारण, स्टार्टअप की वजह से ही सफल हुई. इनमें आईएस अधिकारियों के सहयोग ने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

पूरे बिहार में शुरू हो रहा है उन्नयन योजना

रितेश को इस ट्रेनिंग में खास मकसद से बुलाया जा रहा है, जहाँ वो अपनी शिक्षा और तकनीक का अनुभव अधिकारियो के साथ साझा करेंगे. रितेश ने बताया कि गेस्ट लेक्चर का महत्वपूर्ण बिंदु है, सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा कैसे हर बच्चो तक पहुंचना संभव है. उन्नयन कार्यक्रम इसी का एक बेहतरीन उदाहरण है. जो कि अब पूरे बिहार में शुरू होने के बाद अलग अलग राज्यों और दूसरे देशो में अपना पंख पसार रहा है.

उन्नयन की सफलता के बाद ही रितेश को UNESCO से भी निमंत्रण आया था. जहा उन्होंने अफ्रीका जा कर इस मॉडल को फैलाया है. 

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आज से 6 साल पहले यानी 22 मार्च 2013 जब chhapratoday.com की वेबसाइट लांच की गई थी. डिजिटल प्लेटफार्म पर खबरों को पढ़ना लोगों के लिए नई शुरुआत जैसी थी. कल सुबह आने वाली खबरें मिनटों में मोबाइल और कंप्यूटर के माध्यम से तुरंत मिलने लगी.

शुरुआती दिनों में लोगों तक हमारी पहुंच कम थी, केवल डेस्कटॉप वाले पाठक ही हमे पढ़ सकते थे. लेकिन मोबाइल के बढ़ते प्रभाव ने खबरों को पढ़ने का नजरिया ही बदल दिया. आज हर कोई अपनी मोबाइल में अपनी जरूरत के समाचार पढ़ ले रहा है. आसानी से कही भी खबरों के वीडियो देख ले रहा है.

समय बदला है और बदली है वह सोंच भी जिसमे लोगों का यह मानना था कि डिजिटल खबरों को आखिर पढ़ता कौन है. शुरुआती दिनों में हमें फेसबुकिया (फेसबुक पर खबरों को पोस्ट करने वाला) पत्रकार बताकर अपने को बढ़ावा देने वाले लोग भी कही ना कही डिजिटल माध्यमों से जुड़ चुके है. इन छह सालों में हमने कई उतार चढ़ाव देखें है. पहले तो डिजिटल (वेब) पोर्टलों को लोग समझ नहीं पाते थे महत्व नही देते थे लेकिन आज वेब पोर्टल पर खबर लगवाने के लिए लोग उत्सुक रहते है. हमारी पोर्टल पर छपी कई ख़बरों को बाद में अख़बारों में भी जगह मिली. आज भी बहुत से लोग डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया के फर्क को नहीं समझ पा रहे है और वेब मीडिया को सोशल मीडिया के नाम से ही जान रहे है. समय बदला है, उम्मीद है लोगों की सोंच भी बदलेगी.     

आज खबरों को प्रकाशित करने के लिए पहले की अपेक्षा बड़ी संख्या में न्यूज़ पोर्टल आ गए है. ऐसे में जरूरी है कि अपने पाठकों को विश्वसनीय और सटीक खबरें पहुंचाई जाए. खबरों की विश्वसनीयता, भाषा की शुद्धता एवम सरलता, वर्तनी आदि पर विशेष ध्यान हो ताकि हम भीड़ से अलग दिखे.

छपरा टुडे डॉट कॉम की युवा टीम के सभी सदस्य आपतक विश्वसनीय खबरों को पहुंचाने के लिए कटिबद्ध है. हमारी कोशिश रहती है कि आपको हमेशा आपके शहर, गांव की खबरों से जोड़ कर रखा जाए. ताकि विश्व के किसी भी देश में रहने के बावजूद आपको आपके मातृभूमि की मिट्टी की खुशबू पहुंचती रहे.

खबरों को डिजिटल माध्यम से आपतक पहुंचाने के लिए छपरा टुडे डॉट कॉम पर हर 10 मिनट में अपडेट किया जाता है, जो कि अपने आप में इसे अन्य न्यूज़ पोर्टलों से अलग करता है. हमारे संवाददाताओं की खबरें और समय समय पर खुद के कंटेंट और कार्यक्रमों के माध्यम से हम अपने पाठकों/दर्शकों को खबरों के साथ आवश्यक जानकारियां भी समय समय पर पहुंचाते रहते है. जिले से जुड़े लोगों और लोक कलाकारों, युवा प्रतिभाओं, प्रतिभावान खिलाड़ियों से जुड़ी खबरों को प्रमुखता से प्रकाशित कर हम सभी को प्रोत्साहित करने में हमेशा जुटे रहते है.

6 सालों के इस सफर के सभी साथियों, हमारी ऊर्जावान युवा टीम के सदस्यों का हार्दिक आभार, हमारी टीम की मेहनत और आप सभी पाठकों/दर्शकों/विज्ञापनदाताओं का हम पर विश्वास ही हमारी पूंजी है. अपना विश्वास हम पर ऐसे ही बनाये रखिये.

अभी तो एक पड़ाव पर पहुंचे है, मंजिलें और भी है……

सुरभित दत्त
संपादक
chhapratoday.com

9572096850 | 9431094031 | 9430209641 | 9304352927 | chhapratoday@gmail.com

(An Initiative of Twinkle Stars Media & Advertisers)

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Chhapra: कहते हैं ‘मंजिले उन्ही को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है. पंखों से कुछ नहीं होता क्योंकि हौसलों से उड़ान होती है’. यह पंक्तियां छपरा के कृष्ण कुमार पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं. कभी कृष्ण के पास पढ़ाई की फीस भरने के लिए पैसे नहीं हुआ करते थे. लेकिन आज बीपीएससी की परीक्षा पास कर वह राजस्व अधिकारी बन गए है. कृष्ण के सामान्य परिवार के छात्र से राजस्व अधिकारी बनने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है.

शहर के नई बाजार निवासी मदन प्रसाद गुप्ता के द्वितीय सुपुत्र कृष्ण कुमार आज सारण जिले के लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा बन गए हैं. कृष्ण के पिता का सरकारी बस स्टैंड के फुटपाथ पर एक छोटी सी दूकान चलाया करते थे. ऐसे में बस पेट भर जाए वही काफी था, लेकिन कृष्ण ने कुछ और ही करने की सोची थी. बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में रूचि रखने वाले कृष्ण के पास ट्यूशन की फ़ीस नहीं हुआ करती थी. इसको जुटाने के लिए वे खुद ट्यूशन पढ़ाते थे.

संघर्ष भरा रहा जीवन 

छपरा टुडे डॉट कॉम से बातचीत में उन्होंने अपने जीवन के संघर्ष को साझा किया. उन्होंने बताया कि उनके पिता सरकारी बस स्टैंड में फुटपाथ पर एक छोटा सा होटल चलाते थे. बचपन से ही पिता के साथ रहे और फुटपाथ पर लगे होटल पर पिता के काम में हाथ भी बटाते थे. इसके साथ ही साथ अपनी पढ़ाई भी करते थे. मैट्रिक,  इंटर पास किया तो लगा कि अब जीवन में कुछ करना चाहिए.  घर में पैसे की कमी थी, परिवार में चार भाई बहन थे. पिता की आय भी उस लायक नहीं थी की कृष्ण आगे की पढ़ाई कर सकें. फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर पढ़ाई के खर्च को निकाला.सीटी. इंटर परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने कई सरकारी नौकरी के लिए परीक्षाएं दी, लेकिन किसी ने सफलता नहीं मिली.  कभी कभी तो परीक्षा फॉर्म भरने के लिए पैसे नहीं हुआ करते थे. फिर भी किसी तरह जुगाड़ हो ही जाता था. लाखों परेशानियों के बावजूद उन्होंने मन लगाकर पढ़ाई की.

बिहार पुलिस में मिल रही थी नौकरी, लक्ष्य बड़ा था इसलिए छोड़ दी नौकरी

2010 उनकी मेहनत रंग लायी और बिहार पुलिस की परीक्षा वो सफल भी हो गए. लेकिन कृष्ण की मंजिल बिहार पुलिस नहीं थी. उनके शिक्षक एमके सिंह ने जो शुरू से और उनको पढ़ाई में मदद करते आ रहे हैं ने उन्हें पुलिस में ना जाने और लक्ष्य को बड़ा रखने की सलाह दी. 

फिर क्या था परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के बाद भी कृष्ण बिहार पुलिस की नौकरी नहीं की और अपने लक्ष्य को और बड़ा कर लिया. हालांकि परिवार वाले कृष्ण पर नौकरी करने का दबाव बना रहे थे. किसी तरह उन्होंने अपने पिता को मनाया और फिर आगे की तैयारी में जुट गए.

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पिता के फुटपाथी दुकान और फिर मोबाइल दूकान पर किया काम
धीरे धीरे परिवार में आर्थिक परेशानियां और बढ़ते जा रहे थे. पिता का होटल छोड़ अब भाई के छोटी सी मोबाइल की दुकान पर रहने लगे. इसके साथ ही अपनी तैयारी जारी रखी. 2011 में बीपीएससी 53-55वीं परीक्षा दी. उसमें पास भी हुए इंटरव्यू में सफलता नहीं मिली. साथ ही 2011 में सचिवालय सहायक की परीक्षा भी दी. लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. फिर इसके बाद 2012 में टीईटी की परीक्षा दी. जिसके बाद 2014 में एक साल के लिए उत्क्रमित मध्य विद्यालय चकिया में प्रखण्ड शिक्षक रहे. उसमें भी छुट्टी के दिन समय निकाल कर पढ़ाई करते थे. जिसके बाद 2015 में सहायक बीपीएससी की परीक्षा दी. बिहार में 29 सीट के लिए परीक्षा हुई थी. कृष्ण को इस परीक्षा में पूरे बिहार में 17 वां रैंक मिला. सहायक की नौकरी जॉइन करने के बाद भी कृष्ण आगे बढ़ने से नहीं रुके. उन्होंने फिर से तैयारी की, परिवार की आर्थिक हालात थोड़े सुधर गए थे.

इसके बाद 2017 में 60वीं-62वीं बीपीएससी परीक्षा दी. इसके बाद 2019 के फरवरी में फाइनल रिजल्ट आया तो कृष्ण ने 168वां रैंक लाकर राजस्व पदाधिकारी बन गए.

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दोस्तों ने भी की तयारी करने में मदद
अपनी सफलता में वे अपने परिवार और शिक्षक के साथ दोस्तों का रोल अहम मानते है. कृष्ण ने बताया की आर्थिक तंगी के कारण उनके पास इतने पैसे भी नहीं होते थे कि प्रतियोगी परीक्षा की पुस्तक को खरीदें. ऐसे में उनके दोस्तों ने उसका साथ दिया. उन्होंने बताया कि उसके दोस्त अली अहमद अपनी किताबें उन्हें पढने के लिए देते थे. अपनी सफलता के बाद उन्होंने अपने दोस्त को भी धन्यवाद दिया है.

कृष्ण बताते हैं कि समय कितना भी बुरा हो आपको अपने लक्ष्य पर टिके रहना चाहिए. वह अपने पुराने दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि उन्होंने अपने समय बहुत ही त्याग किया उनके भी शौक हुआ करते थे लेकिन सारे शौक को त्याग कर उन्होंने किसी तरह अपनी पढ़ाई की कभी लक्ष्य से नहीं भटके.

निःसंदेह  ही कृष्णा उन तमाम छात्रों के लिए प्रेरणास्रोत है, जो आभाव में रहते हुए भी सफलता हासिल करने में जुटे है.  छपरा टुडे डॉट कॉम कृष्ण कुमार को उनके उज्जवल भविष्य की शुभकामनाये देता है.

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साल 2018 अब समाप्त होने वाला है. ऐसे में हम आपके लिए लेकर आये है साल के प्रमुख घटनाक्रम जिनका आपसे सरोकार रहा. देखिये पढ़िए कबीर का यह संकलन. 

Jan 5, 2018: केंद्र सरकार ने छपरा के विकास को लेकर दिया बड़ा तोहफ़ा, छपरा से होकर गुज़रेगा देश का पहला नेशनल वाटर वे

साल 2018 की शुरुआत में ही सारण के विकास को लेकर नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार ने तोहफा दिया. छपरा होकर गुजरने वाले देश का पहला वाटर वे छपरा होकर गुजरेगा. जिससे न सिर्फ देश के मानचित्र पर सारण का नाम स्थापित होगा बल्कि विकास के नए मार्ग भी प्रशस्त होंगे.

केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय जलमार्ग-एक (एनडब्ल्यू-1) के हल्दिया-वाराणसी खंड में नौवहन के विस्तार के लिए 5,369 करोड़ रुपए की जल विकास परियोजना (जेपीएमपी) को शुक्रवार को मंजूरी दे दी है. यह परियोजना उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल में पड़ती है. इसके तहत आने वाले प्रमुख जिलों में वाराणसी, गाजीपुर, बलिया, बक्सर, छपरा, वैशाली, पटना, बेगूसराय, खगड़िया, मुंगेर, भागलपुर, साहिबगंज, मुर्शिदाबाद, पाकुर, हुगली और कोलकाता शामिल हैं.

Jan 18, 2018: समीक्षा यात्रा पर एकमा पहुंचे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एकमा पहुंचे और कई मुख्य योजनाओं का शिलान्यास किया. इनमे ये प्रमुख योजनाएं है.
जेपी के गांव सिताब दियारा में स्मृति भवन सह पुस्तकालय. छपरा में संग्रहालय भवन का निर्माण.
जिला लोक शिकायत निवारण कार्यालय भवन का निर्माण. जेपी इंजीनियरिंग कॉलेज के 150 बेड के छात्रों का छात्रावास.
पाॅलीटेक्निक कॉलेज मढ़ौरा में 150 बेड का बालक छात्रावास. आईटीआई मढ़ौरा का नया कर्मशाला एवं प्रशासनिक भवन का निर्माण किया जाएगा. जिला निबंधन केंद्र सह प्रबंध केंद्र छपरा. सदर अस्पताल परिसर में निर्मित 50 बेड का नाइट शेल्टर. सदर प्रखंड के फकुली में एकल ग्रामीण जलापूर्ति योजना. मशरक स्थित कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय का भवन.

Feb 27, 2018: परीक्षा केंद्र के बाहर परीक्षार्थी की हत्या, जाँच में जुटी पुलिस
इस घटना ने कई सवाल व निशान खड़े करता है, जब बात बात में युवा चाकू गोदकर मौत के घाट उतार देता है. भगवान बाजार थाना क्षेत्र के एसडीएस कॉलेज के समीप मैट्रिक परीक्षा की पहली पाली समाप्त होने के बाद केंद्र से बाहर निकले एक छात्र की चाकू मारकर हत्या कर दी गयी.

Mar 24, 2018: सारणवासियों को इस साल पासपोर्ट आफिस की सुविधा छपरा में मिली
सारणवासियों को इस साल पासपोर्ट आफिस की सुविधा छपरा में मिली, सांसद रूडी ने कहा कि जिले में पासपोर्ट केंद्र का होना जिले के लिए सम्मान की बात है. जहां भी कार्यालय होता है वहां के लोगों की हैसियत बढ़ती है. उन्होंने कहा बिहार में प्रति वर्ष पटना कार्यालय से तीन लाख लोगों का पासपोर्ट बनाया जाता है. जिसमें लगभग एक लाख लोगों का पासपोर्ट सिर्फ सारण प्रमंडल से बनता है. इस केंद्र के खुल जाने से पूरे प्रमंडल के लोगों को सुविधा होगी.

Jul 11, 2018: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने छपरा में रखी डबल डेकर फ्लाईओवर की आधारशिला, 2022 तक बनकर होगा तैयार
छपरा को सबसे बड़े सौगात के रूप में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने डबल डेकर फ्लाईओवर की आधारशिला रखी. छपरा के पुलिस लाइन के मैदान में आयोजित शिलान्यास समारोह से मुख्यमंत्री ने इस परियोजना की आधारशिला रखी.
यह सूबे का पहला और देश का दूसरा डबल डेकर फ्लाईओवर होगा. लम्बाई के मामले में यह देश का पहला सबसे लम्बा डबल डेकर फ्लाईओवर होगा. 441 करोड़ की लागत से बनने वाले इस फ्लाईओवर की लम्बाई 3.5 किलोमीटर है. यह देश का सबसे लम्बा डबल डेकर पुल होगा.

Jul 29, 2018: जिला परिषद परिसर में मिले 7 देसी बम, जांच में जुटी पुलिस
सारण उस समय दहल उठा जब जिला परिषद परिसर से भारी मात्रा में देसी बम बरामद किया गया है. परिसर में खेल रहे बच्चों के द्वारा बमों के होने की सूचना दी गई. सूचना मिलते हैं पुलिस ने तत्काल मौके पर पहुंच बमों को तत्काल प्रभाव से डिफ्यूज कर दिया. इस घटना से अब भी सीख ली गयी है.

Aug 28, 2018: नही रही सारण की बेटी तीस्ता, इलाज के दौरान पटना में निधन
इसी वर्ष भोजपुरी लोक गायिका अनुभूति शांडिल्य तीस्ता ने हमारा साथ छोड़ दिया. तीस्ता का निधन पटना में इलाज के दौरान हो गया है. तीस्ता कई दिनों से पटना के एम्स में भर्ती थी.

Oct 8, 2018: भाजपा नेता सह अस्पताल कर्मी पीयूष आनंद की हत्या
गरखा थाना क्षेत्र स्थित अलोनी बाजार के मुकीमपुर के समीप नगर थाना क्षेत्र के मौना मुहल्ला निवासी गंगोत्री प्रसाद के पुत्र पीयूष आनंद की अज्ञात अपराधियों ने चाकू गोदकर हत्या कर दी. हत्या के विरोध में भाजपा कार्यकर्ताओं ने एक दिन का बंद भी बुलाया, हालांकि सारण पुलिस ने घटना का उद्भेदन किया और सभी अपराधियों को गिरफ्तार किया.

Oct 11, 2018: लखनऊ और छपरा कचहरी के बीच चलेगी त्रैसाप्ताहिक एक्सप्रेस ट्रेन

सारणवासियों को छपरा लखनऊ 15113-14 एक्सप्रेस के रूप में तोहफा मिला है. यह ट्रेन छपरा कचहरी से खुलेगी और वाया मशरक, थावे होकर लखनऊ तक जाएगी. ट्रेन छपरा कचहरी से खुलने वाली पहली एक्सप्रेस ट्रेन है. महाराजगंज के सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल और स्थानीय विधायक डॉ सीएन गुप्ता ने हरी झंडी दिखा कर ट्रेन को रवाना किया.

 

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