छ्परा के इतिहास के काले पन्नों में दर्ज है 16 जुलाई, जानिए 23 बच्चों के मौत की दास्तां

छ्परा के इतिहास के काले पन्नों में दर्ज है 16 जुलाई, जानिए 23 बच्चों के मौत की दास्तां

गंडामन हादसे की है छठी बरसी

16 जुलाई 2013 को हुआ था हादसा

Chhapra: छह साल पहले सारण मे ऐसी घटना घटी, जिसने प्रदेश ही नही देश और विदेश मे सभी को झकझोर कर रख दिया. घर से माँ ने अपने बच्चों को अपनी हाथों से सजा-संवार के स्कूल के लिए भेजा था. वो क्या जानती थी कि मेरा लाल कभी घर लौट कर नही आएगा. सारण के लिए ये काला दिन साबित हुआ. विद्यालय में ज़हरीली खिचड़ी खाने से 23 मासूम बच्चे काल के गाल में समा गए.

मीड डे मील खाना के बाद हुआ हादसा

सारण के धर्मासती गंडामन गाँव के सरकार स्कूल मे मिड डे मिल योजना के तहत दोपहर का भोजन खाने के बाद बच्चे बीमार पड़ने लगे. बच्चों की हालत देखते हुये छपरा सदर अस्पताल और पटना पीएमसीएच रेफर किया गया. जैसे जैसे समय बीतता गया एक-एक करके 23 बच्चे काल के गाल मे समाते गए. छपरा से लेकर पटना तक मातम छा गया.

इतनी बड़ी घटना को देश के बड़े अखबारों ने अपने पहले पृष्ट पर तो जगह दी ही, विदेशों के अखबारों ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया.

तीन साल बाद कोर्ट ने सुनाया फैसला

तीन साल बाद मिड डे मील मामले में छपरा सिविल कोर्ट ने 2016 में इस मामले में आरोपितों के खिलाफ सज़ा का एलान किया. अदालत ने धर्मासती गंडामन गांव के सरकारी स्कूल की तत्कालीन हेडमास्टर मीना कुमारी को 17 वर्ष की सज़ा सुनाई. उनपर तीन लाख 25 हजार का जुर्माना भी लगाया गया. एक धारा में दस साल की सजा सुनायी गयी. धारा 304 में दस साल की सजा और ढाई लाख रुपया जुर्माना. धारा 308 में सात साल की सजा और सवा लाख रुपया जुर्माने की सजा मिली.

बताते चले कि विश्व की सबसे बड़ी योजना जिसमें बच्चों को दोपहर का भोजन उपलब्ध कराया जाता है, उसे खाकर बच्चों की मौत से सभी स्तब्ध थे. आज भी उस दिन को याद कर लोगों के रौंगटे खड़े हो जाते है.

रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकार भी सहमें

इस घटना पर उस वक्त बेहद करीब से नजर रखने वाले और रिपोर्टिंग करने वाले कुछ पत्रकारों से भी हमने बातचीत की और जाना कि आखिर उस दिन का मंजर कैसा था.  जब एक के बाद एक बच्चे छपरा सदर अस्पताल में गंभीर हालत में पहुंच रहे थे और चिकित्सकों के साथ साथ प्रशासन पुलिस और स्थानीय लोग और मीडिया कर्मी बच्चों की सहायता उन्हें एम्बुलेंस से उतारने और इलाज कराने में जुटे थे.

सारण के वरिष्ठ फोटो जर्नलिस्ट विकास कुमार उनमें से एक है, जिन्होंने इस घटना की पल पल की तस्वीरों को अपने कैमरे में कैद किया. उस समय को याद कर विकास सहम जाते है. कहते हैं कि तस्वीर लेते लेते एक समय ऐसा आया जब हम सब बच्चों की मदद में जुट गए. फ़ोटो लेना जिम्मेवारी थी और बच्चों की मदद करना दायित्व.

घटना के बाद सरकार ने उठाये कदम

हालांकि की इस घटना के बाद सरकार ने मिड डे मील की गुणवत्ता सम्बन्धी कई कदम भी उठाये. बहरहाल घटना के बाद से सरकार ने गांव को सुविधा मुहैया कराई है. विद्यालय का भी नया भवन बना है और कई अन्य विकास के कार्य भी हुए है. इस सब के बीच जिन्होंने अपने घरों के चिराग को खो दिया उन्हें वे याद कर विकास के बीच अपने बच्चे को आज भी तलाशते है. विकास तो हुआ पर बच्चे लौट के फिर नही आ सकते.

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