शहर भर में मजदूर जैसे दर-बदर कोई न था,
जिसने सबका घर बनाया, उसका घर कोई न था…
मजदूर सिर्फ वह नहीं जो घर बनाता है, मजदूर वह भी है जो किसी दूसरे संस्था में काम करते हुए पगार लेता है, बशर्ते जिसे हम मजदूर कहते हैं, वह उसे राजमिस्त्री या लेबर कहा जाता है, जो दूसरों के सपनों के आशियाने को बनाता है. वहीं जो पगार पर काम करता है वह अपने सपनों की इमारतों को खड़ा करता है.
शायद मजदूरी सब करते हैं, भले ही किसी की पगार प्रतिदिन मिल जाती है तो किसी की पगार महीने में मिलती हो. किसी की पगार ज्यादा है तो किसी की कम. मजदूर दिवस पर मजदूर मनोज कुमार ने बताया कि लोगों को सोचना चाहिए कि घरों में लाखों रुपए खर्च कर देते हैं, लेकिन जब हम दिन भर जीतोड़ मेहनत करके शाम में पगार लेते हैं, लोग पैसे देने में आनाकानी भी करते हैं, घर मे महंगी से महंगी वस्तु लगाने के लिए नहीं सोचते लेकिन उनके सपनों को एक मजदूर पूरा करता है उन्हें पैसे देने कतराते हैं. मजदूर दिवस हमारे लिए तो शायद बना ही नहीं अगर हमारे लिए मजदूर दिवस पर छुट्टी पर जाए तो शाम में घर लौटने पर चूल्हा भी नहीं जलेगा.
बताते चलें कि भारत में पहली बार 1 मई 1923 को हिंदुस्तान किसान पार्टी ने मद्रास में मजदूर दिवस मनाया था. 1 मई को 80 से ज्यादा देशों में राष्ट्रीय छुट्टी होती है.
मजदूर दिवस की शुरुआत कनाडा में 1972 में हुई. यह मजदूरों के अधिकारों की मांग के लिए शुरू किया गया था. मजदूर दिवस को उत्सव के रूप में पहली बार अमेरिका में 5 सितंबर 1882 को मनाया गया. दुनिया के कई देशों में मजदूर दिवस ‘मई डे’ के रूप में मनाया जाता है.A valid URL was not provided.