इसुआपुर में शास्त्र मर्मज्ञ विद्वान पंडितों की हुई बैठक, 7 अक्टूबर को मनाए जीवत्पुत्रिका व्रत

इसुआपुर में शास्त्र मर्मज्ञ विद्वान पंडितों की हुई बैठक, 7 अक्टूबर को मनाए जीवत्पुत्रिका व्रत

इसुआपुर में शास्त्र मर्मज्ञ विद्वान पंडितों की हुई बैठक, 7 अक्टूबर को मनाए जीवत्पुत्रिका व्रत

Isuapur: इसुआपुर बाजार स्थित बिशुनपुरा धर्मशाला परिसर में जिले के शास्त्र मर्मज्ञ विद्वान पंडितो, मनीषियों, आचार्यों की बैठक पूर्व प्राचार्य आचार्य सुधाकर दत्त उपाध्याय की अध्यक्षता में हुई। जिसमें व्रत त्योहारों की तिथि में अलग-अलग तर्क व मतभेदों पर विस्तार से मंथन व चर्चा की गई।

जीवत्पुत्रिका व्रत के बारे में बताया गया कि 7 अक्टूबर को अष्टमी तिथि में सूर्योदय हो रहा है। जीवत्पुत्रिका का व्रत उदय कालीन अष्टमी तिथि को ही किया जाना चाहिए। सप्तमी अष्टमी यानी जीवात्पुत्रिका व्रत कदापि करने योग्य नहीं है।

” यात्रोदयं वै कुरुते दिनेश: तथा भवएज्जईवइत पत्रिका सा ”

साथ ही कहा गया कि ज्योतिषशास्त्र षट्शास्त्रों का नेत्र है। इस शास्त्र में मानव जीवन के कल्याणार्थ मांगलिक मुहूर्त निर्धारित किए गए हैं।

” देवता मंत्राधीना ते मंत्रा: ब्रह्मणाधीना ” अर्थात् चतुर्वर्गाश्रम व्यवस्था महाराज मनु के द्वारा रचित ग्रंथ में इसकी विशद व्याख्या की गई है। सभी वर्णों में ब्राह्मणों को श्रेष्ठ माना गया है। क्योंकि ब्राह्मण ही समाज का सम्यक दशा और दिशा के ज्ञान और भान कराने वाले होते हैं। जीवत्पुत्रिका व्रत की तिथि के बारे में वैसे तो ” नैकोमतिर्यस्य मतं विभिन्ने ” इस सिद्धांत के द्वारा महाजनों येन गत: स पश्चात ” इस निर्णय से मनीषियों के द्वारा प्रत्येक व्रत त्योहारों के संबंध में अपना सटिक, उचित एवं व्यवहारयुक्त निर्णय दिया गया है। प्रत्येक व्यावहारिक पंचांगों में किसी भी व्रत त्यौहार के संबंध में ठोस प्रमाणों के द्वारा सही निर्णय दिया जाता रहा है।

वहीं निर्णय सर्वजन हृदयग्राही माना जाता रहा है। किंतु इस वर्ष जीवत्पुत्रिका व्रत के संबंध में विगत निर्णयों को दरकिनार करते हुए कुछ भ्रामक, तथ्यहीन एवं परंपरा से हटकर पंचांगकारों ने ब्राह्मण समाज को आपस में वाद विवाद कराने का कार्य किया है।

पूर्व प्राचार्य आचार्य रामेश्वर दुबे ने कहा कि आज भी इस समाज में शास्त्रों के मर्मज्ञ मनीषी विद्वान विद्यमान हैं। विद्वानों, ब्राह्मणों को समाज में जो इज्जत, प्रतिष्ठा मिल रही है, हमें उसे बरकरार रखना होगा। खासकर हमारी अगली पीढ़ी को अपने शिक्षा, संस्कार, चरित्र व कर्तव्यों से हमारी संस्कृति को संजोए रखना होगा।

बैठक में पूर्व प्राचार्य आचार्य यदुनंदन पाठक, पूर्व प्राचार्य आचार्य भागवत पाठक, पूर्व प्राचार्य आचार्य सुरेन्द्र उपाध्याय, पूर्व प्राचार्य आचार्य विश्वनाथ तिवारी, पूर्व प्राचार्य आचार्य रामेश्वर दुबे, आचार्य अशोक तिवारी, शिक्षक आचार्य बबन तिवारी, आचार्य अनंत उपाध्याय, पंडित नंदकिशोर चतुर्वेदी, हरिवंश दुबे, दीपक शांडिल्य, सुजीत चौबे, कमलाकांत तिवारी, वशिष्ठ नारायण पांडेय व अन्य थे।

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