दशक का सफर..
छपरा टुडे ने आज अपने अनवरत यात्रा के दशक पूरे किए हैं।
मैं, इस यात्रा के सहयोगियों, मार्गदर्शकों, पाठकों, दर्शकों और निंदकों का आभार व्यक्त करना चाहता हूं। किसी काम को शुरू करना आसान होता है, पर उसे एक सम्यक गति देते हुए जारी रखना कठिन होता है। हमारी टीम ने भाग- दौड़, आपाधापी से इतर विश्वसनीय और सटीक खबरों को अपने अंदाज में हमेशा आपतक पहुंचाया है। अब हमें आपके विश्वास के दशक का साथ मिल गया है।
बीते 10 सालों में बहुत उतार चढ़ाव आए हैं। डिजिटल मीडिया पोर्टल पर उठने वाले सवालों को भी हमने झेला है। लेकिन, इन सबसे हम कभी भी कर्तव्य पथ से डिगे नहीं हैं। बल्कि इन सवालों ने हमें और मजबूत किया है।
भारत सरकार के सूचना एवम प्रसारण मंत्रालय ने वर्ष 2021 में Digital Media Ethics Code Rules, 2021 लाकर डिजिटल में पत्रकारिता के मानकों के अनुरूप कार्य करने वालों को बड़ी राहत दी। इसके साथ ही आपका www.chhapratoday.com मंत्रालय के नियम अनुसार Web Journalists’ Association of India के Self Regulatory Body के अंतर्गत पंजीकृत होने वाले वेबसाइटों की प्रथम सूची में शामिल हुआ।
यह उन लोगों को जवाब था जो अक्सर गाहे बगाहे हमारी विश्वसनीयता को धूमिल कर अपना उल्लू सीधा करने में जुटे थें।
अब एक दौर ऐसा भी आया जब कई लोगों ने छपरा टुडे को अपना प्रतिद्वंदी भी बता दिया। लेकिन, मैं और मेरी टीम किसी को अपना प्रतिद्वंदी नही मानती, क्योंकि हम हर दिन खुद से ही मुकाबला कर खुद को और बेहतर करने के प्रयास में जुटें हैं।
मुझे खुशी है कि डिजिटल मीडिया के माध्यम से खबरों को पाठकों, दर्शकों तक पहुंचाने की जो लकीर हमने वर्ष 2012 में खींची थी आज उस पर बड़ी संख्या में संस्थाएं मौजूद हैं, उन सभी संस्थाओं को भी शुभकामनाएं।
आज डिजिटल के माध्यम से हर छोटी बड़ी खबरें पाठकों तक पहुंच रहीं हैं, हर समस्या तुरंत खबर बन रही है। हर हलचल पर विश्लेषण हो रहा है, यहां तक कि डिजिटल मीडिया खबरों में आगे रह रही है और बाकी माध्यम उसे अपने कंटेंट में शामिल करने को मजबूर भी हो रहे हैं।
पत्रकारिता दो धारी तलवार के समान होती है। जब तक आप किसी के लिए अच्छा लिखते है वह खुश रहता है, पर जब आप उसकी एक छोटी सी गलती उभार देते हैं तो वह आप पर तरह तरह के आरोप भी मढ देता है। हां, इस दौर में लोगों के सॉफ्ट टारगेट पत्रकार भी बने हैं, जिसको जो मर्जी पत्रकारों के बारे में लिख रहा है। इसमें संयम नहीं दिखता।
डिजिटल मीडिया के आने के बाद से पाठक तुरंत अपने विचार जाहिर कर देते हैं, जो पहले संपादक के पास पत्राचार से ही संभव होता था। इससे परस्पर संवाद का विकास हुआ है और समस्याओं को तेजी से खबरों के रूप में पड़ोसा भी जाने लगा है।
समाज के सजग प्रहरी के रूप में हमने समय समय पर अपनी जवाबदेही और सामाजिक दायित्वों के अनुसार कार्य किए हैं। शहर में तनाव की कई खबरों में हमने आपाधापी और अपने #Views को बढ़ाने की होड़ की जगह संयम रखते हुए आपतक खबरों को पहुंचाया है। क्योंकि हम जानते हैं डिजिटल मीडिया की खबरों की पहुंच बाकी माध्यमों से कई गुणा ज्यादा है। आपतक विश्वसनीय खबरें ही पहुंचे इसकी हमने पूरी निष्ठा से कोशिश की है।
दूर देश में रहने वाले अपनी मिट्टी की सुगंध से रूबरू होते रहें इस संकल्पना के साथ शुरू हुए www.chhapratoday.com की वेबसाइट को आज लाखों लोग देश के साथ साथ विश्व के हर कोने से पढ़ रहें हैं। देश के अन्य हिस्सों और विदेशों में रह रहे हमारे पाठकों, दर्शकों तक खबरों के साथ साथ पर्व – त्योहारों का अहसास भी पहुंचता रहे इसके लिए हर त्योहार में हमारी टीम की कोशिश रहती है कि हम इसे जरूर कवर करें।
क्योंकि हम जानते हैं कि आप हर दिन अपनी मांटी, देश को याद करते हुए यही गुनगुनाते होंगे…
“हम तो हैं परदेश में, देश में निकला होगा चांद”
चिर सजग आँखे उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना!
जाग तुझको दूर जाना!
अचल हिमगिरि के हृदय में आज चाहे कम्प हो ले,
या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले;
आज पी आलोक को डोले तिमिर की घोर छाया,
जाग या विद्युत्-शिखाओं में निठुर तूफान बोले!
पर तुझे है नाश-पथ पर चिह्न अपने छोड़ आना! जाग तुझको दूर जाना! -महादेवी वर्मा
अब आगे के सफर में आप अपना विश्वास, सहयोग ऐसे ही बनाए रखियेगा ऐसी अपेक्षा है।
सुरभित दत्त
संपादक
छपरा टुडे डॉट कॉम (www.chhapratoday.com)
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उपन्यास और कहानियों की विशिष्ट परंपरा विकसित कर कई पीढ़ियों को प्रभावित करने वाले मुंशी प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य में यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। उनके लेखन ने हिंदी साहित्य को नया अर्थ और आयाम दिया। इन्हीं विशिष्टताओं की वजह से उनका साहित्य ऐसा दस्तावेज है, जिसके बिना हिंदी साहित्य की विकास यात्रा को लेकर किया गया हर अध्ययन अधूरा है। 1918-1936 का कालखंड प्रेमचंद युग के नाम से जाना जाता है।

मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के लमही गांव में हुआ। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। शुरू में एक लंबे समय तक वे नवाब राय के नाम से उर्दू में लेखन करते थे। 1909 में कहानी संग्रह सोज़े वतन की प्रतियां ब्रिटिश सरकार ने जब्त कर ली तो उर्दू अखबार ज़माना के संपादक मुंशी दया नारायण निगम ने ब्रिटिश सरकार के कोप से बचने के लिए उन्हें प्रेमचंद नाम सुझाया। यह उन्हें ऐसा पसंद आया कि वे आजीवन इसी नाम से लेखन करते रहे। मशहूर उपन्यासकार शरदचंद्र चटोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट का नाम दिया था। हिंदी और उर्दू में समान रूप से लोकप्रिय रहे उपन्यासकार, कहानीकार और सम्पादक प्रेमचंद ने साहित्य के जरिये अपने समय पर प्रतिरोध के स्वर और सामाजिक चेतना की छाप छोड़ी।

प्रेमचंद के साहित्य का केंद्रीय बिंदु आमजन और उससे जुड़ा पक्ष है। फंतासी की दुनिया से निकलकर प्रेमचंद का साहित्य यथार्थवाद की धरातल पर गरीबी, छूआछूत, जातिभेद, दहेज प्रथा, सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार जैसे जरूरी सवालों से जूझता है। नेपथ्य में स्वतंत्रता आंदोलन और समाज सुधार आंदोलनों की अनुगूंज भी है।

उनकी साहित्यिक कृतियों में गोदान, गबन, रंगभूमि, कर्मभूमि, सेवासदन जैसे लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास हैं। कफन, पंच परमेश्वर, पूस की रात, बड़े घर की बेटी आदि तीन सौ से अधिक कहानियां हैं। उन्होंने नाटक और निबंध भी बड़ी संख्या में लिखे। उन्होंने हिंदी साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन व प्रकाशन किया। महाजनी सभ्यता उनका अंतिम निबंध, कफन अंतिम कहानी, गोदान अंतिम उपन्यास और मंगलसूत्र अंतिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है।

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डॉ. वेदप्रताप वैदिक
संसद के भाषणों में कौन से शब्दों का इस्तेमाल सदस्य कर सकते हैं और कौन से का नहीं, यह बहस ही अपने आप में फिजूल है। आपत्तिजनक शब्द कौन-कौन से हो सकते हैं, उनकी सूची 1954 से अब तक कई बार लोकसभा सचिवालय प्रकाशित करता रहा है। इस बार जो सूची छपी है, उसे लेकर कांग्रेस के नेता आरोप लगा रहे हैं कि इस सूची में ऐसे शब्दों की भरमार है, जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के लिए विपक्षी सांसदों द्वारा इस्तेमाल किए जाते हैं। जैसे जुमलाजीवी, अहंकारी, तानाशाही आदि। दूसरे शब्दों में संसद तो पूरे भारत की है लेकिन अब उसे भाजपा और मोदी की निजी संस्था का रूप दिया जा रहा है। विरोधी नेताओं का यह आरोप मोटे तौर पर सही सा लगता है लेकिन वह अतिरंजित है।

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने साफ-साफ कहा है कि संसद में बोले जानेवाले किसी भी शब्द पर प्रतिबंध नहीं है। सभी शब्द बोले जा सकते हैं लेकिन अध्यक्ष जिन शब्दों और वाक्यों को आपत्तिजनक समझेंगे, उन्हें वे कार्रवाई से हटवा देंगे। यदि ऐसा है तो इन शब्दों की सूची जारी करने की कोई तुक नहीं है, क्योंकि हर शब्द का अर्थ उसके आगे-पीछे के संदर्भ के साथ ही स्पष्ट होता है। इस मामले में अध्यक्ष का फैसला ही अंतिम होता है। कोई शब्द अपमानजनक या आपत्तिजनक है या नहीं, इसका फैसला न तो कोई कमेटी करती है और न ही यह मतदान से तय होता है। कई शब्दों के एक नहीं, अनेक अर्थ होते हैं।

17 वीं सदी के महाकवि भूषण की कविताओं में ऐसे अनेकार्थक शब्दों का प्रयोग देखने लायक है। भाषण देते समय वक्ता की मंशा क्या है, इस पर निर्भर करता है कि उस शब्द का अर्थ क्या लगाया जाना चाहिए। इसी बात को अध्यक्ष ओम बिड़ला ने दोहराया है। ऐसी स्थिति में रोजाना प्रयोग होनेवाले सैकड़ों शब्दों को आपत्तिजनक की श्रेणी में डाल देना कहां तक उचित है?

जैसे जुमलाजीवी, बालबुद्धि, शकुनि, जयचंद, चांडाल चौकड़ी, पिट्ठू, उचक्का, गुल खिलाए, दलाल, सांड, अंट-संट, तलवे चाटना आदि। यदि संसदीय सचिवालय द्वारा प्रचारित इन तथाकथित ‘आपत्तिजनक’ शब्दों का प्रयोग न किया जाए तो संसद में कोई भी भाषण पूरा नहीं हो सकता। इसीलिए इतने सारे शब्दों की सूची जारी करना निरर्थक है। हां, सारे सांसदों से यह कहा जा सकता है कि वे अपने भाषणों में मर्यादा और शिष्टता बनाए रखें। किसी के विरुद्ध गाली-गलौज, अपमानजनक और अश्लील शब्दों का प्रयोग न करें।

जिन शब्दों को ‘असंसदीय’ घोषित किया गया है, उनका प्रयोग हमारे दैनंदिन कथनोपकथन, अखबारों और टीवी चैनलों तथा साहित्यिक लेखों में बराबर होता रहता है। यदि ऐसा होता है तो क्या यह संसदीय मर्यादा का उल्लंघन नहीं माना जाएगा? इस तरह की सूची प्रकाशित करके क्या संसद अपनी प्रतिष्ठा को हास्यास्पद नहीं बना रही है? भारत को ब्रिटेन या अमेरिका की नकल करने की जरूरत नहीं है। ये राष्ट्र आपत्तिजनक शब्दों की कोई सूची जारी करते हैं तो क्या हम भी उनकी नकल करें, यह जरूरी है? इस मामले में हमारे सत्तारूढ़ और विपक्षी नेता एक फिजूल की बहस में तू-तू-मैं-मैं कर रहे हैं।

(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।)

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Chhapra: प्रशांत किशोर ‘जन सुराज’ अभियान के तहत बिहार के विभिन्न जिलों का दौरा कर रहे हैं। इसी क्रम में वे सोमवार को सारण पहुंचे।

जिले में कई अलग अलग कार्यक्रमों में भाग लेते हुए प्रशांत किशोर ने समाज के प्रबुद्ध नागरिकों, युवाओं, महिलाओं, शिक्षकों, चिकित्सकों, अधिवक्ताओं से जन सुराज की सोच पर संवाद किया। लोगों ने भी प्रशांत किशोर से जन सुराज के बारे में जाना और सभी जरूरी सवाल पूछे।

प्रशांत किशोर ने छपरा टुडे डॉट कॉम से खास बातचीत में सभी सवालों के जवाब दिए और जन सुराज की परिकल्पना के बारे में अपनी रणनीति की चर्चा की।

देखिये Exclusive Interview

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प्रभुनाथ शुक्ल

योग हमारा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक ज्ञान है। योग की सार्थकता को दुनिया के कई धर्मों ने स्वीकार किया है। योग सिर्फ व्यायाम का नाम नहीं है बल्कि मन, मस्तिष्क, शारीरिक और विकारों को नियंत्रित करने का माध्यम भी है। जब समाज अच्छा होगा तो देश की प्रगति में हमारा अहम योगदान होगा। आज पूरी दुनिया योग और प्राणायाम की तरफ बढ़ रही है। योग भारत के लिए आने वाले दिनों में बड़ा बाजार साबित हो सकता है। विश्व के लगभग 200 से अधिक देश भारत की इस गौरवशाली वैदिक परंपरा का अनुसरण कर रहे हैं। योग को अब वैश्विक मान्यता मिल गई है। कोरोना संक्रमण काल में भी योग हमारे लिए संजीवनी साबित हो रहा है। हम योग को अपना कर इस महामारी में भी अपने स्वस्थ रख सकते हैं। भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है-‘योगः कर्मसु कौशलम’ यानी हमारे कर्मों में सर्वश्रेष्ठ योग है। योग यज्ञ है और यज्ञ कर्म है। योग जीवात्मा और परमेश्वर के मिलन का साधन मात्र ही नहीं बल्कि ईश साधना का भी साध्य भी है। योगेश्वर भगवान कृष्ण ने योग को सर्वोपरि बताया है। उन्होंने कहा है कि ‘योगस्थः कुरु कर्माणि’ इसका तात्पर्य है कि योग में स्थिर होकर ही सद्चित कर्म संभव है। गीता का छठवां अध्याय योग को समर्पित है।

भारत में योग की परंपरा 5000 हजार साल पुरानी है। 11 दिसम्बर, 2014 को इसका प्रस्ताव भारत ने संयुक्त राष्ट्र में दिया था। अमेरिका और यूरोप समेत दुनिया के 177 देशों ने भारत के पक्ष में वोट किया था, जिसके बाद भारत दुनिया का विश्वगुरु बन गया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 90 दिनों के भीतर पीएम मोदी के प्रस्ताव को मंजूर किया। हम योग के 21 आसनों को अपनाकर अपनी जिंदगी को सुखी, शांत और निरोगी बनाकर खुशहाल जीवन जी सकते हैं। जब हम तन और मन से स्वस्थ रहेंगे तो राष्ट्र निर्माण और उसके विकास में अपनी अहम भूमिका निभा सकते हैं। योगगुरु बाबा रामदेव योग को वैश्विक मान्यता मिलने पर इसे भारत की जीत बताया था। दुनिया योग को अपने जीवन की दिनचर्या बना लिया है। योग संपूर्ण जीवन और चिकित्सा पद्धिति बन गया है। दुनिया में शांति युद्ध से नहीं योग से आएगी। भारत के साथ दुनिया में 20 करोड़ से अधिक लोग योग साधना का लाभ उठा रहे हैं। आधुनिक युग की व्यस्त दिनचर्या में योग हमारे लिए अमृत है। अपनी जिंदगी को खुशहाल और डिप्रेशन मुक्त बनाने के लिए योग हमें खुला आकाश देता है। हम धर्म, जाति, भाषा, संप्रदाय के साथ बंधकर स्वयं के साथ देश का अहित करेंगे।

योग शास्त्र का इतिहास गौरवशाली उपलब्धि से अटा पड़ा है। हमारे यहां लययोग, राजयोग का भी वर्णन है। योगशास्त्र का इतिहास गौरवशाली उपलब्धि से अटा पड़ा है। हमारे यहां लययोग, राजयोग का भी वर्णन है। चित्त की निरुद्ध अवस्था लययोग में आती है। राजयोग सभी योगों से श्रेष्ठ बताया गया है। महर्षि पतंजलि की योग परंपरा भारत में अधिक समृद्धशाली है। योगगुरु बाबा रामदेव आज पतंजलि योग व्यवस्था के संवाहक बने हैं। दुनिया भर में योग की महत्व स्थापित करने में पतंजलि योग संस्थान ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है।योग और आयुर्वेद को उन्होंने वैश्विक स्वीकारोक्ति बना दिया है। पतंजलि योग साधना के आठ आयाम हैं। जिसमें यम, नियम, आसन, प्रणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि है। योग का संबंध सिंधु घाटी सभ्यता से भी है। प्राचीन काल की कई मूर्तियां योग मुद्रा में स्थापित हैं।

भगवान शिव को योग मुद्रा में देखा जा सकता है। बुद्ध की मूर्तियां भी योग साधना में स्थापित हैं। बौद्ध और जैनधर्म में भी योग की महत्ता पर काफी कुछ है। बौद्ध और धर्म के अलावा ईसाई और इस्लाम में सूफी संगीत परंपरा में भी योग की बात आई हैं। भारत की योग व्यस्था को पटल पर लाने में योग गुरु बाबा रामदेव और बीकेएस अंयगर के योगदान को नहीं भूलाया जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल से संयुक्तराष्ट्र संघ ने भी योग के महत्व को स्वीकार किया है। प्रधानमंत्री मोदी योग को लेकर स्वयं बेहद जागरूक है। वह योग करते हुए अपने कई वीडियो सोशल मीडिया पर साझा करते रहते हैं। फिट इंडिया, हिट इंडिया उनका मूलमंत्र है। इसके साथ वह लोगों से अपील करते हैं कि आप योग के जरिए अपने मन, मस्तिष्क और शरीर को स्वस्थ रखें, जिससे आपका सहयोग देश के विकास में अच्छे तरीके से हो। विज्ञान और विकास के बढ़ते कदम तनाव की जिंदगी दे रहा है। जिंदगी की गति अधिक तेज हो चली है। लोगों के जीने का नजरिया बदल रहा है। काम का अधिक दबाव बढ़ रहा है इससे हाईपर टेंशन, और दूसरी बीमारियां फैल रही हैं। तनाव का सबसे बेहतर इलाज योग विज्ञान में हैं, वहीं लोगों में सुंदर दिखने की बढ़ती ललक भी योग और आयुर्वेद विज्ञान को नया आयाम देगी। यह पूरे भारत के लिए गर्व का विषय है। आम आदमी के जिंदगी में तनाव तेजी से बढ़ रहा है।

पूरी जिंदगी असंयमित हो गई है, जिसकी वजह से परिवार में तनाव और झगड़े होते हैं। लोगों के पास आज पैसा है लेकिन शांति नहीं है, जिसकी वजह से परिवार में संतुलन गायब है। लोग खुद से संतुष्ट नहीं है। इस स्थिति से निकालने के लिए योग सबसे बेहतर उपाय हो सकता है। इसलिए भागदौड़ की जिदंगी को अगर संयमित और संतुलित करना है तो मन को स्थिर रखना होगा। जब तक हमें मानसिक शांति नहीं मिलेगी तब तक हम जीवन के विकारों से मुक्त नहीं हो सकते हैं। उस स्थिति में योग ही सबसे सरल और सुविधा युक्त माध्यम हमारे पास उपलब्ध है। हमारी हजारों साल की वैदिक परंपरा को वैश्विक मंच मिला है। योग का प्रयोग अब दुनिया भर में चिकित्सा विज्ञान के रूप में भी होने लगा है, उसे स्थिति हमें अपने जीवन के साथ जीने का नजरिया भी बदलना होगा। योग से संबंधित यूनिवर्सिटी, शोध संस्थान, आयुर्वेद मेडिसिन उद्योग नई उम्मीदें और आशाएं लेकर आएगा। भारत और दुनिया भर में योग के लिए संस्थान स्थापित हुए हैं। योग को पर्यटन उद्योग के रूप में विकसित किया जा सकता है। योग स्वस्थ दुनिया की तरफ बढ़ता कदम है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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पटना: केन्द्र सरकार की सेना भर्ती योजना अग्निपथ को लेकर देशभर में मचे बवाल के बाद विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने केन्द्र सरकार से 20 सवाल किये हैं। उन्होंने कहा कि अग्निपथ योजना को लेकर युवाओं के मन में जो संशय है, उसे केन्द्र सरकार दूर करे। पहले भी केंद्र सरकार जो भी योजना लाई, वह फेल रही है।

तेजस्वी यादव ने दिल्ली में आयोजित प्रेस वार्ता में कहा कि तीन चार दिन से कई राज्यों में विरोध प्रदर्शन हो रहा है। देश सेवा करने वाले युवाओं में नाराजगी है। सरकार के फैसले से वे दुखी हैं।

तेजस्वी के 20 सवाल

-केंद्र बताए कि चार साल में बहाल होने वाले सैनिकों को 90 दिन की छुट्टी मिलेगी।

-अग्निपथ योजना में ठेके पर अफसरों की भर्ती क्यों नहीं की जा रही है। सिर्फ सैनिकों के लिए क्यों।

-सरकार शिक्षित युवाओं के लिए तैयार की गई मनरेगा या संघ का गुप्त एजेंडा बताये।

-केंद्र बताए कि चार साल की देश सेवा के बाद मिलने वाली राशि पर टैक्स लगेगा या नहीं। अगर टैक्स लगेगा तो कितनी राशि बचेगी।

-अग्निवीरों को दूसरे सैनिकों की तरह गैच्यूटी देगी या नहीं।

-क्या सरकार अग्निवीरों को कैंटीन, पूर्व सैनिकों को मिलने वाले चिकित्सीय सुविधा देगी ।

-क्या सरकार ने यह योजना बनाने से पहले डिफेंस एक्सपर्ट से किसी प्रकार फीडबैक लिया गया या नहीं। अब तक सभी एक्सपर्ट ने इसे हानिकारक बताया है।

-क्या यह पहली सरकारी योजना नहीं है, जिसमें चार साल के बाद विशुद्ध बेरोजगारी की संभावना है।

-इस योजना में नौकरी पाकर 22 वर्ष की आयु में युवा रिटायर हो जाएंगे। इससे उनकी पढ़ाई बाधित हो जाएगी।

-विश्लेषकों का मत है कि एक बड़ी आबादी की 22 वर्ष की उम्र में रिटायर होने से विधि व्यवस्था प्रभावित होगी।

-क्या यह नहीं दर्शाता है कि सरकार में दूरदर्शिता का अभाव है।

-वन रैंक वन पेंशन की जगह नो रैंक, नो पेंशन योजना।

-सेना में 50-60 हजार सैनिक रिटायर हुए लेकिन एक भी भर्ती नहीं निकाली गई। अब रिक्त पदों पर कुछ हजार सैनिक बहाल कर रहे हैं वह भी सिर्फ चार के लिए। यह युवाओं के साथ नाइंसाफी है।

-अगर देश के सबसे बड़े नियोक्ताओं रेलवे,सेना में ठेके पर नौकरी पर देना सही नहीं। सरकार बताए कि अब युवा कहां सरकारी नौकरी खोजेंगे।

-अगर भाजपा को ठेकेदारी प्रथा इतनी ही पसंद है तो पहले अपने मंत्री, सांसद और अधिकारियों को सरकारी नौकरी से इस्तीफा दिलाएं।

-एक तरफ सरकार बड़े उद्योगपतियों और पूंजीपतियों के लाखों करोड़ के लोन माफ करती है। दूसरी तरफ सेना के बजट में कटौती की गई है। पिछले आठ साल में 11 लाख करोड़ का लोन माफ किया गया। दूसरी तरफ कॉस्ट कटिंग की गई। सेना भारत का प्रतिष्ठित संस्थान है। क्या सरकार को सेना में दखल देना सही है।

-सरकार को बेरोजगारी की विकराल समस्या को अच्छे से एड्रेस क्यों नहीं करती है। क्या इस पर संवेदनशीलता से विचार करने की जरुरत नहीं है।

-केंद्र बताये कि 70 फीसदी युवा नौकरी को लेकर तनाव में नहीं है।

-क्या सरकार बेरोजगारी के कारण उत्पन्न और हिंसा के लिए सरकार जिम्मेदार नहीं है। 10 लाख से अधिक पद केंद्र में रिक्त है। इसके लिए दोषी कौन है। इसके लिए विपक्ष कैसे जिम्मेदार है।

-क्या भारत सरकार ने दो करोड़ नौकरी 2022 तक देने का लोक लुभावन भाषण दिया था। उसका क्या हुआ।

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पटना: केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गड़करी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में बिहार को 13585 करोड़ रुपये की आज 15 राष्ट्रीय उच्च मार्ग परियोजनाओं की सौगात मिली।

इनमे सबसे महत्वपूर्ण उत्तर बिहार और दक्षिण बिहार के बीच लाइफलाइन गांधी सेतु की दूसरे लेन (डाउन स्ट्रीम) शामिल है। कुल छह किमी लंबाई में इसके सुपर स्ट्रक्चर रिप्लेसमेंट प्रोजेक्ट पर 1742 करोड़ रुपये का खर्च आया है।

बिहार को  सड़क परियोजनाओं की सौगात

-मुंगेर-भागलपुर-मिर्जाचौकी फोर लेन ग्रीन फील्ड। इस सड़क की लंबाई 124 किमी और लागत 5,788 करोड़ रुपये है।

-उमगांव से भेजा तक दो लेन सड़क, इसकी लंबाई 89 किमी और लागत 1614 करोड़ है।

-औरंगाबाद से चोरदाहा (झारखंडसीमा) छह लेन सड़क परियोजना। यह सड़क 70 किमी लंबी और इसकी लागत 1,508 करोड़ है।

-पुरानी मुंगेर-मिर्जाचौकी सड़क। इसकी लंबाई 108 किमी और लागत 1044 करोड़ है।

-बेगूसराय शहर में चार लेन एलिवेटेड फ्लाईओवर। इसकी लंबाई चार किमी और लागत 256 करोड़ है।

-गोपालगंज शहर में चार लेन एलिवेटेड फ्लाईओवर। इसकी लंबाई तीन किमी और लागत 185 करोड़ है।

-कायम नगर से आरा शहर तक चार लेन सड़क। इसकी लंबाई नौ किमी और लागत 98 करोड़ है।

-पटना एम्स से नौबतपुर के बीच अतिरिक्त दो लेन सड़क। इसकी लंबाई 11 किमी और लागत 88 करोड़ रुपये है।

-जयनगर बाईपास पर दो लेन अप्रोच रोड के साथ आरओबी। इसकी लंबाई एक किमी और लागत 70 करोड़ है।

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मगध विश्वविद्यालय मुख्यालय में गुरुवार को विद्यार्थी परिषद से जुड़े छात्र नेताओं ने पोस्टर चिपका कर एमयू के प्रभारी कुलपति व अन्य पदाधिकारियों को ढूंढ़ने वालों को एक रुपये का इनाम देने की घोषणा की है.

परिषद ने एमयू स्थित प्रशासकीय भवन में कुलपति, कुलसचिव, परीक्षा नियंत्रक, एफओ सहित अन्य पदाधिकारियों के चैंबर के बाहर पोस्टर चिपका कर एमयू मुख्यालय से गायब रहने वाले पदाधिकारियों को ढूंढ़ने वालों को इनाम देने की बात कही है. छात्रों ने पोस्टर के साथ विरोध प्रदर्शन करते हुए कहा कि एमयू के प्रभारी कुलपति सहित तमाम पदाधिकारी प्रभार में हैं. पदाधिकारी एमयू मुख्यालय में नियमित रूप से मौजूद नहीं रहते हैं.

इस कारण छात्रों की समस्याओं का समाधान भी नहीं हो पा रहा है. विश्वविद्यालय दिन व दिन समस्याओं में जकड़ता जा रहा है.और इससे सबसे ज्यादा नुकसान छात्र-छात्राओं का हो रहा है. समय पर परीक्षा के आयोजन के साथ ही परीक्षा परिणाम के प्रकाशन नहीं होने व दो वर्षों के कोर्स को पांच वर्षों में भी पूरा नहीं किये जाने से छात्रों का भविष्य चौपट होते जा रहा है.

यहां संचालित वोकेशनल कोर्सों में कर्ज लेकर पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं के सत्र लेट होने से परेशानी बढ़ती जा रही है. छात्रों का रोजगार पाने की उम्र निकलती जा रही है और एमयू प्रशासन इस दिशा में कोई ध्यान नहीं दे रहा है. छात्रों ने राजभवन पर निशाना साधते हुए कहा कि एमयू के छात्रों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है. इसे बर्दास्त नहीं किया जायेगा और जल्द ही एक व्यापक आंदोलन शुरू किया जायेगा.

विद्यार्थी परिषद के एमयू संयोजक सूरज सिंह ने बताया कि राजभवन द्वारा एमयू को प्रभारी पदाधिकारियों के भरोसे छोड़ दिया है. इससे छात्रों का भविष्य चौपट हो रहा है. प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य सुबोध कुमार पाठक ने कहा कि विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार का बोलबाला है.

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22 मार्च को होगा बिहार दिवस का आयोजन, तैयारियों को लेकर डीएम ने की बैठक

छपरा :जिलाधिकारी राजेश मीणा की अध्यक्षता में 22 मार्च को बिहार दिवस धूमधाम से मनाने हेतु बैठक समाहरणालय सभागार में आहूत की गयी। जिलाधिकारी महोदय के द्वारा उप विकास आयुक्त सारण की अध्यक्षता में बिहार दिवस मनाने हेतु कमिटि बनाने का निर्देश दिया गया।

बिहार दिवस के अवसर पर प्रातः काल में मैराथन दौड़ के साथ प्रखंडों में खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन किया जाएगा। उसी दिन विकास मेला का भी आयोजन होगा। जिसमें विभिन्न विभागों के द्वारा आकर्षक स्टॉल लगाया जाएगा। स्टॉल में सरकार की योजनाओं से संबंधित जानकारी दी जाएगी। संध्या में एकता भवन में भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। सभी सरकारी भवनों को नीली रोशनी से सजाया जाएगा।
बैठक में उप विकास आयुक्त, जिला स्तरीय पदाधिकारीगण उपस्थित थे।

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आज तारीख है 9 फरवरी 2022 दिन बुधवार और आप अपना दैनिक राशिफल जानना चाहेंगे कि आपका आज का दिन आपकी राशि के अनुसार कैसा रहने वाला हैं. तो चिंता मत कीजिए, हमने आपकी राशि पर पड़ने वाले विभिन्न ग्रहों की चाल के प्रभाव अनुसार आपका आज का दिन कैसा बीतेगा,क्या होगा आज का शुभ अंक, कैसा होगा आज का लक्की रंग, इसके बारे में सटीक आंकलन किया हैं. तो आइए जानते हैं.

मेष (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
यदि आप व्यापारी है और कुछ दिनों से किसी पार्टी के साथ कोई डील पेंडिंग पड़ी है तो वह आज के दिन संपन्न हो जाएगी और आप लाभ में रहेंगे.थकान ज्यादा रहेगा आराम करे लघु उधोग के लिए आर्थिक लाभ मिलेगा परिवार का सलाह मानसिक दबाव कम करेगा. बढ़िया प्रदर्शन रहेगा प्रिये से खुशी मिलेगी.

शुभ रंग: सफेद

शुभ अंक: 8

वृष (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)
यदि आप नौकरी की तलाश में है तो आज के दिन इंटरव्यू के लिए कुछ कॉल्स आ सकते है. ऐसे में घबराएं नहीं और पूरे आत्मविश्वास के साथ इंटरव्यू दे.सेहत पर ज्यादा ध्यान दे. धन कमाने का कई मौके बनेगे अपनी परेशानी को भूलकर परिवार वालो के साथ समय निकाले व्योपारी के लिए शुभ दिन है लाभ ले.

शुभ रंग: स्लेटी

शुभ अंक: 7

 

मिथुन (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)
सहकर्मियों का भरपूर सहयोग मिलेगा और वे आपको समझेंगे. नौकरी में किसी जूनियर के साथ किसी बात को लेकर नोकझोंक तो होगी लेकिन वह जल्दी समाप्त भी हो जाएगी. बच्चे की तरह स्वभाव से सतह पर आएगे.ऊर्जा भरपूर रहेगा अनदेखा मुनाफा होगा. लंबा रुका हुआ काम पूरा होगा. एकांत मे़ समय निकाले.

शुभ रंग: केसरी

शुभ अंक: 6

कर्क (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
यदि आप कोई शारीरिक खेल खेलते है तो आज के दिन मुख्य रूप से सावधानी बरते क्योंकि खेल-खेल में चोट लग सकती है. यह चोट आगे चलकर बड़ी समस्या उत्पन्न करेगी. अन्य कोई शारीरिक समस्या नही होगी और आप एकदम स्वस्थ रहेंगे. आराम करे किसी से झगड़ा हो सकता है.बात कोर्ट कचहरी तक जा सकता है. जिसे धन खर्चा होगा.

शुभ रंग: नीला

शुभ अंक: 4

सिंह (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)
विवाहित लोगों का अपनी पत्नी के साथ मनमुटाव होगा जिस कारण रिश्तों में कटुता का भाव उत्पन्न होगा. इसलिए इस बात का ध्यान रखें और उन्हें समझने का प्रयास करें. मौज-मस्ती रहेगा मनोकामना दुआओं के जरिए पूरा होगा सौभाग्य की प्राप्ती होगा आफिस मे़ परिणाम अच्छे मिलेगे.

शुभ रंग: पीला

शुभ अंक: 9

कन्या (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)

करियर को लेकर कोई बात मन ही मन परेशान करेगी लेकिन किसी के साथ शेयर नहीं कर पाएंगे. पैसों की दिक्कत होगी लेकिन उसमे दोस्तों की सहायता मिलेगी. शराब की आदत छोड़े आपको नुकसान कर रहा है शाम के वक़्त आर्थिक लाभ होगा पुरानी यादे ताजा होगे धन प्राप्ति सुगम होगी. नौकरी में चैन रहेगा.

शुभ रंग: गुलाबी

शुभ अंक: 5

तुला (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
आर्थिक स्थिति तो सही रहेगी लेकिन व्यापार में कम ध्यान लगा पाएंगे. घर के काम ज्यादा होने के कारण व्यापार में कम ध्यान होगा और घर पर ज्यादा. हालांकि आप लाभ में ही रहेंगे और किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होगा.डूबी हुई रकम प्राप्त हो सकती है, प्रयास करें. व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी.

शुभ रंग: भूरा

शुभ अंक: 3

वृश्चिक (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
मित्रों का भरपूर सहयोग तो मिलेगा लेकिन वह पर्याप्त नहीं होगा. घर में शुभ कार्य होने के संकेत है और इस दौरान रिश्तेदारों का भी आना-जाना हो सकता है. नए कार्य में लाभ मिलेगा. उत्साहवर्द्धक सूचना मिलेगी. किसी शुभ कार्य को करने से पहले संकटहर्ता भगवान श्रीगणेश का नाम अवश्य ले.

शुभ रंग: ग्रे

शुभ अंक: 2

धनु (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)
कुछ छोटी-मोटी चीजों को लेकर टेंशन होगी लेकिन ज्यादातर समय आप स्वयं में सुधार का अनुभव करेंगे. इस दौरान आपका मन नयी-नयी चीजों को करने या आजमाने पर रहेगा.नौकरी में कार्यभार रहेगा. घर में तनाव रह सकता है. दूसरे लोग आपसे अधिक अपेक्षा करेंगे.

शुभ रंग: महरून

शुभ अंक: 7

 

मकर (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)
यदि आप किसी से प्रेम करते है तो आज उनसे कह दे, परिणाम बेहतर रहेगा. पहले से ही किसी के साथ प्रेम संबंध में है तो आज के दिन किसी ऐसे व्यक्ति को इसके बारे में पता चल सकता है जिसको आप नहीं बताना चाहते हो.जोखिम व जमानत के कार्य टालें.

शुभ रंग: आसमानी

शुभ अंक: 6

कुम्भ (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)
पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहे छात्रों को अच्छे जॉब ऑफर मिलेंगे जिस कारण मन आनंदित रहेगा. घर पर कुछ अनहोनी घटने की आशंका हैं जिस कारण मन में उदासी का भाव रहेगा.बाहर जाने की योजना बनेगी. शत्रुओं का पराभव होगी. घर-बाहर प्रसन्नता रहेगी.

शुभ रंग: संतरी

शुभ अंक: 9

मीन (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)
घर में तनाव का माहौल रहेगा हालाँकि बड़े-बुजुर्गों के हस्तक्षेप से वह जल्दी सुलझ भी जाएगा. किसी करीबी रिश्तेदार का घर पर आना हो सकता है.प्रसन्नता रहेगी. चोट व रोग से बाधा संभव है. झंझटों में न पड़ें. दुष्टजन हानि पहुंचा सकते हैं.

शुभ रंग: हरा

शुभ अंक: 1

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डॉ. अशोक कुमार भार्गव

भारतीय नवजागरण के अग्रदूत, भारतीय सभ्यता संस्कृति धर्म और अध्यात्म की अनमोल विरासत को विश्व पटल पर सम्मानित करने वाले महान चिंतक स्वामी विवेकानंद युवा शक्ति के सर्वाधिक प्रेरक पुंज और अनुकरणीय आदर्श हैं। 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में जन्मे विवेकानंद जिनका बचपन का नाम नरेन्द्र नाथ था, जिन्हें विश्व धर्म सम्मेलन में सम्मिलित होने के पूर्व खेतड़ी के नरेश ने विवेकानंद का नाम दिया था, उन्होंने सनातन हिन्दू् धर्म के सच्चे व वास्तविक स्वरूप को उसकी पवित्रता और शुचिता को दुनिया के सामने प्रखरता के साथ प्रस्तुत किया। साथ ही इस विश्वास को सुदृढ़ बनाया कि आत्मोन्नति और कल्याण की दृष्टि से सनातन हिन्दु धर्म से बढ़कर धार्मिक सिद्धांत विश्व में कहीं भी अस्तित्व में नहीं है। वे ईश्वर से साक्षात्कार करने की तीव्र जिज्ञासा में दक्षिणेश्वर मंदिर पहुंचे जहां काली माता से उन्होंने अपने लिए विवेक, वैराग्य और भक्ति का वरदान मांगा। जनसेवा के लिए संन्यास धारण किया। देश की दशा का अनुभव कर देशोद्धार का संकल्प लिया।

स्वामी विवेकानंद की भारत की युवा पीढ़ी में गहन आस्था थी और वे स्वयं भी युवा थे उन्होंने उठो जागो और तब तक न रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त ना हो जाए के उदघोष से राष्ट्र की युवा पीढ़ी में नई चेतना, नई शक्ति, नई ऊर्जा और अद्भुत आत्मविश्वास का संचार किया। मेरी मान्यता है कि नि:संदेह युवा शक्ति हमारे राष्ट्र की समाज की अमूल्य संपदा है। वह हमारे राष्ट्र का प्राणतत्व भी है। युवा ही हमारी गति, स्फूर्ति, चेतना, प्रज्ञा और राष्ट का ओज है। वह हमारे देश के भावी कर्णधार और देश की आशाओं, आकांक्षाओं के सुमन है। युवा शक्ति क्या है? कठोपनिषद में उत्तर दिया है जिनकी ऊर्जा अक्षुण्ण है, जिनका यश अक्षय है, जिनका जीवन अंतहीन है, जिनका पराक्रम अपराजेय है, जिनकी आस्था अडिग है और संकल्प अटल है वही युवा है। जो अपनी शक्ति सामर्थ्य और साहस से पराक्रम और प्रताप से राष्ट्र को परम वैभव तक पहुंचाने का दायित्व सहर्ष स्वीकारता है वही युवा है। युवा होने का अर्थ सिर्फ उम्र से ही नहीं होता वरन उसके स्वतंत्र हौसले और चिंतन से भी होता है। यदि 25 वर्ष का युवा अपनी आंखों में महत्वाकांक्षाओं के सुनहरे सपने नहीं देखता, उसके हाथों में आसमान को छूने का हौसला नहीं होता, उसके पैरों में संपूर्ण धरा को नापने का उत्साह नहीं होता, अनीति, अनाचार, अन्याय और शोषण के विरुद्ध उसकी धमनियों और शिराओं में बगावत का लहू नहीं उबलता, जो पीड़ितों के दुख-दर्द को देखकर व्यथित नहीं होता बेचैन नहीं होता वह कैसे युवा हो सकता है?

स्वामी जी भली-भांति जानते थे कि हमारे शक्तिमान बुद्धिमान पवित्र और नि:स्वार्थ युवा ही भारत के खोए हुए आत्मसम्मान और आत्म गौरव को पुनर्स्थापित कर सकते हैं। युवा ही भारत और संपूर्ण संसार का उत्थान कर सकते हैं। इस हेतु उन्होंने अपने उपदेशों और प्रेरणादायी उद्बोधनों में राष्ट्र की तरुणाई को युवा पीढ़ी को प्रेरित और प्रोत्साहित करते हुए कहा कि हम सभी लोगों को इस समय कठिन परिश्रम करना होगा। अब सोने का समय नहीं है। हमारे कार्यों पर भारत का भविष्य निर्भर है। भारत माता तत्परता से प्रतीक्षा कर रही है। वह केवल सो रही है उसे जगाइए और पहले की अपेक्षा और भी गौरव मंडित और शक्तिशाली बनाकर भक्ति भाव से उसके चिरंतन सिंहासन पर प्रतिष्ठित कर दीजिए।

स्वामी विवेकानंद ने धर्म की श्रेष्ठता को स्थापित करते हुए युवा पीढ़ी को वेदांत का उपदेश देकर धर्म की महत्ता से परिचित कराया। उन्होंने जिस धर्म की व्याख्या की वह वास्तव में सत्य की नैसर्गिक की व्याख्या ही है। उनका धर्म जाति और वर्ण में बंटा संकुचित धर्म नहीं है अपितु संपूर्ण विश्व के मौलिक जीवन का सत्य है। यदि कोई सत्य किसी सत्य को काटता है तो वह सत्य हो ही नहीं सकता। सत्य धर्म ही हमारी उन्नति हमारे कल्याण और मानव शांति का एकमात्र विकल्प है क्योंकि धर्म के बिना हम अस्तित्व हीन हो जाते हैं।

स्वामी जी ने मद्रास के अपने एक प्रसिद्ध भाषण में युवा पीढ़ी को दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ धर्म के प्रचार प्रसार के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि मेरा विचार है कि मैं भारत में कुछ ऐसे शिक्षालय स्थापित करूं जहां हमारे नवयुवक अपने शास्त्रों के ज्ञान में शिक्षित होकर भारत तथा भारत के बाहर धर्म का प्रचार कर सकें। अपनी विशुद्ध दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर युवा इस संसार का कायाकल्प कर सकते हैं। उन्होंने युवकों का आह्वान करते हुए कहा कि देश राष्ट्रीय जीवन रूपी जहाज है अतः तुम्हारा यह कर्तव्य है कि यदि इस जहाज में छेद हो जाएं तो उन्हें अपनी सारी शक्ति लगाकर बंद कर दें। यदि हम ऐसा न कर सके तो हमारा मर जाना ही उचित होगा।

संसार के कल्याण के लिए ज्ञान की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए स्वामी जी ने कहा कि युवकों को ज्ञान के प्रकाश का विस्तार करना चाहिए। यह रोशनी प्रत्येक व्यक्ति के द्वार तक ऊंच नीच का भेदभाव किए बिना पहुँचनी चाहिए। गरीबों में ज्ञान का विस्तार करो। धनाढ़्यों पर और अधिक प्रकाश डालो क्योंकि दरिद्रों की अपेक्षा धनियों को अधिक प्रकाश की आवश्यकता है। अपढ़ लोगों को भी प्रकाश दिखलाओ। शिक्षित मनुष्यों के लिए और अधिक प्रकाश चाहिए क्योंकि आजकल शिक्षा का मिथ्याभिमान नितांत वैयक्तिक स्वार्थ को निर्मित कर रहा है।

वास्तव में स्वामी जी का दृष्टिकोण बहुत व्यापक, उदार और आधुनिक था। इसलिए समन्वय उनके चिंतन का वैशिष्ट है। वे भारत की स्थापित मान्यताओं धर्म और मानव सेवा की परंपराओं के साथ आधुनिकता के समन्वय को महत्वपूर्ण मानते थे। वे चाहते थे कि भारतीय युवा पश्चिम से तकनीक और प्रौद्योगिकी का ज्ञान तो प्राप्त करें परंतु बदले में उन्हें भारतीय धर्म और दर्शन के उदात्त मूल्यों से परिचित भी कराएं। स्वामी जी से एक भेंट के दौरान महाराजा गायकवाड ने पूछा कि आप क्या चाहते हैं? कोई मंदिर, कोई मठ, कोई गुरुकुल, कोई वेधशाला तो स्वामी जी का उत्तर था- नहीं टेक्निकल स्कूल और इंजीनियरिंग कॉलेज। उनका दृढ़ विश्वास था की संकीर्णता के दायरे से बाहर निकल अपने जीवन और ज्ञान का विस्तार करके ही हम संसार पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए प्राचीन और आधुनिक ज्ञान के उचित समन्वय से ही मानवीय कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है।

स्वामी जी की परिकल्पना का समाज धर्म या जाति के आधार पर बंटा हुआ, मानव, मानव में भेद करने वाला नहीं है वरन् वह समता के सिद्धांत पर आधारित है जहां प्रत्येक भारतीय को भोजन और जीवन जीने की अन्य मूलभूत आवश्यकताएं यथाशीघ्र ही सहजता से उपलब्ध कराई जा सके। भारत की दरिद्रता उनके हृदय को व्यथित कर देती थी। पीड़ित कर देती थी। वे मानते थे कि औपनिवेशिक भारत में निम्न स्तर पर जीवन यापन करने वाले लोगों ने अपनी क्षमताओं पर विश्वास करना छोड़ दिया था इसलिए स्वामी जी ने वेदांत में शिक्षित आत्मा के देवत्व के सिद्धांत के आधार पर सबसे पहले उन्हें अपने आप पर विश्वास करने का मंत्र दिया। वे चाहते थे कि लोगों के अंदर तर्क बुद्धि सृजित हो विवेक की शक्ति जागृत हो ताकि वे हर बात पर उचित ढंग से सोच सकें और अपने भाग्य विधाता स्वयं बन सकें। उन्होंने भारतीय समाज के कल्याण के लिए आत्मोत्थान को मूल तत्व के रूप में स्वीकारते हुए कहा कि हम जो बोते हैं वही काटते हैं। हम स्वयं अपने भाग्य के विधाता हैं। हवा बह रही है वह जहाज जिनके पाल खुले हैं इससे टकराते हैं और अपनी दिशा में आगे बढ़ते हैं पर जिनके पाल बंधे हैं हवा को नहीं पकड़ पाते। क्या यह हवा की गलती है? हम खुद अपना भाग्य बनाते हैं।

वेदांत दर्शन के मर्म को गहराई से समझने वाले स्वामी जी ने युवकों को ‘आत्म दीपो भव’ की शिक्षा दी। वे चाहते थे कि हमारे युवा महत्वाकांक्षी बने। बड़े-बड़े सपने देखें और बड़े आदर्शों को लेकर महान कार्य करें। उनका चिंतन दिव्य और विराट हो। वे भारत के पुरातन वैभव को पुनर्स्थापित करने के लिए निर्भय होकर आत्मविश्वास और स्वाभिमान के साथ आगे बढ़ें तथा जब तक यह लक्ष्य प्राप्त न कर लें तब तक रुके नहीं। वे युवाओं को भारतीय संस्कृति के इतिहास और आध्यात्मिक परंपराओं का उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे। उनके चिंतन में मानवतावादी मूल्यों को प्राथमिकता मिली और राष्ट्र सेवा, समाज सेवा तथा जन सेवा को लक्षित कर उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।

11 सितंबर 1893 को शिकागो की विश्व धर्म संसद में स्वामी जी ने सनातन धर्म के धवल पक्षों को रेखांकित करते हुए कहा मुझे यह कहते हुए गर्व है कि जिस धर्म का मैं अनुयायी हूं उसने जगत को उदारता और प्राणी मात्र को अपना समझने की भावना दिखालाई है। उन्होंने कहा जिस प्रकार भिन्न-भिन्न स्थानों से उत्पन्न नदियां अंत में एक समुद्र में ही एकत्र हो जाती हैं उसी प्रकार हे प्रभु मनुष्य अपनी भिन्न-भिन्न प्रकृति के अनुकूल प्रथक-प्रथक जान पढ़ने वाले मार्गों से अंत में तेरे पास ही पहुंचते हैं। अपने संक्षिप्त उद्बोधन में भारतीय धर्म, दर्शन और अध्यामत्मस की विराटता को उदघाटित कर विश्व में भारत के प्रति जो मिथ्या अवधारणाएँं थीं, उन्हें तिरोहित करने में स्वामी जी का अवदान चिरस्मरणीय है।

दिनकर लिखते हैं- अभिनव भारत का जो कुछ कहना था वह विवेकानंद के मुख से उद्घोषित हुआ, अभिनव भारत को जिस दिशा में जाना था उसका स्पष्ट संकेत विवेकानंद ने दिया। विवेकानंद वह सेतु हैं जिस पर प्राचीन और नवीन भारत परस्पर आलिंगन करते हैं। विवेकानंद वह समुद्र हैं जिसमें धर्म और राजनीति, राष्ट्रीयता और अंतर्राष्ट्रीयता तथा उपनिषद और विज्ञान सब के सब समाहित हो जाते हैं। पूर्णतरू भारतीयता में रचे बसे, राष्ट्रीयता के ताने-बाने में बुने स्वामी जी ने संपूर्ण भारत का भ्रमण कर भारत वासियों की सुषुप्त राष्ट्रीय चेतना को जागृत किया। भारत की आत्मा को पहचाना। देश की समस्याओं को जाना। जनता के दुख दर्द, गरीबी, बदहाली, अज्ञान, अंधविश्वास और उनकी पीड़ा को गहनता से समझा। उन्होंने भारत की शक्ति और कमजोरियों को भी अनुभूत किया और फिर यह उपदेश दिया कि वास्तविक शिव की पूजा निर्धन और दरिद्र की पूजा में है।

भगवान पोथी पुराणों में नहीं, धार्मिक पुस्तकों में नहीं, गरीबों में है। क्या सभी कमजोर सभी पीड़ितों में भगवान नहीं है। मेरे जीवन का परम ध्येय उस ईश्वर के विरुद्ध संघर्ष करना है जो परलोक में आनंद देने के बहाने इस लोक में मुझे रोटियों से वंचित रखता है। जो विधवाओं के आंसू पोंछने में असमर्थ है। जो मां-बाप से हीन बच्चे के मुख में रोटी का टुकड़ा नहीं दे सकता। उनका मानना था कि किसी भी देश की प्रगति तभी संभव है जब वहां की नारियां शिक्षित हों। नारियों के महत्व को रेखांकित करने के लिए उन्होंने कन्या पूजन की पवित्र परंपरा का भी मंगलाचरण किया था।

स्वामी जी ने युवाओं को परिश्रम करने, अटल रहने, सुसंस्कृत-सुशिक्षित बनने तथा आध्यात्मिक चिंतन, दर्शन, कला और विज्ञान का आनंद अनुभूत करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि परोपकार ही धर्म है, परपीड़न पाप। शक्ति और पौरुष पुण्य है, कमजोरी और कायरता पाप। स्वतंत्रता पुण्य है पराधीनता पाप। दूसरों से प्रेम करना पुण्य है दूसरों से घृणा करना पाप। परमात्मा और अपने आप में विश्वास पुण्य है संदेह ही पाप है। तुम शुद्ध स्वरूप हो उठो जागृत हो जाओ। हे महान, यह नींद तुम्हें शोभा नहीं देती। उठो यह मोह तुम्हें भाता नहीं है। तुम अपने को दुर्बल और दुखी समझते हो यह तुम्हें शोभा नहीं देता। है सर्वशक्तिमान उठो जागृत होओ। अपना स्वरूप प्रकाशित करो। मैं कायरता को घृणा की दृष्टि से देखता हूं। किसी प्रकार की राजनीति में मेरा विश्वास नहीं है। ईश्वर तथा सत्य ही जगत में एकमात्र राजनीति है। बाकी सब कूड़ा करकट है। किसी जाति विशेष पर न मेरा तीव्र अनुराग है और ना ही घोर विद्वेष ही। मैं जैसे भारत का हूं वैसे ही समग्र जगत का हूं।

नि:संदेह सहिष्णुता एवं समानता के पक्षधर स्वामी जी का परिष्कृत कालजयी चिंतन जो राजयोग, कर्मयोग, ज्ञान योग एवं भक्ति योग में अभिव्यक्त हुआ है कल भी युवाओं के लिए प्रेरक था आज भी है और कल भी रहेगा। उनकी विचारधारा शाश्वत और सार्वभौमिक है जिसकी प्रासंगिकता पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता। भारत सरकार ने उनके सम्मान में उनके जन्मदिवस 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस घोषित कर स्वामी जी को चिर युवा बना दिया है। भारतीय समाज को स्वाभिमानी बनाने तथा एकजुट होने की उन्होंने प्रेरणा दी। हमारा दायित्व है कि हम उनके दूरदर्शी दर्शन को अपने व्यवहार में साकार करें ताकि अपने भविष्य निर्माण के साथ राष्ट्र को समृद्ध करें और भारत को पुनः विश्व गुरु के खोए हुए गौरव को प्राप्त करने की दिशा में तेजी से अग्रसर कर सके।

(लेखक, भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी रहे हैं।)

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भारत की पहली मालगाड़ी देखने उमड़ पड़ी थी भीड़ः 16 अप्रैल 1853 में मुंबई से ठाणे के बीच चली रेल, भारत की पहली यात्री गाड़ी थी लेकिन इससे करीब दो साल पहले 22 दिसंबर 1851 को भारतीय रेल का सफर, एक मालगाड़ी से शुरू हो चुका था। दो बोगियों वाली यह मालगाड़ी आईआईटी के लिए मशहूर उत्तराखंड के रुड़की और पांच किमी दूर धार्मिक पहचान रखने वाले पिरान कलियर के बीच चली थी।

दरअसल, ब्रिटिश शासनकाल में हरिद्वार में गंग नहर के निर्माण के दौरान निकले लाखों टन मिट्टी को हटाने में सफलता नहीं मिल रही थी जिसके बाद इंग्लैंड से विशेष तौर पर माल ढोने वाले वैगन और इंजन को मंगवाया गया। छह पहियों और 200 टन भार क्षमता वाली इस मालगाड़ी को चलाने के लिए रुड़की से पिरान कलियर तक पटरी बिछाई गई। जब पहली बार यह रेल चली तो लोगों ने रोमांचित होकर उत्साह से इस अवसर को देखा।

हालांकि अंग्रेजों द्वारा बनायी गयी इस रेल पटरी का दोबारा कभी उपयोग नहीं हुआ। रेलवे ने इस एतिहासिक रेल के इंजन को रुड़की रेलवे स्टेशन परिसर में लोगों को देखने के लिए रखा है।

अन्य अहम घटनाएंः

1666ः सिखों के दसवें और अंतिम गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म।

1866ः स्वतंत्रता सेनानी मजहरुल हक का जन्म।

1887ः महान गणितज्ञ श्रीनिवास अयंगर रामानुजन का जन्म।

1948ः हिंदी कवि पंकज सिंह का जन्म।

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