‘मां’ एक ऐसा शब्द जिसमें संसार की सारी भवनाएं एक साथ समाहित हो जाती हैं। एक मां के बारे में लिखने से ज्यादा उसे समझना ज्यादा कठिन होता है। ममता की एक ऐसी तस्वीर जिसकी आगे संसार की सारी खुशियां नतमस्तक हो जाती हैं। यूं तो मां के बारे में कई कविताएं और कहानियां लिखी गई हैं लेकिन, मेरा मानना है कि मां से जुड़ी भावनाओं को शब्द देना इतना आसान नहीं। हम आपको हिंदी साहित्य के कुछ जानी-मानी कविताएं पढ़ाते हैं जो ‘मां’ के ऊपर लिखी गई हैं जिसे पढ़कर आपके चेहरे पर अपनी ‘मां’ को याद करके एक बरबस मुस्कान आ ही जाएगी.

मां पर मशहूर शायर मुनव्वर राणा की लिखी कुछ कविताएं काफी मशहूर हुई हैं। पढ़िए उनके कुछ अंश:

1. इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है,
मां बहुत गुस्से में होती है तो रो देती.

2. मुझे बस इसलिए अच्छी बहार लगती है,
कि ये भी माँ की तरह खुशगवार लगती है.

3. किसी को घर मिला हिस्से में या दुकां आई,
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में मां आई.

4. लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती,
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती.

5. ये ऐसा कर्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता,
मैं जब तक घर न लौटू मेरी मां सजदे में रहती है.

6. खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी थीं गांव से,
बासी भी हो गई हैं तो लज्जत वही रही.

7. बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
मां सबसे कह रही है बेटा मज़े में है.

8. मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आंसू,
मुद्दतों मां ने नहीं धोया दुपट्टा अपना

मशहूर कवि आलोक श्रीवास्तव की रचना:

चिंतन दर्शन जीवन सर्जन
रूह नज़र पर छाई अम्मा
सारे घर का शोर शराबा
सूनापन तनहाई अम्मा

उसने खुद़ को खोकर मुझमें
एक नया आकार लिया है,
धरती अंबर आग हवा जल
जैसी ही सच्चाई अम्मा

सारे रिश्ते- जेठ दुपहरी
गर्म हवा आतिश अंगारे
झरना दरिया झील समंदर
भीनी-सी पुरवाई अम्मा

घर में झीने रिश्ते मैंने
लाखों बार उधड़ते देखे
चुपके चुपके कर देती थी
जाने कब तुरपाई अम्मा

बाबू जी गुज़रे, आपस में-
सब चीज़ें तक़सीम हुई तब-
मैं घर में सबसे छोटा था
मेरे हिस्से आई अम्मा

– आलोक श्रीवास्तव

मशहूर शायर नीदा फाज़ली का नज़्म:

बेसन की सोंधी रोटी

बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका बासन
चिमटा फुंकनी जैसी मां

बान की खूर्रीं खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी
थकी दुपहरी जैसी माँ

चिड़ियों की चहकार में गूंजे
राधा-मोहन अली-अली
मुर्गे की आवाज़ से खुलती
घर की कुंडी जैसी मां

बीवी बेटी बहन पड़ोसन
थोड़ी थोड़ी सी सब में
दिनभर एक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी मां

बांट के अपना चेहरा माथा
आंखें जाने कहां गईं
फटे पुराने इक अलबम में
चंचल लड़की जैसी माँ

– निदा फ़ाज़ली

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आज पूरे  विश्व में मदर्स डे मनाया जा रहा है. ऐसे में ‘मां’ को सम्मान देने और उन्हें प्यार देने का हम दे रहे है आपको मौका. मदर्स डे के अवसर पर www.chhapratoday.com आपको मौका देता है, अपनी मां के प्रति अपने सम्मान को व्यक्त करने का.

तो उठाइए अपनी कलम और अपनी मां के सम्मान, प्यार या उनकी याद में कुछ लिखिए और हमें भेजिए. आपके विचार को हम देश-दुनिया के सामने रखेंगे.

हमें अब तक प्राप्त कुछ लेख 

माँ
गिरता हूँ, उठता हूँ, संभालता हूँ और दौड़ पड़ता हूँ,
क्योंकि माँ आकर सिर पर हाथ फेरते हुए कहती है,

मेरा बेटा कभी हार मान ही नही सकता,
क्योंकि उसे तो दुनिया की हर एक ख़ुशी, मेरे इस आँचल में ला कर डालनी है ना.

तुम खुश हो तो खुश हूँ मैं, ये सिर्फ एक माँ कहती है,
मैं कहता हूँ, माँ साथ है तो हर जंग में जीत पक्की है,
हो कोई तमन्ना तो बेझिझक बता देना मुझसे माँ,
क्योंकि किसी ने कहा है “मुझ पर पहला और आखिरी हक सिर्फ तेरा है.”

 anurag ranjan

 

 

अनुराग रंजन छपरा (मशरक)

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I LOVE MY MOTHER AS THE TREES  LOVE WATER AND SUNSHINE -SHE HELPS ME GROW, PROSPER, AND REACH GREAT HEIGHTS.

“DEFINITION OF MOTHER : THE GREATEST UNCONDITIONAL AND INFINITE LOVE WE WILL EVER EXPERIENCE IN OUR EXISTENCE.”

A MOTHER HOLDS HER CHILDREN’S HANDS FOR A LITTLE WHILE ……THERE HEARTS FOREVER.
THE MOST BEAUTIFUL NECKLACE A MOTHER CAN WEAR IS NOT GOLD OR GEM,BUT HER CHILD’S ARM AROUND HER NECK.
GREAT MOTHERS BUILD BRIDGES INSTEAD OF WAALS. I MAY CALL HER MOM, BUT SHE IS THE BEST BLESSING GOD EVER BESTOWED ON ME.

श्याम बिहारी अग्रवाल 

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माँ ईश्वर का दिया मूल्यवान और दुर्लभ उपहार हैं. HAPPY MOTHER’S DAY…

नीतीश कुमार, नारायण नगर, नेवाजी टोला, छपरा 

अगर आप भी अपने लेख/कविता/संस्मरण हमें भेजना चाहते है तो, अपने नाम, तस्वीर और पते के साथ ईमेल करें, chhapratoday@gmail.com पर. आप हमें 95720-96850 पर whats app भी कर सकते है.

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{सुरभित दत्त सिन्हा} मजदूरों को सम्मान और उन्हें वाजिब हक दिलाने लिए प्रत्येक वर्ष पूरे विश्व में 1 मई को ‘मजदूर दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. ‘मजदूर दिवस’ के दिन सार्वजानिक अवकाश रहता है. नेता, अधिकारी, कर्मचारी सभी छुट्टी मनाते है. बस, एक वही है जो आज भी काम पर जाता है, मजदूरी करता है, कमाता है, बच्चो को खिलाता है, वह है ‘मजदूर’.

मजदूर को ‘मजदूर दिवस’ से क्या लेना देना अगर वह आज अन्य के जैसे छुट्टी मनाये तो शाम में बच्चे भूख से बिलख पड़ेंगे. दिन भर कमरतोड़ मेहनत और फिर पैसा लेकर घर पहुँचाना ताकि घर में चूल्हा जल सके. अगर वह छुट्टी मनाने लगे तो बच्चे भूखे मर जायेंगे. परिवार के पालन पोषण के लिए ये गर्मी देखते हैं सर्दी. चाहे कोई भी मौसम हो मजदूर अपना काम नियमित करते रहते हैं. दो जून की रोजी रोटी कमाने के लिए ये हाड़ तोड़ मजदूरी करते हैं तब जाकर इन्हें शाम को रोटी नसीब होती है.

दुनिया के कई देश 1 मई को मजदूर दिवस मनाते हैं. भारत में पहली बार 1 मई 1923 को हिंदुस्तान किसान पार्टी ने मद्रास में मजदूर दिवस मनाया था. 1 मई को 80 से ज्यादा देशों में राष्ट्रीय छुट्टी होती है.

मजदूर दिवस की शुरुआत कनाडा में 1972 में हुई. यह मजदूरों के अधिकारों की मांग के लिए शुरू किया गया था. मजदूर दिवस को उत्सव के रूप में पहली बार अमेरिका में 5 सितंबर 1882 को मनाया गया. दुनिया के कई देशों में मजदूर दिवस ‘मई डे’ के रूप में मनाया जाता है. इसकी शुरुआत शिकागो से हुई थी. मजदूरों ने वहां मांग की कि वे सिर्फ 8 घंटे काम करेंगे. इसके लिए उन्होंने कैंपेन चलाया, हड़ताल और प्रदर्शन भी किया.

भारत में सरकार ने मजदूरों के कल्याणार्थ कई योजनाएं चला रखी है. पर शायद उनका सही लाभ मजदूरों तक नहीं पहुँच रहा है. मजदूर काम की तलाश में लगातार एक जगह से दुसरे जगह पलायन कर रहे है. काम की तलाश उन्हें अपने घर से हजारों किलोमीटर दूर जाने को विवश कर रही है.

मजदूर दिवस पर प्रत्येक वर्ष मजदूरों के हक़ की बड़ी बड़ी बातें होती है पर इसके बाद कुछ विशेष नहीं होता. केंद्र और राज्य सरकारों को इस पर ध्यान देने की जरुरत है.

फोटो साभार: मनोरंजन पाठक

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श्री राम एक ऐसा नाम हैं जिसने हर व्यक्ति को असीम शांन्ति प्रदान की है. राम नाम से श्रेष्ठ रसायन पूरे विश्व में कहीं उपलब्ध नहीं है. राम का जन्म ही समाज को नई दिशा प्रदान करने के लिए हुआ था.राम ने जो उद्धाहरण हमारे समाज के समक्ष प्रस्तुत किया उसकी बराबरी कर पाना किसी भी पुरुष के लिए संभव नहीं है. यही कारण है कि राम को पुरुषोत्तम की संज्ञा दी गई है.

माता-पिता की आज्ञा,पत्नी के सम्मान की रक्षा और मित्र के अधिकार के लिए युद्ध, हर समय श्री राम ने अपनी उत्तम सोंच और निश्चल व्यवहार का एक अनोखा उद्धाहरण प्रस्तुत किया है. राम ने संघर्ष के रास्ते पर चलकर सफलता की जो नींव रखी वो आज भी हमारे वर्तमान के लिए एक मजबूत आधार है.

इतिहास के कई कालखंडों में श्रीराम के द्वारा स्थापित आदर्श एवं उनके विचारों की नींव को गिराने की कोशिश की गई, पर राम ने आदर्श समाज की जो परिकल्पना की थी उसके अस्तित्व को गिराना तो दूर हिलाना भी संभव नहीं हो सका.

श्रीराम ने सदैव कठिन मार्गों का चयन किया और अपनी वास्तविकता को कभी खंडित नहीं होने दिया. अनवरत कठिनाइयों को झेलकर लोगों के ह्रदय में अपने प्रति सम्मान और प्रेम का भाव स्थापित करना सिर्फ राम के लिए ही संभव था.

आज का प्रगतिशील समाज तरक्की तो चाहता है पर उसकी कीमत चुकाने से घबराता है. आज हर व्यक्ति प्रतिष्ठित तो होना चाहता है पर प्रतिष्ठा के लिए जंग नहीं लड़ना चाहता. श्रीराम रूपी व्यक्तित्व पाने के लिए त्याग और समर्पण का भाव होना चाहिए.

कुछ लोगों ने तो श्रीराम के अस्तित्व पर भी प्रहार करने की कोशिश की है, पर ऐसे लोगों को अपने इतिहास में झांकने की जरूरत है. इतिहास सिर्फ एक ही जवाब देगा कि राम को सम्मान देना स्वयं को सम्मान देने जैसा होता है. “राम तो विराम हैं, इनके आगे कुछ भी नहीं”

राम नवमी के पावन अवसर पर पुरुषोत्तम राम को प्रणाम…’जय श्री राम’….

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वो साल 2012 था जब हमने Chhapra Today नाम के फेसबुक पेज के ज़रिए आप तक ख़बरें पहुंचाने की एक छोटी की कोशिश की थी. मक़सद सिर्फ एक था कि क्यों ना छपरा और इस ज़िले के आसपास हो रही घटनाओं को एक माध्यम के ज़रिए उन लोगों तक पहुंचाया जाए जो अपने घर और अपने इलाके से दूर किसी अन्य राज्य या देश में रह रहे हों.

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छपरा टुडे के शुरूआती दिनों में हमारा लोगो 

 जल्द ही हमारी इस छोटी सी कोशिश को अच्छी प्रतिक्रिया भी मिलने लगी. धीरे-धीरे इस फेसबुक पेज से काफी लोग जुड़ने लगे. इस पेज के ज़रिए हमें जो प्रतिक्रियाएं मिली वो काफी चौंकाने वाली थीं. सबने इस प्रयास की भरपूर सराहना की और इसे और विस्तार देने के सुझाव आने लगे. लोगों से मिल रही प्रतिक्रियाओं और सुझावों ने हमारे इरादों को और मज़बूती दी. 

ये वो दौर था जब छपरा जैसे शहरों में दैनिक खबरों के लिए लोग या तो टीवी चैनल या अखबारों पर निर्भर होते थे. ज्यादातर लोगों को डिजिटल मीडिया के बारे में पता नहीं था. लोग प्रादेशिक और अपने शहर की खबरों के लिए अखबार में आने वाले शहर के दो पन्नों पर निर्भर होते थे. शहर से या देश से बाहर रहने वाले छपरावासियों तक तो ये खबरें पहुंच भी नहीं पाती थीं.

उस दौर में हमने ये फैसला किया कि छपरा टुडे के इस फेसबुक पेज को और विस्तार दिया जाना चाहिए. 22 मार्च 2013 को पहली बार छपरा टुडे की वेबसाइट www.chhapratoday.com लॉन्च हुई. शहर के कई गणमाण्य लोगों और समाज के वरिष्ठ लोगों ने हमारे इस प्रयास की काफी सराहा. धीरे-धीरे शहर और प्रखंडों से भी हमें अच्छी प्रतिक्रिया मिलने लगी.

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मौजूदा लोगो

 छपरा टुडे वेबसाइट और फेसबुक पेज के ज़रिए शहर और ज़िले की खबरें देश-विदेश तक पहुंचने लगी. देश के बाहर रह रहे कई छपरावासियों ने भी हमारे इस प्रयास की काफी सराहना की और हमें कई सुझाव भी भेजे. हमारे पाठकों ने हमारे कई कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा भी लिया. जैसे जैसे वक्त बीतता गया हमारी पहुंच और पकड़ और मज़बूत होते चली गई. प्रशासन और प्रशासनिक अधिकारियों के बीच भी छपरा टुडे एक नई पहचान के रूप में उभरा.

हमने इस दौरान कई ऐसी खबरें लोगों के सामने रखी जिसे समााजिक रूप से लोगों के सामने लाना ज़रूरी था. हमने शहर और ज़िले से जुड़ी कई समस्याओं को लोगों के सामने लाया और प्रशासन तक लोगों की आवाज़ पहुंचाने का माध्यम बने. हम हमेशा निष्पक्ष पत्रकारिता करते रहे और आगे भी करते रहेंगे.

हमारा मकसद कभी किसी की नकल करना या किसी को फॉलो करना नहीं रहा. हमने हमेशा पत्रकारिता के स्तर और ताकत को ध्यान में रखते हुए काम किया. इस दौरान हमें कई समस्याओं का भी सामना करना पड़ा लेकिन हम अपने पाठकों के प्यार और स्नेह की वजह से डटे रहे और उम्मीद है कि आगे भी ये जज्बा बरकरार रहेगा.

पाठकों की ज़रूरतों और सुझावों का सम्मान करते हुए बीते साल नंवबर में हम छपरा टुडे की वेबसाइट को एक नए अवतार में लेकर आए. जिसमें हमने शहर के साथ साथ देश, राज्य, प्रखंड, ऑटो, टेक्नोलॉजी, खेल, मनोरंजन, संपादकीय और छात्रों से जुड़ी खबरों को विशेष तौर पर जगह दी. हमारा मकसद था कि हमारे शहर और ज़िले के लोग किसी भी तरह की खबर और जानकारी से अछूते ना रहें.

इस सफ़र में हमने पत्रकारिता के कई आयाम देखे है. इस दौरान संघर्ष और असफलताएँ हमने भी कई बार देखी. इस बदलती दुनिया से हमने बहुत कुछ सीखा पर हमने ख़बरों की सच्चाई से कभी समझौता नहीं किया. संवेदनशील ख़बरें और भावनाओं से ओत-प्रोत हमारी रिपोर्ट्स को सबने सराहा.

साक्षात्कार और स्पेशल स्टोरी के माध्यम से हमने उन लोगों को समाज से रूबरू कराया जो वाकई प्रतिष्ठा और सम्मान के साथ-साथ सुविधाओं के हकदार थे.

कुष्ठ बस्ती का सुशील कुमार हो या अपने कैंसर पीड़ित पिता के ईलाज के लिए ठेले पर पकौड़े बेचती लक्ष्मी की स्टोरी हमने बड़ी प्रमाणिकता और दृढ़ता के साथ समाज के सामने इनके संघर्ष को एक परिणाम में परिवर्तित करने का प्रयत्न किया.

अब हमें देखते देखते तीन साल बीत गए. थोड़ा वक्त बदला है, थोड़े हम बदले हैं लेकिन ‘आपको’ हमेशा आगे रखते हुए हमने सफलतापूर्वक तीन साल पूरे कर लिए. आने वाले समय में भी हम उम्मीद करते हैं कि हम इसी तरह आपकी सेवा में लगे रहेंगे.

यकीन मानिए, हमारी पूरी टीम पूरी निष्ठा के साथ इस काम में लगी हुई है, आप यूं ही अपना स्नेह हम पर बनाए रखिए. चाहे आप दुनिया के किसी कोने में रहते हों, छपरा टुडे, आपके शहर को आप तक पहुंचाता रहेगा. हमारे बीच बस एक क्लिक की दूरी है. 🙂

छपरा टुडे की पूरी टीम की ओर से आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया.

सुरभित दत्त सिन्हा
मैनेजिंग एडिटर, छपरा टुडे (www.chhapratoday.com)

अपने बहुमूल्य सुझाव आप हमें editor@chhapratoday.com, chhapratoday@gmail.com पर भेज सकते है.

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देश की आजादी में सारण की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. कलम और बन्दूक दोनों के परस्पर सहभागिता ने आजाद भारत की नीव रखी. सारण की धरती पर एक ऐसे ही युगपुरुष का जन्म हुआ जिन्होंने अपनी लेखनी और बुद्धिमता के बल पर अंग्रेजों को नाको चने चबाने पर मजबूर कर दिया. ऐसे ही एक नायक थे पंडित महेंद्र मिश्र. उनका जन्म सारण जिले के जलालपुर प्रखंड के मिश्रवलिया गाँव में 16 मार्च 1886 को हुआ था. पंडित जी महान स्वतन्त्रता सेनानी होने के साथ साथ पूर्वी धुन के प्रणेता भी थे.

प्रत्येक वर्ष राज्य सरकार द्वारा उनके जयंती पर सरकारी कार्यक्रम आयोजित कर उन्हें याद तो जरुर किया जाता है, पर आज तक पंडित जी को न स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा मिला और न ही उनके घर को राजकीय संग्रहालय घोषित किया गया.

आजादी की लड़ाई में अंग्रेजी हुकूमत से उन्होंने अपने तरीके से लोहा लिया और अंग्रेजों को आर्थिक रूप से कमजोर करने की ठानी. पंडित जी के पौत्र रामनाथ मिश्र बताते है कि पंडित जी जाली नोट छाप कर स्वतंत्रता सेनानियों को मदद पहुंचाते थे और अंग्रेजों को आर्थिक क्षति.

वे बताते है कि अंग्रेजी हुकूमत को जब इस बात की जानकारी हुई तब उसने पंडित जी के पीछे जासूस लगा दिया. अंग्रेजी हुकूमत का जासूस पंडित महेंद्र मिश्र के यहाँ जटाधारी प्रसाद उर्फ गोपीचन्द्र नाम के नाम से रहने लगा. जो 3 वर्षो तक घर का काम काज देखता रहा. लेकिन पंडित जी नकली नोट छापने का काम इतने गुपचुप तरीके से करते थे कि उस जासूस को तीन साल यह पता लगाने में लग गए की पंडित जी पैसा छापते कब और कहा है.

उनके पौत्र ने बताया कि रात में सब लोग सो जाते थे तो पंडित जी शिव मंदिर में पूजा के बहाने बाहर जाकर घर के बगल के एक कुए से आँगन में आ जाते थे और सारी रात नोट छापते और सुबह यही नोट भिखारियों में बाँट देते थे. दरअसल यह भिखारी लोग स्वतंत्रता सेनानी होते थे.

उनके साथ रह रहे जासूस गोपीचन्द्र के निशानदेही पर 1924 में पंडित जी को गिरफ्तार कर लिया गया और उनके साथ उनका छापा खाना भी बरामद कर लिया गया. उनके पौत्र बताते है कि गिरफ्तारी के बाद अपने घर में काम करने वाले उस जासूस को पुलिस के वर्दी में देख उन्होंने एक गाना गया था जो आज भी लोगों की जुबान पर है. इस गाने के बोल थे, ‘हंसी-हंसी पनवा खियाइले रे गोपिचन्दवा पिरितिया लगा के भेजवले जेहल खनवाँ’.

इसके बाद अंग्रेज न्यायालय ने उन्हें 20 वर्ष की सजा सुनायी. जिसके बाद 16 अप्रैल 1924 से 1932 तक सेन्ट्रल जेल बक्सर में कैद रहे. पर आठ साल में ही कैद से बाहर आ गए. मिश्र जी के पौत्र रामनाथ मिश्र ने बताया कि बक्सर जेल में रहते उनके गायन कला से जेलर प्रभावित हो गया और अपनी बेटी को गायन की शिक्षा देने का उनसे अनुरोध किया. पंडित जी ने उसे शिक्षा देना शुरू किया. 1932 में सिल्वर जुबली मनाने के समय जेल का दरवाजा खुला पाकर वह जेल से निकल गए. जेल में रहने के दौरान उन्होंने अपूर्व रामायण नामक ग्रन्थ की रचना की. जो आप भी उनके पांडुलिपि में संरक्षित की गयी है. इस ग्रन्थ का प्रकाशन अब तक सरकारी उदासीनता के कारण नहीं हो सका है.

यह दुर्भाग्य की बात है की आज़ादी के इतने सालों के बाद भी पंडित जी को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा नहीं मिल सका. इसके साथ ही उनके द्वारा रचित महामहाकाव्य  ‘अपूर्व संगीत रामायण’ को अब तक प्रकाशित नहीं कराया जा सका है. 

महेंद्र मिश्र की कुछ प्रमुख रचनाये-

पूर्वी, गजल, खेमटा, दादरा, शेर, चैता, ठुमरी, फगुआ, चौबोला आदि.

 

 

 

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छपरा: सारण में पंचायत चुनाव का बिगुल बज चूका है.कई प्रखंडों में चुनाव हेतु नामांकन प्रक्रिया आरम्भ है. इस बार के चुनाव को आरक्षण के नए रोस्टर ने रोमांचक बना दिया है.

पूर्व से चयनित पुरुष जनप्रतिनिधि या पहली बार चुनाव लड़ने का इरादा रखने वाले कई उम्मीदवारों के उम्मीदों पर आरक्षण के नए रोस्टर ने पानी फेर दिया है. चुनावी रेस में अपना झंडा बुलंद रखने के लिए ऐसे लोग अब अपनी जगह अपनी घर की महिलाओं को मैदान में उतार रहे है.

सारण में त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव में अबतक हुए नामांकन में जिन महिला उम्मीदवारों ने नामजदगी के पर्चे भरे हैं उसमे ज्यादातर वैसी महिलाएं है जिनके पति या रिश्तेदार आरक्षण के रोस्टर की पेंच में फंस कर खुद उस क्षेत्र से चुनाव नहीं लड़ पा रहे है.

पंचायत चुनाव में कुछ महिला प्रत्याशी ऐसी भी है जिनके पति राजनीति के क्षेत्र में विगत कई वर्ष से सक्रिय है और कहीं ना कहीं महत्वपूर्ण पदों पर भी काबिज है. ऐसे पुरुष अपनी राजनीतिक साख को और ज्यादा मजबूत करने के इरादे से पंचायत चुनाव में अपनी माँ, पत्नी, साली,सरहज, भाभी या बहु को चुनावी अखाड़े में उतार रहे है.

पंचायत चुनाव में ऐसी कई महिला प्रत्याशी हैं जिन्हें इन चुनावों की कोई जानकारी नहीं है पर अपने पति या नजदीकी रिश्तेदारों के अरमानों को बचाने और उनके राजनीतिक वर्चस्व को कायम रखने के लिए इन महिलाओं ने घर की जिम्मेदारी के साथ-साथ गांव और समाज की जिमेदारी का निर्वाह करने के लिए भी कदम बढ़ाए हैं.

कारण चाहे जो भी हो पर पंचायत चुनाव में महिला प्रत्याशियों की बढ़ती भागीदारी से गाँव में रहने वाली सभी महिलाओं का हौसला जरूर बढ़ा है.

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(प्रभात किरण हिमांशु) महिलाओं का सम्मान हर देश के लिए गर्व की बात होती है. भारत वर्ष अपनी महिला शक्ति एवं देश के लिए किये गए उनके योगदान हेतु सदैव ऋणी रहेगा.
देश का मजबूत आधार वहां के नागरिकों के व्यक्तित्व के विकास पर निर्भर करता है. जन्म के बाद व्यक्तित्व निर्माण की सबसे महत्वपूर्ण पाठशाला मातृशक्ति की पाठशाला है. व्यक्तित्व के विकास में मातृ शक्ति का अहम योगदान होता है.

हमारे देश में महिलाएँ हमेशा ही अपने अधिकारों के लिए संघर्षरत रही हैं. बड़ी ही विडम्बना है कि जो महिलाएं पुरुषों को उस योग्य बनाती है जिससे पुरुष वर्ग सामाज में अपने वर्चस्व को प्रतिस्थापित करता है, आज उन्ही महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए पुरुष वर्ग बड़ी-बड़ी बातें करता है.

हर युग में महिलाएं हमारे देश का केंद बिंदु रही हैं. रामायण काल में सीता का सौम्य व्यवहार हो या महाभारत में द्रौपदी का अपने प्रतिष्ठा के लिए लड़ना, दोनों ही महिलाओं ने अपने भीतर की नारी शक्ति के माध्यम से उस कालखंड को काफी प्रभावित किया.

बात अगर भारत के विकास कि हो तो महिलाओं ने सदैव राष्ट्र के विकास के लिए प्रगतिशील कार्य किये हैं. देश की आजादी में रानी लक्ष्मीबाई, समाजसेवा में मदर टेरेसा, संगीत में लता मंगेशकर और राजनीति में इंदिरा गांधी ने जो अमिट छाप छोड़ी है वो नारी शक्ति का जीवंत उद्धाहरण है.

हालाँकि बदलते भारत में महिलाओं के उत्थान के लिए कई सकारात्मक पहल किये गए पर हम सब को ये बात समझनी होगी कि राष्ट्रशक्ति लोगों के व्यक्तित्व के विकास पर आधारित है और उस व्यक्तित्व के निर्माण की सबसे मजबूत कड़ी हैं राष्ट्र की महिलाएं.

नारी के प्रति सम्मान और सदभाव ही भारत को नई दिशा प्रदान करेगा. देश के विकास के लिए महिलाएं हमेशा आतुर रहती हैं. ‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ के अवसर पर देश की समस्त नारियों को, हमारे अंदर भावनाओं को प्रस्फुटित करने वाली मातृशक्ति को छपरा टुडे का प्रणाम.

 

 

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धर्मेन्द्र कुमार रस्तोगी/सुरभित दत्त सिन्हा 

किसी भी देश में समय-समय पर प्रचलित मुद्राओं में वहां के इतिहास की झलक मिलती है. जब किसी एक ही स्थान पर विभिन्न देशों की प्राचीन मुद्राओं का संग्रह हो तो यह अपने आप में अद्भुत है. छपरा शहर के शत्रुघ्न प्रसाद उर्फ नन्हे ने विभिन्न देशों के प्राचीन सिक्कों तथा नोटों का अनूठा संग्रह कर रखा है. उनके पास मुगलकालीन एवं ईस्ट इंडिया कंपनी तथा ब्रिटिश क्राउन की याद दिलाने वाले प्राचीन सिक्कों के साथ ही एशिया और यूरोप के विभिन्न देशों के पुराने नोटों का बेहतरीन खजाना है.

शहर के मुख्य चौराहे नगरपालिका चौक पर चाय की दूकान लगाने वाले शत्रुधन प्रसाद उर्फ नन्हे को 8 साल की उम्र (1980) से ही सिक्कों को संग्रह करने का शौक लग गया. समय गुजरने के साथ ही उनका यह शौक जुनून में बदल गया. उन्हें पता चले कि किसी के पास कोई प्राचीन सिक्का है तो वे उससे संपर्क कर उसे अपने संग्रह में शामिल करते. 

अपनी दूकान पर चाय बेचते शत्रुघ्न
अपनी दूकान पर चाय बेचते शत्रुघ्न

इस समय उनके पास करीब 175 देशों के विभिन्न प्राचीन सिक्के और करेंसी नोटों का संग्रह हैं. इनमें 16वीं सदी में मुगलकालीन कुछ सिक्के तो ऐसे हैं जिन पर चांद, सितारा के साथ ही अरबी भाषा में लिखा है. ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा जारी अनेक सिक्के उन्होंने सहेज कर रखे हैं. ब्रिटिश शासन के लंबे दौर में भारत में प्रचलित रहे किंग जार्ज पंचम व षष्टम तथा रानी विक्टोरिया की तस्वीर वाले तमाम सिक्के अपने इतिहास को समेटे हैं. 4

आज की पीढ़ी को आश्चर्य हो सकता है कि इस देश में कभी एक पैसे का तांबे का सिक्का भी चलन में था. इस संग्रह में एक पैसे के सैकड़ों सिक्के आज भी चमचमा रहे हैं. शत्रुघ्न के पास सिर्फ भारत के ही नहीं बल्कि नेपाल, बंग्लादेश, पाकिस्तान, सऊदी अरब, ईरान, कुवैत, जर्मनी, यूरोपियन देशों समेत 175 देशों के पुराने नोट व सिक्के एकत्र हैं. 2

शत्रुघ्न को अपने जीवन में काफी संघर्ष भी करना पड़ा. चाय की दूकान से अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करते है. वह कहते हैं कि “सिक्कों, नोटों के संग्रह में उन्हें अपने पिता स्व. सुखनंदन प्रसाद तथा भाई मोहन जी का पूरा सहयोग मिलता रहा है”. प्राचीन सिक्कों, नोटों के संग्रह का उद्देश्य पूछे जाने पर वह कहते हैं कि “सिर्फ शौक है. मेरे इस शौक को गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में जगह मिले”. 3

मुद्राओं के संकलन का शौक रखने वाले शत्रुघ्न के पास अपना घर नही है. जन्म से लेकर वर्तमान तक किराये के मकान में रहते चले आ रहे है. शत्रुघ्न की पत्नी ने बताया कि विदेशी मुद्राओ का संकलन के शौक में वह अपने पति का सहयोग करती है. हालाँकि इतनी विदेशी मुद्राओं को एकत्र करने वाले के बच्चे पैसे के आभाव में सरकारी स्कूलो में पढाई कर पाते है.

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प्रभात किरण हिमांशु/कबीर अहमद ‘दुनिया में हम आएं हैं तो जीना ही पड़ेगा, जीवन है एक जहर तो पीना ही पड़ेगा’. मदर इंडिया फ़िल्म का यह गीत कई मायनों में जीवन के कठिन दौर को दर्शाता है. बढ़ते भारत के इस दौर में आज भी ऐसे कई उदहारण हैं जो अपने जीवन में संघर्ष करते हुए आगे बढ़ रहे हैं और समाज के लिए एक प्रेरणा बनते जा रहे हैं.

छपरा टुडे #SpecialStory संघर्ष के रास्ते सफलता के मुकाम को पाने की इच्छा रखने वाले युवक ‘भागीरथ’ को समर्पित है. जिसने छोटी उम्र में ही कठिनाइयों से लड़ना सीख लिया है. भागीरथ बी.ए. पार्ट वन का छात्र है जो छपरा के भागवत विद्या पीठ के पास ठेले पर चाय-नाश्ता बेचता है. उसके पिता मीना साह 68 साल के हो चुके हैं जो बुढ़ापे की थकान और कमजोरी के कारण ठेला दूकान चलाने में असमर्थ हैं. जिस कारण परिवार चलाने का एक मात्र जरिया ‘चाय दूकान’ को संभालने की पूरी जिम्मेदारी भागीरथ पर आ चुकी है. भागीरथ अपने छोटे भाई के साथ मिलकर रोज दुकान चलाता है और उसी से हुए कमाई से उसका परिवार चलता है.

‘बचपन से है पढ़ने का इरादा’

परिवार के तंग हालातों के बीच भागीरथ ने अपनी शिक्षा के साथ कभी समझौता नहीं किया. बचपन से ही दूकान चलाने के साथ-साथ उसका ध्यान पढाई में लगा रहा. दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई शहर के गांधी उच्च विद्यालय में करने के बाद 11वीं और 12वीं की पढाई राजेन्द्र कॉलेजिएट से की. फिलहाल भागीरथ भुवनेश्वर सिंह डिग्री कॉलेज में स्नातक प्रथम वर्ष का छात्र है. अपनी व्यस्त दिनचर्या से बामुश्किल समय निकाल कर भागीरथ दूकान पर ही पढाई कर लेता है. 

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काम के साथ साथ पढाई करता भागीरथ 

कंप्यूटर भी सीखता है भागीरथ

ख़राब आर्थिक हालात के बावजूद भागीरथ ने शिक्षा के स्तर को और उन्नत करने के उद्देश्य से कम्प्यूटर क्लास भी ज्वाइन किया है. हालांकि भागीरथ इतना नहीं कमाता की कंप्यूटर सीख सके. पर शिक्षा के प्रति उसका समर्पण और जीवन में कुछ अच्छा करने के इरादे ने उसके हर संघर्ष को राह दी है. भागीरथ कंप्यूटर में डिप्लोमा कर रहा है और टाइपिंग भी सीख रहा है.

सरकारी नौकरी पाने की है तमन्ना

एक आम आदमी की नजर जब एक चाय बेचने वाले पर पड़ती है तो उसे देखकर उसके अंदर के उद्देश्यों की परिकल्पना नहीं की जा सकती, पर भागीरथ आज हर चाय बेचने वालों के लिए एक उद्धाहरण प्रस्तुत कर रहा है. उसका उद्देश्य जीवन भर चाय बेचना नहीं बल्कि पढ़-लिख कर सरकारी नौकरी पाना है. भगीरथ SSC और लेखापाल की भी परीक्षा दे चूका है. एक परीक्षा का रिजल्ट अभी नहीं आया है और एक में उसने असफलता पाई है. पर असफलता शब्द भागीरथ को निराश नहीं करती बल्कि उससे प्रेरणा लेकर उसके उत्साह में और भी प्रबलता आ जाती है.

सबका चहेता है भागीरथ

चाय बेच कर पढ़ाई करना संभव तो है. पर आर्थिक तंगी और पारिवारिक बोझ के कारण कोई भी तनावग्रस्त हो सकता है. लेकिन भागीरथ में ऐसा कुछ भी नहीं है. वो हर काम मजे से करता है. हमेशा खुश रहता है. उसे जानने वाले और उसकी दूकान पर चाय पीने वाले लोग उसके व्यवहार से काफी प्रसन्न रहते हैं. उसका मुस्कुराता चेहरा हर दिल अजीज है.

अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ करना चाहता है भागीरथ

भागीरथ ने अबतक के अपने जीवन में काफी कष्ट झेलें हैं. शहर के मासूमगंज स्थित उसका मकान जर्जर है. उसके ऊपर चाय बेचने वाले के नाम की मुहर लग गई है. भागीरथ इन सब चीजों को बदलना चाहता है. सफलता की सीढ़ी चढ़कर वो अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ करना चाहता है. उसने प्रण लिया है कि उसकी आने वाली पीढ़ी का कोई भी सदस्य चाय नहीं बेचेगा. इतनी कम उम्र में ऐसी सोंच प्रशंसनीय है. भागीरथ चाय बेचकर प्रधानमंत्री तो नहीं बनना चाहता पर एक सफल व्यक्ति के रूप में समाज में अपनी पहचान स्थापित करना उसका मुख्य उद्देश्य है.

छपरा टुडे #SpecialStory के माध्यम से भागीरथ जैसे संघर्षशील युवक को हमने पहचान दिलाने का छोटा सा प्रयास किया है.
आज भागीरथ जैसे कई युवक पैसे के आभाव में उन्नत शिक्षा नहीं ले पा रहे हैं और उनके हौसले उड़ान भरने से पहले ही दम तोड़ देते हैं. सरकार और समाज को भागीरथ के इस प्रयास को प्रोत्साहन देना चाहिए. भागीरथ और उस जैसे कई होनहार सुविधाओं के आभाव में चाह कर भी गरीबी से मुक्त नहीं हो पाते.

आज हमारी सरकारी व्यवस्थाओं को और ज्यादा सुगम होने की आवश्यकता है. अगर भागीरथ को थोड़ी बहुत भी सरकारी मदद मिल जाए तो निश्चित तौर पर उसे अपने संघर्षमय जीवन को नई दिशा देने में काफी आसानी होगी.

आइए हम सब मिलकर एक सार्थक पहल करें और भागीरथ को आगे बढ़ाने में उसका साथ दें.

चाय बेचने वाला जब हमारे देश का प्रधानमंत्री बन सकता तो भागीरथ के सपने क्यों नहीं पुरे हो सकते. सारण के इस संघर्षशील युवक के जज्बे को हमारा सलाम.

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(प्रभात किरण हिमांशु)

जीवन के हर मोड़ पर संघर्ष है. पर संघर्ष जब अपनी पराकाष्ठा पर हो तो वेदना का रूप ले लेता है. संघर्ष कभी सफल होने के लिए होता है तो कभी जीवन यापन के लिए. हर संघर्ष की अपनी ही एक कहानी है.

छपरा के कटहरीबाग की 14 वर्षीया ‘लक्ष्मी’ भी जीवन में कठिन संघर्ष के दौर से गुजर रही है. लक्ष्मी के संघर्ष की कहानी छपरा टुडे की सिर्फ एक रिपोर्ट ही नहीं बल्कि हर व्यक्ति के लिए एक प्रेरणा है.

छपरा टुडे #SpecialStory  में हम लक्ष्मी के संघर्ष को आपतक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं.

लक्ष्मी 14 वर्ष की एक छोटी बच्ची है. इस उम्र में जहां लक्ष्मी जैसी बच्चियां पारिवारिक जिम्मेवारियों से मुक्त बचपन का भरपूर आनंद उठती हैं. वहीं लक्ष्मी अपने परिवार की जिम्मेदारियों का वहन करने के लिए छपरा के नगरपालिका चौक पर ठेले पर पकौड़े बेचती है.

लक्ष्मी के पिता श्यामबाबू गुप्ता को माउथ कैंसर है और उनका इलाज चल रहा है. लक्ष्मी की माँ पति की देख-रेख में लगी रहती है. घर की आर्थिक स्थिति बद्तर है. लक्ष्मी अपने छोटे भाई बहन और पिता के इलाज के लिए रोजाना नगरपालिका चौक पर लोगों को गरमागरम पकौड़े बनाकर खिलाती है. जो आमदनी होती है उसी से किसी तरह घर का गुजारा चलता है. लक्ष्मी की छोटी बहन 10 साल की शिवानी भी काम में उसकी मदद करती है.

कई लोग वहां पकौड़े खाने आते हैं. कुछ लोग लक्ष्मी के प्रति अपनी संवेदना प्रकट करते हैं तो कुछ पकौड़े का स्वाद लेकर पैसे देकर चले जाते हैं और लक्ष्मी अपने हाल पर खड़ी अपना दूकान चलाती रहती है. रात को घर जाकर लक्ष्मी पढाई भी करती है और अपने भाई बहनों का ख्याल  भी रखती है. ज्यादा से ज्यादा लोग उसकी दूकान पर आएं उसके लिए लक्ष्मी ने ठेल पर मदद के गुहार की पोस्टर भी लगा रखी है.

नगरपालिका चौक से प्रतिदिन बड़े-बड़े नेता और आलाधिकारी गुजरते हैं. कमोबेस सबकी नजर ठेले पर जाती है पर विकास के दावों का बड़ा-बड़ा भाषण देने वाले नेता लक्ष्मी की इस विवशता पर मौन है.

लक्ष्मी के संकल्प के आगे सभी सरकारी वादे बौने साबित हो रहे हैं. रोजगार के लिए पकौड़े बेचना गुनाह नहीं है. पर लक्ष्मी जैसी बच्ची जिसे इस उम्र में उन्मुक्त गगन के छांव में मासूम बचपन का पूरा आनंद लेना था वो आज दो वक्त के रोटी की जुगाड़ और पिता के इलाज के लिए पकौड़े बेच रही है.

छपरा टुडे #SpecialStory के माध्यम से आपसे आग्रह करना चाहता है कि आप इस छोटी बच्ची की मदद में आगे आएं. लक्ष्मी को जरूरत है समाज के उन रक्षकों की जो बचपन की मासूमियत और भावनाओं को समझते हैं. वैसे लोग जिन्हें ख्याल है देश के बच्चों का. इतनी छोटी उम्र में लक्ष्मी के इस मजबूत हौसले को हमारा पूरा सपोर्ट है.

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कला के कई आयाम होते हैं. कभी कला जीवनयापन का माध्यम बनती है, तो कभी इंसान अपनी आत्मा को संतुष्ट करने के लिए कला को ही आधार बनाता है. समाज के उत्थान में भी कला महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. हर व्यक्ति आज कला से किसी न किसी रूप से जुड़ना चाहता है. कुछ लोग कला का उपयोग मनोरंजन के लिए करते हैं, तो कुछ कला को हथियार बनाकर सामाज में व्याप्त बुराइयों पर प्रहार करते हैं.

कला के अनेकों प्रकार हैं और आज भी कला क्षेत्र में आगे बढ़ने के कई अवसर हैं. हमारे देश में कलाकारों को प्रोत्साहित करने हेतु कई योजनाएं हैं. किन्तु हमारे देश की सरकारी व्यवस्था से संघर्षरत कलाकारों को उन्नत विकास के लिए कोई समुचित लाभ नहीं मिल पा रहा है.

देश के जनप्रतिनिधि चुनावी भाषणों में भविष्य के भारत का जिस प्रकार व्याख्यान  करते है वो सिर्फ सुनने में ही अच्छा लगता है. पर एक कलाकार कला के विभिन्न माध्यमों से जिस प्रकार ज्वलंत मुद्दे को प्रदर्शित करते है वो वाकई प्रशंसनीय होता है.

छपरा टुडे #साक्षात्कार की इस कड़ी में आपका परिचय एक ऐसे ही युवा चित्रकार से करने जा रहा है जिसने अपने क्रिएटिव चित्रकारी से भारत के भविष्य की जो परिकल्पना की है वो अकल्पनीय है. इनका मानना है कि पेंटिंग सिर्फ घर में सजावट के काम नहीं आती बल्कि चित्रकला से चित्रकार वैसे ज्वलंत मुद्दों को प्रदर्शित करते हैं जो देश और समाज को प्रेरित करता है.

प्रस्तुत है अपनी अद्भुत चित्रकला के माध्यम से भारत के भविष्य का अविस्मरणीय चित्रण कर कला क्ष्रेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रयत्नशील सारण (छपरा) के रवि रंजन कुमार से हुई छपरा टुडे प्रतिनिधि प्रभात किरण हिमांशु से बातचीत के अंश: 

 

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रवि रंजन कुमार

छपरा टुडे: चित्रकला में आपकी रूचि कब से हुई?

रविरंजन: मेरे पिता जी और दादा जी लेटर राइटिंग और साइनबोर्ड बनाते थे. बचपन में उन्हें काम करता देख मेरे मन में भी पेंटिंग बनाने की उत्सुकता हुई. साइन बोर्ड बनाते-बनाते मेरे अंदर चित्रकला में कुछ नया क्रिएशन करने की भावना उत्पन्न हुई.

छपरा टुडे: एक उन्नत चित्रकार बनने की दिशा में आपने क्या-क्या प्रयास किये?

रविरंजन: सबसे पहले तो मैंने एक गुरु की तलाश की. मेरे गुरु छपरा के प्रसिद्ध चित्रकार ‘मेहदी शॉ’ जिन्होंने मुझे चित्रकला की बारीकियां सिखाई. उन्ही से प्रेरणा लेकर मैंने इस कला को आत्मसात किया और चित्रकला के क्षेत्र में बेहतर करने का संकल्प किया.

छपरा टुडे: अपने कैरियर को आगे बढ़ाने में आपको कितनी कठिनाइयां हुई?

रविरंजन: मेरे पिता साइनबोर्ड बनाते थे और उसी से हुए आमदनी से हमारा घर चलता था. पर्याप्त आमदनी के आभाव में जीवन में आगे बढ़ने में काफी परेशानी हुई. जैसे-तैसे पैसे का जुगाड़ कर पढाई की और साथ में पेंटिंग भी सीखी. आज भी तमाम कठिनाइयों का सामना करते हुए कला क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रयासरत हूँ. अपनी जीविका चलाने के लिए मैं वाहनों पर लगने वाले नंबर प्लेट बनाता हूँ. 

 

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छपरा टुडे: आपको चित्रकला के क्षेत्र में आगे बढ़ाने में परिवार का कितना योगदान रहा?
रविरंजन: मेरे परिवार के लोगों ने मुझे हमेशा सपोर्ट किया है. मेरे पिता श्री चन्द्रिका चौधरी और मेरे बड़े भाई ने हमेशा मुझे प्रोत्साहित किया. चित्रकला की प्रदर्शनी लगाने में भाई और दोस्तों ने काफी आर्थिक मदद की.

छपरा टुडे: आपने चित्रकला के क्षेत्र में कौन सा क्रिएशन किया है?
रविरंजन: मुझे हमेशा ही कुछ अलग थीम पर काम करने की इच्छा रही थी. मैंने ‘कोलाज’ (वेस्टेज पेपर) से कई क्रिएशन किए हैं. 500 साल पहले के बनारस घाट और आने वाले 100 साल बाद के बनारस घाट को अपनी सोंच से मैंने चित्रों के माध्यम से प्रदर्शित किया है. मेरे द्वारा बनाई गई कोलाज पेंटिंग में ओशो, मदर टेरेसा की पेंटिंग खास है. मैंने ‘रेडियम वर्क’ से भी कई क्रिएटिव पेंटिंग बनाए हैं.

छपरा टुडे: आप कहाँ-कहाँ चित्रकला के प्रदर्शनी में शामिल हुए हैं?
रविरंजन: मेरी चित्रकला तक्षशीला आर्ट गैलरी, गैलरी आर्टिक विज़न (मलाड),  तानसेन कला वीथिका (ग्वालियर), जवाहर कला केंद्र जयपुर, ललित कला अकादमी (नई दिल्ली) जैसे प्रमुख जगहों पर आयोजित राष्ट्रीय स्तर के प्रदर्शनियों में सम्मिलित हुई है.

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रद्दी कागज से बनायीं गयी पेंटिंग

छपरा टुडे: आपके प्रेरणा स्त्रोत कौन हैं?
रविरंजन: मेरे गुरु मेहदी शॉ के अलावा एम.एफ.हुसैन, पिकाशो और हेनरी मतिस ने मुझे काफी प्रभावित किया है. 

छपरा टुडे: हमारे माध्यम से कोई सन्देश लोगों को देना चाहेंगे?
रविरंजन : कोई भी कला शुरुआत में सपने की तरह दिखती है, पर कड़ी मेहनत और निरंतर अभ्यास से हर कला को आत्मसात किया जा सकता है. हर काम को जूनून से करना चाहिए. paintings ravi kumar

छपरा टुडे: हमारी पूरी टीम की तरफ से आपको शुभकामनाएं!
रविरंजन :जी, धन्यवाद!

साक्षात्कार की इस श्रृंखला में हमने आपका परिचय छपरा के दहियांवा, ब्राह्मण टोली निवासी 26 वर्षीय रविरंजन कुमार से कराया. रविरंजन चित्रकला के क्षेत्र में राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित करने के लिए कृतसंकल्प हैं. तमाम कठिनाइयों और खराब आर्थिक स्थिति के बावजूद रविरंजन ने अपने चित्रकला के जूनून को बरकरार रखा है. सरकार द्वारा कोई खास प्रोत्साहन नहीं मिलने के बावजूद भी रविरंजन अपने आत्मबल से चित्रकला में लगातार क्रिएशन करते आ रहे हैं. छपरा टुडे डॉट कॉम की पूरी टीम की तरफ से सारण के इस उभरते चित्रकार को हार्दिक शुभकामनायें. 

 

 

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