‘मां’ एक ऐसा शब्द जिसमें संसार की सारी भवनाएं एक साथ समाहित हो जाती हैं। एक मां के बारे में लिखने से ज्यादा उसे समझना ज्यादा कठिन होता है। ममता की एक ऐसी तस्वीर जिसकी आगे संसार की सारी खुशियां नतमस्तक हो जाती हैं। यूं तो मां के बारे में कई कविताएं और कहानियां लिखी गई हैं लेकिन, मेरा मानना है कि मां से जुड़ी भावनाओं को शब्द देना इतना आसान नहीं। हम आपको हिंदी साहित्य के कुछ जानी-मानी कविताएं पढ़ाते हैं जो ‘मां’ के ऊपर लिखी गई हैं जिसे पढ़कर आपके चेहरे पर अपनी ‘मां’ को याद करके एक बरबस मुस्कान आ ही जाएगी.

मां पर मशहूर शायर मुनव्वर राणा की लिखी कुछ कविताएं काफी मशहूर हुई हैं। पढ़िए उनके कुछ अंश:

1. इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है,
मां बहुत गुस्से में होती है तो रो देती.

2. मुझे बस इसलिए अच्छी बहार लगती है,
कि ये भी माँ की तरह खुशगवार लगती है.

3. किसी को घर मिला हिस्से में या दुकां आई,
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में मां आई.

4. लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती,
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती.

5. ये ऐसा कर्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता,
मैं जब तक घर न लौटू मेरी मां सजदे में रहती है.

6. खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी थीं गांव से,
बासी भी हो गई हैं तो लज्जत वही रही.

7. बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
मां सबसे कह रही है बेटा मज़े में है.

8. मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आंसू,
मुद्दतों मां ने नहीं धोया दुपट्टा अपना

मशहूर कवि आलोक श्रीवास्तव की रचना:

चिंतन दर्शन जीवन सर्जन
रूह नज़र पर छाई अम्मा
सारे घर का शोर शराबा
सूनापन तनहाई अम्मा

उसने खुद़ को खोकर मुझमें
एक नया आकार लिया है,
धरती अंबर आग हवा जल
जैसी ही सच्चाई अम्मा

सारे रिश्ते- जेठ दुपहरी
गर्म हवा आतिश अंगारे
झरना दरिया झील समंदर
भीनी-सी पुरवाई अम्मा

घर में झीने रिश्ते मैंने
लाखों बार उधड़ते देखे
चुपके चुपके कर देती थी
जाने कब तुरपाई अम्मा

बाबू जी गुज़रे, आपस में-
सब चीज़ें तक़सीम हुई तब-
मैं घर में सबसे छोटा था
मेरे हिस्से आई अम्मा

– आलोक श्रीवास्तव

मशहूर शायर नीदा फाज़ली का नज़्म:

बेसन की सोंधी रोटी

बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका बासन
चिमटा फुंकनी जैसी मां

बान की खूर्रीं खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी
थकी दुपहरी जैसी माँ

चिड़ियों की चहकार में गूंजे
राधा-मोहन अली-अली
मुर्गे की आवाज़ से खुलती
घर की कुंडी जैसी मां

बीवी बेटी बहन पड़ोसन
थोड़ी थोड़ी सी सब में
दिनभर एक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी मां

बांट के अपना चेहरा माथा
आंखें जाने कहां गईं
फटे पुराने इक अलबम में
चंचल लड़की जैसी माँ

– निदा फ़ाज़ली