छपरा(सुरभित दत्त): जिद,जुनून और कुछ कर गुजरने का जज्बा इंसान को एक राह दिखाता है जिस पर चल कर वह नयी बुलंदियों को छूने की कोशिश करता है.

छपरा शहर के एक कलाकार और अब बिहार के सुदर्शन पटनायक के नाम से मशहूर हो रहे सैंड आर्टिस्ट अशोक कुमार रेत पर अपनी बनायीं कलाकृतियों के माध्यम से सुर्खियों में है.

अशोक ने पिछले कुछ दिनों में लगातार अपनी कलाकृतियों के माध्यम से समाज को सन्देश देने की कोशिश की है. वही समसामयिक घटनाक्रम को भी रेत की कलाकृति से जोड़कर उन्होंने जन जन तक सन्देश पहुँचाने का बीड़ा उठाया है. चाहे एड्स जागरूकता दिवस हो या सैनिकों के सम्मान की बात, मानवाधिकार दिवस या फिर तमिलनाडु की मुख्यमंत्री को श्रद्धांजलि. अशोक ने अपने द्वारा रेत पर बनायीं गयी कलाकृति (Sand Art) से सभी को अपनी ओर आकृष्ट किया. ashok

स्वभाव से मृदुल और जुनूनी अशोक ने अब एक नए अभियान को शुरू किया है. वे इस बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सात निश्चय और शराबबंदी को जन-जन तक अपने कलाकृति (Sand Art) के माध्यम से पहुंचाने के अभियान में जुट चुके है. छपरा शहर के दक्षिणी छोर पर सरयू नदी के दियारा क्षेत्र में उनके द्वारा 400 फ़ीट लंबी कलाकृति बनाई जा रही है. इसका निर्माण कार्य भी शुरू कर दिया गया है.

अशोक ने छपरा टुडे डॉट कॉम से खास बातचीत में बताया कि इतनी बड़ी कलाकृति को बना कर वह मुख्यमंत्री के सात निश्चय और शराबबंदी को जन-जन तक पहुँचाना चाहते है. इस काम में लगने वाले खर्च को भी वह खुद वहन कर रहे है. पिछले दिनों जेसीबी की सहायता से बालू को एकत्रित करने का काम हुआ. अब वह स्वयं प्रतिदिन 3 से 4 घंटे कुदाल चला कर उसे सजाने में जुटे है. जिसके बाद गोंड, रंग और अन्य सामानों की सहायता से कलाकृति बनायीं जाएगी. कलाकृति में शराब की बोतल और उसके नीचे दबे लोग और पीने वालों के कंकाल नजर आयेंगे. साथ ही सात निश्चय की झलक भी देखने को मिलेगी.  

उनके उत्साह और जज्बे को उनके मुहल्ले के लोगों और युवाओं का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है. ऋतू राज, पवन और रवि कुमार उनके सहयोग में तत्पर है. अशोक इस कलाकृति के निर्माण में आने वाले खर्च के लिए स्पांसर की भी तलाश में जुटे है.

छपरा के इस सुदर्शन पटनायक को उम्मीद है कि अपने 7 निश्चयों को लेकर बिहार के विभिन्न जिलों में दौरा कर रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब छपरा प्रवास पर आएंगे तो उसकी कलाकृति को जरूर देखेंगे. जिससे उन जैसे कलाकारों को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलेगी.

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सुरभित दत्त 

मानवता की सेवा ईश्वरीय कार्य है और जब यह उन बच्चों के लिए किया जा रहा हो जिन्हें अपनों ने ही छोड़ दिया हो, तो और भी पुनीत बन जाता है.

पिछले दो दशकों से ऐसे ही सेवा में समर्पित देवेश नाथ दीक्षित जब दिल्ली से मानव सेवा सम्मान प्राप्त कर लौटे तो उनके द्वारा पाले पोसे जा रहे बच्चों के चेहरे खिल उठे. बच्चों ने अपने ‘दादा जी’ का गर्मजोशी के साथ स्वागत किया और उनसे लिपट गए.

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दृश्य बड़ा ही मार्मिक था, जिसका कोई नहीं उसका ‘नाथ’ जब उनसे मिला तो कुछ बाते भी हुई शिकायतें भी. बच्चे दीक्षित जी से लिपट कर अपनी बातों को बताने लगे. SONY DSC

बुधवार सुबह के लगभग 10 बजे छपरा टुडे की टीम छपरा शहर के प्रभुनाथ नगर स्थित मानस स्वयंसेवी संस्था द्वारा संचालित बाल गृह (बालक) पहुंची. साथ थे संस्था के संचालक और बच्चों के ‘दादा जी’ देवेश नाथ दीक्षित. उनको देखते ही संस्था में रह रहे 32 बच्चे उनसे लिपट गए. बच्चों को उन्होंने पुरस्कार के बारे में बताया और फिर मिठाइयाँ भी खिलाई. 

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हमारी टीम को बच्चों ने प्रार्थना, ‘तू राम है तू ही रहीम है’ सुनाया तो एक बच्चे ने तो माँ पर गीत गाकर सुनाया. खास बात यह रही कि जिसने कभी अपनी माँ को देखा नहीं उसने यह गीत गाकर सभी को भावुक कर दिया. इस जगह ना कोई जात था ना कोई मजहब, थी तो बस मानवता. 

संस्था में बच्चों को परवरिश के साथ साथ शिक्षा के लिए व्यवस्था की गयी है. साथ ही स्किल डेवेलपमेंट के लिए भी प्रयास किये जा रहे है. संस्था के महासचिव विनय मोहन ने बताया कि यहाँ रह रहे बच्चों के परिजनों की हर संभव तलाश की जाती है. इसके बावजूद जो बच्चे बच जाते है उन्हें बेहतर वातावरण में रखा जाता है.  

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देवेश बताते है कि 1999 में एक कार्यक्रम से उन्हें NGO खोलने की प्रेरणा मिली और ‘मानस’ संस्था की शुरुआत हुई. तब से अब तक लगातार मानव सेवा में लगे रहे. चाहे अनाथ बच्चों की बात करे या बाल मजदूरी करने वालों की. बीमार कुपोषित बच्चों और पोलियो अभियान में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया. 

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उन्होंने कहा कि इस सम्मान से उन्हें आगे और भी कार्य करने की जिज्ञासा को बल मिला है, मनोबल बढ़ा है. उन्होंने अपने इस पुरस्कार को बच्चों को समर्पित किया है. अनाथ बच्चों के ‘नाथ’ देवेश नाथ दीक्षित का यह कार्य निश्चय ही समाज के लिए एक प्रेरणाश्रोत है.

इस अवसर पर मानस के महासचिव विनय मोहन, कोषाध्यक्ष असीम कुमार सिंह समेत संस्थान से जुड़े अन्य लोग उपस्थित थे.

सभी तस्वीरें कबीर अहमद/छपरा टुडे डॉट कॉम

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(सुरभित दत्त सिन्हा) छठ को महापर्व कहते है. ऐसा इसलिए कि इस पर्व को कठिन साधना से करना होता है. चार दिन तक चलने वाले इस अनुष्ठान की शुरुआत नहाय-खाय से होती है. जिसके बाद दूसरे दिन खरना होता है और इसी के साथ शुरू हो जाता है लगातार 36 घंटों का निर्जला उपवास. बिना अन्न जल पिये व्रती पूजा करती है.

इस दौरान अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया जाता है. चौथे और अंतिम दिन उदयीमान भगवान भास्कर को अर्घ्य के साथ व्रत समाप्त होता है.

मुख्य रूप से बिहार और उत्तर प्रदेश में मनाया जाने वाले छठ पूजा की छटा अब पुरे देश में देखने को मिल रही है. जो जहाँ है वही छठ पूजा करने लगा है. यहाँ तक कि अब विदेशों में रहने वाले भारतीय भी वही छठ करने लगे है.

इस महापर्व में स्वच्छता का खास ध्यान रखा जाता है. पूजा के प्रति लोगों की भक्ति, समर्पण के कारण ही इसे ‘महापर्व’ कहा गया है. छठ पूजा के दौरान धर्म, जाति की सारी दीवारे ख़त्म हो जाती है और सभी एक दूसरे की भरपूर मदद करते है. छठ पूजा की महत्ता को देखते हुए कई मुस्लिम परिवारों में भी पुरे विधि-विधान से पूजा की जाती है.

छठ पूजा के गीतों से वातावरण भक्तिमय हो जाता है. इन गीतों की विशेष धुन सभी को छठ की याद दिलाती है. दूर देश-प्रदेश में रहने वाले लोग इस महापर्व को मनाने अपने घर पहुंचते है.

“उम्मीद है आप भी महापर्व छठ पर अपने घर पहुँच चुके होंगे और पूजा में शामिल हो रहे होंगे.”

 

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{सुरभित दत्त} दीपावली में दियों से घर को रौशन करने की प्राचीन परंपरा है. आधुनिक समय में इन दियों का स्थान रंगबिरंगी इलेक्ट्रिक लाइटों ने ले लिया है. पीढ़ियों से चली आ रही मिट्टी के दिये में दीपक जलाने की परंपरा को लोग बढ़ती महंगाई के कारण छोड़ने को विवश हो रहे है. जिसके कारण दिये के निर्माण से जुड़े लोगों के सामने रोजी रोजगार की समस्या उत्पन्न हो गयी है.

मिट्टी के बर्तन और दिये के निर्माण में जुटे लोग अब अपने बच्चों को इस रोजगार से जोड़ना नहीं चाहते. जबकि पीढ़ियों से मिट्टी के बर्तन का निर्माण उनका खानदानी रोजगार रहा है. इसका सबसे बड़ा कारण मिट्टी के बर्तन और दियों के प्रति लोगों का रुझान कम होना है. पूजा-पाठ और अन्य कर्मकांडों में ही अब मिटटी के बर्तनों का इस्तेमाल हो रहा है. जिससे इस व्यवसाय में जुटे लोगों के जीवन पर असर पड़ा है.

इस व्यवसाय से जुड़े छपरा शहर के कई कुम्हार बताते है कि पीढ़ियों से उनका परिवार पानी के चुक्कड़, दिये और मिट्टी के अन्य बर्तनों और मूर्तियों का निर्माण करता आ रहा है. इस दौर में जब महंगाई सभी को सता रही है. बढ़ती महंगाई के साथ मिट्टी महँगी हो गयी पर मिट्टी के बर्तन के दाम कुछ खास नहीं बढे. इसके साथ ही मांग भी कम हो गयी. जिसके कारण अब आने वाली पीढ़ी इस व्यवसाय में जाने से कतरा रही है. रोजगार की तलाश में बच्चे बाहर जा रहे है.

इस व्यवसाय पर महंगाई की बोझ तो थी ही रही सही कसर चाइनीज लाइटों ने पूरी कर दी. दिये जलने के लिए जरुरी तेल की कीमत की अपेक्षा बिजली से चलने वाले लाइट सस्ते साबित होते है. जिसके कारण लोग इन्हें पसंद कर रहे है. दिये अब केवल पूजा पाठ में ही इस्तेमाल होने तक सीमित हो गए है.

महंगाई ने इस परंपरा और पारंपरिक व्यवसाय को बड़ा झटका दिया है. हमारी आपसे अपील है कि इस दिवाली चाइनीज लाइटों की जगह आप मिट्टी के दिये से अपनी दिवाली मनाये. आपके इस छोटे से कदम से किसी परिवार को सबल मिलेगा और वह भी अपनी दिवाली उतने ही उत्साह से मना सकेंगे जितनी की आप.

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संपूर्ण क्रांति के प्रणेता लोकनायक जय प्रकाश नारायण की आज 114वीं जयंती है. जयप्रकाश नारायण जिन्होंने अपने अटल इरादे और कुशल नेतृत्व से ‘संपूर्ण क्रांति’ का आगाज किया. उनके आहवान पर युवाओं के साथ साथ देश की जनता जाएगी और सत्ता पर आसीन सरकार को यह अहसास कराया की लोकतंत्र में जनता ही असली शासक होती है.

लोकनायक ने देश को एक नयी दिशा दिखाई. उन्होंने बगैर किसी राजनितिक दल में शामिल हुए देश में नयी क्रांति को जन्म दिया. रजनीति को एक नयी दिशा दिखाई. 

आज जब हम उनकी जयंती मना रहे है, ऐसे में उनके आदर्शों को आज के राजनेताओं को भी अपनाने की जरुरत है. अपने को जेपी का अनुयायी या यूँ कहे कि शिष्य कहने वाले आज सत्ता पर तो जरूर आसीन है पर उनके विचारों को आत्मसात करने की जगह से शायद भटक चुके है. सत्ता पर आसीन लोग अपनी राजनीति को चमकाने के लिए जेपी का नाम तो जरूर लेते है पर उनके आदर्शों को भूल गए है. ऐसे में जरुरत है कि हम और आप मिलकर जयप्रकाश के सपने के भारत को साकार करने की दिशा में पहल करें.

जयप्रकाश की संपूर्ण क्रांति केवल सत्ता परिवर्तन के लिए नहीं बल्कि भ्रष्टाचार, गरीबी के खिलाफ थी. लोकनायक नें कहा कि सम्पूर्ण क्रांति में सात क्रांतियाँ शामिल है-राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक व आध्यात्मिक क्रांति. इन सातों क्रांतियों को मिलाकर सम्पूर्ण क्रान्ति होती है.
जीवन परिचय
जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्तूबर, 1902 ई. को बिहार के सारण जिले के सिताबदियारा में हुआ था. उनके पिता का नाम ‘देवकी बाबू’ और माता का नाम ‘फूलरानी देवी’ था. 1920 में जयप्रकाश का विवाह ‘प्रभा’ नामक लड़की से हुआ. पटना मे अपने विद्यार्थी जीवन में जयप्रकाश नारायण ने स्वतंत्रता संग्राम मे हिस्सा लिया. उन्हें 1970 में इंदिरा गांधी के विरुद्ध विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है. इन्दिरा गांधी को पदच्युत करने के लिये उन्होने ‘सम्पूर्ण क्रांति’ नामक आन्दोलन चलाया. वे समाज-सेवक थे, जिन्हें ‘लोकनायक’ के नाम से भी जाना जाता है. 1999 में उन्हें मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किया गया.

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जब टूटने लगे हौसले तो बस ये याद रखना, बिना मेहनत के हासिल तख्तो ताज नहीं होते, ढूँढ़ ही लेते है अंधेरों में मंजिल अपनी, जुगनू कभी रौशनी के मोहताज़ नहीं होते…

जी हाँ, भारतीय क्रिकेट टीम में शामिल होकर देश का नाम रौशन करने का ज़ज्बा लिए नौजवान क्रिकेट खिलाड़ी प्रशांत कुमार सिंह ने कुछ इसी दम-ख़म के साथ अपने करियर की शुरुआत की है.12 वर्ष की आयु से ही क्रिकेट के प्रति समर्पित इस युवा खिलाड़ी से छपरा टुडे डॉट कॉम संवाददाता कबीर अहमद ने की खास बातचीत.

कड़ी परिश्रम और खेल की बदौलत क्रिकेट में सारण जिले का मान और सम्मान बढाने वाले युवा क्रिकेटर प्रशांत कुमार सिंह का क्रिकेट के प्रति लगाव ऐसा था कि 12 वर्ष के आयु में ही हाथों में बल्ला और गेंद थाम प्रैक्टिस शुरू कर दी थी और अभी बिहार अंडर-19 टीम के कप्तान है. बेहतर प्रदर्शन को लेकर हाल ही में खेल मंत्री ने खेल दिवस के अवसर पर पटना में उन्हें सम्मानित भी किया.IMG-20160903-WA0074

प्रशांत ने भारत रत्न सचिन तेंदुलकर को अपना प्रेरणा श्रोत बताते हुए कहा कि उनके खेल को देख मैंने बहुत कुछ सिखा है. बदलते इस दौर में प्रशांत अपने अन्दर विराट कोहली को देखते है. वैसे प्रशांत ऑल राउंडर है लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा बोलिंग करना पसंद है.

वर्ष 2013 में आगरा में आयोजित अंडर-16 इंडियन क्रिकेट कैंप में बिहार से दो खिलाड़ियों का चयन हुआ था. जिसमे एक प्रशांत कुमार सिंह भी थे. मनी ग्राम द्वारा नागपुर में आयोजित कार्यक्रम में 133 kmph से गेंद फेंकने के लिए भारतीय टीम के तेज़ गेंदबाज लक्ष्मीपति बाला जी ने उन्हें सम्मानित किया था. प्रशांत बिहार से एक मात्र खिलाड़ी थे जिन्हें ये सम्मान मिला.BeautyPlus_20160314214631_save

अपनी दिनचर्या के बारे में बताते हुए प्रशांत ने कहा मैं सुबह 5 बजे उठता हूँ और राजेंद्र स्टेडियम में दौड़ने के लिए जाता हूँ. दोपहर 2 बजे से प्रैक्टिस के लिए नेट पर पसीना बहाता हूँ. सूरज ढलते ही प्रैक्टिस के बाद जीम की ओर चल पड़ता हूँ.

माता-पिता का स्नेह, बड़े भाई का प्यार और गुरुजनों के आशीर्वाद से मैं अब तक इतना सफल हो पाया हूँ. मुझे अपने सपने को पूरा करने में इन लोगों के प्यार और स्नेह की जरुरत है. प्रशांत अपने अब तक की सफलता का श्रेय कोच मुकेश कुमार प्रिंस और कैसर अनवर के साथ-साथ समय-समय पर परस्पर सहयोग करने वाले युवराज सुधीर सिंह और मशकुर खान को भी देते है.

जब हौसला बना लिया ऊँची उड़ान का…फिर देखना फिज़ूल है कद आसमान का…छपरा टुडे की टीम की ओर से छपरा के उभरते हुए खिलाड़ी प्रशांत कुमार सिंह को उनके उज्जवल भविष्य के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाये.

यहाँ देखें विडियो:

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रियो ओलंपिक में बेटियों ने देश का नाम रोशन किया है. इस बार कुल 2 पदक आये और दोनों ही लड़कियों के नाम रहे. रियो ओलंपिक में बैडमिंटन की रजत पदक विजेता पीवी सिंधु से छपरा टुडे डॉट कॉम ने ख़ास बातचीत की.
 सिंधु ने हमारे विशेष संवाददाता नीरज कुमार सोनी से अपने अनुभव साझा किए. प्रस्तुत है बातचीत के अंश:
 
खास बातचीत के दौरान पुलेला गोपीचंद, पीवी सिन्धु और नीरज कुमार सोनी.
खास बातचीत के दौरान पुलेला गोपीचंद, पीवी सिन्धु और नीरज कुमार सोनी.

 

 रियो ओलंपिक की बैडमिंटन स्पर्धा में रजत पदक जीतकर भारत का नाम रोशन करने वाली पीवी सिन्धु ने अपनी सफलता का राज स्वयं से प्रतिस्पर्धा बताया। असफलताओं से कभी निराश न होने वाली सिंधु ने कहा कि विश्व चैंपियनशिप में दो बार कांस्य पदक जीतने के बाद अगर मै साहस नही करती तो यह रजत पदक नही हासिल कर पाती। इंसान की प्रतिस्पर्धा पहले स्वयं से होनी चाहिए।
 
उन्होंने कहा कि मैंने ना उम्मीद का दामन छोड़ा, ना कभी हार मानना सीखा, फिर पता नहीं आज हम छोटी-छोटी असफलताओ को अपनी हार क्यों मान लेते हैं? यह जीत मेरे जीवन के सर्वश्रेष्ठ पलों में से एक है उम्मीद है कि ऐसे कई और पल आएंगे।
 
सिंधु ने नई दिल्ली मे दिये अपने साक्षात्कार में कहा कि रियो ओलंपिक के क्वार्टर फाइनल में विश्व नंबर दो और लंदन ओलंपिक की रजत पदक विजेता वांग यिहान को हराने के बाद हौसले बुलंद थे और यह उनके करियर का सर्वश्रेष्ठ पल था।
 
सिंधु ने बताया कि उन्होंने आठ साल की उम्र से ही बैडमिंटन खेलना शुरू कर दिया था। 2001 मे गोपीचंद की ऑल इंग्लैड चैपियनशिप जीत से उन्हे प्रेरणा मिली।
 
सुबह के 4.15 बजे सिंधु बैटमिंटन प्रैक्टिस के लिए उठ जाती हैं। अपने करियर की शुरूआत मे सिंधु हर दिन 56 किलोमीटर की दूरी तय करके बैडमिंटन कैंप मे ट्रेनिंग के लिए जाती थी। वहीं, सिंधु के कोच गोपीचंद ने सिंधु के बारे मे बताते हुए कहा कि इस खिलाड़ी का सबसे स्ट्राइकिंग फीचर उसकी कभी न हार मानने वाली आदत है।
 
गौरतलब है कि पांच जुलाई 1995 को तेलंगाना में जन्मी पीवी सिंधु तब सुर्खियों में आई थीं, जब उन्होंने साल 2013 में ग्वांग्झू चीन में आयोजित विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता था।
 
वह भारत की ऐसी पहली महिला एकल खिलाड़ी हैं, जिन्होने विश्व चैपियनशिप में पदक जीता। 30 मार्च 2015 को सिंधु को राष्ट्रपति ने पद्म श्री से सम्मानित किया। pv sindhu president award
 
हाल ही में 29 अगस्त 2016 को राष्ट्रपति ने उन्हें भारत के सर्वोच्च खेल पुरस्कार राजीव गांधी खेल रत्न से नवाजा। ओलंपिक में सिंधु को नौवीं रैंकिंग मिली है।
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(संतोष कुमार ‘बंटी’) दोपहर का समय था. उपर आसमान से चिलचिलाती धूप और नीचे पानी. पसीने से लथपथ सभी के चेहरे बस एक टक अपने आशियाने को निहार रहे थे. दूर तक फैली सफेद चादरों के बीच उम्मीद की लौ के बीच इनका आशियाना आत्मबल को बढ़ा रहा था, मानों कह रहा हो, मैं अभी तुम्हारे लिये जीवित हूँ. कभी साफ और कभी गंदगी का अंबार लिये नदी की लहरें आँखमिचौली करते हुए पास आती और चली जाती. बच्चों को तो एक खेलने का खिलौना मिल गया हो जब जी चाहा पानी में हंसी ठिठोली कर खेलने लगे.

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अपने मवेशियों के साथ पुल पर शरण लिए बाढ़ पीड़ित

अर्जुन राय का पूरा परिवार सड़क पर लगें पानी के बीच चौकी पर दिन गुजारने की जुगत में है. लेकिन इसी बीच पानी में खेल रहे मोहन ने अचानक पास आकर कहा “माई खाए के दे भूख लागल बा” अपने बेटे की भूख देखकर माँ ने तुरंत रोटिया दे दी. बिना सब्जी और आचार के मोहन ने रोटी खाकर अपनी पेट की आग को ठंडा किया और फ़िर अपने दोस्तों में मग्न हो गया. दोपहर का समय था तो धीरे धीरे फिर सभी लोगों ने रोटिया खाई. 

शहर से महज 100 मीटर की दूरी पर स्थित निचला ईलाका कहने के लिए तो शहर का भाग हो सकता है लेकिन सरकारी दस्तावेजों में यह रिविलगंज प्रखंड क्षेत्र में होने के कारण ग्रामीण क्षेत्र की श्रेणी में है. पंचायत दिलीया रहीमपुर के सैकड़ो परिवार बाढ़ की त्रासदी से जूझ रहे है. घर पानी में जलमग्न हो गया है. जितना हो सका लोगों ने अपने घरों से सामानों को बाहर किया और उसी के सहारें जीवन का निर्वाह हो रहा है. कुछ लोगों के घर पूरी तरह से पानी से तबाह हो चुकें है जिसके कारण वह बेघर हो चुके हैं. वही कुछ के मकान इन पीड़ितों की तरह आपना हौसला बुलंद कर पानी में भी डटे हुए है.DSCN0043 (1) 

अर्जुन राय का परिवार भी इन्हीं पीड़ितों में से एक है. घर पानी में और जरुरत के सामानों के साथ परिवार सड़क पर. पुरे दिन खुलें आसमान में दिन तो गुजर रहा है लेकिन रात की विभीषिका आंखों की नींद चुरा लेती है. जिंदगी के आख़िरी कदम पर अर्जुन की माँ घर के नजदीक सड़क के पानी में अपने चौकी पर पोते पोतियों के साथ रहने को विवश है. किसी जुगत से परिवार के पुरे दिन में एक बार ही भोजन बन रहा है. लेकिन आर्थिक तंगी से वह भी अब आस की मोहताज बनने वाली है. पुरे दिन जिन्दगीं के लिए एक दुसरें की जद्दोजहद देखकर दिन तो कट जा रहा है. लेकिन जिन्दगीं की असल जंग तो रात के साथ शुरू होती है. बच्चें अपनी थकान के साथ नींद की आगोश में चले जाते है लेकिन पानी की तेज डरावनी आवाज से बड़ों की नींद उड़ जाती है. ऊपर से सांप और बिच्छू का डर उनकी पलकों को झपकने तक नही देता है. विगत चार दिनों से बाढ़ की इस विभीषिका का दंश झेल रहे हजारों लोगों के जुबान पर बस यही शब्द है….

“दुनिया में आये है तो जीना ही पड़ेगा
जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा”

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छपरा (संतोष कुमार बंटी): छपरा शहर के कई क्षेत्र नदी के पानी से जलमग्न हो चुके है. गंगा,सोन और सरयु नदी के जलस्तर में हो रही वृद्धि के कारण शहर के निचले इलाको के बाद बाढ़ के पानी ने शहर का रुख किया है. शहर की हृदयस्थली नगरपालिका चौक, थाना चौक पर बाढ़ का पानी पहुँचना शहरवासियों के लिए शुभ संकेत नहीं है. उपर से सरकारी चेतावनी लोंगो को और सोचने पर मजबूर कर रही है. flood

प्रशासन इस आपदा से निपटने के लिए पिछले कई महीनो से योजना का निर्माण कर रही है लेकिन पानी बढ़ने के साथ ही उनकी योजनाओ और कार्यो की पोल खुल गयी है. जिसके कारण अब शहर भी लोंगो के लिए सुरक्षित नही दिख रहा है.

शहर में यहाँ तक पंहुचा बाढ़ का पानी

शहर के सबसे रिहायशी इलाके साहेबगंज में पानी पहुँच चुका है. सोनारपट्टी, करीम चक,राहत रोड, कटहरी बाग़, बुटनबाड़ी, दहियांवा, धर्मनाथ मंदिर, गुदरी, सरकारी बाजार, तिनकोंनिया यहाँ तक कि नगरपलिका चौक, थाना चौक और मौना चौक तक पानी पहुँच चुका है. नदियों में जिस तरह से वृद्धि हो रही है उसी तरह पानी दक्षिण दिशा से उत्तर दिशा में आगे बढ़ रहा है.

 

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नगरपालिका चौक पर लगा बाढ़ का पानी

किन कारणों से शहर में रुका बाढ़ का पानी

नदी के जलस्तर में हुई बढ़ोतरी से निचले इलाको का प्रभावित होना स्वाभाविक है. लेकिन शहर के रिहायशी इलाकों में पानी का लगना प्रशासनिक और सरकारी विफलता का कारण है. 

कई दशक बाद नदी के जलस्तर में इतनी बढ़ोतरी हुई है. लेकिन कई वर्षो पूर्व ऐसी स्थिति को देख चुके लोंगो का कहना है कि चंवर पूरी तरह से खाली है ऐसे में शहर में बाढ़ का पानी आना चिंता का विषय है.

 

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अपनी किश्मत पर रोता खनुआ नाला, कचड़े से जाम

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पंकज कुमार अग्रवाल का कहना है कि एक समय था जब नदी से लेकर मौना चौक होते हुए नाले में नाव चला करती थी. बाढ़ का पानी इन्ही रास्तो से होकर चंवर में चला जाता था जिससे खेती होती थी. नाला को ख़त्म कर सुरक्षा के मद्देनजर पाइप लगाया गया. समय बदला और उस पाइप को हटा कर पुनः नाला बना दिया गया. लेकिन नगर परिषद् ने खनुआ नाला पर दुकान बना दिया. खनुआ नाला की आज तक कभी सफाई नही की गई जिससे आज शहर में बाढ का पानी आ गया है.

गोपाल प्रसाद का कहना है कि 70-90 के दशक में नदी का जलस्तर बढ़ता था. उस समय खनुआ नाला से पानी दो रास्ते से होकर जाता था. उन्होंने बताया कि सरकारी बाजार के समीप यह नाला दो भागो में बंट जाता था. एक सीधे मौना चौक के रास्ते होकर रामनगर के चंवर में जाता था और दूसरा तिनकोनिया, सिविल कोर्ट, नगरपालिका चौक, श्रीनंदन लाईब्रेरी के रास्ते जगदम कालेज के नजदीक रेलवे नाला में जाता था.

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प्राथमिक विद्यालय, ब्रहमपुर के प्रांगन में भरा बाढ़ का पानी
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सड़क पर खटिया लगा कर बैठे बच्चे, तस्वीर ब्रहमपुर की है.

नदी का पानी इन रास्तो से होकर ही सिविल कोर्ट पोखरा और शिल्पी पोखरा में जाता था. लेकिन यह रास्ता प्रशासनिक उदासीनता के कारण अब अतिक्रमण कर लिया गया है. नाला पर कई लोगों ने दुकान तो कितनों ने घर बना लिया है.वही शिल्पी पोखरा का अस्तित्व अतिक्रमण से अब समाप्त होने के कागार पर है.  

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ऐसे में अगर नदी के जलस्तर में जब भी वृद्धि होगी तो अब शहर की सड़कों पर बाढ़ आना स्वाभाविक है. इस स्थिति से निपटने के लिए प्रशासन को पहले जल निकासी के लिए खनुआ नाला की सफाई करनी होगीं साथ ही साथ शहर और उनसे सटे क्षेत्रो में बने पोखर को अतिक्रमण मुक्त कर सफाई करानी होगी.

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{सुरभित दत्त} जब इतिहास रचा जा रहा हो तो कोई नहीं जानता कि वह इतिहास रच रहा है. रियो ओलंपिक में देश की आन की रक्षा महिला खिलाड़ियों ने की और इतिहास रच दिया है.

देश के लिए मेडल लेकर लाज बचाने वाली महिलाएं उन लोगों के लिए एक सबक है जो बच्चियों को गर्भ में ही मार देते है. हरियाणा राज्य जहाँ पुरुष और महिला जनसंख्या का आंकड़ा सबसे कम है उस राज्य की बेटी ने ओलंपिक में मेडल जीत कर देश का नाम रौशन किया है. बेटी ने समाज के उन रूढ़िवादी विचारधारा के लोगों के मुंह पर तमाचा लगाया है जो लड़कियों को आगे नहीं बढ़ने देना चाहते और उन्हें कोख में ही मार देते है.

इस बार ओलंपिक में भारत की और से 123 सदस्यीय दल भाग ले रहा था. लगातार मेडल के लिए प्रयास जारी थे पर विफलता ही हाथ लगी पर बेटियों ने जो कर दिया उससे लोगों को नयी ऊर्जा मिली है. ओलंपिक में भारत के लिए मेडल का इंतज़ार ख़त्म हुआ. साक्षी मलिक ने कुश्ती में कांस्य पदक अपने नाम कर लोगों में नयी ऊर्जा का संचार करते हुए और पदकों के लिए उम्मीदें जगा दी है. वहीं दूसरी ओर एक और बेटी ने भी रजत पदक जीत लिया है. बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधू भले ही फाइनल में हार गयी हो पर देशवासियों के दिलों को उन्होंने जीत लिया है.

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि रियो ओलंपिक में सवा सौ करोड़ लोगों के इस देश की लाज महिला खिलाडियों ने बचा ली है. इस उपलब्धि के साथ ही समाज के तथाकथित लोगों को यह समझने की जरुरत है कि लडकियां किसी भी मामले में लड़कों से कम नहीं है. उन्हें उचित सम्मान और प्रशिक्षण मिले तो अपना और अपने देश का नाम रौशन करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगी.

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छपरा (संतोष कुमार ‘बंटी’): ‘दलित’ एक ऐसा नाम जिसके उपर हो रही राजनीति शायद कभी समाप्त नहीं होगी. इस शब्द के प्रति अपनत्व को देखकर लगता है कि यह सभी के चहेते तो हैं, लेकिन असलियत का पता तो इस नाम के साथ जीने वाले लोगों के पास ही जाकर लगाया जा सकता है. जहां सरकार और प्रशासन द्वारा इन दलितों के प्रति दिखाए जा रहे अपनत्व की सच्चाई का पता चलता है.

दलित समुदाय के लोग यह कहने को विवश हो चुके हैं कि ‘दलित’ शब्द हमें समाज के अन्य वर्गों से अलग तो करता है लेकिन इसका भाव हमेशा नकारात्मक होता है. दलितों के साथ हो रहे भेद-भाव का प्रबल उदाहरण छपरा के कटहरी बाग के पास स्थित दलित बस्ती है जहां रहने वाले लोग प्रतिदिन घुट-घुट कर जीने को विवश हैं. शहर के बीचों-बीच कटहरी बाग़ के वार्ड नंबर 35 में दलित बस्ती है. जहाँ पिछले कई वर्षो से सुलभ शौचालय बना हुआ है. जिसकी जानकारी शायद आम लोगों को भी नहीं है.

जर्जर अवस्था में पहुँच चुका यह शौचालय अपनी दुर्दशा पर रो रहा है. शौचालय की टंकी पूरी तरह से भर चुकी है. साफ सफाई का तो कोई नामो निशान तक नही है और न ही शौचालय की टंकी को साफ करने की कोई वैकल्पिक व्यवस्था की गयी है. जिसके कारण अब शौचालय से निकलने वाली गन्दगी खुली जगहों पर बह रही है. गन्दगी के कारण आसपास की जमीन ही नही बल्कि पूरा का पूरा मुहल्ला या यूँ कहें कि पूरे शहर का वातावरण प्रदूषित हो रहा है. बावजूद इसके यहाँ किसी राजनेता या जिला प्रशासन का ध्यान नही जाता है. ऐसे में यहाँ रहने वाले करीब 100 दलित परिवार सिर्फ उपर वाले के रहमो करम पर जैसे-तैसे अपनी जिंदगी गुजर बसर कर रहे है.

क्या कहते हैं स्थानीय निवासी:

धर्मनाथ राम
धर्मनाथ राम

सुलभ शौचालय से 5 मीटर की दुरी पर रहने वाले जिला निगरानी और अनुश्रवण समिति/जिला सामाजिक सुरक्षा समिति/अनुसूचित जाति जनजाति सतर्कता एवं अनुश्रवण समिति के सदस्य धर्मनाथ राम का कहना है कि दलित सिर्फ राजनीति का माध्यम बनकर रह गया है. दलितों के उत्थान की बात तो होती है लेकिन जमीनी स्तर पर उत्थान नही होता.

 

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कृष्णा राम
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दीनदयाल राम

बस्ती के दीनदयाल राम और कृष्णा राम ने बताया कि शहर के बीचों बीच हमारी बस्ती है, लेकिन यह बस्ती सुदूर गाँव से भी बदत्तर स्थिति में है. बस्ती के प्रवेश द्वार पर ही लोगों द्वारा दलित बस्ती होने के कारण जानबूझकर कूड़ा फेंका जाता है. जिसके कारण यहाँ रहने वाले लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचती है. बस्ती में बना सुलभ शौचालय सिर्फ नाम तक ही सीमित है. हवा के झोंको के साथ शौचालय से निकलने वाली गन्दगी की बदबू अचानक गर्दन मरोड़ने लगती है. शौचालय की बदत्तर स्थिति को लेकर प्रमंडलीय आयुक्त, जिलाधिकारी सारण, नगर परिषद् को पत्र देकर अवगत कराया गया लेकिन यह सब सिर्फ फाइलों में दब कर रह गया. वार्ड आयुक्त को भी कई बार सफाई को लेकर कहा गया लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला.

दलित बस्ती की महिलाओं का कहना है कि बदबू के कारण कई बार छोटे बच्चों की तबियत ख़राब हो जाती है. पिछले दिनों हुई बारिश ने तो बस्ती की स्थिति पहले ही बिगाड़ दी थी और इन दिनों हो रही कड़क धुप से तो हालत और भी कष्टदायक हो गया है. घर में बना खाना भी इन दिनों बदबू के मारे खाया नही जा रहा है. पूरे मोहल्ले में गंदगी से लतपथ सुअर घूमते रहते हैं, जिसके कारण आजकल लोग घरो में ही दुबके रह रहे है.

देखा जाए तो शहर में दर्जनों दलित बस्तियां है पर सबका हाल लगभग एक ही जैसा है. भारतीय राजनीति का केंद्र रहा दलित समाज भले ही अपने जनप्रतिनिधियों को कई बार सत्ता के शीर्ष पर पहुँचाने में अहम् भूमिका निभा चूका है पर समाज और सरकार की उपेक्षाओं के शिकार इस बस्ती के लोग आज भी बदहाल जिंदगी जीने को विवश हैं.

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प्रभात किरण हिमांशु

छपरा: छपरा के इतिहास में शनिवार 6 अगस्त के दिन  जो भी हुआ उसे लंबे समय तक याद किया जाएगा. आगजनी, तोड़फोड़, हंगामा, रोड़ेबाजी और पुलिसिया कारवाई के बीच लोगों ने खौफ का जो मंजर देखा और अपने दिलों में महसूस किया उसने भूलना छपरा के लोगों के लिए संभव नहीं है.

प्रदर्शनकारियों के हंगामे को अफवाहों ने भले चाहे जो भी दिशा देने की कोशिश की हो पर सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ने का डर उम्रदराजों से लेकर छोटे बच्चों को भी सताता रहा.
‘पापा शहर को क्या हुआ है’, बाजार क्यों बंद है, सड़क पर क्यों न खेलें’. ऐसे मासूम सवालों ने अभिभावकों के अंतरआत्मा पर ऐसी गहरी चोट पहुंचाई है जिसके जख्म को भरना इतनी जल्दी सम्भव नहीं है.

वायरल वीडियो को लेकर शुरू हुए हंगामे की चिंगारी इतना उग्र रूप ले लेगी ऐसा सोंचा भी नहीं गया था. 5 अगस्त को मकेर में हुआ हंगामा पुलिस ने जैसे-तैसे शांत तो करा दिया पर विरोध का स्वर छपरा बंद के रूप में फूट पड़ा. बंद के दौरान जो कुछ हुआ उससे सभी वाकिफ है. दुकाने जलीं, तोड़फोड़ हुआ और जवाबी कारवाई में पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े. शाम तक शहर में कर्फ्यू से हालात पैदा हो गए और छपरा पूरी तरह छावनी में तब्दील हो गया.

पुलिस दो दिनों तक हालात पर काबू पाने के दावे करती रही पर दावे और वादों के बीच आम लोगों ने जो झेला वो छपरा के लिए काला दिन साबित हुआ. अफवाहों पर बंदिश लगे इसके लिए इंटरनेट सेवा पूरी तरह बंद कर दी गई. बामुश्किल मोबाइल फोन ही अपनों का हाल जानने का एक मात्र जरिया बना. हर कोई परिचितों का हाल जानने के लिए परेशान दिखा.

हालाँकि गंगा-यमुना तहजीब को बरकरार रखने की जो सफल कोशिश की गई वो पुलिस के सजगता का ही परिणाम है वहीं आम लोगों ने भी सांप्रदायिक सौहार्द कायम रखने के हर संभव प्रयास किये हैं. कुछ शरारती तत्वों ने भले ही माहौल बिगाड़ने का काम किया हो पर छपरावासियों ने धैर्य और संयम का सर्वश्रेष्ठ उद्धाहरण प्रस्तुत किया है.

फिलहाल जिला प्रशासन के हवाले से छपरा में पूरी तरह से शांति बहाल है. सुरक्षा कारणों से अगले आदेश तक धारा 144 लागू है और इंटरनेट सेवा पर भी पाबंदी जारी है. इन सब के बीच लोग आम जिंदगी में वापस लौट रहे हैं, पर छपरा में जो स्थिति बनी उसने आम से लेकर खास सबके बीच एक कठिन सवाल छोड़ दिया है.

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