छपरा (संतोष कुमार बंटी): छपरा शहर के कई क्षेत्र नदी के पानी से जलमग्न हो चुके है. गंगा,सोन और सरयु नदी के जलस्तर में हो रही वृद्धि के कारण शहर के निचले इलाको के बाद बाढ़ के पानी ने शहर का रुख किया है. शहर की हृदयस्थली नगरपालिका चौक, थाना चौक पर बाढ़ का पानी पहुँचना शहरवासियों के लिए शुभ संकेत नहीं है. उपर से सरकारी चेतावनी लोंगो को और सोचने पर मजबूर कर रही है.
प्रशासन इस आपदा से निपटने के लिए पिछले कई महीनो से योजना का निर्माण कर रही है लेकिन पानी बढ़ने के साथ ही उनकी योजनाओ और कार्यो की पोल खुल गयी है. जिसके कारण अब शहर भी लोंगो के लिए सुरक्षित नही दिख रहा है.
शहर में यहाँ तक पंहुचा बाढ़ का पानी
शहर के सबसे रिहायशी इलाके साहेबगंज में पानी पहुँच चुका है. सोनारपट्टी, करीम चक,राहत रोड, कटहरी बाग़, बुटनबाड़ी, दहियांवा, धर्मनाथ मंदिर, गुदरी, सरकारी बाजार, तिनकोंनिया यहाँ तक कि नगरपलिका चौक, थाना चौक और मौना चौक तक पानी पहुँच चुका है. नदियों में जिस तरह से वृद्धि हो रही है उसी तरह पानी दक्षिण दिशा से उत्तर दिशा में आगे बढ़ रहा है.
किन कारणों से शहर में रुका बाढ़ का पानी
नदी के जलस्तर में हुई बढ़ोतरी से निचले इलाको का प्रभावित होना स्वाभाविक है. लेकिन शहर के रिहायशी इलाकों में पानी का लगना प्रशासनिक और सरकारी विफलता का कारण है.
कई दशक बाद नदी के जलस्तर में इतनी बढ़ोतरी हुई है. लेकिन कई वर्षो पूर्व ऐसी स्थिति को देख चुके लोंगो का कहना है कि चंवर पूरी तरह से खाली है ऐसे में शहर में बाढ़ का पानी आना चिंता का विषय है.
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पंकज कुमार अग्रवाल का कहना है कि एक समय था जब नदी से लेकर मौना चौक होते हुए नाले में नाव चला करती थी. बाढ़ का पानी इन्ही रास्तो से होकर चंवर में चला जाता था जिससे खेती होती थी. नाला को ख़त्म कर सुरक्षा के मद्देनजर पाइप लगाया गया. समय बदला और उस पाइप को हटा कर पुनः नाला बना दिया गया. लेकिन नगर परिषद् ने खनुआ नाला पर दुकान बना दिया. खनुआ नाला की आज तक कभी सफाई नही की गई जिससे आज शहर में बाढ का पानी आ गया है.
गोपाल प्रसाद का कहना है कि 70-90 के दशक में नदी का जलस्तर बढ़ता था. उस समय खनुआ नाला से पानी दो रास्ते से होकर जाता था. उन्होंने बताया कि सरकारी बाजार के समीप यह नाला दो भागो में बंट जाता था. एक सीधे मौना चौक के रास्ते होकर रामनगर के चंवर में जाता था और दूसरा तिनकोनिया, सिविल कोर्ट, नगरपालिका चौक, श्रीनंदन लाईब्रेरी के रास्ते जगदम कालेज के नजदीक रेलवे नाला में जाता था.
नदी का पानी इन रास्तो से होकर ही सिविल कोर्ट पोखरा और शिल्पी पोखरा में जाता था. लेकिन यह रास्ता प्रशासनिक उदासीनता के कारण अब अतिक्रमण कर लिया गया है. नाला पर कई लोगों ने दुकान तो कितनों ने घर बना लिया है.वही शिल्पी पोखरा का अस्तित्व अतिक्रमण से अब समाप्त होने के कागार पर है.
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ऐसे में अगर नदी के जलस्तर में जब भी वृद्धि होगी तो अब शहर की सड़कों पर बाढ़ आना स्वाभाविक है. इस स्थिति से निपटने के लिए प्रशासन को पहले जल निकासी के लिए खनुआ नाला की सफाई करनी होगीं साथ ही साथ शहर और उनसे सटे क्षेत्रो में बने पोखर को अतिक्रमण मुक्त कर सफाई करानी होगी.