छपरा: भीषण गर्मी में सड़कों पर रिक्शा और ठेला चालकों को राहत पहुँचाने के उद्देश्य से लियो क्लब के सदस्यों ने उनके बीच शर्बत और टोपी का वितरण किया. मज़दूर दिवस के अवसर पर क्लब के सदस्यों ने स्थानीय नगरपालिका चौक पर चिलचिलाती धूप एवं गर्मी से राहत दिलाने के लिए उन्हें शर्बत पिलाया और टोपियाँ बाँटी. टोपी पाकर और शर्बत पीकर रिक्शा एवं ठेला चालकों ने संस्था के प्रति अपनी खुशी जताई. 

लियो क्लब के अध्यक्ष कुंवर जायसवाल ने बताया कि इस अभियान के तहत लगभग 500 टोपियों का वितरण किया गया. जिससे गर्मी और चिलचिलाती धूप से उन्हें राहत मिलेगी.

इस अवसर पर लियो सचिव साकेत श्रीवास्तव, कोषाध्यक्ष निखिल गुप्ता, अंकित राज, विकास, विक्की गुप्ता, अली, सन्नी, रोहित, आशुतोष, जे पी, एस के सिंह, अमर, धीरज सिंह, सुमित, गणेश पाठक, प्रकाश सिंह समेत कई लायंस एवं लियो सदस्य मौजूद थे. जानकारी लियो क्लब के संयुक्त पीआरओ आदित्य अग्रवाल ने दी.

छपरा: एक एक ईंट जोड़ कर दूसरों के घरों को बनाने वाले मजदूर खुद प्रतिदिन घर में चूल्हा जले इसलिए सुबह से लेकर शाम तक मेहनत करते है.

सुबह-सुबह शहर के कई ऐसे जगह है जहां मजदूर इकट्ठे होकर मजदूरी ढूंढते दिखते है. प्रतिदिन सुबह शुरू होने वाला यह संघर्ष शाम में घर के चूल्हे को जलाने और बच्चों को पालने के लिए होता है. किसी दिन मजदूरी नही मिली तो फिर उस दिन बच्चे भूखे सोने पर मजबूर हो जाते है.

देश में मनरेगा जैसी मजदूरी की गारेंटी देने वाली योजना भी चल रही है, पर मजदूरों को इसका कितना लाभ मिलता है यह उन जगहों पर जाकर देखा जा सकता है जहां रोजाना ये काम की तलाश में घंटों खड़े रहते है. लोग आते है मजदूरी का मोल भाव होता है, अगर बात बनी तो घर मे चूल्हा जलेगा नही तो नही.

बात जब मजदूर दिवस की हो रही है तो यह कहने में कोई संकोच नही होगा कि यह एक मात्र ऐसा दिवस है जिस दिन जिसके लिए कार्यालयों में अवकाश होता है वह काम कर रहा होता है. अगर मजदूर दिवस के दिन कोई मजदूर छुट्टी मनाए तो उसके घर शायद चूल्हा ना जले.

इस दिन बड़े आयोजन होते है, मजदूरों के संघर्ष और अन्य मुद्दों पर केवल बातें होती है, कार्यक्रमों का आयोजन होता है. मजदूरों के लिए बड़े बड़े बातें कही जाती है. किन्तु सच्चाई यह है कि मजदूर अपने हाल पर बेहाल है.

दुनिया के कई देश 1 मई को मजदूर दिवस मनाते हैं. भारत में पहली बार 1 मई 1923 को हिंदुस्तान किसान पार्टी ने मद्रास में मजदूर दिवस मनाया था. 1 मई को 80 से ज्यादा देशों में राष्ट्रीय छुट्टी होती है.

मजदूर दिवस की शुरुआत कनाडा में 1972 में हुई. यह मजदूरों के अधिकारों की मांग के लिए शुरू किया गया था. मजदूर दिवस को उत्सव के रूप में पहली बार अमेरिका में 5 सितंबर 1882 को मनाया गया. दुनिया के कई देशों में मजदूर दिवस ‘मई डे’ के रूप में मनाया जाता है. इसकी शुरुआत शिकागो से हुई थी. मजदूरों ने वहां मांग की कि वे सिर्फ 8 घंटे काम करेंगे. इसके लिए उन्होंने कैंपेन चलाया, हड़ताल और प्रदर्शन भी किया.

हर साल की तरह आज भी सत्ता जहाँ मजदूरों के लिए चलाई जा रही योजनाओं पर अपनी पीठ थपथपा आत्ममुग्ध होगी तो वही विपक्ष और बुद्धिजीवी समाज मजदूरों की दुर्दशा, उनके सम्मान पर लच्छेदार बाते कर खुद को गौरवान्वित करेगा.

आज सार्वजनिक छुट्टी होने के वजह से अधिकारी और नेता तो आराम करेंगे पर मजदूर, मजदूरी करने जरूर जायेगा क्योकी अगर वह भी छुट्टी मनाये तो शायद उसके घर में शाम में चूल्हा न जल सके.

{सुरभित दत्त सिन्हा} मजदूरों को सम्मान और उन्हें वाजिब हक दिलाने लिए प्रत्येक वर्ष पूरे विश्व में 1 मई को ‘मजदूर दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. ‘मजदूर दिवस’ के दिन सार्वजानिक अवकाश रहता है. नेता, अधिकारी, कर्मचारी सभी छुट्टी मनाते है. बस, एक वही है जो आज भी काम पर जाता है, मजदूरी करता है, कमाता है, बच्चो को खिलाता है, वह है ‘मजदूर’.

मजदूर को ‘मजदूर दिवस’ से क्या लेना देना अगर वह आज अन्य के जैसे छुट्टी मनाये तो शाम में बच्चे भूख से बिलख पड़ेंगे. दिन भर कमरतोड़ मेहनत और फिर पैसा लेकर घर पहुँचाना ताकि घर में चूल्हा जल सके. अगर वह छुट्टी मनाने लगे तो बच्चे भूखे मर जायेंगे. परिवार के पालन पोषण के लिए ये गर्मी देखते हैं सर्दी. चाहे कोई भी मौसम हो मजदूर अपना काम नियमित करते रहते हैं. दो जून की रोजी रोटी कमाने के लिए ये हाड़ तोड़ मजदूरी करते हैं तब जाकर इन्हें शाम को रोटी नसीब होती है.

दुनिया के कई देश 1 मई को मजदूर दिवस मनाते हैं. भारत में पहली बार 1 मई 1923 को हिंदुस्तान किसान पार्टी ने मद्रास में मजदूर दिवस मनाया था. 1 मई को 80 से ज्यादा देशों में राष्ट्रीय छुट्टी होती है.

मजदूर दिवस की शुरुआत कनाडा में 1972 में हुई. यह मजदूरों के अधिकारों की मांग के लिए शुरू किया गया था. मजदूर दिवस को उत्सव के रूप में पहली बार अमेरिका में 5 सितंबर 1882 को मनाया गया. दुनिया के कई देशों में मजदूर दिवस ‘मई डे’ के रूप में मनाया जाता है. इसकी शुरुआत शिकागो से हुई थी. मजदूरों ने वहां मांग की कि वे सिर्फ 8 घंटे काम करेंगे. इसके लिए उन्होंने कैंपेन चलाया, हड़ताल और प्रदर्शन भी किया.

भारत में सरकार ने मजदूरों के कल्याणार्थ कई योजनाएं चला रखी है. पर शायद उनका सही लाभ मजदूरों तक नहीं पहुँच रहा है. मजदूर काम की तलाश में लगातार एक जगह से दुसरे जगह पलायन कर रहे है. काम की तलाश उन्हें अपने घर से हजारों किलोमीटर दूर जाने को विवश कर रही है.

मजदूर दिवस पर प्रत्येक वर्ष मजदूरों के हक़ की बड़ी बड़ी बातें होती है पर इसके बाद कुछ विशेष नहीं होता. केंद्र और राज्य सरकारों को इस पर ध्यान देने की जरुरत है.

फोटो साभार: मनोरंजन पाठक