Chhapra: मुफस्सिल थाना क्षेत्र के प्रभुनाथ नगर में मकान निर्माण में लगे मजदूर की छत के छज्जा से गिरकर मौत हो गयी. मृतक मुफस्सिल थाना क्षेत्र के मेहिया गांव निवासी रुदल मांझी के 40 वर्षीय पुत्र वीरेंद्र मांझी बताया गया.

बुधवार को घटी इस घटना को लेकर बताया जाता है कि मृतक निर्माणाधीन घर की छत के छज्जा पर कार्य कर रहा था इसी दौरान वह गिर गया. गिरने के बाद घायल मजदूर को इलाज के लिए सदर अस्पताल लाया गया जहां चिकित्सकों ने मृत घोषित कर दिया.

भगवान बाजार थाना की पुलिस ने शव को अपने कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम कराया तथा परिजनों को सौंप दिया.

Mumbai: कोरोना वायरस से निपटने के लिए देश में लॉकडाउन को 3 मई तक के लिए बढ़ा दिया गया है. इस बीच, मुंबई के बांद्रा रेलवे स्टेशन पर प्रवासी मजदूरों की भारी भीड़ इकट्ठा हो गई. ये सभी मजदूर घर जाने के लिए स्टेशन पर पहुंच गए. मजदूरों को उम्मीद थी कि लॉकडाउन खत्म हो जाएगा. उन्हें हटाने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज का इस्तेमाल किया.

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बताया जा रहा है कि पुलिस की कार्रवाई के बाद भीड़ हट गई. स्थानीय नेताओं का कहना है कि लोगों को समझाया जा रहा है कि उन्हें कोई दिक्कत नहीं होगी और हर संभव मदद की जाएगी. महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार इन मजदूरों के खाने का इंतजाम करेगी. हम मजदूरों को समझा रहे हैं कि उनकी परिस्थितियों को सुधारने की पूरी कोशिश करेंगे.

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इस पूरी घटना पर महाराष्ट्र सरकार में मंत्री आदित्य ठाकरे ने ट्वीट किया और केंद्र सरकार पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि बांद्रा स्टेशन पर वर्तमान स्थिति, मजदूरों को हटा दिया गया. उन्होंने कहा कि सूरत में हाल में कुछ मजदूरों ने दंगा किया था. केंद्र सरकार उन्हें घर पहुंचाने को लेकर फैसला नहीं ले पाई. आदित्य ठाकरे ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया है. प्रवासी मजदूर खाना और शेल्टर नहीं चाहते हैं, वे घर जाना चाहते हैं.

Garkha: मंगलवार की सुबह छपरा- मुजफ्फरपुर पथ पर तेज़ रफ़्तार एम्बुलेंस ने एक मजदूर को रौंद दिया. जिससे मौके पर ही उसकी की मौत हो गई. मजदूर को रौंदने के बाद एंबुलेंस भी अनियंत्रित होकर सड़क किनारे गड्ढे में जा गिरा.

उक्त घटना जिले के गरखा थाना क्षेत्र के कमालपुर गांव के फाल्गुनी बाजार की है. जहां सड़क पार करते समय मज़दूर को एम्बुलेंस ने ठोकर मार दी. जिससे मौके पर ही उसकी मौत हो गयी. मृतक आलोनी गांव निवासी ज्ञानचंद माझी का 38 वर्षीय पुत्र सुशील माझी बताया जा रहा है.

मज़दूर की मौत से आक्रोशित ग्रामीणों ने छपरा मुजफ्फरपुर रोड को जाम कर दिया. घटना की सूचना मिलने पर मौके पर पहुंची पुलिस ने लोगों को समझा बुझा कर जाम हटवाने का प्रयास किया.

Chhapra: शहर के एकता भवन में श्रम संसाधन विभाग द्वारा श्रम अधिकार दिवस 2018 को लेकर एक दिवसीय कार्यशाला सह एक दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया. इस अवसर पर सारण जिले के श्रमायुक्त रमेश रत्नम कमल, वरीय अपर समाहर्ता अरुण कुमार ने दीप प्रज्वलित कर कार्यशाला का विधिवत उद्घाटन किया.

मज़दूरों बीमा कराएगी सरकार

इस मौके पर श्रमायुक्त रमेश रत्नम कमल ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरों के रोजमर्रा की जिंदगी उनके मजदूरी पर ही आश्रित होती है. वैसे मजदूरों को बिहार सरकार निबंधन करा कर उनका बीमा कराएगी. साथ ही उनको कार्य करने के लिए संसाधन पर अनुदान राशि भी मुहैया कराएगी. जिससे मजदूरों को कार्य करने में ऋण का सामना नही करना पड़े.

मज़दूरों के बच्चों को पढ़ाई के लिए मिलेगा अनुदान

उन्होंने बताया कि शिक्षा ग्रहण कर रहे मजदूरों के बच्चों को जिले में प्रथम, द्वितीय और तृतीय आने पर दस हजार/पंद्रह हजार बीस हजार रुपये का अनुदान राशि दी जाएगी. इसके अलावें किसी दुर्घटना में मृत्यु होने की स्थिति पर चालीस हजार रुपये की राशि प्रदान की जायेगी.

कार्यक्रम में जिले के लगभग सभी पंचायतों से एक-एक श्रमिकों का चयन कर बुलाया गया. इस एक दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को श्रमिक हित की लगभग सभी योजनाओं की जानकारी भी दी गई .

साथ ही उन्हें विभिन्न श्रम कानूनों समेत निर्माण श्रमिकों के निबंधन और बिहार शताब्दी असंगठित कार्यक्षेत्र कामगार एवं शिल्पकार सामाजिक सुरक्षा योजना, प्रवासी मजदूर दुर्घटना योजना, बँधुआ मजदूर पुनर्वास, बाल एवं किशोर श्रम उन्मूलन समेत सभी योजनाओं पर विस्तार से प्रशिक्षित कर श्रमिक वर्गों के कल्याण के लिए तैयार किया गया है.

 

छपरा: एक एक ईंट जोड़ कर दूसरों के घरों को बनाने वाले मजदूर खुद प्रतिदिन घर में चूल्हा जले इसलिए सुबह से लेकर शाम तक मेहनत करते है.

सुबह-सुबह शहर के कई ऐसे जगह है जहां मजदूर इकट्ठे होकर मजदूरी ढूंढते दिखते है. प्रतिदिन सुबह शुरू होने वाला यह संघर्ष शाम में घर के चूल्हे को जलाने और बच्चों को पालने के लिए होता है. किसी दिन मजदूरी नही मिली तो फिर उस दिन बच्चे भूखे सोने पर मजबूर हो जाते है.

देश में मनरेगा जैसी मजदूरी की गारेंटी देने वाली योजना भी चल रही है, पर मजदूरों को इसका कितना लाभ मिलता है यह उन जगहों पर जाकर देखा जा सकता है जहां रोजाना ये काम की तलाश में घंटों खड़े रहते है. लोग आते है मजदूरी का मोल भाव होता है, अगर बात बनी तो घर मे चूल्हा जलेगा नही तो नही.

बात जब मजदूर दिवस की हो रही है तो यह कहने में कोई संकोच नही होगा कि यह एक मात्र ऐसा दिवस है जिस दिन जिसके लिए कार्यालयों में अवकाश होता है वह काम कर रहा होता है. अगर मजदूर दिवस के दिन कोई मजदूर छुट्टी मनाए तो उसके घर शायद चूल्हा ना जले.

इस दिन बड़े आयोजन होते है, मजदूरों के संघर्ष और अन्य मुद्दों पर केवल बातें होती है, कार्यक्रमों का आयोजन होता है. मजदूरों के लिए बड़े बड़े बातें कही जाती है. किन्तु सच्चाई यह है कि मजदूर अपने हाल पर बेहाल है.

दुनिया के कई देश 1 मई को मजदूर दिवस मनाते हैं. भारत में पहली बार 1 मई 1923 को हिंदुस्तान किसान पार्टी ने मद्रास में मजदूर दिवस मनाया था. 1 मई को 80 से ज्यादा देशों में राष्ट्रीय छुट्टी होती है.

मजदूर दिवस की शुरुआत कनाडा में 1972 में हुई. यह मजदूरों के अधिकारों की मांग के लिए शुरू किया गया था. मजदूर दिवस को उत्सव के रूप में पहली बार अमेरिका में 5 सितंबर 1882 को मनाया गया. दुनिया के कई देशों में मजदूर दिवस ‘मई डे’ के रूप में मनाया जाता है. इसकी शुरुआत शिकागो से हुई थी. मजदूरों ने वहां मांग की कि वे सिर्फ 8 घंटे काम करेंगे. इसके लिए उन्होंने कैंपेन चलाया, हड़ताल और प्रदर्शन भी किया.

हर साल की तरह आज भी सत्ता जहाँ मजदूरों के लिए चलाई जा रही योजनाओं पर अपनी पीठ थपथपा आत्ममुग्ध होगी तो वही विपक्ष और बुद्धिजीवी समाज मजदूरों की दुर्दशा, उनके सम्मान पर लच्छेदार बाते कर खुद को गौरवान्वित करेगा.

आज सार्वजनिक छुट्टी होने के वजह से अधिकारी और नेता तो आराम करेंगे पर मजदूर, मजदूरी करने जरूर जायेगा क्योकी अगर वह भी छुट्टी मनाये तो शायद उसके घर में शाम में चूल्हा न जल सके.

{सुरभित दत्त सिन्हा} मजदूरों को सम्मान और उन्हें वाजिब हक दिलाने लिए प्रत्येक वर्ष पूरे विश्व में 1 मई को ‘मजदूर दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. ‘मजदूर दिवस’ के दिन सार्वजानिक अवकाश रहता है. नेता, अधिकारी, कर्मचारी सभी छुट्टी मनाते है. बस, एक वही है जो आज भी काम पर जाता है, मजदूरी करता है, कमाता है, बच्चो को खिलाता है, वह है ‘मजदूर’.

मजदूर को ‘मजदूर दिवस’ से क्या लेना देना अगर वह आज अन्य के जैसे छुट्टी मनाये तो शाम में बच्चे भूख से बिलख पड़ेंगे. दिन भर कमरतोड़ मेहनत और फिर पैसा लेकर घर पहुँचाना ताकि घर में चूल्हा जल सके. अगर वह छुट्टी मनाने लगे तो बच्चे भूखे मर जायेंगे. परिवार के पालन पोषण के लिए ये गर्मी देखते हैं सर्दी. चाहे कोई भी मौसम हो मजदूर अपना काम नियमित करते रहते हैं. दो जून की रोजी रोटी कमाने के लिए ये हाड़ तोड़ मजदूरी करते हैं तब जाकर इन्हें शाम को रोटी नसीब होती है.

दुनिया के कई देश 1 मई को मजदूर दिवस मनाते हैं. भारत में पहली बार 1 मई 1923 को हिंदुस्तान किसान पार्टी ने मद्रास में मजदूर दिवस मनाया था. 1 मई को 80 से ज्यादा देशों में राष्ट्रीय छुट्टी होती है.

मजदूर दिवस की शुरुआत कनाडा में 1972 में हुई. यह मजदूरों के अधिकारों की मांग के लिए शुरू किया गया था. मजदूर दिवस को उत्सव के रूप में पहली बार अमेरिका में 5 सितंबर 1882 को मनाया गया. दुनिया के कई देशों में मजदूर दिवस ‘मई डे’ के रूप में मनाया जाता है. इसकी शुरुआत शिकागो से हुई थी. मजदूरों ने वहां मांग की कि वे सिर्फ 8 घंटे काम करेंगे. इसके लिए उन्होंने कैंपेन चलाया, हड़ताल और प्रदर्शन भी किया.

भारत में सरकार ने मजदूरों के कल्याणार्थ कई योजनाएं चला रखी है. पर शायद उनका सही लाभ मजदूरों तक नहीं पहुँच रहा है. मजदूर काम की तलाश में लगातार एक जगह से दुसरे जगह पलायन कर रहे है. काम की तलाश उन्हें अपने घर से हजारों किलोमीटर दूर जाने को विवश कर रही है.

मजदूर दिवस पर प्रत्येक वर्ष मजदूरों के हक़ की बड़ी बड़ी बातें होती है पर इसके बाद कुछ विशेष नहीं होता. केंद्र और राज्य सरकारों को इस पर ध्यान देने की जरुरत है.

फोटो साभार: मनोरंजन पाठक