वित्तरहित शिक्षा नीति की समाप्ति हेतु निर्णायक पहल करे सरकार: प्रो रणजीत कुमार

वित्तरहित शिक्षा नीति की समाप्ति हेतु निर्णायक पहल करे सरकार: प्रो रणजीत कुमार

Chhapra: बिहार शिक्षा मंच के संयोजक तथा सम्बद्ध महाविद्यालय शिक्षक संघर्ष समिति के संरक्षक प्रो रणजीत कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री तथा शिक्षा मंत्री को पत्र भेजकर वित्तरहित शिक्षण संस्थानों की चिरलम्बित समस्याओं के स्थायी समाधान हेतु निर्णायक कदम उठाने का आग्रह किया है।  जिससे वित्तरहित शिक्षा नीति रूपी कलंक को मिटाया जा सके।

प्रो रणजीत ने पत्र में आगे लिखा है कि सम्बद्धता प्राप्त वित्तरहित एवम अनुदानित शिक्षण संस्थानों में कार्यरत शिक्षकगण वर्षों से आर्थिक बदहाली एवम दुश्वारियों का सामना कर रहे हैं। सरकार द्वारा प्रवर्तित परीक्षाफल आधारित अनुदान की अपनी सीमाएं हैं। माध्यमिक एवम उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों को शैक्षणिक सत्र 2014-15 तक का ही अनुदान विमुक्त किया गया है। इसी तरह बिहार के अन्य विश्वविद्यालयों के सम्बद्ध डिग्री कॉलेजों को 2014 तक तथा जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा के सम्बद्ध महाविद्यालयों को तो 2010 तक का ही अनुदान आबंटित हुआ है।

समय पर अनुदान नहीं मिलने से शिक्षकों की माली हालत बहुत खराब है। इन संस्थानों में कार्यरत शिक्षकों को सामाजिक आर्थिक सुरक्षा की छतरी भी हासिल नहीं है।सैकड़ों शिक्षक आर्थिक बदहाली की वजह से समुचित इलाज के अभाव में असमय कालकवलित हो रहे हैं।वस्तुतः अनुदान की व्यवस्था नीतिगत एवम क्रियान्वयन-दोनों स्तरों पर विफल हो चुकी है। सरकार के हालिया निर्णय से प्रतीत होता है कि सरकार परोक्ष रूप से इन शिक्षण संस्थाओं को धीरे धीरे बंद करना चाहती है।पहले सरकार ने सीट बढ़ोतरी वापस ले लिया, फिर प्रत्येक पंचायत में मध्य विद्यालयों को अपग्रेड कर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बना दिया और वहां बिना शिक्षक के ही नामांकन का आदेश निर्गत कर दिया। पुनः अचानक 600 से अधिक माध्यमिक एवम उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों की संबद्धता समाप्त कर दी गई।

शिक्षक संगठनों के मुखर विरोध के बाद स्थायी सम्बद्धता देने के बदले अवधि विस्तार किया गया। अभी भी जांच के नाम पर 138 इंटर कॉलेजों में जांच के नाम पर नामांकन लेने पर रोक जारी है। इसी प्रकार शिक्षा विभाग ने एक शैक्षणिक सत्र में डिग्री कॉलेजों के लिए अधिकतम डेढ़ करोड़ अनुदान निर्धारित कर दिया गया है जिससे शिक्षकों को आर्थिक नुकसान हो रहा है।

प्रो कुमार ने पत्र में आगे कहा है कि सरकारी उदासीनता एवम लालफीताशाही की वजह से अनुदानित शिक्षण संस्थान बंदी के कगार पर पहुँच गए हैं। अतः यदि सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के प्रति गंभीर है तो वित्तरहित शिक्षण संस्थानों का बकाया अनुदान एकमुश्त विमुक्त करे तथा अनुदानित माध्यमिक एवम उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों का अधिग्रहण किया जाए । इससे सरकार को मुफ्त में भूमि, भवन, टीचर एवम फर्नीचर भी मिल जाएगा। इसी तरह सम्बद्ध डिग्री कॉलेजों को परीक्षाफल आधारित अनुदान के बदले वेतनमान दिया जाए। वर्तमान समय में इन शिक्षण संस्थानों को आन्तरिक स्रोत से प्राप्त आय तथा सरकार द्वारा प्रदत्त अनुदान की राशि को जोड़ दिया जाए तो मात्र 20 प्रतिशत राशि की बढ़ोतरी कर वित्तरहित शिक्षा रूपी कलंक को मिटाया जा सकता है।

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