गुरूवार को मनाया जायेगा अनंत पूजा

गुरूवार को मनाया जायेगा अनंत पूजा

छपरा: अनंत पूजा को लेकर तैयारिया शुरू हो चुकी है. गुरूवार को यह त्योहार मनाया जायेगा. अनंत पूजन को लेकर बाजारों में अनन्त सूत्र की बिक्री जोरों पर है. विशेष रूप से यह त्योहार महिलाओं और बच्चों द्वारा उपवास रखकर किया जाता है. इस दिन अनन्त भगवान की पूजा करके संकटों से रक्षा करने वाला अनन्त सूत्र बांधा जाता है कहा जाता है कि जब पाण्डव जुए में अपना सारा राज-पाट हारकर वन में कष्ट भोग रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनन्त चतुर्दशी का व्रत करने की सलाह दी थी. धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रौपदी के साथ पूरे विधि-विधान से यह व्रत किया तथा अनन्त सूत्र धारण किया. अनन्त चतुर्दशी-व्रत के प्रभाव से पाण्डव सब संकटों से मुक्त हो गए.

विधि
व्रत-विधान-व्रतकर्ता प्रात: स्नान करके व्रत का संकल्प करें. शास्त्रों में यद्यपि व्रत का संकल्प एवं पूजन किसी पवित्र नदी या सरोवर के तट पर करने का विधान है. तथापि ऐसा संभव न हो सकने की स्थिति में घर में पूजा गृह की स्वच्छ भूमि पर कलश स्थापित करें. कलश पर शेषनाग की शैय्या पर लेटे भगवान विष्णु की मूर्ति अथवा चित्र को रखें. उनके समक्ष चौदह ग्रंथियों (गांठों) से युक्त अनन्त सूत्र (डोरा) रखें. इसके बाद ॐ अनन्तायनम: मंत्र से भगवान विष्णु तथा अनंत सूत्र की षोडशोपचार-विधि से पूजा करें पूजनोपरांत अनन्त सूत्र को मंत्र पढकर पुरुष अपने दाहिने हाथ और स्त्री बाएं हाथ में बांध लें.

अनंन्तसागरमहासमुद्रेमग्नान्समभ्युद्धरवासुदेव।
अनंतरूपेविनियोजितात्माह्यनन्तरूपायनमोनमस्ते॥
अनंत सूत्र बांध लेने के पश्चात किसी ब्राह्मण को नैवेद्य (भोग) में निवेदित पकवान देकर स्वयं सपरिवार प्रसाद ग्रहण करें. पूजा के बाद व्रत-कथा को पढें या सुनें. कथा का सार-संक्षेप यह है- सत्ययुग में सुमन्तुनाम के एक मुनि थे. उनकी पुत्री शीला अपने नाम के अनुरूप अत्यंत सुशील थी. सुमन्तु मुनि ने उस कन्या का विवाह कौण्डिन्यमुनि से किया. कौण्डिन्य मुनि अपनी पत्नी शीला को लेकर जब ससुराल से घर वापस लौट रहे थे. तब रास्ते में नदी के किनारे कुछ स्त्रियां अनन्त भगवान की पूजा करते दिखाई पडीं. शीला ने अनन्त-व्रत का माहात्म्य जानकर उन स्त्रियों के साथ अनंत भगवान का पूजन करके अनन्त सूत्र बांध लिया. इसके फलस्वरूप थोडे ही दिनों में उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया.

कथा
एक दिन कौण्डिन्य मुनि की दृष्टि अपनी पत्नी के बाएं हाथ में बंधे अनन्तसूत्रपर पडी, जिसे देखकर वह भ्रमित हो गए और उन्होंने पूछा-क्या तुमने मुझे वश में करने के लिए यह सूत्र बांधा है ? शीला ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया-जी नहीं, यह अनंत भगवान का पवित्र सूत्र है. परंतु ऐश्वर्य के मद में अंधे हो चुके कौण्डिन्यने अपनी पत्नी की सही बात को भी गलत समझा और अनन्तसूत्रको जादू-मंतर वाला वशीकरण करने का डोरा समझकर तोड दिया तथा उसे आग में डालकर जला दिया. इस जघन्य कर्म का परिणाम भी शीघ्र ही सामने आ गया. उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई. दीन-हीन स्थिति में जीवन-यापन करने में विवश हो जाने पर कौण्डिन्य ऋषि ने अपने अपराध का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया. वे अनन्त भगवान से क्षमा मांगने हेतु वन में चले गए. उन्हें रास्ते में जो मिलता वे उससे अनन्त देव का पता पूछते जाते थे. बहुत खोजने पर भी कौण्डिन्य मुनि को जब अनन्त भगवान का साक्षात्कार नहीं हुआ, तब वे निराश होकर प्राण त्यागने को उद्यत हुए. तभी एक वृद्ध ब्राह्मण ने आकर उन्हें आत्महत्या करने से रोक दिया और एक गुफा में ले जाकर चतुर्भुज अनन्त देव का दर्शन कराया.

भगवान ने मुनि से कहा-तुमने जो अनन्त सूत्र का तिरस्कार किया है. यह सब उसी का फल है. इसके प्रायश्चित हेतु तुम चौदह वर्ष तक निरंतर अनन्त-व्रत का पालन करो. इस व्रत का अनुष्ठान पूरा हो जाने पर तुम्हारी नष्ट हुई सम्पत्ति तुम्हें पुन:प्राप्त हो जाएगी और तुम पूर्ववत् सुखी-समृद्ध हो जाओगे. कौण्डिन्य मुनि ने इस आज्ञा को सहर्ष स्वीकार कर लिया. भगवान ने आगे कहा-जीव अपने पूर्ववत् दुष्कर्मो का फल ही दुर्गति के रूप में भोगता है. मनुष्य जन्म-जन्मांतर के पातकों के कारण अनेक कष्ट पाता है. अनन्त-व्रत के सविधि पालन से पाप नष्ट होते हैं तथा सुख-शांति प्राप्त होती है. कौण्डिन्य मुनि ने चौदह वर्ष तक अनन्त-व्रत का नियमपूर्वक पालन करके खोई हुई समृद्धि को पुन:प्राप्त कर लिया.

साभार:- विकिपीडिया

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