मानवता हुई कलंकित, नवजात बच्ची को कचड़े के ढ़ेर में फेंका

छपरा(प्रभात किरण हिमांशु): बेटियां लक्ष्मी का रूप होती हैं,समाज में आज बेटियों को बराबरी का हक़ है.हमारा समाज आज समय के साथ परिवर्तित हुआ है,आज बेटियों का जन्म परिवार के लिए गर्व का विषय माना जाता है.लेकिन इसी समाज का एक चेहरा ऐसा भी है जो बेटी के जन्म को अभिशाप समझता है.

छपरा के साहेबगंज इलाके में मानवता को तार-तार करने वाली एक ऐसी हृदयविदारक घटना सामने आई है जिसने समाज के दोहरे चरित्र पर से पर्दा हटा दिया है.

साहेबगंज चौक पर कचड़े के ढ़ेर में एक नवजात बच्ची को जानवरों के बीच मरने के लिए छोड़ दिया गया,जो इंसानियत शब्द पर काला धब्बा है.वो बच्ची जिसने अपनी पलकें भी नहीं खोलीं थी उसे अभिशाप समझ कर मौत के मुंह में धकेल देना समाज के बदलते स्वरुप और बेटियों के जन्म के प्रति उसके दृष्टिकोण पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है.

कुछ वर्ष पहले हमारे देश और समाज में बेटियों से भेदभाव होना आम बात थी,पर आज के इस आधुनिक दौर में ऐसा कुकृत्य होना अनुचित है.समाज के कुछ लोग इसे अवैध संबंधों का परिणाम बताते है और कोई लड़की के रूप में पैदा होने का गुनाह,पर इन सब बातों से उस मासूम का क्या लेना-देना जिसने जन्म के बाद इस दुनिया को अपनी नन्ही आँखों से देखने का सपना अपनी माँ के गर्भ में ही संजो लिया था.

आज कई ऐसे दत्तक केंद्र हैं जो परिवार द्वारा ठुकराए बच्चों को पाल-पोष रहे हैं और उन्हें इस दुनिया का असली स्वरुप देखने का हौसला भी दे रहे हैं.अगर इस मासूम बच्ची को अस्वीकार करने वाले परिवार ने थोड़ी हिम्मत दिखाते हुए उसे दत्तक केंद्र तक छोड़ दिया होता तो शायद उस मासूम के सपने पूरे हो जाते.

इस दुनिया को देखे बगैर उस दुनिया में जा चुकी वो मासूम बच्ची ऊपर से हमारे समाज को देख तो जरूर रही होगी,आँखे भी वही होंगी और चेहरे पर मासूमियत भी वही होगी पर जो सवाल उसने हमारे समाज के लिए छोड़ा है उसका जवाब देना संभव नहीं है.
उसकी नजरें जब आसमान से हमारे समाज की ओर पड़ती होगी तो उसके ह्रदय से एक आह निकलती होगी कि “अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो”…

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