छपरा (संतोष कुमार ‘बंटी’): अंतराष्ट्रीय योग दिवस की शुरुआत कर भारत निश्चित तौर पर विश्व गुरु बनने में कामयाब रहा है. विगत तीन वर्षों में जिस प्रकार योग के प्रति देश के साथ साथ विदेशों में इसका प्रचलन बढ़ा है यह स्वस्थ और जनता के सेहत के प्रति काफी लाभदायक है. लेकिन यह योग सिर्फ दिवस के दिन तक सीमित रहने से व्यक्ति निरोग कैसे रह सकता है.

योग दिवस पर जिले के सभी माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों में योग दिवस के आयोजन को लेकर निर्देश जारी किया गया था लेकिन यह निर्देश तक ही सीमित रह गया.

कुछ सामाजिक संगठनों को छोड़ दे तो योग और उसके दिवस का आयोजन भी नही हो पाता. जो लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति सतर्क है उनके लिए योग और उसका दिवस मनाने की आवश्यकता नही पर उनका क्या जिन्हें इस दिवस पर आकर्षित करना था, प्रेरित करना था, स्वास्थ के प्रति जागरूक करना था, उनलोगों के लिए ही शायद यह आयोजन था. लेकिन यह आयोजन सिर्फ संस्थान के प्रमोशन और उत्थान के लिये बन गया.

सिर्फ दिवस पर योग करना और उसकी फोटो प्रचारित प्रसारित करना एक स्वस्थ्य व्यक्ति की रचना नही कर पायेगा.

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छपरा (सुरभित दत्त): बेहतरीन सैंड आर्ट्स के माध्यम से अपनी कला का लोहा मनवा चुके सारण के कलाकार अशोक कुमार इन दोनों एक नए अभियान में जुट गए है. अशोक शहर को स्वच्छ और सुंदर दिखाने की कोशिश में जुट गए है.

अशोक कुमार बताते है कि उनकी इच्छा पेंटिंग्स को शहर के खाली पड़े दीवारों पर बनाने की है, ताकि गुजरने वाले लोगों को तस्वीरों के माध्यम से एक संदेश मिले और शहर सुंदर भी लगे. 

अशोक ने बताया कि उनकी इच्छा है कि ‘स्वच्छ छपरा, रंगीन छपरा’ के तहत प्रत्येक चौक-चौराहे पर विषयात्मक पेंटिंग बनाया जाए. जो हर विषय पर आधारित हो. जैसे स्वच्छता अभियान, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, सड़क सुरक्षा आदि. इसके माध्यम से राहगीरों को आसानी से मैसेज पहुँचाया जा सकेगा और लोग जागरूक भी होंगे. वही शहर की दीवाले जो बैनर पोस्टर लगे होने से गन्दी दिखती है स्वच्छ दिखने लगेंगी.

वीडियो रिपोर्ट यहाँ देखे

अपने इस अभियान को बेहतर और बृहद करने के लिए अशोक इन दिनों पदाधिकारियों से भी मिलने की योजना बना रहे है. अशोक कुमार ने शहर के प्रबुद्ध लोगों से भी इस अभियान में सहयोग करने की अपील की है.

अशोक ने फिलहाल शहर के साधनापुरी में अपने द्वारा चलाये जा रहे आर्ट स्कूल के करीब एक पेंटिंग बनाई है. जिसके माध्यम से उन्होंने भूर्ण हत्या को रोकने और लड़कियों को आज़ादी देने के मेसेज को अपनी कला के माध्यम से प्रस्तुत किया है. इसमें उन्होंने चेन रूपी बंधन के भीतर से झांकती एक युवती के आँख को प्रदर्शित किया है, जो बाहरी दुनिया को देखने और समझने के लिए इच्छुक है. 

अशोक के इस कार्य में उनके कुछ मित्र और आर्ट स्कूल के छात्र पवन, राजीव ,उजाला ,संस्कृति, कल्पना का सहयोग मिल रहा है.

बेशक अशोक कुमार की यह सोच शहर को स्वच्छ दिखाने में एक कारगर कदम होगी. शहर को सूंदर देखने के हर इच्छुक लोग जरूर ही इस अभियान में अशोक का साथ देंगे.

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छपरा (सुरभित दत्त): कई बार ऐसे अवसर मिले जब नदी के रास्ते आरा जाने का मौका मिला. आरा शहर में रिश्तेदारों से मिलने तो कभी किसी और प्रयोजन से. पटना जाकर ट्रेन से आरा तक का सफ़र काफी परेशान भरा रहता था. मात्र 20 किलोमीटर और एक नदी का फासला बढ़ कर 130 किलोमीटर का हो जाता था. अब यह परेशानी दूर होने वाली है और जल्द ली लोग सड़क मार्ग से आरा तक का सफ़र तय करेंगे.

बदलते समय के साथ पुल की आवश्यकता महसूस हुई. सरकार ने इसे बनाने का निर्णय लिया. अब यह पुल बन कर तैयार है और रविवार से इस पर वाहन चलने लगेंगे. फिलहाल छोटे वाहनों को ही पुल पर चलने की अनुमति दी जाएगी.

11 जून को बहुप्रतीक्षित छपरा-आरा पुल का उद्घाटन है. ऐसा होने से बिहार के दो बड़े जिले सारण और भोजपुर आपस में सीधे जुड़ जायेंगे. इस पुल को उत्तर बिहार और दक्षिण बिहार से जोड़ने में गाँधी सेतु के विकल्प के रूप में भी देखा जा रहा है.

विकास ने नए मार्ग प्रशस्त होगे. दिलों से दिल जुड़ेंगे. रिश्ते अब आसानी से निभाए जा सकेंगे. दूल्हे अब अपनी बारात आसानी से इस जिले से उस जिले तक ले जा सकेंगे. व्यापार बढेगा.

यह पुल आरा की ओर बबुरा में और छपरा की ओर डोरीगंज में नीचे उतर रहा है.

इस पुल के बन जाने से सारण जिले के दक्षिणी छोर पर स्थित भोजपुरी से शेक्सपियर भिखारी ठाकुर का गाँव अब सड़क मार्ग से जुड़ जायेगा. हालाकि फिलहाल इस पर काम भूमि अधिग्रहण के बाद होगा. बाढ़ आने पर यहाँ के कई गाँव जिले से कट जाते थे और नाव ही एक मात्र आवागमन का साधन होता था. पुल बन जाने से इन क्षेत्रों के लोगों तक भी सुविधाएँ पहुंचेगी.

छपरा वाले बेलग्रामी और आरा वाले खा सकेंगे सिंघारा

गंगा नदी पर बने छपरा-आरा पुल से केवल दो जिले ही नहीं जुड़ेंगे बल्कि एक संस्कृति जुड़ेगी. लोग अब आसानी से इस जिले से उस जिले तक का सफ़र कर सकेंगे. भोजपुर की लोकप्रिय मिठाई बेलग्रामी अब छपरा के लोग तुरंत जाकर खा सकेंगे वही आरा के लोग छपरा की फेमस मिठाई सिंघारा खा सकेंगे. 

इन दोनों क्षेत्रों के विकास की नयी परिभाषा इस पुल के माध्यम से लिखी जाएगी. दो बड़े भोजपुरी क्षेत्र की दूरी यह पुल कम कर रहा है.

छपरा-आरा पुल एक नजर में

छपरा-आरा पुल के निर्माण में 887 करोड़ रुपये की लागत आई है. पुल की कुल लम्बाई 4 किलोमीटर है. जबकि आरा की ओर 16 किलोमीटर एप्रोच रोड और छपरा कि ओर 01 किलोमीटर का एप्रोच रोड है.

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छपरा/डोरीगंज: छपरा जिला को भोजपुर जिला से सीधे जोड़ने वाले छपरा-आरा पुल के उद्घाटन की तैयारियां अंतिम चरण में हैं. पुल का उद्घाटन 11 जून को संभावित है. जिसको लेकर छपरा की ओर से संपर्क पथ पर कार्य तेज़ी से चल रहा है. वही पुल पर रंग रोगन का काम काफी तेज़ गति से किया जा रहा है.

 

ज्ञात हो कि विगत दिनों छपरा आये बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने राजेंद्र स्टेडियम में आयोजित कार्यक्रम के दौरान 11 जून को छपरा-आरा पुल के उद्घाटन की बात कही थी.

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उद्घाटन से पूर्व लोग पुल से ही लोग पैदल इस पुल से आवाजाही कर रहे हैं. दियारा क्षेत्र के रहने वाले लोगों को पुल के बन जाने से काफी सहूलियत हो रही है. 
छपरा टुडे डॉट कॉम से बात करते हुए लोगों ने बताया कि पुल के बनने से नदी के उस पास पड़ने वाले सारण जिले के कुतुबपुर दियारा, रामपुर जैसे गाँव के लोगों को काफी सहूलियत हो जाएगी. लोगों ने बताया कि पहले आने जाने के लिए नाव ही एक सहारा था. अब पुल के चालू होने से आने जाने में सुविधा होगी. इसके साथ ही मरीजों को अस्पताल ले जाने में आसानी हो जाएगी. जो पहले मुश्किल था.

छपरा-आरा पुल एक नजर में

छपरा-आरा पुल के निर्माण में 676 करोड़ रुपये की लागत आई है. पुल की कुल लम्बाई 4,350 मीटर है. जबकि आरा की ओर 16 और छपरा कि ओर मात्र 1 किलोमीटर का एप्रोच रोड है.

वीडियो रिपोर्ट यहाँ देखे..

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ये तस्वीरें हाल ही में मेरे द्वारा उड़िशा के कंधमाल के आदिवासी इलाके में फील्डवर्क के दौरान ली गयीं है। तस्वीरे तो बस सिमित दायरे में ही तथ्यों को रख पा रही है बाकी मैं वास्तविकता अपनी आँखों से देख बहुत विचलित हुआ। यानि की जंगल को लूटने या दोहन में कोई पीछे नहीं है। चाहे वो कॉर्पोरेट हो या वहाँ के निवासी…। सबसे ज्यादा चकित करने वाली बात मेरे लिए यही थी की बाहरी लोगों के द्वारा दोहन तो समझ में आता है लेकिन ये कैसे संभव है कि ये जिसका घर है वही खुद अपने घर को उजाड़ने में लगा है। मैं इससे पहले आदिवासियों को जंगल के संरक्षक के तौर पे जनता था पर स्थिति यहाँ ठीक इसके H लगी। यहाँ निर्वनीकरण जिस हद पे हो रहा है.

ऐसा लगता है अगले 4 से 5 सालों के ये जंगल साफ हो चुके होंगे और पहाड़ नंगे… और ये ताज्जुब की बात है कि वहाँ के स्थायी निवासी आदिवासियों के द्वारा भी भारी मात्रा में हो रहा है। मैंने इस संबंध में वहाँ के निवासियों से बात चित की तो ये बात सामने निकल के आयी कि वो जंगल साफ करने के लिए वहाँ आग लगा देते है और रात की रात लगभग 2-3 किलोमीटर का इलाका साफ हो जाता है और जब बारिश होगी तो राख बाह जायेगी और ज़मीन खेती करने लायक साफ हो जायेगा, जिसमे वो लोग कोंदुल (एक तरह की दलहन फ़सल) का पौधा लगाएंगे। आम तौर पर कोंदुल एक ज़मीन पर 3 फ़सल ही ऊंग पाता है फिर वो ज़मीन कोंदुल के ऊपज के लायक भी नहीं बचता। फिर वो ऐसा ही दूसरे जगह पर दुहराते हैं।

आम तौर पे मैंने वहाँ का जंगलो में शाल, सांगवान और इसी तरह के अन्य कीमती जंगली लकड़ियों के पेड़ देखे। जो इनके द्वारा लगायी गयी आग में जल के नष्ट हो जाते है और जिन्हें फिर बाद में बेच दिया जाता है या तो फिर स्थानीय निवासियों द्वारा घरेलु उपयोग में ले लिया जाता है। सोचने वाली बात ये नहीं है कि वो ऐसा कर के जंगल को नुकसान कर रहे है…. सोचने वाली बात ये है कि आख़िर वो ऐसा कर क्यूँ रहे हैं..??!! ऐसी कौन सी मज़बूरी है जिससे वो अपने ही घर को उजाड़ने में लगे हैं..?

इस बारे में चर्चा करने पर ये बात सामने निकल के आयी की वहाँ खेती करने लायक सही भूमि नहीं है और जो है…वहाँ सिंचाई के लिए पानी प्रयाप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है। फिर से एक बार आश्चर्य हुआ की वनों एवं वृक्षों से आच्छादित इस क्षेत्र में बर्षा तो भरपूर होती है पर फिर भी सिचाई की उचित व्यवस्था क्यों नहीं हो पाती…!!??

फ़िर थोड़े दिन जंगलो में घूमने पर पता चला वहाँ वाटर शेड का कोई प्रबंधन नहीं है। पहाड़ो से बारिश का पानी सीधे ढलानों से होते हुए पहाड़ी नदियों द्वारा बहाकर या तो बड़ी नदियों में मिल के बहार निकल जाता है और वहाँ रुकता नहीं । इस वजह से भूमिगत जल संरक्षित नहीं हो पा रहा और जल स्तर दिनों दिन तेजी से घटता जा रहा है। पहले हल्दी का उत्पादन यहाँ प्रचुर मात्रा में होता था लेकिन पानी के कमी के वजह से अब उसका उत्पादन मुश्किल हो रहा है और सिर्फ कोंदुल की फसल ही ऐसी फ़सल है जो पहाड़ों पर कम पानी में भी सही से उपज जाता है। इस वजह से लोग अपनी जीविका चलाने के लिए जंगलों को साफ कर के कोंदुल की खेती कर रहे है या फिर मजदूरी करने शहरों में पलायन कर रहे हैं। जबकि मैंने गौर किया तो पाया कि वहाँ पर नॉन टिम्बर फॉरेस्ट प्रोडक्ट की प्रचुर उपलब्धता है, जैसे की आम, कटहल, नट्स, काजू , हरी आर्गेनिक सब्जियां और कई तरह में अन्य औषधीय पेड़ पौधे । इन सब चीजों का प्रोसेसिंग यूनिट लगा कर और सही से विपणन कर के भी जीविका चलाया जा सकता है। लेकिन शिक्षा की कमी और इन उत्पादों के सही उपयोगिता में बारे में जरुरी स्किल ट्रेनिंग की भारी कमी का खामियाजा जंगलो की अँधा धुंध सफाई से पर्यावरण को नुकसान पंहुचा के हो रहा है।

मेरा सुझाव यही है कि सरकार और सम्बंधित गैर सरकारी संगठनों को इस बात को हल्के में न ले…और समय रहते वहाँ सिचाई की उचित व्यवस्था वाटर शेड मैनेजमेंट कर के छोटे छोटे चेक डैम बना कर किया जाये और उन आदिवासी लोगों का कौशल बढ़ाया जाए ताकि नॉन टिम्बर फारेस्ट प्रोडक्ट का बाज़ार बने और उनको वैकल्पिक रोजगार मिले और जल्द से जल्द जंगलों की अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण को होने वाले नुकसान से बचाया जा सके।

ये लेखक के निजी विचार है

 

मनोहर कुमार ठाकुर
टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान, तुल्जापुर

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छपरा(सुरभित दत्त): समाज सेवा में अग्रणी रामकृष्ण मिशन आश्रम में लगभग 800 बच्चे निःशुल्क शिक्षा ग्रहण कर रहे है. आश्रम के द्वारा इन्हें ज्ञान की ज्योति दी जा रही है. 

अमूमन विद्यालय सुबह से शुरू होते है पर यहाँ विद्यालय का समय थोड़ा अलग है. विद्यालय शाम 3 बजे से शुरू होता है. आश्रम द्वारा बच्चों को यूनिफार्म और भोजन भी उपलब्ध कराया जाता है, वह भी निःशुल्क. बच्चों में उत्साह ऐसा की वे आश्रम से मिले यूनिफार्म, किताबों के साथ रोजाना आश्रम में बने विद्यालय पहुंचते है. इन्हें पढ़ाने के लिए योग्य शिक्षक अपना योगदान देते है.

आश्रम के सचिव अतिदेवानंद जी महाराज बताते है कि आश्रम में फिलहाल आठ सौ बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दी जा रही है. इतना ही नहीं यहाँ पढने वाले बच्चों को यूनिफार्म, पठन पाठन सामग्री, नाश्ता, चिकित्सा की व्यवस्था भी निःशुल्क की गयी है. उन्होंने बताया कि इससे समाज के अंतिम वर्ग से आने वाले गरीब लोगों के बच्चों में ज्ञान की ज्योति जलाई जा रही है. आश्रम में योग्य शिक्षक इन सभी को शिक्षित करते है. इसके साथ ही समय समय पर उनके स्वास्थ्य की जांच भी करायी जाती है. आश्रम में पढने आये बच्चों को भोजन भी उपलब्ध कराया जाता है.

इतना ही नहीं बच्चों को खेल-कूद की व्यवस्था, प्रत्येक रविवार को म्यूजिक की कक्षाएं भी चलायी जाती है.     

आश्रम के द्वारा कई गावों को गोद लेकर वहां भी शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ी योजनायें चलायी जा रही है. इन योजनाओं से लोगों को लाभ मिल रहा है.

शहर के बीचो बीच स्थित रामकृष्ण आश्रम अपने स्थापना काल से ही समाज के हर वर्ग के लोगों के बीच कार्य करता आ रहा है.

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छपरा: एक एक ईंट जोड़ कर दूसरों के घरों को बनाने वाले मजदूर खुद प्रतिदिन घर में चूल्हा जले इसलिए सुबह से लेकर शाम तक मेहनत करते है.

सुबह-सुबह शहर के कई ऐसे जगह है जहां मजदूर इकट्ठे होकर मजदूरी ढूंढते दिखते है. प्रतिदिन सुबह शुरू होने वाला यह संघर्ष शाम में घर के चूल्हे को जलाने और बच्चों को पालने के लिए होता है. किसी दिन मजदूरी नही मिली तो फिर उस दिन बच्चे भूखे सोने पर मजबूर हो जाते है.

देश में मनरेगा जैसी मजदूरी की गारेंटी देने वाली योजना भी चल रही है, पर मजदूरों को इसका कितना लाभ मिलता है यह उन जगहों पर जाकर देखा जा सकता है जहां रोजाना ये काम की तलाश में घंटों खड़े रहते है. लोग आते है मजदूरी का मोल भाव होता है, अगर बात बनी तो घर मे चूल्हा जलेगा नही तो नही.

बात जब मजदूर दिवस की हो रही है तो यह कहने में कोई संकोच नही होगा कि यह एक मात्र ऐसा दिवस है जिस दिन जिसके लिए कार्यालयों में अवकाश होता है वह काम कर रहा होता है. अगर मजदूर दिवस के दिन कोई मजदूर छुट्टी मनाए तो उसके घर शायद चूल्हा ना जले.

इस दिन बड़े आयोजन होते है, मजदूरों के संघर्ष और अन्य मुद्दों पर केवल बातें होती है, कार्यक्रमों का आयोजन होता है. मजदूरों के लिए बड़े बड़े बातें कही जाती है. किन्तु सच्चाई यह है कि मजदूर अपने हाल पर बेहाल है.

दुनिया के कई देश 1 मई को मजदूर दिवस मनाते हैं. भारत में पहली बार 1 मई 1923 को हिंदुस्तान किसान पार्टी ने मद्रास में मजदूर दिवस मनाया था. 1 मई को 80 से ज्यादा देशों में राष्ट्रीय छुट्टी होती है.

मजदूर दिवस की शुरुआत कनाडा में 1972 में हुई. यह मजदूरों के अधिकारों की मांग के लिए शुरू किया गया था. मजदूर दिवस को उत्सव के रूप में पहली बार अमेरिका में 5 सितंबर 1882 को मनाया गया. दुनिया के कई देशों में मजदूर दिवस ‘मई डे’ के रूप में मनाया जाता है. इसकी शुरुआत शिकागो से हुई थी. मजदूरों ने वहां मांग की कि वे सिर्फ 8 घंटे काम करेंगे. इसके लिए उन्होंने कैंपेन चलाया, हड़ताल और प्रदर्शन भी किया.

हर साल की तरह आज भी सत्ता जहाँ मजदूरों के लिए चलाई जा रही योजनाओं पर अपनी पीठ थपथपा आत्ममुग्ध होगी तो वही विपक्ष और बुद्धिजीवी समाज मजदूरों की दुर्दशा, उनके सम्मान पर लच्छेदार बाते कर खुद को गौरवान्वित करेगा.

आज सार्वजनिक छुट्टी होने के वजह से अधिकारी और नेता तो आराम करेंगे पर मजदूर, मजदूरी करने जरूर जायेगा क्योकी अगर वह भी छुट्टी मनाये तो शायद उसके घर में शाम में चूल्हा न जल सके.

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{संतोष कुमार बंटी}

सूबे की शिक्षा व्यवस्था कहाँ और किस दिशा में जा रही है, यह किसी को पता नही हैं. प्राथमिक से लेकर उच्च प्राथमिक शिक्षा सिर्फ नाम के लिए ही रह गयी हैं.

देश और प्रदेश के विकास में महत्पूर्ण योगदान निभाने वाली शिक्षा व्यवस्था धीरे धीरे हासिये पर जा रही हैं. यही कारण है कि बिहार की प्रतिभा दूसरे राज्यों में जाकर पढाई कर रही है.

विगत दो वर्षों में बिहार के छात्रों के लिए रीढ़ की हड्डी कही जाने वाली बोर्ड की परीक्षा व्यवस्था ने पूरे देश में शर्मसार किया हैं.

पहले खुलेआम परीक्षा में नक़ल और फिर बिना परीक्षा में शामिल हुए स्टेट टॉपर बनने की घटना ने बिहार के उन होनहार छात्रों के गाल पर गहरा तमाचा मारा है जो वर्ष भर मेहनत करते है लेकिन परिणाम किसी और के हाथ में चला जाता है.

इस ख़ामी के बाद बोर्ड में व्यापक फेरबदल हुए उतार चढ़ाव के बाद एक बार फिर बोर्ड के सञ्चालन का जिम्मा स्वच्छ छवि और कड़क अधिकारी के हाथ सौपा गया. जिसका परिणाम देखने को भी मिला लेकिन अब लगता है कि एक बार फिर यह व्यवस्था बिगड़ने वाली हैं.

एक बार फिर मैट्रिक और इंटर की परीक्षाएं आयोजित हुई. अब मूल्याङ्कन की बारी है लेकिन शिक्षकों ने अपनी मांगों के कारण मूल्याङ्कन कार्य का बहिष्कार कर दिया है.

FIR की धमकी मिली लेकिन वे मूल्याङ्कन केंद्रों पर नही लौटें आख़िरकार DEO ने स्नातक योग्यताधारी प्रारंभिक विद्यालय यानि 1 से 8 तक के शिक्षकों से मैट्रिक और स्नातकोत्तर योग्यताधारी शिक्षकों से इंटर उत्तर पुस्तिका मूल्याङ्कन कराने का पत्र निर्गत कर दिया हैं.

एक बार फिर यह सोचने वाली बात है कि जो शिक्षक विगत कई वर्षों से 1 से 8 तक की कक्षाओं का संचालन करते आ रहे है वह मैट्रिक और इंटर की उत्तर पुस्तिका कैसे जांचेंगे.

बहरहाल इस विषय पर एक बार फिर सरकार को सोचने की जरुरत है जिससे यहाँ के छात्रों का भविष्य उज्जवल हो सकें.

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मित्रों नमस्कार! 

सारण जिले के पहले न्यूज़ पोर्टल के रूप में हुई हमारी शुरुआत आज 4 वर्ष पूरी कर चुकी है. आज ही के दिन 2013 में हमने आपतक ख़बरों को अपने वेबसाइट के जरिये पहुँचाने का सिलसिला शुरू किया था, जो अब भी जारी है.

आपके गाँव, शहर से लेकर देश दुनिया की ख़बरें हम आप तक पहुंचाते है. ख़बरों में देरी सही पर विश्वशनीयता का पूरा ख्याल रखते है. डिजिटल क्रांति के इस दौर में ख़बरें अब मिनटों में पाठकों तक पहुँच रही है. ऐसे में छपरा टुडे डॉट कॉम की पूरी टीम लगातार प्रयास करती है कि आपतक हर छोटी बड़ी ख़बरों को पहुँचाया जाए.

हमारे पाठकों का उत्साह और हम पर विश्वास देखकर हमें और बेहतर कार्य करने की प्रेरणा मिलती है. आज छपरा टुडे डॉट कॉम को देश के साथ साथ विदेशों में बैठे मित्र बस एक क्लिक में पढ़ रहे है. आज हमें अमेरिका, यूरोप, यूएई, ऑस्ट्रेलिया, मरिशस में बैठे हमारे अपने लोग पढ़ रहे है.

कई ने हमें मेसेज कर बताया कि छपरा टुडे डॉट कॉम के माध्यम से उनतक पहुँच रहे ख़बरों से उन्हें लगता है कि वह अपने घर से दूर नहीं है. छपरा टुडे डॉट कॉम कि टीम की यह कोशिश होती है कि हर पर्व त्योहार की जानकारी अधिक से अधिक प्रकाशित की जाए ताकि दूर देश बैठे हमारे मित्र अपने शहर के प्रत्येक घटनाक्रम से रू-ब-रू हो सके.

अपने 4 साल के इस सफ़र में हमें भी कई उतर चढाव देखे है. कई बार ख़बरों की पुष्टि करने के लिए ख़बरों को देरी से प्रकाशित करने की स्थिति भी आई है, पर हमारी कुशल टीम ने विश्वश्नियता को ही अपना हथियार बनाया है.

आज आप सभी के प्यार के बदौलत हम सारण जिले के लीडिंग वेब न्यूज़ पोर्टल है. छपरा टुडे डॉट कॉम को 7 लाख से अधिक लोग पढ़ते है. जो अपने आप में इसके लोकप्रिय होने का प्रमाण है. हमारे सोशल पेजेज, फेसबुक, ट्विटर, यू ट्यूब पर भी Followers हमसे जुड़े है.

पिछले दिनों ऐसा देखने को मिला कि कुछ लोगों द्वारा छपरा टुडे से मिलते जुलते नाम के फेसबुक आईडी बनाये गये. हमने आपसे भी निवेदन किया कि ऐसे फर्जी आईडी को फॉलो न करें. आज छपरा टुडे डॉट कॉम को Facebook पर (@ChhapraToday) 22 हज़ार से अधिक लोग फॉलो कर रहे है. वही ट्विटर और यू ट्यूब पर भी पाठक हमें फॉलो कर रहे है.

आप सभी के प्यार और विश्वास के बदौलत यह कारवां आगे बढ़ रहा है. जल्द ही हम अपने कदम एक और शहर की ओर बढ़ा रहे है. हम अब छपरा के पड़ोसी जिले भोजपुर में भी पहुँच रहे है. आप सभी अब आरा टुडे डॉट कॉम (www.aratoday.com) पर भोजपुर जिले की सभी ख़बरें पढ़ सकेंगे.

अपना विश्वास हम पर ऐसे ही बनाये रहिये!

आपका,

सुरभित दत्त
संपादक
छपरा टुडे डॉट कॉम

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(अमन कुमार)

बिहार जिसे पूर्व में मगध के नाम से जाना जाता था.1912 में बंगाल के विभाजन के समय अस्तित्व में आया बिहार भारत का एक ऐसा राज्य है जो अपनी सांस्कृतिक छटा के लिए बखूबी जाना जाता है. बिहार भारत के इतिहास में साहित्यिक, ऐतिहासिक, धार्मिक सभी स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता आया है और आज भी बिहार शिक्षा, संस्कृति और समाजिक दृष्टि से उतना ही समृद्ध है जितना पहले था और इनहीं सांस्कृतिक विरासत को संजोए आज का बिहार दुनिया के सामने गर्व से सीना ताने खड़ा है.

ये वही बिहार है जहां दुनिया के पहले लोकतंत्र की स्थापना लिच्छवी गणराज्य के रूप में हुई थी. यूँ कहें तो हमारे इस राज्य को महापुरुषों की भूमि भी कही जाती है. यहां मौर्य, गुप्त आदि राजवंशो ने राज किया. प्राचीन काल से ही यहाँ कि धरती पर ऐसे लोगों ने जन्म लिया है जिनकी सोंच, कार्यों और विचारों ने शुरू से ही पूरी दुनिया को अपना ध्यान इसकी पावन की ओर आकृष्ट करने पर मजबूर कर दिया था. महान वैज्ञानिक व खगोलशास्त्री आर्यभट का जन्म बिहार में ही हुआ था.

बात अगर भगवान बुद्ध की हो तो उन्होंने ने भी अपने जीवनकाल में बिहार की धरती पर ही ज्ञान प्राप्त किया था. चाणक्य को कौन भूल सकता है जिनके विचारों और कर्तव्यों का सभी अनुसरण करते हैं.

दुनिया का पहला विश्वविद्यालय नालंदा विश्वविद्यालय भी बिहार में ही था जहां देश विदेश के छात्र शिक्षा ग्रहण करने आते थे. ये वो पवन धरती है जहां के मैदानों से गंगा, बागमती, कोसी, गंडक, घाघरा, सोन जैसी नदियाँ भूमि को सींचते हुए आगे बढती हैं.

देश को दशरथ मांझी जैसे माउंटेन मैन जैसे बेहद मेहनती लोग भी बिहार ने ही दिए है. जिन्होंने अपनी जुनूनियत के दम पर अपनी पूरी ज़िन्दगी पहाड़ तोड़ रास्ता बानाने में लगा दिया. और पूरी दुनिया के सामने अपनी बाजू के ताकत का लोहा मनवाया था.

भाषाओं में विविधता रखने वाले इस राज्य में कई भाषाएँ बोली जाती हैं- मैथली, मगही, और सबसे मशहूर भोजपुरी जो पूरे देश में मशहूर है. भोजपुरी बिहारियों कि पहचान है. आज बिहारी पूरे दुनिया में अपने कार्य कुशल के दम पर आगे बढ़ रहे हैं और अपने राज्य का नाम रौशन कर रहे. ये वो राज्य है जिसने पिछले दशकों से देश के विकाश में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. यह जानकर आश्चर्य होता है कि देश को हर साल सबसे ज्यादा IAS बिहार से ही होते हैं.

सबसे बड़ी बात हमें अपने बिहारी होने पर गर्व होता है.

यह लेखक के अपने विचार है.

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(सुरभित दत्त)

सारण के हरदिल अज़ीज़ जिलाधिकारी दीपक आनंद का तबादला राज्य सरकार ने कर दिया है. जिले में अपने 25 महीने के कार्यकाल में उन्होंने लोगों के दिलों में जो जगह बनायीं है उसे लोग भूल नहीं सकते.

उन्होंने डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया को कई बार प्राकृतिक आपदाओं के समय सूचना के आदान प्रदान का माध्यम बनाया जिससे सभी तक तेज़ी से सूचनाएं पहुंचाई जा सकी. दीपक आनंद अपने प्रशासनिक कौशल के बदौलत सारण जिले में डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के बेहतर क्रियान्वयन के लिए केंद्र सरकार द्वारा दिसम्बर 2015 में राष्ट्रीय स्तर के  पुरस्कार से सम्मानित हो चुके है.   dm saran (4)

सारण जिले में सोशल मीडिया पर एक्टिव शायद ही कोई हो जो जिलाधिकारी दीपक आनंद से किसी न किसी माध्यम से जुड़ा न हो. लोगों को समस्याओं को उन्होंने फेसबुक व्हाट्स ऐप और अन्य माध्यमों से सुना और उसका निष्पादन भी किया.

बतौर सारण के जिलाधिकारी कार्यभार सँभालने के बाद मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा था कि सरकार की योजनाओं को समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचाना उनका लक्ष्य रहता है. 

अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने इसे साबित भी किया. सेवानिवृत कर्मियों के बकाये, सामाजिक सुरक्षा आदि के लाभार्थियों को जनता दरबार और कैम्प लगा कर वितरित करवाए. जिससे लोगों को राहत मिली.dm saran (3)

सौम्य स्वभाव, मृदु भाषी IAS दीपक आनंद हमेशा लोगों की सहायता को तत्पर रहे. अपने कार्यालय प्रकोष्ठ में जनता दरबार में फ़रियाद लेकर पहुंचे एक निर्धन बुजुर्ग को उन्होंने अपने पैसे से कपड़े खरीद कर दिए जो चर्चा का विषय बना. साथ ही समाहरणालय और जिलाधिकारी आवास के बाहर शिकायत पेटी लगवा कर जनता की शिकायतों को सुनने और उसके निष्पादन की व्यवस्था उनके कार्यकाल में दिखी. 

कार्यकाल की मुख्य बातें

*अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने पहली बार सारण गजेटियर का हिंदी अनुवाद कराया ताकि सभी इसे पढ़ सके. 

* NH 19 और सोनपुर-पटना रेल खंड के अधिगृहित भूमि को खाली कराया.

*बाढ़ राहत शिविर में खुद पहुँच किया भोजन

*बाल गृह के बच्चियों से बंधवाई राखी

*समाहरणालय और जिलाधिकारी आवास के बाहर शिकायत पेटी लगवा कर उन्होंने जनता की शिकायतों को सुनने और उसके निष्पादन की व्यवस्था की.

*फेम इंडिया-एशिया पोस्ट सर्वे में सारण के डीएम दीपक आनंद चर्चित चेहरे में हुए शुमार

*केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने डिजिटल इंडिया पुरस्कार से किया सम्मानित  

*उत्कृष्ट कार्य के लिए सारण के डीएम दीपक आनंद को मुख्यमंत्री ने किया सम्मानित

बिहार राज्य पथ विकास निगम लिमिटेड के सातवें स्थापना दिवस समारोह के अवसर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दीपक आनंद को पथ निर्माण विभाग की परियोजनाओं को मूर्त रूप देने और उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया.

जिलाधिकारी दीपक आनंद बांका के जिलाधिकारी रहते हुए कमजोर वर्ग के छात्रों को आईएएस बनने के गुर भी सिखाये. उन्होंने ‘सिविल सर्विसेज में सफल कैसे हो’ नाम की एक पुस्तक भी लिखी है.

Photo Courtesy: deepak anand’s Facebook

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{संतोष कुमार ‘बंटी’}

होलिका दहन यानि हम अपनी भाषा में कहे तो ‘समहत’. होली की पूर्व संध्या पर मनाया जाने वाली यह पारंपरिक विधि जिसको लेकर लोगों में ख़ासकर युवाओं में अलग ही उत्साह रहता हैं. लेकिन बदलते दौड़ में यह विधाएं भी बदलती जा रही हैं.

होलिका दहन को अलग अलग प्रदेशों में अलग अलग नाम से मनाया जाता है लेकिन हमारे यहाँ तो इसका अलग ही आनन्द हैं. होलिका दहन के एक सप्ताह पूर्व से ही इसकी तैयारी. लोगों को आपस में मिलना टोली बनाना और घर घर जाकर होलिका दहन के लिए लकड़िया मांगना. एक अलग ही उत्साह रहता हैं और इन सब में ख़ास होता है यह गीत “ऐ जजमानी तोहर सोनें के किवाड़ी दू गों गईठा द गईठा नइखे, लकड़ी द लकड़ी नईखे, पईसा द” हर घर से गीत गाना और लकड़ी, गोइठा, पैसा, कपूर के साथ साथ तरह तरह के पकवान भी खाने को मिलते थे.

मोहल्ले टोले में एक स्थान पर मिलने वाली सभी लकड़ियों सहित अन्य सामानों को बटोरना और पूरे विधि विधान से पूजा कर होलिका दहन करना अलग ही आनन्द देता था. लेकिन अब यह गीत सिर्फ यादें बनकर रह गयी हैं. अब ना युवाओं की टोली बनती है और ना ही  के बड़े बुजुर्ग इन सब कामों के लिए अपने बच्चों को प्रोत्साहित करते हैं.

बहरहाल होलिका तो आज भी जल रही है आज मांगने वालों के ना होंने से लोग खुद वहा जाकर लकड़िया, गोइठा और पैसा दान करते है और घर चले आते है. देर रात आयोजकों द्वारा होलिका का दहन भी विधि विधान से किया जाता हैं. पर्व त्यौहार लोगों को आपस में प्यार से मिलजुलकर रहने का संदेश देता हैं.

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