• सोनपुर से माया नगरी तक का सफर

(कबीर की रिपोर्ट)
जो सफर की शुरुआत करते हैं, वो मंज़िल को पार करते हैं…
एकबार चलने का होंसला तो रखो, मुसाफिरों का तो रस्ते भी इंतज़ार करते हैं…

ईरादें मजबूत हो और हौसला बुलंद हो तब इंसान को अपने सपने को साकार करने से कोई रोक नही सकता. छोटे शहर से लेकर माया नगरी तक का सफर तय करना और अपनी पहचान बनाना आसान नही होता लेकिन सारण के इस युवा ने कर दिखाया है कि शहर भले ही छोटा हो लेकिन सपना कभी छोटा नही होता.

सारण के सोनपुर चिड़िया बाज़ार का रहने वाले कुन्दन आज माया नगरी मे अपनी पहचान बना चुका है. अक्सर आप प्रसिद्ध सिरियलों मे इस युवा के अभिनय को देखते और सराहते होंगे लेकिन शायद वो आपके ही जिले का है ये आपको पता नही होगा. थिएटर से अपनी शुरुआत करने वाले इस युवा ने सोनी चैनल पर आने वाले क्राइम पेट्रोल मे जैसे प्रसिद्ध सिरियल मे काम कर चुके है.

कुन्दन बताते है कि सोनपुर के मैक्सवेल स्कूल से उन्होने दसवीं पास की. फिर उन्होने स्नातक की पढ़ाई जयप्रकाश विश्वविद्यालय से पूरी की. स्नातक के बाद उन्होने छत्तीसगढ़ की ओर कूच किया. छत्तीसगढ़ मे उन्होने निर्णय लिया कि अपने सपने को साकार करने के लिए मुझे थिएटर से जुड़ जाना चाहिए.

थिएटर से जुडने के बाद कुन्दन ने कभी पुछे मूड के नही देखा. लगातार आने अभिनय का लोहा मानवते हुये 2015 मे मुंबई सिफ्ट हुये. अशोका सिरियल उनकी पहली सिरियल थी. फिर स्टार प्लस पर आने वाले सिरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’, स्टार भारत पर ‘सावधान इंडिया’ और सोनी पर ‘क्राइम पेट्रोल’, अभिनेत्री नीतू चंद्रा के प्रॉडक्शन मे बनी फिल्म मे काम किया और फिर कई शॉर्ट फिल्म और डोकुमेंटरी मे काम कर रहे है.

कुन्दन बताते है कि माया नगरी मे आने के बाद भी मै अपने जिले व शहर को नही भुला हूँ. हर वर्ष छठ पुजा मे सोनपुर पाने घर छठ पुजा मे आता हूँ. मै माता-पिता के साथ साथ अपने अब तक इस सफर मे सहयोगी रहे सभी का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ.

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सोशल मीडिया फेसबुक पर यह देख कर अच्छा लगा कि कुछ युवा लोग लुप्तप्राय कैथी लिपि को पुनः इसे जीवित करना चाहते हैं और अपनी ओर से प्रयास भी कर रहे हैं. निःसंदेह यह दुःख की बात है कि वह लिपि जिसने कभी फारसी लिपि की जगह लेकर सरकारी कागजातों और कामों में जगह बना ली थी और जो छापाखाना की भी लिपि हो चुकी थी वह आज अपनी पहचान को तरस रही है.

आज सभी जगह पुराने कागजों को पढ़ पाने वाले दीये लेकर ढूंढे जा रहे हैं. यह ऐतिहासिक सत्य है कि मुस्लिम और मुगलों के शासनकाल से ही कायस्थ जाति के लोग ही लिखा पढी करते थे और उन्होंने फारसी लिपि की जगह एक अपनी लिपि गढ़ ली और चूंकि यह लिपि कायस्थों ने गढ़ी इसलिए ‘कैथी’ कहलाई और उसी नाम से चलती आ रही है.

मैं इसे इस लिपि का सबसे बड़ा दुर्भाग्य मानता हूं कि औरों की कौन कहे खुद कायस्थ भी इस लिपि से दूर हो चले हैं. जैसे उर्दू भाषा को जन्म देने वाले सेना के लोगों ने फारसी के अक्षरों का ही इस्तेमाल किया वैसे ही कैथी बनाने वालों ने भी देवनागरी के अक्षरों का ही प्रयोग किया. थोड़ा स्वरूप बदल कर और चूंकि दैनिक बोलचाल की भाषा में बहुत से अक्षरों से बोले जाने शब्द अमतौर से नहीं बोले जाते, कैथी में कई अक्षर नहीं बनाए गए. ना संयुक्त अक्षर बनाए गए, ना अनुस्वार या विसर्ग या हल्लंत. ङ नही बना, श स ष के लिए केवल श ही रहा, इस प्रकार दोनों दीर्घ ही रहा और ऊकार भी केवल हरस्व रहा. कुछ अक्षर जैसे त, र, फ और झ बिल्कुल नये रूप में बनाए गए जो देवनागरी से बिल्कुल नहीं मिलते. कैथी में पूर्ण विराम भी नहीं होता.

हमारे देश में कइ लिपियां विलुप्त हो गयीं क्योंकि उनके छापे नहीं बने. लेकिन कैथी तो अंग्रेजों के जमाने में छापेखानों की भी लिपि हो चुकी थी फिर भी इसे आजादी के बाद से लगातार विलुप्त किया जाता रहा और वह भी सिर्फ इसलिए क्योंकि देवनागरी पढना आसान है और कैथी के लिखने पढने वाले उठते गये.

अब तो आलम यह है कि हिंदी अंग्रेजी के नये शब्द बनाए जा रहे हैँ उनके संक्षिप्त स्वरूप देकर और कंम्प्यूटर की एक अपनी अलग ही लिपि है. ऐसे हालात में कैथी को वापस लाना मुझे तो उतना ही कठिन लग रहा है जितना पाकिस्तान के हडपे गए काश्मीर के हिस्से को वापस लाना. फिर भी जवानों के हौसले पर मुझे पूरा भरोसा है. अगर यह प्रयास ईमानदारी से और एक जन आंदोलन के रूप में चले और साथ ही इसमें किसी राजनीतिबाजों की एंट्री न हो तो, जरूर कैथी अपनी खोई गरिमा पा सकेगी.

लेखक

प्रो० कुमार वीरेश्वर सिन्हा

राजेंद्र कॉलेज छपरा के अंग्रेजी विभाग के पूर्व प्राध्यापक है.

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अपनी मिट्टी की खुशबू दूर-देश में रह रहे लोगों को अपने पास खींच लाती है. काम के सिलसिले में दूर रहने वालों को अपने शहर की यादें सताती है.

आज खास मुलाकात वरीय पत्रकार व आज तक न्यूज़ चैनल के उत्तरप्रदेश ब्यूरो प्रभारी कुमार अभिषेक जी से, जो मूलतः अपने शहर #छपरा के रहने वाले है. अपनी प्रारम्भिक पढाई छपरा में कर बाद में पटना और अब काम के सिलसिले में लखनऊ रह रहे कुमार अभिषेक ने छपरा आने पर छपरा टुडे से खास बातचीत की.

उन्होंने अपने स्कूल के दिनों की यादें ताज़ा की और अपने स्कूल राजेन्द्र कॉलेजिएट को देखने भी गए. उन्होंने शहर में बिताए अपनी सुनहरी यादों को हम सब से साझा किया है.

 

देखिए VIDEO

 

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Chhapra (Surabhit Dutt): कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों. दुष्यंत कुमार के यह शब्द सारण जिले के अमनौर प्रखंड के धर्मपुर जाफर के कुछ बच्चों पर सटीक बैठतें है.  ये बच्चे इन दिनों ग्रामीण परिवेश से निकल कर अपने जज्बे और प्रतिभा के बदौलत देश में नाम कमा रहे है. प्रखंड के बच्चे वुशू खेल में राष्ट्रीय स्तर पर चमक रहे है.

यहाँ ट्रेनिंग करा रहे विनय पंडित ने बताया कि बच्चों के द्वारा सिमित संसाधनों के बीच बेहतर प्रदर्शन किया जा रहा है. कई बच्चे बच्चियों ने सिल्वर और गोल्ड मेडल जीते है. विनय पंडित इन बच्चों को पिछले 2 सालों ने ट्रेनिंग दे रहे है. ट्रेनिंग के लिए कन्या मध्य विद्यालय के शिक्षकों के सपोर्ट से एक रूम मिली है. जिसमे यह बच्चे रोजाना प्रैक्टिस करते है. यहाँ प्रैक्टिस करने वाले अधिकांश बच्चे गरीब परिवार से आते है. जिनके पास आर्थिक परेशानियां भी है.

वुशू खेल के लिए जरुरी किट आदि के आभाव में भी इन बच्चों ने राष्ट्रीय स्तर तक के प्रतियोगिताएं में अपने आप को साबित किया है और मेडल जीतें है.

विनय बताते है कि अगर इन्हें किट और जरुरी संसाधन मुहैया करा दिए जाए तो इन नन्हे चैम्पियंस को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता. यह बच्चे सिमित संसाधन के इतना अच्छा प्रदर्शन कर रहे है तो संसाधन मिलने पर और भी बेहतरीन प्रदर्शन कर सकेंगे.

देखिये chhapratoday.com की Exclusive रिपोर्ट 

 

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Chhapra: छपरा टुडे डॉट कॉम के पांच वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य और अंतर्राष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस (3 मई ) के अवसर पर परिचर्चा का आयोजन स्थानीय श्रीरामकृष्ण मिशन आश्रम में किया गया. इस अवसर पर सारण जिले के पत्रकार और बुद्धिजीवी लोगों ने भाग लिया.

परिचर्चा में प्रेस की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आज़ादी और अघोषित आपातकाल जैसे मुद्दे सामने आये, वक्ताओं ने अपनी बातों को रखा.

यहाँ देखे वीडियो

परिचर्चा में श्रीरामकृष्ण मिशन आश्रम के सचिव स्वामी अतिदेवनन्द जी महाराज, वरिष्ठ पत्रकार डॉ प्रो एच के वर्मा सर, डॉ प्रो लाल बाबू यादव सर, वरिष्ठ पत्रकार कुमार धीरज पत्रकार संघ के अध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार राकेश कुमार सिंह, महासचिव पंकज कुमार, NUJI के महासचिव राकेश कुमार सिंह, बिपिन बिहारी, अमित रंजन, जाकिर अली, धर्मेन्द्र रस्तोगी, डॉ सुनील प्रसाद, प्रभात किरण हिमांशु, श्याम बिहारी अग्रवाल, रामदयाल शर्मा, संतोष कुमार बंटी, विकास कुमार और वरूण कुमार का उपस्थित थे.

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शहर भर में मजदूर जैसे दर-बदर कोई न था,
जिसने सबका घर बनाया, उसका घर कोई न था…

सुबह-सुबह शहर के कई ऐसे स्थान है जहां मजदूर इकट्ठे होकर मजदूरी ढूंढते दिखते है. प्रतिदिन सुबह शुरू होने वाला यह संघर्ष शाम में घर के चूल्हे को जलाने और बच्चों को पालने के लिए होता है. किसी दिन मजदूरी नही मिली तो फिर उस दिन बच्चे भूखे सोने पर मजबूर हो जाते है. एक एक ईंट जोड़ कर दूसरों के घरों को बनाने वाले मजदूर खुद प्रतिदिन घर में चूल्हा जले इसलिए सुबह से लेकर शाम तक मेहनत करते है.

रोजाना काम की तलाश में घंटों खड़े रहते है. लोग आते है मजदूरी का मोल भाव होता है, अगर बात बनी तो घर मे चूल्हा जलेगा नही तो नही.

बात जब मजदूर दिवस की हो रही है तो यह कहने में कोई संकोच नही होगा कि यह एक मात्र ऐसा दिवस है जिस दिन जिसके लिए कार्यालयों में अवकाश होता है वह काम कर रहा होता है. अगर मजदूर दिवस के दिन कोई मजदूर छुट्टी मनाए तो उसके घर शायद चूल्हा ना जले.

इस दिन बड़े आयोजन होते है, मजदूरों के संघर्ष और अन्य मुद्दों पर केवल बातें होती है, कार्यक्रमों का आयोजन होता है. मजदूरों के लिए बड़े बड़े बातें कही जाती है. किन्तु सच्चाई यह है कि मजदूर अपने हाल पर बेहाल है.

दुनिया के कई देश 1 मई को मजदूर दिवस मनाते हैं. भारत में पहली बार 1 मई 1923 को हिंदुस्तान किसान पार्टी ने मद्रास में मजदूर दिवस मनाया था. 1 मई को 80 से ज्यादा देशों में राष्ट्रीय छुट्टी होती है.

मजदूर दिवस की शुरुआत कनाडा में 1972 में हुई. यह मजदूरों के अधिकारों की मांग के लिए शुरू किया गया था. मजदूर दिवस को उत्सव के रूप में पहली बार अमेरिका में 5 सितंबर 1882 को मनाया गया. दुनिया के कई देशों में मजदूर दिवस ‘मई डे’ के रूप में मनाया जाता है. इसकी शुरुआत शिकागो से हुई थी. मजदूरों ने वहां मांग की कि वे सिर्फ 8 घंटे काम करेंगे. इसके लिए उन्होंने कैंपेन चलाया, हड़ताल और प्रदर्शन भी किया.

हर साल की तरह आज भी सत्ता जहाँ मजदूरों के लिए चलाई जा रही योजनाओं पर अपनी पीठ थपथपा आत्ममुग्ध होगी तो वही विपक्ष और बुद्धिजीवी समाज मजदूरों की दुर्दशा, उनके सम्मान पर लच्छेदार बाते कर खुद को गौरवान्वित करेगा.

आज सार्वजनिक छुट्टी होने के वजह से अधिकारी और नेता तो आराम करेंगे पर मजदूर, मजदूरी करने जरूर जायेगा क्योकी अगर वह भी छुट्टी मनाये तो शायद उसके घर में शाम में चूल्हा न जल सके.

 

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Chhapra: तमाम कठिनाइयों और चुनौतियों को झेलकर महिलाएं आज समाज में मिशाल पेश कर रही है. महिलाएं अपनी कार्यों के बदौलत खुद को साबित कर रही है. जिससे महिला सशक्तिकरण को बल मिल रहा है और पुरुष प्रधान समाज को एक सीख.

महिला दिवस पर हम आज आपको एक ऐसी महिला के बारे में बताने जा रहे है जो ना सिर्फ अपने बच्चे बल्कि उसके जैसे तमाम बच्चों के लिए आशा की किरण साबित हो रही है. हम बात कर रहे है शहर के रतनपुरा मुहल्ले में रहने वाली मुन्नी भारती की.

मुन्नी मूक बधिर बच्चों के लिए विद्यालय चलाती है. यह विद्यालय मूक बधिरों को बिल्कुल निःशुल्क शिक्षा देता है. जिससे इन बच्चों के जीवन को एक नई रौशनी मिल रही है.

विद्यालय में पढ़ते मूक बधिर बच्चे

मुन्नी भारती बताती है कि वर्ष 1982 में उनका दूसरा पुत्र मूक बधिर पैदा हुआ. समय के साथ सभी को इस बात की जानकारी हुई. इलाज के लिए कई जगह दिखने के बाद भी कोई फायदा नही हुआ. उन्होंने उसे पटना में मूक बधिर विद्यालय में दाखिला दिलाकर पढ़ाया. अपने पुत्र से इशारों में बातचीत करते करते उन्होंने भी मूक बधिरों बच्चे से बातचीत करना सीख लिया.

उन्होंने बताया कि 2004 में स्कूल की स्थापना कर आसपास के मूक बधिर बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देना शुरू किया. उनका पुत्र जब बड़ा हुआ तो दोनों ने मिलकर स्कूल में पढ़ाना शुरू किया. स्कूल उनके लिए जिन बच्चों को समाज में मूक बधिर होने के कारण शिक्षा नही मिल पाती. इस विद्यालय से अबतक पांच दर्जन मूक बधिर बच्चे निःशुल्क शिक्षा ग्रहण कर चुके है. फिलहाल 10 बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे है.

समाज और मूक बधिर बच्चों को एक नई आशा देने वाली मुन्नी भारती बताती है कि उनके पति बिजली विभाग में कार्यरत थे जिससे जो पैसा आता स्कूल उससे चलता आया है. अब उनके पति रिटायर्ड हो गए है. विद्यालय को चलाने के लिए कोई सहायता नही मिल रही है. अगर सरकारी सहायता मिलती तो मूक बधिर बच्चों के लिए और भी बेहतर किया जा सकता है. बावजूद इसके अपने हौसले और मूक बधिर बच्चों को पढ़ाने के लिए वे आज भी तत्पर है.

उन्होंने बताया कि सरकार स्किल डेवलपमेंट की योजनाएं चला रही है अगर इन बच्चों के भी स्किल को डेवेलोप किया जाए तो यह समाज के अन्य बच्चों के जैसे सक्षम होकर अपने पैरों पर खड़े हो सकते है. पढ़ने के बाद नौकरी का ना मिलना बड़ी समस्या है. इसके लिए जरूरी है कि इनके स्किल को डेवेलोप कर खुद का व्यवसाय शुरू करने को प्रेरित किया जाय.

मुन्नी बताती है कि मूक बधिर बच्चे अपनी बातें दूसरों से कह नही पाते. इसलिए जरूरी है कि उन्हें शिक्षित किया जाए ताकि इशारों में ही वे अपनी बातें लोगों से कह पाए.

आज कई ऐसी महिलाएं है जो अपने कार्यों के बदौलत अपने को साबित कर रही है. सीमित संसाधनों में इनके जैसी महिलाएं सशक्तिकरण की मिशाल है. समाज को इनसे प्रेरणा लेकर आगे बढ़ने की जरुरत है.

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Chhapra (कबीर): विगत सालों में लगातार लापरवाही की वजह से लंबित होती परीक्षाएं और फिर छात्र संघ चुनाव की घोषणा के बाद छात्र और छात्र संघ की नींद टूटी है. देर ही सही छात्र जागे है, कुछ अच्छा होने की उम्मीद भी जगी है. डिजिटल क्रांति के इस दौर में छात्र और छात्र संगठन सोशल साइटों पर आंदोलन छेड़ रखी है. कास ये आंदोलन कुछ सालों पहले हुआ होता तो शायद जिन छात्रों ने आंदोलन छेड़ रखा है उनके स्वर्णिम जीवन काल के वर्ष यूँ ही बर्बाद नही होते.

खैर देर ही सही उम्मीद जगी है. छात्र संघ चुनाव में कई महाविद्यालयों में उपस्थिति के कारण चुनाव रद्द कर दिया गया. तब छात्रों ने कहा- क्लास करने गया था शिक्षक क्लास लेने नही आते, आते भी है तो समय से नही आते.

विगत दिनों हुए छात्र संघ चुनाव में उपस्थिति के कारण नामांकन रद्द होने पर छात्र और छात्र संगठन फेसबुक लाइव का सहारा लिया है और विभिन्न महाविद्यालयों में घूम-घूम कर कार्यालय में लगी घड़ी को दिखाते हुए क्लास नही चलने का सच दिखा रहे है. लाइव को देखने के मुताबिक कई महाविद्यालयों के विभागों में प्रोफेसर समय से पहुंचे दिख भी रहे है तो कई में तो दिन के 12 बजे तक कोई दिख भी रहा.

सोशल साइटों पर छात्रों का उत्साह को लोग सराहनीय बताते हुए ‘देर ही सही जगे तो सही’ जैसे कमेंट कर रहे है. आये दिन छात्र फेसबुक लाइव के जरिए स्थिति को दिखा रहे है.

बताते चले कि ये तत्परता कुछ सालों पहले दिखी होती तो शायद ये नौबत नही आती और सांसद को प्रेस वार्ता करके ये नही कहना पड़ता कि नेशनल मीडिया में खबर चलने के बाद मुझे ये कदम उठाना पड़ा. जब छात्र संघों से छपरा टुडे ने पिछले फेसबुक लाइव में बात की तब सभी अपनी उपलब्धियां बतायीं कि जो कुछ भी सुधरा है वो मेरी आंदोलन की वजह का नतीजा है.

लेकिन बड़ा सवाल ये है सोशल साइट पर शुरू हुआ आंदोलन कब तक चलेगा? क्या सोशल मीडिया पर छात्रों और छात्र संगठन द्वारा छेड़े गए आंदोलन से आएगा बदलाव? विगत दिनों छात्रों द्वारा हो रहे इस प्रयास का फल देखने को भी मिल रहा रहा. प्रोफसर समय से पहुंच रहे है. जरुरत है कि छात्र भी महाविद्यालयों तक क्लास करने पहुंचे. 

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Chhapra( Surabhit Dutt): जयप्रकाश विश्वविद्यालय में पहली बार हुए छात्र संघ चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने सभी पैनल पर जीत दर्ज की है. अखिल भारतीय विद्यार्थी ने पांचों पैनलों अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव, संयुक्त सचिव और कोषाध्यक्ष पद पर अपना कब्ज़ा जमाया. अध्यक्ष पद पर रजनीकांत सिंह, उपाध्यक्ष पद पर विनय प्रकाश, महासचिव पद पर रंजीत कुमार, संयुक्त सचिव पद पर शशि कुमार पांडेय तथा साहिल राज ने कोषाध्यक्ष पद पर जीत हासिल की है.

परिषद् की जीत में उन लाखों कार्यकर्ताओं का हाथ है जिन्होंने लगातार इसे आगे बढ़ाने में अपना योगदान दिया. यूँ कहे की इसे सींचा है. कार्यकर्ताओं का मानना है कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् अपने अनुशासन और ज्ञान, शील एकता की विशेषता के कारण छात्रों में लोकप्रिय है. कार्यकर्ताओं में समर्पण के भाव ने इस संगठन को छात्र हितों के लिए लड़ने वाला संगठन बनाया है. स्थापना काल से विद्यार्थी परिषद् ने अपनी पहचान बनायीं है.

जय प्रकाश विश्वविद्यालय के स्थापना के बाद पहली बार हुए छात्र संघ चुनाव में मिली जीत के बाद हम ने परिषद् ने पूर्व कार्यकर्ताओं से बातचीत की और जानने का प्रयास किया की इस जीत के क्या मायने है. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के पूर्व कार्यकर्त्ता रहे कई लोगों से छपरा टुडे डॉट कॉम के संपादक सुरभित दत्त ने बातचीत की.

राजेंद्र कॉलेज के अंग्रेजी के अवकाश प्राप्त उपाचार्य प्रो. कुमार वीरेश्वर सिन्हा
ने बताया कि जय प्रकाश विश्वविद्यालय छात्र संघ के चुनावों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की अभूतपूर्व जीत से अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूं. यह प्रसन्नता उसी प्रसन्नता जैसी स्वाभाविक है जो किसी पेंड में फल लगते देख उन सबों को होती है जिन्होंने कभी न कभी उस पेंड को सींचा था. अभाविप से मैं अपने विद्यार्थी जीवन से ही जुड़ा रहा हूं, पहले कार्यकर्ता के रूप में और बाद में तथा आजतक भावनात्मक रूप से. छात्र जीवन के बाद इमर्जेंसी और जय प्रकाश आंदोलन के दौरान मैं शिक्षक कार्यकर्ता के रूप में मोतिहारी का उपाध्यक्ष रहा और फिर पिछली सदी के अस्सी के दशक में लगातार कइ वरसों तक छपरा का अध्यक्ष भी रहा. जिस दौर में मैं छपरा का अध्यक्ष बनाया गया था जातीय वैमनस्य अपने चरम पर हो आया था. लेकिन परिषद् के समर्पित कार्यकर्ता हर बाया को पग पग झेल कर भी परिषद् की एकता को बनाए रखने में कामयाब रहे और ज्ञान, शील और एकता की अलख जगाते रहे और परिषद् की लोकप्रियता दिनानुदिन बढ़ती रही और आज यह आलम है कि अभाविप ने छात्र संघ के पांचों महत्वपूर्ण पदों पर जीत हासिल कर ली है. इस जीत के लिए मैं सभी कार्यकर्ताओं को बधाई देता हूं. बस थको नहीं, रुको नहीं, चलते चलो उस मंजिल को जिसके आगे कोइ रास्ता ही नहीं. वंदे मातरम्.

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के पूर्व कार्यकर्ता व दैनिक राष्ट्रीय सहारा के सारण ब्यूरो प्रमुख वरिष्ठ पत्रकार डॉ विद्याभूषण श्रीवास्तव ने जीत पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि छात्र हित की दृष्टिकोण से एक अनुशासित एवं सशक्त छात्र संगठन के रूप में कार्यरत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद सदैव छात्रों की समस्याओं के समाधान कराने में प्रयत्नशील रहता है. यह जीत इसी का प्रतिफल है. स्थापना के बाद पहली बार हुए छात्र संघ के चुनाव में सभी पांचों पदो पर कब्ज़ा जमा कर यह स्पष्ट रूप में साबित कर दिया है कि उसके कार्यकर्ता आज भी संगठन के प्रति समर्पित रहते है. किसी के बहकावे में नहीं रहते है. अपने शिक्षक का मार्गदर्शन लेकर पढ़ाई के साथ साथ संगठन का कार्य करते है. उन्होंने सभी निर्वाचित पदाधिकारियों को बधाई दी.

भाजपा नेता व परिषद् के कार्यकर्ता रहे शांतनु सिंह ने अभाविप के जीत को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि जयप्रकाश की धरती पर से शुरू हुए आन्दोलन की बाते पुरे देश में है. छात्र संघ के चुनाव को कराने में विवि प्रशासन ने पारदर्शिता दिखाई है. अभाविप ने पूरा पैनल जीत लिया है. लम्बे समय से काम किये सपना देखा था की यहाँ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् छात्र संघ के चुनाव में जीत दर्ज करे. हमारे अनुज जीते है सभी को बधाई.

 

अधिवक्ता व परिषद् के पूर्व कार्यकर्त्ता रहे प्रकाश रंजन निक्कू ने कहा कि कार्यकर्ताओं की मेहनत के बदौलत आज यह परिणाम आया है. विद्यार्थी परिषद् एक दिन नहीं बल्कि सालो भर छात्र हित के लिए लड़ता रहा है. आगे भी लड़ाई जारी रहेगी.

 

बताते चलें कि इस चुनाव में सेंट्रल पैनल के लिये सभी पांचों पदों पर अभाविप का मुकाबला छात्र जदयू-आरएसए गठबंधन के साथ था. सेंट्रल पैनल के मतदान में कुल 40 काउंसिल मेंबर को वोट डालना था. जिसमें 39 प्रतिनिधियों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. अध्यक्ष पद के विजेता रजनीकांत सिंह के पक्ष में 21 मत मिले जबकि छात्र जदयू-आरएसए गठबंधन समर्थित रोहिणी कुमारी को 18 मतों से ही संतोष करना पड़ा.

अध्यक्ष पर पर जीते रजनीकांत सिंह से खास बातचीत यहाँ देखे

इसे भी पढ़े: छात्र संघ चुनाव: ABVP ने सभी पदों पर जमाया कब्ज़ा

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अपराधी का इंटरव्यू इस शीर्षक से आप भी सोचेंगे कि अपराधी का इंटरव्यू छापने, बताने की क्या जरूरत पड़ी. सिस्टम, समाज और मजबूरी इंसान को अपराध और अपराध के रास्ते पर कब ला खड़ा करती है पता नही चलता.

पढ़िए कबीर अहमद से सुपारी किलर की बातचीत के अंश….

भूख, गरीबी, बेरोजगारी और लाचारी इन्सान को ज़िन्दगी किस मोड़ पर ला खड़ा करेगा वो इन्सान को भी मालूम नही पड़ता. महज 20 साल की उम्र में अपराध की दुनिया में कदम रख देश के विभिन्न राज्यों में अपने खौफ का लोहा मनवाने वाला 28 की उम्र में ज़िन्दगी के उस मोड़ पर पहुँच गया जहाँ अपनों के साथ जन्म देने वाली माँ से भी नज़रे मिलाने की हिम्मत नही रही.

10 फ़रवरी को पुलिस की कस्टडी में आये मोस्ट वांटेड कुख्यात राजू पटेल उर्फ़ राजू सिंह ने बताया कि कोई अपनी ज़िन्दगी पुलिस की खौफ और जंगल-झाड़ियों में क्यों गुजारना चाहेगा. कौन नही चाहता ज़िन्दगी अपने माँ-बाप और परिवार के साथ बीते. घर की गरीबी और समाज में दबंगों के दबदबे ने मुझे अपराध की दुनिया आने को मजबूर कर किया. जब इस दुनिया में मैंने कदम रखा तो पीछे मुड़कर नही देखा. यहाँ से निकलने की कोशिश की लेकिन देर हो चुकी थी और मैं 20 लोगों की हत्या कर चूका था.

उत्तर प्रदेश बलिया जिले के दुबहर थाना क्षेत्र के कछुरामपुर गाँव का रहने वाला राजू पटेल ने आपबीती सुनाते हुए कहा कि मैंने गरीबों को नही सताया है. एक बार सुपारी लेकर मर्डर करने गया था लेकिन उसकी गरीबी देख अपने परिवार की याद आई और मै बैरंग वापस लौट आया. मेरी लड़ाई सरकार और सामंतवाद से है. अन्तः उसने बताया कि मै इस अपराध की दुनिया को छोड़ समाज की मूल धारा से जुड़कर जीना चाहता हूँ.

राजू पटेल की बातें किसी फिल्म की स्क्रिप्ट की जैसी लगती है. उसकी बातों में कितनी सच्चाई है यह तो वह ही जाने पर अपराध की दुनिया का यह सुपारी किलर आज अपने कर्मों की सजा काट रहा है. पश्चाताप करने के आलावे उसके पास कोई चारा नही है.

बताते चलें कि सारण पुलिस द्वारा 9 फ़रवरी को बनियापुर थाना क्षेत्र के पिरौटा स्थित बजरंग बली के मंदिर के पास से इस कुख्यात अपराधी को गिरफ्तार किया गया. पुलिस कप्तान हर किशोर राय ने बताया कि देश के कई राज्यों में दर्जनों लूट-हत्या के कई मामले दर्ज है.

नोट: इस इंटरव्यू के माध्यम से अपराधी को महिमा मंडित करना हमारा उद्देश्य नही.

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Chhapra: जय प्रकाश विश्वविद्यालय में होने वाले छात्र संघ चुनाव को लेकर सभी छात्र संघों की सक्रियता बढ़ गई है. चुनाव को लेकर तिथि की घोषणा के बाद सभी छात्र संघों ने छात्रों की गोलबंदी शुरू कर दी है.

छात्र हित में किए गए कार्यों की बदौलत संघ अपनी मजबूत स्थिति को बता रहा है. लेकिन सभी छात्र संघों की स्थिति अंदर से एक समान दिख रही है. छात्र संघों के बीच सबसे बड़ी समस्या छात्रों से संपर्क करने की है. आगामी 6 फरवरी को इंटरमीडिएट की परीक्षा लगभग सभी महाविद्यालयों में आयोजित की जाने वाली है. ऐसे में महाविद्यालयों में आयोजित परीक्षा के दौरान प्रवेश करना वर्जित होगा.

जय प्रकाश विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले सारण प्रमंडल के सभी महाविद्यालयों में छात्र नामांकन, पंजीयन प्रपत्र भरने, परीक्षा प्रवेश पत्र लेने एवं परीक्षा में सम्मिलित होने के दौरान हीं दिखते हैं. ऐसे में चुनाव को लेकर संगठन के सदस्यों द्वारा छात्र मतदाताओं से संपर्क करना टेढ़ी खीर साबित हो रही है.

छात्र उपस्थिति विहिन महाविद्यालयों में छात्र संपर्क अभियान चलाना और अपने संगठन के प्रति छात्रों छात्राओं को प्रेरित करना छात्र संगठनों के लिए सिर्फ मुश्किल साबित हो रहा है. इसके साथ ही छात्र संघ चुनाव को लेकर विभिन्न छात्रों संघों में अपने अपने प्रत्याशी खड़ा होने को लेकर बड़े राजनीतिक पार्टियों की तरह राजनीति शुरु हो चुकी है.

चुनाव को लेकर तय मानकों के अनुसार प्रत्याशी भले ही कोई बने लेकिन जाति आधारित राजनीति विचारधारा ने छात्र संघों के अंदर अपना घर बना लिया है.

जिसके कारण छात्र संघों में बिखराव की स्थिति चुनाव से पूर्व ही दिखने लगी है. संगठन में बिखराव की सुगबुगाहट ने कई बातों को हवा दे दी है, चर्चाएं गर्म है. बावजूद इसके भले ही यह छात्र संघ का चुनाव हो लेकिन राजनीति के सुरमा इससे बड़े चुनाव की तर्ज पर ले रहे है.

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Chhapra: छात्रों के हितों के लिए लगातार प्रयासरत छात्र संगठन अपने अपने स्तर से विभिन्न माधयमों से अपनी आवाज़ बुलंद करते है. इस बार सारण प्रमंडल के सभी प्रमुख छात्र संगठनों को छपरा टुडे डॉट कॉम ने एक मंच पर लाने का प्रयास किया. हमारे इस प्रयास में छात्र संगठनों ने अपनी जबरदस्त उपस्थिति दर्ज करा कर हमारा साथ दिया.

छपरा टुडे डॉट कॉम ने इन छात्र संगठनों के नेताओं से कई सवाल किये. उनकी परेशानियों को भी जाना. विश्वविद्यालय के रवैये को उनकी नजर से समझा और अपने पाठकों/दर्शकों तक पहुँचाया. इस कार्यक्रम में दौरान सभी छात्र संगठन के छात्र नेताओं ने खुलकर अपने विचार रखे और छपरा टुडे डॉट कॉम के इस प्रयास की सराहना भी की.

यहाँ देखिये पूरा कार्यक्रम

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