छपरा: नवरात्र में हर जगह पंडालों का निर्माण हो रहा है. पूजा समितियां जोर शोर से पंडालों को पूरा करने में दिन रात लगी हुई है. कई पूजा समितियों द्वारा अपने पंडाल को अलग रूप दिया जा रहा है.

शहर के टक्कर मोड़ पर गुफा में बाबा बर्फानी को स्थापित करने का कार्य चल रहा है. समिति के सदस्य शशि कुमार ने बताया कि हर बार की तरह इस बार भी पूजा समिति के द्वारा वर्फ से बने बाबा बर्फानी की स्थापना की जा रही है. साथ ही गुफा बनाया जा रहा है. गुफा बनाने के लिए चट्टी और बांस का उपयोग किया जा रहा है. जबकि गुफा के अंदर वर्फ से बने शिव लिंग को स्थापित किया जायेगा. जो देखने वालों के लिए आकर्षण का केंद्र होगा.

वही दौलतगंज में हर बार की तरह इस बार भी सुरसा के मुहं से निकलते वीर हनुमान की झांकी देखने को मिलेगी. पूजा समिति द्वारा यहाँ भी चट्टी और बांस की सहायता से गुफा का निर्माण कराया जा रहा है. शहरवासियों को ऐसा ही कुछ नजारा दहियावां में भी देखने को मिलेगा जहाँ नारायण चौक से राम राज्य चौक जाने वाली सड़क पर गुफा का निर्माण किया जा रहा है.

मूर्तियों को दिया जा रहा अंतिम रूप

रतनपूरा स्थित सवलिया मंदिर में मूर्ति को अंतिम रूप देता कारीगर

पंडाल के साथ साथ मूर्तियों का निर्माण भी अब अंतिम चरण में पहुँच चूका है. कुछ पूजा पंडालों में मूर्तियों को अंतिम रूप दिया जा चूका है. जबकि कई पूजा पंडालों में अभी काम बाकी है. जिसे जल्द से जल्द पूरा करने की कोशिश की जा रही है.  

दुर्गा पूजा में इन सभी पंडालों को देखने के लिए छपरावासियों उत्सुक है.

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नवरात्र शुरू हो चुका है, ऐसे में लोग व्रत रखकर लोग भगवान की आराधना लीन है. भगवान में अपनी भक्ति के लिए लोग व्रत तो रखते है पर ये जरुरी है कि इस दौरान अपनी सेहत का भी ध्यान रखा जाये.

प्राचीन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार मानव शरीर के विभिन्न तत्वों के समुचित संतुलन एवं बेहतर कार्यवाही के लिए उपवास पर विशेष बल दिया गया है. बावजूद इसके अधिक समय तक बिना कुछ खाए-पिए रहने से शरीर जरुरी खनिज पदार्थो की कमी हो जाती है. इस वजह से शरीर को थकान महसूस होती है. इस दौरान सबसे अधिक परेशानी लो ब्लड प्रेसर और लो शुगर की बीमारी से ग्रसित लोगों को हो सकती है.

इसके लिए जरुरी है कि भगवान पर अपनी आस्था को व्रत के माध्यम से जाहिर करने के साथ-साथ अपनी सेहत पर भी पूरा ख्याल रखा जाये.

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शक्ति की अधिष्ठात्री मां दुर्गा की पूजा-उपासना का अनुष्ठान शारदीय नवरात्र आज शुरू हो गया. नवरात्र इस बार दस दिनों का होगा. इस महापर्व पूरा शहर भक्तिमय हो जाता है.

नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्र अनुष्ठान में मां दुर्गा के नौ रूपों क्रमश: शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी व सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है.

हालांकि तिथि घटने पर कभी-कभी यह अनुष्ठान आठ दिनों का हो जाता है. परंतु इस बार एक दिन बढ़ ही जा रहा है. एक से लेकर 10 अक्टूबर तक इसे मनाया जाएगा. इसके बाद 11वें दिन विजयादशमी मनाई जाएगी.

एक अक्टूबर शनिवार को कलश स्थापन के बाद मां के प्रथम रूप शैलपुत्री की पूजा होगी.

इस बार माता का आगमन घोड़ा पर है. वहीं गमन मुर्गा पर हो रहा है. इस कारण से आना व जाना दोनों शुभ नहीं है. ज्योतिषाचार्य के अनुसार घोड़ा पर आगमन का मतलब काफी भयावह होता है. युद्ध, मार काट सहित देश के किसी बड़े नेता का दुर्घटना इसका फल होता है. वहीं मुर्गा पर जाना भी हर मामले में शुभ नहीं है. गमन मुर्गा पर होने से आपसी कलह का कलह होता है.

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चैनपुर: श्री महेन्द्रनाथ पंचांग के विक्रम सम्वत 2074 के व्रत निर्णय को लेकर सारण प्रमण्डल के आचार्यों के सानिध्य में एक धर्मसभा का आयोजन महेंद्र नाथ मन्दिर, चैनपुर के प्रांगण में बुधवार को पंचांग के सम्पादक पं0 त्रिलोकी नाथ पाण्डेय की अध्यक्षता में किया गया.

धर्मसभा में श्री महेंद्र नाथ पंचांग के तृतीय अंक में आने वाले व्रत त्योहार आदि के ऊपर एक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया. साथ ही यह निर्णय किया गया कि एकमत से किये गये व्रत निर्णय सम्पूर्ण सारण प्रमण्डल में मान्य होगा. सभी उपस्थित आचार्यों ने एकमत से इसका समर्थन किया और संकल्प लिया की पंचांग में उल्लेखित व्रत एवम् त्योहार सभी जनमानस के लिए मान्य होगा. क्योंकि सारे निर्णय ग्रह गोचर के अनुसार एवम् शास्त्र सम्मत है. विभिन्न आचार्य एवं ऋषियों के दिए गए निर्णय एवं वेदादि मत से सम्पृक्त है.

धर्मसभा में पंचांग के प्रकाशक अविनाश चन्द्र उपाध्याय, आचार्य डा0 केशव जी, सुशील पाण्डेय, सुरेन्द्र ओझा, रामानुज तिवारी, गौतम तिवारी, अवाधकिशोर पाण्डेय, घनश्याम तिवारी,  नागेन्द्र पाण्डेय , नन्हे बाबा, सन्तोष पाण्डेय, डा0 राकेश कुमार तिवारी, सुमंत तिवारी, राकेश चौबे, नितेश मिश्र, कृष्ण कुमार तिवारी, सोनू तिवारी, चाणक्य कुमार, शैलेन्द्र जी, प्रकाश कुमार, नर्वदेश्वे पाण्डेय, पवन तिवारी सहित सैकडों की संख्या में आचार्य, बुद्धिजीवी व कार्यकर्ता मौजूद रहे.

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छपरा: छपरावासी इस बार शहर के पूर्वी छोर तेलपा बस स्टैंड में चम्मच और पाइप से बने देवी पंडाल को देखेंगे. आदर्श पूजा समिति के द्वारा बनाये जा रहे पंडाल का काम शुरू हो चूका है. हालांकि प्रतियोगिता के मानक के देखते हुए कारीगरों द्वारा इस बात को गुप्त रखा गया है कि पंडाल की शक्ल किस मंदिर के रूप में दिखेगी. माता के पंडाल निर्माण को लेकर कोलकाता से आये एक दर्जन कारीगरों द्वारा जीवन दा के नेतृत्व में दिन रात कम किया जा रहा है. कारीगरों का दावा है की यह पंडाल अपने आप में कला का बेहतर नमूना शाबित होगा. advertisement 1

पंडाल निर्माण को लेकर पूजा समिति के सदस्यों ने बताया कि आदर्श पूजा समिति तेलपा स्टैंड विगत 19 वर्षो से माता की प्रतिमा स्थापित कर पूजा कर रही है. पूजा समिति प्रत्येक वर्ष पंडाल को नया प्रारूप देती है. इस बार प्लास्टिक के चम्मच और पाइप से पंडाल का निर्माण कराया जा रहा है. उन्होंने बताया कि पंडाल में 5000 पैकेट्स चम्मच और पाइप लगेगें इसके साथ साथ प्लाई वुड और फेविकोल के सहारे इनको चिपकाया जायेगा. कोलकाता के कारीगर विगत एक सप्ताह से पंडाल का निर्माण कर रहे है.

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छपरा: अनंत पूजा को लेकर तैयारिया शुरू हो चुकी है. गुरूवार को यह त्योहार मनाया जायेगा. अनंत पूजन को लेकर बाजारों में अनन्त सूत्र की बिक्री जोरों पर है. विशेष रूप से यह त्योहार महिलाओं और बच्चों द्वारा उपवास रखकर किया जाता है. इस दिन अनन्त भगवान की पूजा करके संकटों से रक्षा करने वाला अनन्त सूत्र बांधा जाता है कहा जाता है कि जब पाण्डव जुए में अपना सारा राज-पाट हारकर वन में कष्ट भोग रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनन्त चतुर्दशी का व्रत करने की सलाह दी थी. धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रौपदी के साथ पूरे विधि-विधान से यह व्रत किया तथा अनन्त सूत्र धारण किया. अनन्त चतुर्दशी-व्रत के प्रभाव से पाण्डव सब संकटों से मुक्त हो गए.

विधि
व्रत-विधान-व्रतकर्ता प्रात: स्नान करके व्रत का संकल्प करें. शास्त्रों में यद्यपि व्रत का संकल्प एवं पूजन किसी पवित्र नदी या सरोवर के तट पर करने का विधान है. तथापि ऐसा संभव न हो सकने की स्थिति में घर में पूजा गृह की स्वच्छ भूमि पर कलश स्थापित करें. कलश पर शेषनाग की शैय्या पर लेटे भगवान विष्णु की मूर्ति अथवा चित्र को रखें. उनके समक्ष चौदह ग्रंथियों (गांठों) से युक्त अनन्त सूत्र (डोरा) रखें. इसके बाद ॐ अनन्तायनम: मंत्र से भगवान विष्णु तथा अनंत सूत्र की षोडशोपचार-विधि से पूजा करें पूजनोपरांत अनन्त सूत्र को मंत्र पढकर पुरुष अपने दाहिने हाथ और स्त्री बाएं हाथ में बांध लें.

अनंन्तसागरमहासमुद्रेमग्नान्समभ्युद्धरवासुदेव।
अनंतरूपेविनियोजितात्माह्यनन्तरूपायनमोनमस्ते॥
अनंत सूत्र बांध लेने के पश्चात किसी ब्राह्मण को नैवेद्य (भोग) में निवेदित पकवान देकर स्वयं सपरिवार प्रसाद ग्रहण करें. पूजा के बाद व्रत-कथा को पढें या सुनें. कथा का सार-संक्षेप यह है- सत्ययुग में सुमन्तुनाम के एक मुनि थे. उनकी पुत्री शीला अपने नाम के अनुरूप अत्यंत सुशील थी. सुमन्तु मुनि ने उस कन्या का विवाह कौण्डिन्यमुनि से किया. कौण्डिन्य मुनि अपनी पत्नी शीला को लेकर जब ससुराल से घर वापस लौट रहे थे. तब रास्ते में नदी के किनारे कुछ स्त्रियां अनन्त भगवान की पूजा करते दिखाई पडीं. शीला ने अनन्त-व्रत का माहात्म्य जानकर उन स्त्रियों के साथ अनंत भगवान का पूजन करके अनन्त सूत्र बांध लिया. इसके फलस्वरूप थोडे ही दिनों में उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया.

कथा
एक दिन कौण्डिन्य मुनि की दृष्टि अपनी पत्नी के बाएं हाथ में बंधे अनन्तसूत्रपर पडी, जिसे देखकर वह भ्रमित हो गए और उन्होंने पूछा-क्या तुमने मुझे वश में करने के लिए यह सूत्र बांधा है ? शीला ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया-जी नहीं, यह अनंत भगवान का पवित्र सूत्र है. परंतु ऐश्वर्य के मद में अंधे हो चुके कौण्डिन्यने अपनी पत्नी की सही बात को भी गलत समझा और अनन्तसूत्रको जादू-मंतर वाला वशीकरण करने का डोरा समझकर तोड दिया तथा उसे आग में डालकर जला दिया. इस जघन्य कर्म का परिणाम भी शीघ्र ही सामने आ गया. उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई. दीन-हीन स्थिति में जीवन-यापन करने में विवश हो जाने पर कौण्डिन्य ऋषि ने अपने अपराध का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया. वे अनन्त भगवान से क्षमा मांगने हेतु वन में चले गए. उन्हें रास्ते में जो मिलता वे उससे अनन्त देव का पता पूछते जाते थे. बहुत खोजने पर भी कौण्डिन्य मुनि को जब अनन्त भगवान का साक्षात्कार नहीं हुआ, तब वे निराश होकर प्राण त्यागने को उद्यत हुए. तभी एक वृद्ध ब्राह्मण ने आकर उन्हें आत्महत्या करने से रोक दिया और एक गुफा में ले जाकर चतुर्भुज अनन्त देव का दर्शन कराया.

भगवान ने मुनि से कहा-तुमने जो अनन्त सूत्र का तिरस्कार किया है. यह सब उसी का फल है. इसके प्रायश्चित हेतु तुम चौदह वर्ष तक निरंतर अनन्त-व्रत का पालन करो. इस व्रत का अनुष्ठान पूरा हो जाने पर तुम्हारी नष्ट हुई सम्पत्ति तुम्हें पुन:प्राप्त हो जाएगी और तुम पूर्ववत् सुखी-समृद्ध हो जाओगे. कौण्डिन्य मुनि ने इस आज्ञा को सहर्ष स्वीकार कर लिया. भगवान ने आगे कहा-जीव अपने पूर्ववत् दुष्कर्मो का फल ही दुर्गति के रूप में भोगता है. मनुष्य जन्म-जन्मांतर के पातकों के कारण अनेक कष्ट पाता है. अनन्त-व्रत के सविधि पालन से पाप नष्ट होते हैं तथा सुख-शांति प्राप्त होती है. कौण्डिन्य मुनि ने चौदह वर्ष तक अनन्त-व्रत का नियमपूर्वक पालन करके खोई हुई समृद्धि को पुन:प्राप्त कर लिया.

साभार:- विकिपीडिया

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कुर्बानी का पर्व ईद-उल-जुहा (बकरीद) 13 सितंबर को मनाया जायेगा, जिसके लिए पूरे देश में जोर-शोर से तैयारी चल रही है.

त्याग और बलिदान का यह त्योहार कई मायनों में खास है और एक विशेष संदेश देता है. इस त्योहार को रमजान के पवित्र महीने की समाप्ति के लगभग 70 दिनों बाद मनाया जाता है. हजरत इब्राहिम द्वारा अल्लाह के हुक्म पर अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए तत्पर हो जाने की याद में इस त्योहार को मनाया जाता है. इस्लाम के विश्वास के मुताबिक अल्लाह हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने उनसे अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने के लिए कहा.

हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी. बेटा नहीं, बल्कि दुंबा था जब उन्होंने पट्टी खोली तो देखा कि मक्का के करीब मिना पर्वत की उस बलि वेदी पर उनका बेटा नहीं, बल्कि दुंबा था और उनका बेटा उनके सामने खड़ा था. जानवरों की कुर्बानी विश्वास की इस परीक्षा के सम्मान में दुनियाभर के मुसलमान इस अवसर पर अल्लाह में अपनी आस्था दिखाने के लिए जानवरों की कुर्बानी देते हैं.

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छपरा: जिले के एकमात्र सूर्य मंदिर व राम जानकी मंदिर कोठिया नराव के प्रधान पुजारी का स्वर्गवास हो गया. मंगलवार की सुबह पुजारीश्रधालुओं के निधन की खबर सुनकर पुरे गाँव में शोक की लहर दौड़ गई.

वयोवृद्ध संत सप्तर्षि सीता राम जी महाराज 107 वर्ष के थे. निधन की खबर सुनने के बाद महाराज जी के अंतिम दर्शन को लेकर श्रधालुओ की भीड़ उमड़ गयी. आसपास के दर्जनों गाँव के लोग अंतिम दर्शन के लिए पहुंचे थे. संत सप्तर्षि सीता राम जी महाराज न सिर्फ यहाँ 20वीं  सदी के उतरार्ध से यहा के नियमित पूजेरी थे साथ ही वे सूर्य मंदिर के संस्थापक व सूर्य कुण्ड निर्माण मंडल सदस्य भी थे.

नराव का सूर्य मंदिर उत्तर बिहार का गौरव है. महाराज जी की अंतिम यात्रा सूर्य मन्दिर परिसर से आरंभ होकर मदनपुर, नराव, धनौरा, मुसेपुर, डुमरी, सिंगही होते हुए गंगा यमुना व सोन के संगम पर पहुँची जहाँ राघो बाबा के पास उन्हें विदाई दी गयी. अंतिम यात्रा में एक दर्जन गाँवो के महिला पुरूष व बच्चों ने हिस्सा लिया.

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छपरा: सुहाग की रक्षा को लेकर सुहागीन रविवार को तीज का व्रत करेंगी. तीज को लेकर शहर में महिलाओ द्वारा खरीददारी जोरो पर है. पूरा बाज़ार सुहाग के सामानों से सजा हुआ है. जहाँ सुहागीन अपने पसंदीदा सामानों की खरीददारी जमकर कर रही हैं.

व्रत को लेकर शनिवार से ही अनुष्ठान शुरू हो जाएगा. शनिवार को सुहागीन नहाय खा के साथ इस व्रत की शुरुआत करेंगी अगले दिन उपवास रखकर पूजा अर्चना के साथ कथा का श्रवन करेंगी. दो दिनों के इस व्रत को लेकर सुहागीन पुरे वर्ष इंतज़ार करतीं हैं.

इस व्रत के लिए विशेष पकवान पिरुकिया बनाया जाता है. हरितालिका तीज का व्रत भाद्रपद शुक्ल तृतीया को शिव और पार्वती के पुर्नमिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है.

ऐसी मान्यता है कि मां पार्वती ने 107 जन्म लिए थे कल्याणकारी भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए. अंततः मां पार्वती के कठोर तप के कारण उनके 108वें जन्म में भोले बाबा ने पार्वती जी को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया था. उसी समय से ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से मां पार्वती प्रसन्न होकर पतियों को दीर्घायु होने का आशीर्वाद देती है.

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बनियापुर: श्री कृष्ण प्रणामी धर्म श्री निजानंद सम्प्रदाय के संत श्री गोविन्द जी महाराज के द्वारा श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर श्री मद् भागवत कथा का आयोजन किया गया. हरपुर कराह गढ़देवी मंदिर के प्रांगण में आयोजित यह कार्यक्रम 25 से 30 अगस्त तक रोज शाम 7 बजे से 11 बजे रात्रि तक चलेगा. कथा वाचक गोविन्द जी महाराज ने भगवान श्री कृष्ण के अवतार लीला का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान का अवतार अनेको कार्य के लिये हुआ था.

उन्होंने कहा कि जब धरती पर जब जब आसुरी शक्तियो के द्वारा पृथ्वी और पृथ्वी पर रहने वाले प्राणियो को कष्ट पहुँचाया जाता है तथा देवत्त्व को पराजित कर साधु , गौ , ब्राह्मण वेद , यज्ञ आदि को नष्ट करने का प्रयास किया जाता है. तब तब भगवान विष्णु धरती पर अवतार लेकर असुरत्व को पराजित कर धर्म की रक्षा करते हुए देवत्व की स्थापना करते है. अभी जो द्वापर युग में अवतार हुआ था उसमे भगवान के तीन स्वरूप प्रकट हुए थे. इस अवतार में विष्णु के कलेवर में ही श्री कृष्ण पुरुषोत्तम एवम् उनके अंश गौलोक धाम के राधिका पति श्री कृष्ण का भी समावेश था. इस तरह वृन्दावन में 11 वर्ष 52 दिन तक अक्षरातीत श्री कृष्ण की लीला हुई एवम् उसके बाद 7 दिन गोकुल में 4 दिन मथुरा में कंस वध करने वाले राधिका पति श्री कृष्ण की लीला हुई फिर द्वारका में लीला करने वाले सोलहो कला पूर्ण भगवान श्री विष्णु कृष्ण की लीला हुई.

इस अवसर पर मुखिया शिवजी दास, गढ़देवी मंदिर के सचिव कमला सिंह, पुजेरी दीनानाथ सिंह, बृजकिशोर गुप्ता, राम प्रवेश सिंह, मुरारी सिंह, समिति राजेंद्र सिंह, संत लाल गुप्ता, सोनू शर्मा आदि उपस्थित थे.

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छपरा: सावन की चौथी और अंतिम सोमवारी पर शिव मंदिरों में भक्तों की जुटने वाली भीड़ के लिए तैयारियां शुरू हो गयी है. सभी मंदिरों में साफ-सफाई के साथ सजावट की तैयारी जोरों पर है. मंदिरों में इस दिन विशेष पूजा भी आयोजित की जाएगी. शाम में शिव भक्त को भगवान भोले शंकर का वृहद् श्रृंगार देखने को मिलेगा.

इन मंदिरों में रहेगी ज्यादा भीड़

सावन की अंतिम सोमवारी पर शिव भक्तों की भीड़ उमड़ने वाली है. शहर के धर्मनाथ मंदिर, गुदरी मंदिर, बटुकेश्वर नाथ मंदिर, सत्यनारायण मंदिर, पंकज सिनेमा शिव मंदिर, मसुमेश्वर नाथ मंदिर, साहेबगंज मंदिर, साढा रोड मंदिर, ढोढ स्थान मंदिर, शिलौरी मंदिर, सहित अन्य मंदिरों में उमड़ने वाली है.

भव्यता के साथ हो रही मंदिरों की सजावट

शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों तक स्थापित शिव मंदिरों को भव्यता के साथ सजाया जा रहा है. फूल के साथ साथ रंग बिरंगी रोशनी से भी मंदिरों को सजाने की तैयारी जोर-शोर से चल रही है. वही इस अंतिम सोमवारी पर कई स्थानों पर भजन कीर्तन के आलावे जागरण के व्यवस्था की जा रही है.

सुरक्षा का भी रहेगा विशेष ध्यान

अंतिम सोमवारी पर मंदिरों में सुरक्षा के भी व्यापक इंतेजाम किये गए है. सभी मंदिरों में बिहार पुलिस के जवानों के साथ साथ दंडाधिकारियों की प्रतिनियुक्ति की जा रही है.

भक्तों के लिए ध्यान रखने वाली बातें

सोमवारी के दिन शिव भक्तों को पूजा के दौरान कई बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना होगा जिससे की इस सोमवारी उनकी पूजा में व्यवधान उत्पन्न ना हो. पुरुष और महिला सोने और चाँदी के आभूषण के साथ मंदिर में प्रवेश न करें. पूजा के दौरान मंदिर परिसर में अपने साथ आने वाले छोटे बच्चों का विशेष ध्यान रखे और उन्हें अकेला न छोड़े, मंदिर परिसर में लावारिश दिखने वाली वस्तुओं की सूचना मंदिर प्रशासन और पुलिस प्रशासन को दे.

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सावन के महीने में सारण जिले के लह्लादपुर प्रखंड स्थित ढो़ढ़नाथ मंदिर में शिवभक्त भारी संख्या में पहुंचते है. ढो़ढ़नाथ मंदिर में स्थापित प्राचीन शिवलिंग के जलाभिषेक के लिए लोग दूर-दूर से यहाँ आते है.

सावन के सोमवारी के अवसर पर मंदिर में विशेष पूजा और जलाभिषेक होता है. एक अनुमान के अनुसार सोमवार के दिन लाखों लोग जलाभिषेक करने मंदिर पहुंचते है. सावन में श्रद्धालुओं के आगमन को लेकर मंदिर के साथ साथ समस्त परिसर को सजाया सवारा गया है. रात्री बिश्राम करने वाले शिव भक्तों के लिए मंदिर के बरामदे में विश्रामालय बनाया गया है. वही मंदिर के बाहरी हिस्‍से पर पंडाल की व्यवस्था है.

ढो़ढ़नाथ मंदिर में कावरियों द्वारा रिविलगंज से सरयू नदी का पवित्र जल लाकर जलाभिषेक किया जाता है.

कैसे पहुंचे ढो़ढ़नाथ मंदिर

इस मंदिर में पहुँचने के लिए सबसे नजदीकी स्टेशन एकमा है. एकमा स्टेशन से उतर श्रद्धालू परसा केसरी होते हुए बनपुरा या दयालपुर के रास्‍ते मंदिर तक पहुँच सकते है.

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