पटना(DNMS): सूबे में उत्पन्न बालू संकट के लिए राज्य सरकार पूरी तरह से जिम्मेवार है. सरकार ने 2014 के बनाए अपने ही नियमों का उल्लंघन कर बालू उत्खनन का आदेश दिया और जब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने उक्त नियमों का हवाला देकर बालू खनन पर रोक लगाया तो अब राज्य सरकार ट्रिब्यूनल के खिलाफ ही बयानबाजी कर जहां कोर्ट की अवमानना कर रही है. वहीं केन्द्र सरकार पर झूठा आरोप भी लगा रही है. बालू संकट के मद्देनजर राज्य सरकार की स्थिति ‘नाचे न जाने, आंगन टेढ़ा’ वाली है. उक्त बातें बिहार भाजपा विधान मंडल दल के नेता सुशील कुमार ने रविवार को पटना में एक प्रेस बयान जारी कर के कहीं.
उन्होंने कहा कि बिहार माइनर मिनरल कंसेशन (एमेंडमेंट) रूल्स, 2014 (Bihar Minor Minerel (Amendment)Rules-2014) के सेक्शन 21 ‘ए’ में राज्य सरकार ने खुद ही प्रावधान किया है कि बिना स्वच्छता प्रमाणपत्र प्राप्त किए कोई भी उत्खनन कार्य नहीं कर सकता है. बिहार सरकार को बताना चाहिए कि उसने अपने ही बनाये नियमों का उल्लंघन कर बालू खनन की बंदोवस्ती कैसे कर दी? इतने दिनों तक बालू का खनन जारी कैसे रहा? 19 जनवरी को ही जब बालू खनन पर ट्रिब्यूनल ने रोक लगा दी तो राज्य सरकार ने अब तक कौन सी कार्रवाई की है? ऐसे में अभी जो बालू संकट उत्पन्न हुआ है, उसके लिए क्या राज्य सरकार पूरी तरह से जिम्मेवार नहीं है?
भाजपा नेता ने कहां कि बिहार के 24 जिलों में 20 लोगों को बालू खनन की बंदोवस्ती की गई जिनमें से मात्र 10 लोगों ने केन्द्र सरकार को स्वच्छता व पर्यावरण क्लियरेंस प्रमाण पत्र के लिए आवेदन दिया. केन्द्र ने प्रक्रियाओं को पूरा करने की पृच्छा के साथ सभी आवेदन बिहार को भेजा मगर सरकार ने आज तक केन्द्र के पृच्छा का जवाब तक नहीं दिया है. दूसरी ओर 12 प्रस्ताव एक साल बाद इसी माह राज्यस्तरीय इन्वायरमेंटल क्लियरेंस प्राधिकार के पास भेजा गया है, जहां वह लम्बित है. दरअसल राज्य सरकार अपनी नाकामियों के लिए नाहक में केन्द्र सरकार को कोस रही है.
नवीन सिंह परमार की रिपोर्ट