जीवित्पुत्रिका व्रत को लेकर संशय करें दूर, जाने व्रत के नियम एवम कथा
जीवित्पुत्रिका हिंदू धर्म में महिलाओं के लिए बेहद कठिन व्रत माना जाता है. इस व्रत को महिलाएं निर्जला रहकर करती हैं.
माताएं निर्जला व्रत रखती है. आज पूरे दिन उपवास रखकर जीउतवाहन की पूजा करती है और संतान की लंबी आयु के लिए कामना करती है. हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत या जिउतिया व्रत करने का विधान है.
यह व्रत सप्तमी से लेकर नवमी तिथि तक चलता है. जिउतिया पर्व महिलाओं के लिए बेहद खास होता है. यह व्रत संतान की लंबी उम्र की कामना के लिए रखा जाता है. देश के अलग-अलग हिस्सों में इस व्रत को जिउतिया, जितिया, जीवित्पुत्रिका, जीतवाहन व्रत के नाम से जाना जाता है.
इस साल यह व्रत 7 अक्तूबर 2023 को शुरू होगा और 8 अक्टूबर 203 तक चलेगा. व्रत के एक दिन पहले नहा कर खाना जो स्त्री इस व्रत को रखती है़ एक दिन पहले से पकवान बनाती है़। सेघा नमक से तथा बिना लहसुन प्याज का खाना शुद्धता से बना कर खाती है़.
किस दिन से व्रत की शुरुआत करें.
व्रत कथा के अनुसार सप्तमी से रहित और उदयातिथि की अष्टमी को व्रत करें। यानि सप्तमी विद्ध अष्टमी जिस दिन हो उस दिन व्रत नहीं करके शुद्ध अष्टमी को व्रत करे और नवमी में पारण करे। यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो व्रत का फल नहीं मिलता है।
जीवित्पुत्रिका व्रत की शुरुआत नहाय खाए से होती है.
इस साल 06 lअक्टूबर 2023 दिन शुक्रवार को नहाए खाए होगा.
07 अक्टूबर 2023 दिन शनिवार को निर्जला व्रत रखा जाएगा.
8 अक्टूबर 2023 को व्रत का पारण किया जाएगा. सूर्य उदयके बाद
व्रत कैसे करें
स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. भगवान जीतवाहन की पूजा करें. इसके लिए कुशा से बनी जीतवाहन की प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित करें. इस व्रत में मिट्टी और गाय के गोबर से चील व सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है. इनके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है. पूजा समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है। पारण के बाद यथाशक्ति दान और दक्षिणा दें।
जीवित्पुत्रिका व्रत का कथा :
जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी है. धार्मिक कथाओं के अनुसार महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत का बदला लेने की भावना से अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में घुस गया. शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे. अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार दिया, परंतु वे द्रोपदी की पांच संतानें थीं. फिर अुर्जन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि ले ली. अश्वत्थामा ने फिर से बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चें को मारने का प्रयास किया और उसने ब्रह्मास्त्र से उत्तरा के गर्भ को नष्ट कर दिया. तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान को फिर से जीवित कर दिया. गर्भ में मरने के बाद जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया. तब उस समय से ही संतान की लंबी उम्र के लिए जितिया का व्रत रखा जाने लगा.
दूसरी कथा यह है :
चील-सियार की कथा- मिथिलांचन सहित कई इलाकों में प्रचलित इस कथा के अनुसार एक समय एक वन में पेड़ पर एक चील रहती थी. पास में वहीं झाड़ी में एक सियारिन भी रहती थी. दोनों में खूब दोस्ती थी. चील जो कुछ भी खाने को लेकर आती उसमें से सियारिन के लिए जरूर हिस्सा रखती. सियारिन भी चिल्हो का ऐसा ही ध्यान रखती. एक बार की बात है. वन के पास एक गांव में औरतें जिउतिया के पूजा की तैयारी कर रही थी. चिल्हो ने उसे बड़े ध्यान से देखा और इस बारे में अपनी सखी सियारिन को बताई. दोनों ने इसके बाद जीवित्पुत्रिका का व्रत रखा. दोनों दिन भर भूखे-प्यासे रहे मंगल कामना करते हुए व्रत किया लेकिन रात में सियारिन को तेज भूख-प्यास सताने लगी. सियारिन को जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो जंगल में जाकर उसने मांस और हड्डी पेट भरकर खाया. चिल्हो ने हड्डी चबाने की आवाज सुनी तो इस बारे में पूछा. सियारिन ने सारी बात बता दी.
चिल्हो ने इस पर सियारिन को खूब डांटा और कहा कि जब व्रत नहीं हो सकता था तो संकल्प क्यों लिया था! सियारिन का व्रत भंग हो गया लेकिन चिल्हो ने भूखे-प्यासे रहकर व्रत पूरा किया. कथा के अनुसार अगले जन्म में दोनों मनुष्य रूप में राजकुमारी बनकर सगी बहनें हुईं. सियारिन बड़ी बहन हुई और उसकी शादी एक राजकुमार से हुई. वहीं, चिल्हो छोटी बहन हुई उसकी शादी उसी राज्य के मंत्री पुत्र से हुई. बाद में दोनों राजा और मंत्री बने. सियारिन रानी के जो भी बच्चे होते वे मर जाते जबकि चिल्हो के बच्चे स्वस्थ और हट्टे-कट्टे रहते. इससे उसे जलन होती. ईर्ष्या के कारण सियारिन रानी बार बार उसने अपनी बहन के बच्चों और उसके पति को मारने का प्रयास करने लगी लेकिन सफल नहीं हो सकी. बाद में उसे अपनी भूल का अहसास हुआ और उसने क्षमा मांगी. बहन के बताने पर उसने फिर से जीवित्पुत्रिका व्रत किया तो उसके भी पुत्र जीवित रहे.
जीवित्पुत्रिका व्रत शुभ मुहूर्त व पारण का समय
अष्टमी तिथि प्रारंभ- 6 अक्टूबर 2023 दिन शुक्रवार सुबह 6 बजकर 34 मिनट से
अष्टमी तिथि समाप्त- 7 अक्टूबर 2023 दिन शनिवार की सुबह 8 बजकर 8 मिनट तक
व्रत का उपवास शानिवार को रखा जाएगा
जीवित्पुत्रिका व्रत का पारण 8 अक्टूबर दिन रविवार को किया जाएगा. इस दिन प्रात: काल स्नान आदि के बाद पूजा करके पारण करें. मान्यता है कि व्रत का पारण गाय के दूध से ही करे तथा सूर्योदय के बाद ही करना चाहिए.
ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847