बिहार के लोक आस्था का महापर्व चार दिवसीय छठ के रंग में कोना-कोना डूब गया है। गांव की गलियों में गूंजते छठ के गीत और परदेसियों की बढ़ती संख्या में लोगों को पर्व के समरसता का एहसास कराना शुरू कर दिया है। छठ मतलब एक ऐसा पर्व जिसमें सभी भेदभाव समाप्त हो जाते हैं, हर घर से भीनी खुशबू आनी शुरू हो जाती है। गांव से जुड़े इस महापर्व में भी अब आधुनिकता का रंग चढ़ने लगा है, विभिन्न तरीके के प्रसाद बनाए जाने लगे हैं लेकिन आज भी एक प्रसाद कॉमन है और वह है ठेकुआ। ठेकुआ एक ऐसा प्रसाद है जो हर अमीर से अमीर और गरीब से गरीब घरों में छठ में बनाकर सूर्यदेव और छठी मैया को चढ़ाया जाता है। सोमवार को ठेकुआ बनाने के लिए गेहूं सुखाने जब तमाम छतों पर महिलाएं जुटी तो लोकगीतों के लय ने अमीर-गरीब और ऊंच-नीच के तमाम भेदभाव मिट गए।
ठेकुआ के डिजाइन भले ही अलग-अलग होने लगे हैं, लेकिन इसका स्वाद आज भी वही है जो दशकों पूर्व था। अंतर बस इतना है कि पहले यह ठेकुआ प्रातः कालीन पूजा के बाद गांव-गाव में रिश्तेदारों तक पहुंचाए जाते थे और अब देश के कोने-कोने ही नहीं, विदेश तक भेजे जा रहे हैं। जिनके भी परिजन विदेश में रह रहे हैं, उन तक कुरियर के माध्यम से यह भेजा जा रहा है। सर्वोदय नगर के विवेकानंद ने बताया कि उनकी बहन समेत अन्य रिश्तेदार अमेरिका में रहते हैं और हर बार छठ के बाद उन्हें ठेकुआ का प्रसाद हम लोग भेजते हैं। लोक आस्था के महापर्व छठ में ठेकुआ का अलग महत्व है और इस पर्व का सबसे महत्वपूर्ण प्रसाद ठेकुआ ही माना जाता है। बिहार में स्वादिष्ट व्यंजन निर्माण की परंपरा पुरानी समय से समृद्ध रही है और छठ के ठेकुआ का तो कहना ही क्या। लोकगीत के मधुर धुनों पर झूमती महिलाएं जब ठेकुआ बनाती हैं तो इसमें ना सिर्फ चीनी और गुड़, बल्कि महिलाओं के सुमधुर गीत की मिठास भी घुल जाती है। कहा जाता है कि सूर्य देव और छठी मैया को भी ठेकुआ काफी पसंद है, जिसके कारण इसका स्वाद और दोगुना हो जाता है।
आज भी प्रातः कालीन अर्घ्य समाप्त होते ही प्रसाद रिश्तेदारों के यहां पहुंचाने का प्रचलन है लेकिन प्रसाद में खासकर ठेकुआ का आदान-प्रदान जरूर किया जाता है। बेटियां अपने मायके से आने वाले प्रसाद में ठेकुआ का इंतजार करते रहती है। यूं तो ठेकुआ सालों भर बनाए जाते हैं, पहले के जमाने में जब लोग कहीं बाहर जाने लगते थे तो ठेकुआ बनाकर दे दिया जाता था। यह एक ऐसा महत्वपूर्ण व्यंजन है जो महीना-दो महीना तक भी खराब नहीं होता है, इसके स्वाद में कोई अंतर नहीं होता है। अब जबकि यह छठ बिहार से निकलकर मलेशिया ही नहीं, वार्लिन, ब्रिटेन और अमेरिका समेत कई देशों में फैल चुका है, तो फेमस बिहारी व्यंजन विदेश में भी चर्चित हो रहा है। हेमरा रोड के जयंत सपरिवार बर्लिन में रहते हैं और वहीं प्रत्येक साल छठ मनाते हैं तो पूजा में शामिल होने के साथ-साथ खास करके ठेकुआ प्रसाद खाने के लिए बड़ी संख्या में लोग आते हैं।
राज्यपाल रहने के दौरान रामनाथ कोविंद को बिहार के राजभवन में ठेकुआ इतना भा गया था कि हाल ही में बिहार के दौरे पर आए राष्ट्रपति ने कहा भी था कि बिहार के संस्कृति की खुशबू दुनिया में फैल गई है, बेगूसराय का छठ बर्लिन तक पहुंच गया है। फिलहाल हर ओर छठ की धूम मची हुई है और घर-घर में ठेकुआ पकवान बनाने की तैयारी हो गई है। गेहूं सूख गया, चीनी और सुखा मेवा के साथ ही घी एवं रिफाइन भी आज आ गया।
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