नई दिल्ली: इंटरनेट और तकनीक के ज़माने में भोजपुरी रंगमंच को ज़िन्दा रखते हुए ‘रंगश्री’ संस्था ने भोजपुरी नाटक ‘ठाकुर के कुइयां’ का मंचन किया.
दिल्ली के गोल मार्केट स्थित मुक्तधारा सभागार में उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की मूल हिंदी कहानी पर आधारित इस नाटक की परिकल्पना, अनुवाद और निर्देशन लवकान्त सिंह ने किया.
नाटक जातिवाद, छुआछूत और अमीरी-गरीबी पर जोरदार प्रहार तो है ही साथ ही साथ एक ओर जहाँ मानवीय मूल्यों में हो रही गिरावट तो दूसरी ओर पानी जैसे ज्वलंत विषय पर भी सब को सोंचने पर मजबूर करता है. इस कहानी को भले ही प्रेमचंद जी ने अपने समय के समस्याओं पर लिखा है लेकिन यह समस्याएं आज भी समाज में व्याप्त हैं और पानी की समस्या तो विकराल रूप लेती जा रही है. हाल ही में कर्नाटक और तमिलनाडू में पानी के लिए ही तनाव भी है. इन्हीं सब मुद्दो को लेके कहानी में कुछ नाटकीयता जोड़ के नाटक को और ज्यादा प्रभावी बनाने कि कोशिश की गई है जो कि बहुत सफल भी रहा.
नाटक देखने के लिए आए बड़े-बड़े मीडियाकर्मियों के साथ-साथ अन्य भोजपुरी प्रेमियों से सभागार खचाखच भरा हुआ था. नाटक का प्रभाव यह रहा कि गम्भीर दृष्यों में दर्षकदीर्घा में सुई गिरा सन्नाटा जैसा माहौल रहा तो हास्य दृष्यों में लोगों की हंसी से सभागार गूंजता रहा.
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