उत्तरप्रदेश के इटावा में दबा है 11वीं सदी का कोई शहर, निकली मूर्तियां

उत्तरप्रदेश के इटावा में दबा है 11वीं सदी का कोई शहर, निकली मूर्तियां

इटावा: उत्तर प्रदेश के इटावा जिले का ईश्वरीपुरा व आसई ऐतिहासिक महत्व का क्षेत्र है. यदि यहां 20 मीटर नीचे तक खुदाई की जाए तो यहां कई दुर्लभ महत्वपूर्ण वस्तुएं मिल सकती हैं. इससे प्राचीन सभ्यता और संस्कृति की जानकारी भी मिलेगी. पुरातत्व विभाग के अधीक्षक डा. भुवन विक्रम ने प्रेस वार्ता में ये बातें कहीं.

पत्रकारों वार्ता में दिए संकेत

पुरातत्व विभाग के अधीक्षक डा. भुवन विक्रम ने पत्रकारों से बातचीत में बताया कि इतनी बड़ी तादाद में एक ही स्थान से मूर्तियों का निकलना महत्वपूर्ण बात है. उन्होंने कहा कि इस पूरे क्षेत्र में एक बड़ा टीला रहा होगा. इस पर अनुसंधान करने की आवश्यकता है. जिस तरीके से यहां की भौगोलिक स्थिति दिख रही है. इससे लगता है कि यहां पुरातात्विक उत्खनन की आवश्यकता है क्योंकि यहां पुरातत्व से जुड़ी और भी चीजों के मिलने की संभावनाएं हैं.

11वीं सदी की हैं मूर्तियां

उन्होंने बताया कि यहां मिली मूर्तियों में अधिकांश 11 वीं सदी की मूर्तियां है. कुछ संगमरमर की मूर्तियां कुछ समय बाद की हो सकती हैं. पुरातात्विक उत्खनन से और भी बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है. उन्होंने स्पष्ट किया कि यह मूर्तियां अमूल्य हैं। इनकी सुरक्षा की आवश्यकता है. इसके लिए इन मूर्तियों को कहीं संग्रहालय में सुरक्षित किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि वह इस संबंध में जिलाधिकारी को अपनी रिपोर्ट देंगे क्योंकि उनकी अनुमति से ही इन मूर्तियों को कहीं व्यवस्थित किया जा सकता है. पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में भी उनकी ही अनुमति से ही मूर्तियों को रखा जा सकता है.  etawa 2

हड़प्पा जैसी नगरयोजना

इटावा के केके महाविधालय के इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष डा.शैलेंद्र शर्मा का दावा है कि आसई क्षेत्र मे अगर सुनियोजित तरीके से खुदाई कराई जाये तो यकीनन हडप्पा जैसी नगरयोजना का खुलासा निश्चित तौर पर हो सकता है क्योंकि यहां जो मूर्तियां निकली हैं वो इतनी पुरानी हैं जिन्होंने किसी ना किसी संस्कृति को जन्म दिया होगा. इस क्षेत्र का 7 से 8 किमी की परिधि का क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण है. करीब 20 मीटर तक नीचे खुदाई की जाए तो बहुत कुछ मिल सकता है. उस समय की संस्कृति, उस समय के शासन आदि से संबंधित जानकारी मिल सकती है.

यमुना नदी के किनारे है आसई

मूर्तियों को देखने के बाद उन्होंने कहा कि जिस क्षेत्र में मूर्तियां मिली हैं वह नदी के किनारे का क्षेत्र है और काफी महत्वपूर्ण है. यहां नीचे दीवार दिखाई देती है. यदि मूर्ति के आस-पास के 6 किलोमीटर के क्षेत्र में खुदाई की जाए और यह खुदाई 20 मीटर नीचे तक हो तो ऐतिहासिक महत्व की कई दुर्लभ वस्तुएं मिल सकती हैं. इससे पुराने रहस्य भी उजागर होंगे और एक हजार वर्ष पुरानी सभ्यता और संस्कृति के बारे में भी जानकारी मिलेगी. उन्होंने कहा कि खुदाई को लेकर काफी सावधानी बरती जानी चाहिए और यह खुदाई प्रशासन की देखरेख में सुरक्षित तरीके से की जानी चाहिए वरना चीजों को नुकसान भी पहुंच सकता है. इस क्षेत्र में मुगल कालीन ईटें भी मिली हैं. यह ईटें इतनी मजबूत हैं कि लोग अभी भी इनका प्रयोग कर रहे हैं. खुदाई होने पर कुछ ऐसे ही अन्य रहस्य भी उजागर हो सकते हैं.

कई सालों से निकल रही हैं मूर्तियां

उन्होंने कहा कि यह पूरा क्षेत्र ही काफी महत्वपूर्ण है. पुरातत्व विभाग की टीम आसई, ईश्वरीपुरा तथा ददोरा क्षेत्र में गई. टीम के सदस्यों ने मूर्तियों को देखा. पुरातत्व विभाग की टीम ने खुदाई में मिली मूर्तियों को देखने के बाद सख्त लहजे में कहा कि कोई भी व्यक्ति इस स्थान की खुदाई न करे. टीम इस बारे में जिला प्रशासन को भी जानकारी देगी और इस बात की व्यवस्था कराई जाएगी कि पुरातत्व विभाग के अतिरिक्त कोई अन्य इस स्थान की खुदाई न करे. ईश्वरीपुरा में जो मूर्तियां मिली हैं वह एक हजार वर्ष पुरानी हैं. कुछ मूर्तियों पर सम्वत 1202 लिखा हुआ है.

जैन तीर्थंकरों की हैं मूर्तियां

जो खंडित मूर्तियां मिली हैं वह एक हजार वर्ष पुरानी है. उनमें लिखी इबारत नागरी लिपि में है. मूर्तियां जैन तीर्थंकरों उनके यक्ष यक्षणियों के साथ सहस्त्र कूट, द्वितीर्थी, त्रितीर्थी प्रतिमाएं मिलीं. जमीन के अंदर दीवारें बनी हुई दिखती हैं. निश्चित तौर पर यहां जैन तीर्थ रहा होगा. जहां जिन मदिंरों का समूह होगा. एक नहीं काफी संख्या में मंदिर होंगे. जो मूर्तियां मिली हैं वह चार प्रकार के पत्थरों से निर्मित हैं. इसमें बेशकीमती पश्चिम बंगाल के पुरलिया में पाए जाने वाले ब्लैक सिस्ट एवं ब्लू सिस्ट के अलावा सफेद संगमरमर और बलुई पत्थर की मूर्तियां हैं.

 

साभार: http://www.ashwaghosh.com/

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