(संतोष कुमार) आधुनिकता के इस दौर में जितनी तेजी से हम आगे बढ़ रहे हैं उतनी तेजी के साथ ही सोशल साईट्स के जरिए भ्रामक खबरें, भ्रातिया अफवाह एक से दो, दो से चार, चार से चार लाख यहां तक की चार करोड़ लोगों तक कुछ ही मिनटों में पहुंच जा रही हैं.
भले ही इन सोशल साईट्स के जरिए ज्ञानवर्धक बातों की जानकारी मिलती हैं लेकिन दिनो दिन इनका कुप्रभाव बढता ही जा रहा है. आज के दौर में जितनी तेजी से फेसबुक और व्हाट्सअप जैसी कई सोशल साईट्स ने लोगों के बीच अपनी जगह बनाई है. उतनी तेजी से यह खबरों को प्रसारित भी कर रही हैं. जिसका कुछ लोग गलत फायदा भी उठा रहे हैं.
जाति, धर्म, सम्प्रदाय, समुदाय, मंदिर, मस्जिद, नेता, अभिनेता के बीच चित्रण कला के माध्यम से लोगों के बीच द्वेष फैलाया जा रहा है कुछ अन्य तथ्यों, सूचनाओं और आकड़ो के आधार पर अच्छी बातों को गलत तथा गलत बातों को अच्छा साबित किया जा रहा है.
पाठक इस उधेड़बुन में पर कर अपने अंदर निहित जानकारी को लेकर असमंजस में पड़ जाते हैं. हालांकि इन साईट्सो पर प्रसारित होने वाली ज्ञानवर्धक बातें, आकड़े इसके ॠणात्मक पक्षों को दरकिनार कर देती हैं. जिससे इसकी उपयोगिता को पुनः बल मिलता हैं.
इसके बावजूद भी हमें जाँच परखकर ही इन्हें प्रयोग में लाने की आवश्यकता है.