(प्रशांत सिन्हा)
मेरे पिताजी अक्सर जयप्रकाश आंदोलन की चर्चा अपने मित्रों से करते थे और मैं उनके पास बैठ कर उनकी बातें सुना करता था। मेरा विद्यालय जयप्रकाश बाबू के घर के ठीक सामने था। मैं हमेशा उन्हें धूप में किताबें पढ़ते हुए देखा करता था। शिक्षकगण भी उनके विषय में चर्चा किया करते थे। जयप्रकाश बाबू के घर पर देश विदेश के गणमान्य लोगों का आना जाना लगा रहता था। इससे अनजाने में ही जयप्रकाश बाबू में लगाव हो गया। उनके विषय में कहीं भी चर्चा होती थी मैं ध्यान से सुना करता था। उनके व्यक्तित्व और उनके द्वारा दिए गए नारा “ सम्पूर्ण क्रांति “ से मैं बहुत प्रभावित हुआ।
मैं राजनीति में नहीं हूँ लेकिन अछूता भी नहीं हूँ क्योंकि पटना या बिहार की राजनीति का तापमान हमेशा ऊँचा रहता है। बिहार में राजनीतिक जागरूकता देश के दूसरे राज्यों से ज़्यादा है। ये सभी को मालूम है जयप्रकाश बाबू चिंतक भी थे और सामाजिक आंदोलन के ऐसे पुरोधा भी थे कि इन्दिरा गांधी की सत्ता हिली ही नहीं वे ख़ुद भी हार गयीं। यह कोई मामूली घटना नहीं थी। जयप्रकाश बाबू को विश्व के कोने कोने के लोग जानते थे। अपनी अपनी तरह से विचारकों ने उनका मूल्याँकन भी किया था। भारत में स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर सम्पूर्ण आंदोलन तक का जेपी का योगदान जगज़ाहिर है।