मोदी सरकार: नीतियों और योजनाओं के सफल तालमेल के दो साल

मोदी सरकार: नीतियों और योजनाओं के सफल तालमेल के दो साल

{संतोष कुमार ‘बंटी’}

केन्द्र की सत्ता में भारतीय जनता पार्टी की मोदी सरकार ने दो वर्ष पूरे कर लिए हैं. इन दो वर्षों के अंतराल में कई उतार चढ़ाव के बाद भी अपने को स्थिर रखने में मोदी सरकार सफल रही है. आरोप प्रत्यारोप के बीच संसद से लेकर सड़क तक मोदी सरकार ने अपने सिपाहियों की बदौलत विपक्ष के वार का जबाव दिया. हालांकि इस बीच अपने कई बड़बोले सिपाहियों की हाजिर जबाबी के कारण सरकार को कटघरे में खड़ा होना पड़ा है. लेकिन विकासात्मक और देश हित के कार्यों की बदौलत लोगों को दिलों पर सरकार राज कर रही हैं.

मोदी सरकार अर्थव्यवस्था, उत्पाद, निर्यात और रोजगार जैसे जनसरोकार के मुद्दों के साथ आगे बढ़ रही है. अपनी विभिन्न योजनाओं के जरिए सरकार ने आम से लेकर खास लोगों के बीच अपनी जगह बना ली है. आम आदमी के लिये बनी जनधन योजना, सुकन्या समृद्धि योजना, मुद्रा योजना, जीवन ज्योति बीमा योजना, सुरक्षा बीमा योजना और अटल पेशन योजना के जरिए समाज के अंतिम पायदान पर खड़ा व्यक्ति आज सीधे तौर पर बैकों से जुड़ा है. जिससे भ्रष्टाचार में कमी आने के साथ साथ उनके भविष्य की सुरक्षा भी हो रही है.

मेक इन इंडिया योजना सरकार की एक अनूठी पहल है. जिससे देश में ना सिर्फ रोजगार के नये अवसर प्राप्त हुए हैं बल्कि अर्थव्यवस्था की स्थिति में भी भारत काफी सुदृढ़ हुआ है. छोटे छोटे करोबारी को व्यापार के अवसर मिले हैं वहीं बड़ी कंपनियों के निवेश के अवसर सृजन हुए हैं. विदेशों के साथ बेहतर संबंध बनने से देश की सीमा, सुरक्षा, आयात और निर्यात जैसे कई मुद्दों पर हुई संधि से देश आगे बढ़ा है.

स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, के जरिए सरकार ने युवाओं को अपनी ओर आकर्षित किया है. तकनीकी शिक्षा के साथ औद्योगिक शिक्षा में देश के युवा अपने भविष्य निर्माण के लिए स्टार्टअप इंडिया को एक बेहतर विकल्प के रूप में देख रहे है. डिजिटल इंडिया के साथ तेजी से बढ़ रहे ई-व्यापार इसका उदाहरण बन रहा है.

मोदी सरकार देश के विकास के लिए भले ही अपने योजनाओं के जरिए अग्रसर हो लेकिन पठानकोट हमला, रोहित बेमुला, जेएनयू विवाद, तथा असहिष्णुता और बीफ जैसे मुद्दे पर सरकार सीधे विपक्ष के निशाने पर रही है. सड़क से लेकर सदन तक सरकार को विरोध झेलना पड़ा. कालाधन, भ्रष्टाचार तथा महंगाई जैसे मुद्दों पर सरकार अब भी निशाने पर हैं. कालाधन वापसी को विपक्ष जहाँ चुनावी जुमला बता रहा है वही वित्त मंत्री नयी आयकर नीति का हवाला देकर कालाधन वापसी में एक कदम और बढाने की बात कहते हैं.

योजनाओं के आधार पर सरकार ने लोगों को अपनी तरफ आकर्षित जरूर किया है लेकिन मँहगाई इस कार्य में रोड़ा साबित हो रही है. बहरहाल सरकार के प्रति लोगों की एकाग्रता और कार्यों का प्रतिफल कुछ प्रदेशों के विधानसभा चुनाव में जरूर दिख रहा. मगर असल तो 2019 में ही देखने को मिलेगा.

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