जाति न पूछो खेल की

जाति न पूछो खेल की

आर.के. सिन्हा

टोक्यो ओलंपिक खेलों के श्रीगणेश से पहले किसी भारतीय ने ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि भारत की पुरुष और महिला हॉकी टीमें ओलंपिक में ऐसा चमत्कारी प्रदर्शन करेंगी। इन दोनों टीमों ने अपने शानदार खेले से सारी दुनिया का ध्यान खींचा। इस सबके बीच महिला टीम की स्टार फॉरवर्ड खिलाड़ी वंदना कटारिया के हरिद्वार के पास रोशनबाद स्थित घर में कुछ गटर छाप मानसिकता के लोगों ने उनकी जाति को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी कर सारे माहौल को विषाक्त कर दिया। इस विवाद के कारण हॉकी टीमों की कामयाबी को नेपथ्य में धकेलने की कोशिशें भी हुई।

भारत में इस शर्मनाक घटना से पहले कभी किसी ने खिलाड़ियों की जाति को लेकर कोई छिछोरी टिप्पणी नहीं की थी । खेलों का संसार तो इस तरह का है जहां जाति, लिंग, धर्म आदि के लिए कोई स्थान नहीं है। दर्शक और खेलप्रेमी उस खिलाड़ी को ही पसंद करते हैं जो लगातार बेहतर खेलता है। उसके प्रदर्शन से देश का नाम बुलंद होता ही है। क्या किसी हिन्दुस्तानी को दादा ध्यानचंद की जाति की जानकारी है ? यदि हो भी तो कोई चर्चा करता है क्या ? क्यों देश टेनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस को पसंद करता है ? किसने सुनील गावस्कर या सचिन तेंदुलकर की जाति जानने की चेष्टा की ? किसी ने भी तो नहीं। फिर इसबार वंदना और कुछ अन्य खिलाड़ियों की जाति को लेकर क्यों विवाद खड़ा किया जा रहा है ? यह बड़ा सवाल है।

भारत की हॉकी टीम से कुछ साल पहले वाल्मिकी समाज का युवक युवराज वाल्मिकी खेल रहा था। हॉकी के मैदान में सफल होने के लिए जरूरी लय, ताल और गति उसके पास थी। वह कई सालों तक भारत की टीम का स्थायी सदस्य था। परंतु कभी किसी ने उसकी जाति को लेकर सवाल तो नहीं किए। पाकिस्तान के पूर्व टेस्ट क्रिकेटर युसुफ योहन्ना, जो बाद में धर्म परिवर्तन करके मोहम्मद युनुस बन गए थे, उनका संबंध भी मूल रूप से एक वाल्मिकी परिवार से ही है। हिन्दू धर्म बदलकर ईसाई बनने के बाद भी उनका परिवार लाहौर में सफाईकर्मी के रूप में ही काम करता रहा। योहन्ना से युसूफ बने इतने बेहतरीन खिलाड़ी को कभी पाकिस्तान टीम का कप्तान इसलिए नहीं बनाया गया क्योंकि वे वाल्मिकी परिवार से थे। तो यह हाल रहा जात-पात का इस्लाम को मानने वाले पाकिस्तान में।

लेकिन, भारत में कभी किसी को किसी खास जाति से संबंध रखने के कारण कोई पद न मिला हो, यह मुमकिन नहीं है। अगर किसी शख्स में किसी पद को हासिल करने की मेरिट है तो वह पद उसे मिलेगा ही। यहां पर इस बात से कोई इनकार नहीं कर रहा है कि हमारे समाज में जाति का कोढ़ अभी भी जिंदा है। लेकिन इसका यह भी मतलब नहीं है कि देश और समाज जाति के आधार पर ही चलता है। तो फिर वही सवाल है कि वंदना कटारिया पर नीच टिप्पणियां करने वालों की मंशा क्या थी। सारे मामले की जांच शुरू हो गई है। अब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। यह सच है कि देश के छोटे शहरों में कथित निचली जाति से संबंध रखने वाले लोगों को कुछ दबंग किस्म के लोग प्रताड़ित करते रहते हैं। हालांकि इस तरह के मामले पहले से बहुत कम भी हुए हैं, पर ऐसी घटनाएँ हो तो रही हैं, यह भी सच है।

जाति का असर महानगरों और बड़े शहरों में घट रहा है, यह भी सच है। अगर ऐसा नहीं होता तो युवराज वाल्मिकी या वंदना कटारिया जैसे नौजवानों के लिए भारत हॉकी टीम में जगह बनाना संभव नहीं था।

कहने की जरूरत नहीं है कि हिन्दू समाज के सामाजिक पिरामिड में वाल्मिकी समाज सबसे निचले पायदान पर है। अपने घर के आसपास की किसी भी वाल्मिकी बस्ती में जाएं तो आपको मालूम चल जाएगा कि यह समाज कितनी विषम परिस्थितियों में जीने के लिए मजबूर है। ये अब भी प्राय: मैला उठाने से लेकर कचरे की सफाई के काम से ही जुड़े हैं। यह इतना महत्वपूर्ण काम भी मेहनत और तन्मयता से करते हैं, वह देखकर मन में सम्मान के भाव के अतिरिक्त कुछ नहीं आ सकता। अगर आप राजधानी में रह रहे हैं तो अंबेडकर स्टेडियम के पीछे बसी वाल्मिकी बस्ती में जाकर देख लें कि भले ही देश आगे बढ़ रहा हो पर इधर रहने वालों की जिंदगी पहले की तरह संघर्षों भरी है। ये न्यूनतम नागरिक सुविधाओं के अभाव में ही रह रहे हैं। पर दिल्ली या मुंबई जैसे महानगरों में इन्हें जाति के कारण अपमानित तो नहीं होना पड़ता है न ? मूलत: उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ से मुम्बई में जाकर बस गए परिवार से संबंध रखने वाले युवराज वाल्मिकी की कहानी उन तमाम वाल्मिकी परिवार के नौजवानों की कहानी से मिलती-जुलती ही है, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी सफलता दर्ज की।

बहरहाल, कभी-कभी मन बहुत उदास हो जाता है कि हमारे यहां कुछ विक्षिप्त तत्व पूर्वोत्तर के नागरिकों से लेकर अफ्रीकी नागरिकों पर भी बेशर्मी से टिप्पणियां करते हैं। इन्हें अपने घटिया आचरण पर शर्म भी नहीं आती। ये लोग पूर्वोत्तर राज्यों के नागरिकों को चीनी या जापानी कह देते हैं। जरा सोचें कि जिन्हें चीनी या जापानी कहा जा रहा है, उनके दिल पर क्या गुजरती होगी। इस तरह के तत्वों पर भी कड़ा एक्शन होना चाहिए। जरा यह भी सोचें कि जिनकी जाति को उछाला जाता है, उन्हें कितना मानसिक कष्ट होता होगा। जिस वंदना कटारिया ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ लगातार तीन गोल करके कीर्तिमान बनाया, उसके साथ कितना भयंकर अन्याय हो रहा है। जिन लोगों ने वंदना कटारिया के घर के बाहर जाकर अराजकता की और जातिसूचक टिप्पणियां कीं उन सबके खिलाफ पुलिस ने मुकदमा तो दर्ज किया है। दो आरोपियों विजयपाल और अंकुरपाल को गिरफ्तार भी कर लिया गया है।

देखिए, अब इस देश में नस्लीय टिप्पणियों को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जाएगा। जो भी शख्स इन हरकतों में लिप्त पाया जाएगा उसे कठोर दंड हर हाल में मिलना चाहिए। यह सुखद स्थिति नहीं है कि जब देश कुछ दिनों बाद अपनी आजादी की 75 वीं वर्षगांठ मनाने की तैयारियां कर रहा है तब भी हमारे यहां जाति के कोढ़ का स्याह चेहरा दिखाई दे जाता है। किसी भी सभ्य समाज में जाति के लिए कोई जगह नहीं हो सकती।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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