भारत में पिंडदान करने का कई धार्मिक स्थल है पिंडदान किसी भी पवित्र स्थान पर किया जा सकता है. लेकिन गया जी पिंडदान करने का विशेष महत्व है. गया जी में पिंडदान करने से सात पीढियों का मोक्ष की प्राप्ति होती है तथा परिवार में सुख शांति कायम रहता है। जिस व्यक्ति का पिंडदान गया में किया जाता है उसकी आत्मा का शांति मिलती है। सनातन धर्म में यह मान्यता है की गया में श्राद्ध करने से व्यक्ति को आत्मा का शांति मिलती है।
(1) ब्रह्मा जी ने गयासुर को वरदान दिया था जो भी लोग गया में पितृपक्ष के अवधि में इस स्थान पर अपने पितरो को पिंडदान करेगा उनको मोक्ष मिलेगा.
(2 ) श्रीराम जी के वन जाने के बाद दशरथ जी का मृत्यु हुई और सीता जी ने यहाँ दशरथ जी की प्रेत आत्मा को को पिंड दिया था .उस समय से यह स्थान को पिंड दान करने तथा तर्पण करने से दशरथ जी ने माता सीता का दिया हुआ पिंडदान स्वीकार किया था.
(3 गया में पुत्र को जाने तथा फल्गु नदी में स्पर्श करने से पितरो का स्वर्गवास होता है .
(4 ) गया क्षेत्र में तिल के साथ समी पत्र के प्रमाण पिंड देने से पितरो का अक्षयलोक को प्राप्त होता है .
यहाँ पर पिंडदान करने से ब्रह्हत्या सुरापान इत्यादि घोर पाप से मुक्त होता है .
(5 ) गया में पिंडदान करने से कोटि तीर्थ तथा अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। यहाँ पर श्राद्ध करने वाले को कोई काल में पिंड दान कर सकते है साथ ही यहाँ ब्राह्मणों को भोजन करने से पितरो की तृप्ति होती है.
(6 ) गया में पिंडदान करने के पहले मुंडन कराने से बैकुंठ को जाते है साथ ही काम, क्रोध, मोक्ष को प्राप्ति होती है.
(7) यहाँ पर उपस्थित फल्गू नदी, तुलसी, कौआ, गाय, वटवृक्ष और ब्राह्मण उनके द्वारा किए गए श्राद्धकर्म की गवाही देते है .
गया में तर्पण का का रहस्य
यहाँ माता सीता ने तर्पण किया था गया में पिंडदान करने से आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है इसलिए इस स्थान को मोक्ष स्थली भी कहा जाता है। बताया जाता है कि गया में भगवान विष्णु स्वयं पितृदेव के रूप में निवास करते हैं। गया में श्राद्ध कर्म और तर्पण विधि करने से कुछ शेष नहीं रह जाता और व्यक्ति पितृऋण से मुक्त हो जाता है.
संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ
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