29 सितम्बर से शुरू होगा पितरों के प्रति कृतज्ञता जताने का अमृतकाल ”पितृपक्ष”

29 सितम्बर से शुरू होगा पितरों के प्रति कृतज्ञता जताने का अमृतकाल ”पितृपक्ष”

पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने वाला पितृपक्ष 29 सितम्बर (शुक्रवार) को अगस्त मुनि को जल देने के साथ शुरू हो जाएगा। शास्त्रों के अनुसार जिनका निधन हो चुका है, वे सभी पितृ पक्ष के दिनों में अपने सूक्ष्म रूप के साथ धरती पर आते हैं तथा परिजनों का तर्पण स्वीकार करते हैं, प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।

29 सितम्बर को अगस्त मुनि का तर्पण करने के बाद 30 सितम्बर से लोग अपने पितरों-पूर्वजों को याद करते हुए तर्पण करेंगे। इसके बाद पिता के मृत्यु तिथि के अनुसार श्राद्ध तर्पण करेंगे। पितृ पक्ष 29 सितम्बर से 14 अक्टूबर तक चलेगा, जिसमें सभी तिथि का अपना अलग-अलग महत्व है। लेकिन पितृ पक्ष में पूर्णिमा श्राद्ध, महाभरणी श्राद्ध और सर्वपितृ अमावस्या का विशेष महत्व तथा एकादशी तिथि को दान सर्वश्रेष्ठ होता है।

इस वर्ष पूर्णिमा श्राद्ध 29 सितम्बर को, प्रतिपदा एवं द्वितीय श्राद्ध 30 सितम्बर, तृतीय श्राद्ध एक अक्टूबर, चतुर्थ श्राद्ध दो अक्टूबर, पंचमी श्राद्ध तीन अक्टूबर, षष्ठी श्राद्ध चार अक्टूबर, सप्तमी श्राद्ध पांच अक्टूबर, अष्टमी श्राद्ध छह अक्टूबर, नवमी श्राद्ध (मातृ नवमी) सात अक्टूबर, दशमी श्राद्ध आठ अक्टूबर, एकादशी श्राद्ध (मघा श्राद्ध) दस अक्टूबर को होगा।

द्वादशी श्राद्ध, संन्यासी, यति, वैष्णव जनों का श्राद्ध 11 अक्टूबर को, त्रयोदशी श्राद्ध 12 अक्टूबर तथा चतुर्दशी श्राद्ध एवं शस्त्रादि से मृत लोगों का श्राद्ध 13 अक्टूबर को होगा। इसके बाद 14 अक्टूबर को पितृ पक्ष के 16 वें दिन अमावस्या तिथि को अमावस्या श्राद्ध, अज्ञात तिथि में मृत का श्राद्ध, सर्वपितृ अमावस्या एवं पितृ विसर्जन के साथ ही महालया का समापन हो जाएगा।

सुहागिन महिलाओं के निधन की तिथि ज्ञात नहीं रहने पर नवमी तिथि को उनका श्राद्ध होगा। अकाल मृत्यु अथवा अचानक मृत्यु को प्राप्त पूर्वजों का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को होगा। यदि पितरों की मृत्यु तिथि का पता नहीं हो तो अमावस्या के दिन उन सबका श्राद्ध करना चाहिए। इसलिए पितरों की आत्म तृप्ति के लिए हर वर्ष भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि से आश्विन की अमावस्या तक पितृपक्ष होता है।

पंडित आशुतोष झा ने बताया कि पितृपक्ष में किये गए दान-धर्म के कार्यों से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है, कर्ता पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिंड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है। श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि उनके पुत्र-पौत्रादि पिंड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे, इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं।

यही कारण है कि हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है। श्राद्ध के दिन स्मरण करने से पितर घर आते हैं और भोजन पाकर तृप्त हो जाते हैं। इस पक्ष में अपने पितरों का स्मरण तथा उनकी आत्म तृप्ति के लिए तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध कर्म आदि किए जाते हैं। पितरों की आत्म तृप्ति से व्यक्ति पर पितृदोष नहीं लगता है, परिवार की उन्नति होती है, पितरों के आशीर्वाद से वंश वृद्धि होती है।

श्रद्धा हिंदू धर्म का एक अंग है, इसलिए श्राद्ध उसका धार्मिक कृत्य है। पितृपक्ष में प्रतिदिन या पितरों के निधन की तिथि को पवित्र भाव से दोनों हाथ की अनामिका उंगली में पवित्री धारण करके जल में चावल, जौ, दूध, चंदन, तिल मिलाकर विधिवत तर्पण करना चाहिए। इससे पूर्वजों को परम शांति मिलती है, तर्पण के बाद पूर्वजों के निमित्त पिंड दान करना चाहिए। पिंडदान के बाद गाय, ब्राह्मण, कौआ, चींटी या कुत्ता को भोजन कराना चाहिए।

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