सारण जिले में केंद्र सरकार की ‘मिड डे मिल’ योजना तमाम अड़चनों के बाद भी गरीब और जरूरतमंद बच्चों के लिए दिन के भोजन का जरिया बन चूका है.
सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले गरीबों के बच्चे जब स्कूल पढ़ने आते है तो उनकी आँखों में एक उम्मीद होती है कि आज एक वक्त का खाना तो नसीब होगा, गर्म खिचड़ी, दाल भात, सब्जी चावल जो उन बच्चों के अभिभावक उन्हें बामुश्किल ही दे पाते है उसे उनका विद्यालय प्रतिदिन बड़े चाव से खिलाता है.
गरीब बच्चों में बढ़ती अशिक्षा को दूर करने के लिए उनका स्कूल तक आना जरूरी है. इसी सोंच से प्रेरित होकर सरकार ने सरकारी विद्यालयों में दिन के भोजन अर्थात मध्याह्न भोजन योजना की शुरुआत कराई. इस योजना के पीछे सरकार की एक और सोंच रही थी कि मिड डे मिल योजना के माध्यम से पोषक आहार खिला कर गरीब बच्चों में बढ़ते कुपोषण को भी कम किया जा सकेगा.
पर गरीब अपने हालातों से इस कदर मजबूर है कि उसके लिए आज शिक्षा और कुपोषण से कहीं जरूरी अपने बच्चों का पेट पालन है. वो गरीब जो दिन भर में बड़ी कठिनाइयों के बाद अपने और अपने बच्चों के लिए एक वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाता है उसके लिए तो मिड डे मिल योजना आशा की किरण बन चूकी है. गरीब जब सबेरे घर से कमाने निकलता है तो उसे इस बात की निश्चिन्तता रहती है कि चलो कम से कम बच्चे स्कूल जाएंगे तब उन्हें खाना तो नसीब हो ही जाएगा.
सारण समेत राज्य के कई जिलों में मिड डे मिल योजना हमेशा ही विवादों में रहा है. सारण के गंडामन हादसे को आज भी कोई नहीं भूला जहाँ इसी योजना में लापरवाही के कारण दर्जनों बच्चों को अपनी जान गवानी पड़ी थी. इस घटना के बाद सरकार और उनके आलाधिकारी इस योजना के प्रति काफी सजग हो गए है. विद्यालयों में सही तरीके से भोजन बनाने और उसे प्रीतिदिन परोसने की प्रक्रिया में भी थोड़ा सुधार किया गया है.
इस योजना ने गरीबों के उम्मीद (उनके भर पेट भोजन की उम्मीद) को आज भी जीवित रखा है. हालाँकि सरकार को भोजन के साथ शिक्षा की व्यवस्था को भी सुदृढ़ करने की आवश्यकता है, पर गरीबों और उनके भूख से बिलखते बच्चे स्कूलों में एक वक्त का खाना खाकर भी संतुष्ट रहते है.
भूख और बेकारी के बीच मध्याह्न भोजन योजना उन गरीबों का सबसे मजबूत सहारा बन गया है जो अपने बच्चों के लिए भर पेट भोजन बड़ी मुश्किल से जुगाड़ कर पाते है. मध्याह्न भोजन योजना आज के बदलते भारत की तस्वीर बखूबी दर्शाता है
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