Special Story: 35 वर्षों से लोगों के लिए पुल बना रहे बिहार के दूसरे दशरथ मांझी ‘कृष्णनंदन’

Special Story: 35 वर्षों से लोगों के लिए पुल बना रहे बिहार के दूसरे दशरथ मांझी ‘कृष्णनंदन’

जीवन में अधिकतर लोग आसान रास्तों पर चलना पसंद करते हैं पर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो हमारे  लिए जीवनपर्यन्त संघर्ष करते हुए सुगम रास्तों का निर्माण करते हैं ताकि हम आसानी से उन रास्तों पर चलकर अपनी मंजिल तक पहुंच सकें. किसी के अथक प्रयास के बाद बनाया गया रास्ता हमें तो सुगमता प्रदान करता है पर उस रास्ते के निर्माण में संघर्ष की जो व्यथा छुपी होती है उसका अहसास तो सिर्फ उसे बनाने वाले को ही होता है.

छपरा टुडे स्पेशल स्टोरी एक ऐसे व्यक्ति को समर्पित है जिसने अपने गाँव के लोगों के लिए सुगम रास्ते के निर्माण हेतु अपनी पूरी जिंदगी समर्पित कर दी और अपने समाज के साथ-साथ अपने प्रदेश के लोगों के लिए एक मिशाल बन चुके है. सीतामढ़ी जिला के समीप मेजरगंज थानाक्षेत्र के एक छोटे से कस्बे में रहने वाले ‘कृष्णनंदन’  35 वर्षों से गाँव को शहर से जोड़ने वाले नदी के ऊपर बांस की छोटी पुल बनाते हैं ताकि उनके कस्बे के लोगों को किसी भी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा.

IMG-20160706-WA0003

कृष्णनंदन ने पुल बनाने का सिलसिला तब शुरू किया था जब उनके गाँव की एक बूढ़ी अम्मा नदी पार करते समय उसमे डूबने लगी थी और कृष्णनंदन ने काफी मशक्कत के बाद उन्हें पानी से बाहर निकाला था. उस वक्त उस बूढ़ी अम्मा ने कृष्णनंदन को खूब दुआएं दी और शायद वही दुआ उनके लिए प्रेरणा बन गई. कृष्णनंदन की उम्र उस समय लगभग 16 साल की थी. जिस उम्र में लोग अपने सुखद भविष्य के सपने देखा करते है कृष्णनंदन ने उस उम्र में गाँव की खुशहाली के लिए जो संकल्प लिया उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है.

कृष्णनन्दन बताते हैं कि जिस नदी पर वो 1982 से बांस के पुल का निर्माण करते आ रहे है वो भारत को नेपाल से जोड़ने का भी काम करता है साथ ही आज लगभग 27 गाँव इसी पुल के सहारे अपनी दिशा तय करते हैं. 1982 में जब इन्होंने पहली बार 100 मीटर लंबे पुल का निर्माण किया था तो तक़रीबन दो हजार का खर्च लगा था पर आज इस पुल के निर्माण में करीब 12 से 15 हजार का खर्च लगता है. हर साल बाढ़ में बांस का पुल बाह जाता है पर कृष्णनंदन 1982 से अबतक हर साल अपने मेहनत और अपने खर्चे से बांस का पुल बनाते आ रहे हैं.IMG-20160714-WA0002

पुल के निर्माण के कारण ताउम्र अविवाहित रहने वाले कृष्णनंदन की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर है, आज उनके अपनों ने भी उनका साथ छोड़ दिया है. अपने गाँव में पक्के पुल के निर्माण हेतु स्थानीय जनप्रतिनिधियों से लेकर सरकार के आलाधिकारियों तक भी गुहार लगा चुके हैं पर आज भी उनका गाँव एक अदद पक्के पुल के निर्माण की बाट जोह रहा है. स्थानीय विधायक से लेकर सांसद यहाँ तक की सरकार के कुछ मंत्रियों ने भी उनके इस कार्य के लिए सम्मान भी दिया है पर कृष्णनंदन ने ठान ली है कि जबतक उनके गाँव को सरकारी पुल की सुविधा नहीं मिल जाती वो संघर्ष करते रहेंगे.

कृष्णनंदन को विश्वास है की उनका ये संघर्ष एक दिन जरूर रंग लाएगा, जिस प्रकार गया के दशरथ मांझी ने पूरे प्रदेश के लिए एक मिशाल कायम की है इन्होंने भी कुछ वैसा कार्य कर स्थानीय लोगों के मन में अपने प्रति काफी सम्मान हासिल किया है. कृष्णनंदन का संकल्प इस वाक्य को निश्चित ही सार्थक करता है कि ‘जब तक तोड़ेंगे नहीं तब तक छोड़ेंगे नहीं’ या यूँ कह लें कि ‘तब तक लड़ेंगे , जब मरेंगे नहीं….fb

0Shares
A valid URL was not provided.

छपरा टुडे डॉट कॉम की खबरों को Facebook पर पढ़ने कर लिए @ChhapraToday पर Like करे. हमें ट्विटर पर @ChhapraToday पर Follow करें. Video न्यूज़ के लिए हमारे YouTube चैनल को @ChhapraToday पर Subscribe करें