अयोध्या जा रही शालिग्राम शिला का पूर्वी चंपारण में जगह जगह हुआ स्वागत

अयोध्या जा रही शालिग्राम शिला का पूर्वी चंपारण में जगह जगह हुआ स्वागत

मोतिहारी: नेपाल से अयोध्या जा रही शालिग्राम शिला मंगलवार मुजफ्फरपुर से पूर्वी चम्पारण जिले में मेहसी प्रखंड के मंगराही पहुंचते ही श्रद्धालु उत्साह, उल्लास व उमंग से भर गए। जयश्री राम के उदघोष से पूरा वातावरण गुंजायमान हो गया। जगह-जगह लोग पुष्प वर्षा कर रहे थे।धूप व अगरबती दिखाई जा रही थी।

नेपाल से अयोध्या जा रही शालिग्राम शिला मंगलवार मुजफ्फरपुर से पूर्वी चम्पारण जिले में मेहसी प्रखंड के मंगराही पहुंचते ही श्रद्धालु उत्साह, उल्लास व उमंग से भर गए। जयश्री राम के उदघोष से पूरा वातावरण गुंजायमान हो गया। जगह-जगह लोग पुष्प वर्षा कर रहे थे।धूप व अगरबती दिखाई जा रही थी।

मेहसी,चकिया,पिपरा,पिपराकोठी मठनवारी,कोटवा,डुमरियाघाट सहित जगह जगह लोग सुबह से ही शिला आने का इंतजार कर रहे थे।लोग भूखे-प्यासे शालिग्राम शिला की एक झलक पाने को बेताब थे। शिला के पहुंचते ही जय श्रीराम के उदघोष से साथ विधायक श्यामबाबू यादव,पूर्व मंत्री प्रमोद कुमार,भाजपा प्रदेश प्रवक्ता अखिलेश सिंह,उपमेयर लालबाबू प्रसाद, मुखिया हेमंत कुमार, रबिन्द्र सहनी सहित बड़ी संख्या में विहिप बजरंग दल व राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के साथ हजारों श्रद्धालुओं ने संतों के काफिले का स्वागत कर शिला का पूजन किया।

शिला के साथ चल रहे संतों ने बताया कि नेपाल के गलेश्वरधाम से 26 जनवरी को यात्रा शुरू हुई थी। कांटी में रात्रि विश्राम के बाद शालिग्राम शिला मंगलवार की दोपहर चम्पारण व गोपालगंज के रास्ते बुधवार को शिला के अयोध्या पहुंचेगी।का बताते चले कि शिला के साथ जनकपुर व भारत के संतों की टोली चल रही है।जो लगातार कीर्तन-भजन कर रहे है। संतो ने बताया कि नेपाल की काली गंडकी नदी से निकाली गई है। शालिग्राम शिला से अयोध्या में बन रहे भव्य श्री राम मंदिर मे मूर्ति का निर्माण होगा।

-क्या है शालिग्राम शिला का महत्व

हिन्दू मान्यता के अनुसार शालिग्राम पत्थर जितना काला होगा, जितनी आकृतियां होंगी वो उतना ही श्रेष्ठ होगा, प्रभावशाली होगा। भगवान विष्णु को सती वृंदा के श्राप के कारण शालिग्राम का स्वरूप प्राप्त हुआ था। स्कंदपुराण के कार्तिक महात्मय में भगवान शालिग्राम की स्तुति की गई है। पौराणिक कथाओं के अनुसार शंखचूड़ नाम के एक दैत्य की पत्नी वृंदा अत्यंत सती थी। उसके सतीत्व को भंग किए बिना शंखचूड़ को परास्त करना असंभव था। श्रीहरि ने छल से रूप बदलकर वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया था। तब जाकर भगवान शिव ने शंखचूड़ का वध किया। इस बात को जब वृंदा को पता चला कि उनका सतीत्व भगवान विष्णु ने भंग किया है तो वृंदा ने श्रीहरि को शिला के रूप में होने का श्राप दे दिया, जिसके बाद श्रीहरि शिला के रूप में परिवर्तित हो गए थे। तब से श्रीहरि शिला रूप में भी रहते हैं। इन्हें शालिग्राम कहा जाता है। वृंदा ने अगले जन्म में तुलसी के रूप में पुन: जन्म लिया था। भगवान विष्णु ने वृंदा को आर्शीवाद दिया कि बिना तुलसी दल के कभी उनकी पूजा संपूर्ण नहीं होगी।

0Shares
Prev 1 of 242 Next
Prev 1 of 242 Next

छपरा टुडे डॉट कॉम की खबरों को Facebook पर पढ़ने कर लिए @ChhapraToday पर Like करे. हमें ट्विटर पर @ChhapraToday पर Follow करें. Video न्यूज़ के लिए हमारे YouTube चैनल को @ChhapraToday पर Subscribe करें