वरिष्ठ पत्रकार नवीन सिंह परमार व डॉक्टर शम्भू यादव की रिपोर्ट
सीवान: उत्तरप्रदेश के सीमा से सटे जिले के गुठनी प्रखण्ड में अवस्थित भक्तवांच्छा कल्पतरू बाबा हंसनाथ की नगरी सोहगरा धाम धार्मिक आस्था का केंद्र है. मंदिर में जलाभिषेक करने के लिए शिवभक्तों का जनसैलाब पहुंचता है. बाबा हंसनाथ मंदिर में स्थापित विशाल शिव लिंग पौराणिक काल से स्थापित है और शिवभक्तों के आस्था का केंद्र है.
ऐतिहासिक महत्व
ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार कई देशी-विदेशी इतिहासकारों ने अपनी यात्रा वृतांत में धार्मिक स्थलों के वर्णन के दौरान सोणितपुर या सोहनपुर का जिक्र किया है. सन् 630 ईसवी में चीनी यात्री ह्वेनसांग भी जब चन्द्रभूमि भारत के गंधार प्रदेश में प्रवेश किया और घूमते -घूमते बिहार आया तो धार्मिक स्थलों के परिभ्रमण में सोणितपुर /सोहनपुर का भी जिक्र किया है. (ह्वेनसांग यात्रा वृतांत हिंदी विश्वकोश).
ऐसा भी वर्णन मिलता है कि एक वार तत्कालीन मझौली नरेश महाराज हंस ने इस मंदिर का जिर्णोधार कराया था. जिससे इसका नाम हंसनाथ हो गया.
पौराणिक महत्व
पौराणिक दृष्टिकोण से भी इस स्थल का बहुत ही बड़ा महत्व है. जिसका वर्णन शिवपुराण के रूद्र संहिता (युद्ध खण्ड ) के पृ0सं0 355 में वर्णित है. कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की तेरह कन्यायें कश्यप मुनि से ब्याही थी. उनमें से दिति सबसे बड़ी थी जिससे दानवों की उत्पत्ति हुई थी. छोटी पुत्री अदिति से द्वादश आदित्य यानि देवता उत्पन्न हुए. दिति से हिरण्यकशिपु तथा हिरण्याक्ष उत्पन्न हुए. हिरण्यकशिपु के चार पुत्र लाद, अनुह्लाद, संह्लाद, प्रह्लाद हुए प्रह्लाद का पुत्र विरोचन उसका पुत्र बलि और बलि का पुत्र बाणासुर हुआ जो महान शिव भक्त था. बाणासुर ने कठिन तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न कर उनके परिवार और गणों सहित अपने राजधानी शोणितपुर में रहने के लिए वर प्राप्त कर लिया था. ऐसा कहा जाता है कि शोणितपुर ही कालांतर में सोहनपुर हो गया जिसकी राजधानी सोहगरा में बाणासुर ने इस विशाल शिव लिंग की स्थापना की थी.
सहस्त्रों भुजाओं से सम्पन्न महावली बाणासुर अपने बल के अभिमान में अपनी सहस्त्रों भुजाओं से ताली बजाता हुआ ताण्डव नृत्य करके महेश्वर शिव को प्रसन्न किया और युद्ध में अपना जोड़ लगाने का ही वर मांग लिया. शरणागतवत्सल भगवान शिव ने अट्ठाहास करके कहा कि तुम्हारे राज्य में लगा मयूर ध्वज जब अकस्मात झुक जायेगा तो समझ लेना तुम से लड़ने वाला आ गया है. एक दिन ऐसा ही हुआ, बाणासुर की बेटी ऊषा ने स्वप्न में एक सुन्दर पुरूष को देख लिया जिसने उसका चित चुरा लिया. अपनी सखी चित्रलेखा जो कल्पना मात्र से ही किसी का चित्र बना सकती थी द्वारा बनाए गए बहुत सारे चित्रो को देख उस पुरूष को पहचान लिया वह श्री कृष्ण का पोता प्रदुम्न का पुत्र अनिरूध था. चित्रलेखा की सहायता से वह उनका हरण कर सोणितपुर ले आई और बाणासुर से युद्ध हुआ शिष्य के तरफ़ से भगवान शिव भी युद्ध भूमि में उतर आए नारदजी से समाचार पाकर भगवान श्री कृष्ण भी बारह अछौहिणी सेना और प्रदुम्न आदि बीरो के साथ सोणितपुर चढ़ आए भगवान शिव के द्वारा ही उपाय बताए जाने पर श्री कृष्ण ने जृम्भणास्त्र संधान कर भगवान शिव को स्तम्भित कर दिया और बाणासुर की सेना को तहस नहस कर दिया और सुदर्शन चक्र से उसका वध करना चाहा लेकिन भक्तवांच्छा भगवान शिव के कहने पर उसे क्षमा कर दिया सिर्फ उसका 998 भुजा काट दिया.
साभार: श्रीनारद मीडिया सर्विसेज, सीवान