पटना: संविधान निर्माण समिति के प्रथम अध्यक्ष डॉ सच्चिदानंद सिन्हा की उपेक्षा पर राज्यसभा के पूर्व सांसद और भाजपा के संस्थापक सदस्य आरके सिन्हा ने नाराजगी जताई। साथ ही डॉ सच्चिदानंद को मृत्योपरांत भारतरत्न देने के लिए अनुशंसित करने की पुरजोर मांग बिहार सरकार से की।
डॉ सच्चिदानंद सिन्हा की 150वीं जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए शनिवार को पूर्व सांसद ने कहा कि डॉ सच्चिदानंद सिन्हा 1891 में मात्र 20 वर्ष की आयु में बैरिस्टर बन गए थे। जब वह बैरिस्टर की पढ़ाई करके पानी के जहाज से स्वदेश लौट रहे थे तब किसी ने उनसे मजाक में यह कह दिया था कि भारत के नक्शे में बिहार कहां है, यह बताइए। उस समय बिहार बंगाल प्रान्त का ही एक भाग था।
डॉक्टर सिन्हा को यह बात दिल में चुभ गई। आखिर वह बिहार को नक्शे पर दिखाते तो कैसे? पटना आते ही उन्होंने बिहार को अलग करने का आंदोलन शुरू कर दिया। 20 वर्षों के अथक जन आंदोलन और कानूनी लड़ाई के बाद 1911 में बिहार को अलग राज्य की मान्यता मिली। यह डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा की लड़ाई का ही नतीजा था।
पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने बिहार सरकार से पुरजोर मांग की कि बिहार विधान सभा परिसर में, उनके गृह जिले आरा में और जन्मस्थान ग्राम मुरार, डुमराव में डॉ. सिन्हा की आदमकद प्रतिमा लगाई जाये। साथ ही बिहार सरकार उनके को नाम “मृत्योपरान्त भारतरत्न” के लिये अनुशंसित करे। सिन्हा ने कहा कि जब कोलकाता विश्वविद्यालय से अलग होकर बिहार में पहला विश्वविद्यालय पटना विश्वविद्यालय बना था, तब डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा ही इस प्रथम विश्वविद्यालय के कुलपति बनाये गये और नौ वर्षों तक लगातार उप-कुलपति रहे । इसलिए यह उचित होगा कि पटना या पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय का नाम डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा विश्वविद्यालय किया जाये। प्रेस वार्ता में पूर्व मंत्री रणजीत सिन्हा भी उपस्थित थे।