छठ पर रवीश कुमार ने कहा : दौरा उठाकर उस भार को जी लिया जो सबके हिस्से आता है, लोक पर्व में लोक होना पड़ता है

छठ पर रवीश कुमार ने कहा : दौरा उठाकर उस भार को जी लिया जो सबके हिस्से आता है, लोक पर्व में लोक होना पड़ता है

Bihar: आस्था के महापर्व छठ की छटा आम से लेकर खास तक दिख रही है. बिहार में जन्मे बसे और लगाव रखने वाले हरएक के लिए यह पर्व खास होता है. इस पर्व को मनाने के लिए, देखने के लिए और इसमें शामिल होने के लिए देश ही नही विदेशों से भी लोग अपने आप खिंचे चले आते है. आस्था के इस महापर्व में हर कोई अपनी अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर सेवा भाव मे जुट जाता है.

पत्रकारिता जगत में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले एक दर्जन से अधिक पत्रकार भी इस महापर्व में शामिल होने अपने घर आते है.

इस बार एनडीटीवी के रविश कुमार आपने घर पहुंचे है. लंबे अर्से बाद छठ में घर आने की कसक उनके सोशल मीडिया पर दिख रही है. लोगो से मिलना, गांव जवार की बाते, ठेठ देशी अन्दाज में बतियाने वाले रवीश कुमार का मिट्टी से अलग ही जुड़ाव देखने को मिल रहा है.

छठ पर्व के पहले अर्घ्य के दिन उन्हें दउरा उठाने का मौका मिला. लेकिन इसे उठाने के पहले ही उन्हें एक बार फिर अपने को साबित करना पड़ा. इस बात को लेकर रवीश कुमार ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखा है कि “छठ में गाँव आया हूँ . घर के लोग मेरी परीक्षा ले रहे थे कि मैं दौरा उठाऊँगा की नहीं. नंगे पाँव चलूँगा कि नहीं. सबको ग़लत साबित कर दिया. कितनी निगाहों और इम्तहानों से मेरी ज़िंदगी गुज़रती है, ख़ुद को उन सबसे मुक्त रखता हूँ लेकिन नंगे पाँव चलकर लोगों की तकलीफ़ को महसूस किया और दौरा उठा कर उस भार को जी लिया जो सबके हिस्से आता है. लोक पर्व में लोक होना पड़ता है. बहुत आनंद आया. आप सभी को छठ की बधाई. मुझे ज़मीन पर रखने के लिए भी शुक्रिया.”.

बेशक इन शब्दों ने बिहार और बिहारियों की कर्मठता, छठ के प्रति आस्था और शारीरिक क्षमता को बल दिया है. वास्तव में यह महापर्व छठ देश के कुछ लोगो के लिए भले ही एक पर्व त्यौहार हो लेकिन इसका महत्व सिर्फ बिहार और बिहारी जान सकते है.

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