नई दिल्‍ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दीवाली के मौके पर मन की बात के जरिए देशवासियों को संबोधित किया. पीएम ने देश को दीवाली की शुभकामनाएं भी दीं और सुरक्षित दीवाली मनाने की अपील भी की. यह ‘मन की बात’ का 25वां संस्‍करण है. इससे पहले इस कार्यक्रम के 24वें संस्‍करण में पीएम मोदी ने उरी हमले में शहीद हुए 19 जवनों को श्रद्धांजलि दी थी.

पढ़ें पीएम मोदी ने ‘मन की बात’ में और क्‍या कहा…

मेरे प्यारे देशवासियो, आप सबको दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनायें। भारत के हर कोने में उत्साह और उमंग के साथ दीपावली का पर्व मनाया जाता है। भारत एक ऐसा देश है कि 365 दिन, देश के किसी-न-किसी कोने में, कोई-न-कोई उत्सव नज़र आता है। दूर से देखने वाले को तो कभी यही लगेगा कि जैसे भारतीय जन-जीवन, ये उत्सव का दूसरा नाम है, और ये स्वाभाविक भी है। वेद-काल से आज तक भारत में जो उत्सवों की परम्परा रही है, वे समयानुकूल परिवर्तन वाले उत्सव रहे हैं, कालबाह्य उत्सवों की परम्परा को समाप्त करने की हिम्मत हमने देखी है और समय और समाज की माँग के अनुसार उत्सवों में बदलाव भी सहज रूप से स्वीकार किया गया है। लेकिन इन सबमें एक बात हम भली-भाँति देख सकते हैं कि भारत के उत्सवों की ये पूरी यात्रा, उसका व्याप, उसकी गहराई, जन-जन में उसकी पैठ, एक मूल-मन्त्र से जुड़ी हुई है – स्व को समष्टि की ओर ले जाना। व्यक्ति और व्यक्तित्व का विस्तार हो, अपने सीमित सोच के दायरे को, समाज से ब्रह्माण्ड तक विस्तृत करने का प्रयास हो और ये उत्सवों के माध्यम से करना। भारत के उत्सव कभी खान-पान की महफ़िल जैसे दिखते हैं। लेकिन उसमें भी, मौसम कैसा है, किस मौसम में क्या खाना चाहिये। किसानों की कौन सी पैदावार है, उस पैदावार को उत्सव में कैसे पलटना। आरोग्य की दृष्टि से क्या संस्कार हों। ये सारी बातें, हमारे पूर्वजों ने बड़े वैज्ञानिक तरीक़े से, उत्सव में समेट ली हैं। आज पूरा विश्व environment की चर्चा करता है। प्रकृति-विनाश चिंता का विषय बना है। भारत की उत्सव परम्परा, प्रकृति-प्रेम को बलवान बनाने वाली, बालक से लेकर के हर व्यक्ति को संस्कारित करने वाली रही है। पेड़ हो, पौधे हों, नदी हो, पशु हो, पर्वत हो, पक्षी हो, हर एक के प्रति दायित्व भाव जगाने वाले उत्सव रहे हैं। आजकल तो हम लोग Sunday को छुट्टी मनाते हैं, लेकिन जो पुरानी पीढ़ी के लोग हैं, मज़दूरी करने वाला वर्ग हो, मछुआरे हों, आपने देखा होगा सदियों से हमारे यहाँ परम्परा थी – पूर्णिमा और अमावस्या को छुट्टी मनाने की। और विज्ञान ने इस बात को सिद्ध किया है कि पूर्णिमा और अमावस को, समुद्र के जल में किस प्रकार से परिवर्तन आता है, प्रकृति पर किन-किन चीज़ों का प्रभाव होता है। और वो मानव-मन पर भी प्रभाव होता है। यानि यहाँ तक हमारे यहाँ छुट्टी भी ब्रह्माण्ड और विज्ञान के साथ जोड़ करके मनाने की परम्परा विकसित हुई थी। आज जब हम दीपावली का पर्व मनाते हैं तब, जैसा मैंने कहा, हमारा हर पर्व एक शिक्षादायक होता है, शिक्षा का बोध लेकर के आता है। ये दीपावली का पर्व ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ – अन्धकार से प्रकाश की ओर जाने का एक सन्देश देता है। और अन्धकार, वो प्रकाश के अभाव का ही अन्धकार वाला अन्धकार नहीं है, अंध-श्रद्धा का भी अन्धकार है, अशिक्षा का भी अन्धकार है, ग़रीबी का भी अन्धकार है, सामाजिक बुराइयों का भी अन्धकार है। दीपावली का दिया जला कर के, समाज दोष-रूपी जो अन्धकार छाया हुआ है, व्यक्ति दोष-रूपी जो अन्धकार छाया हुआ है, उससे भी मुक्ति और वही तो दिवाली का दिया जला कर के, प्रकाश पहुँचाने का पर्व बनता है।fb


एक बात हम सब भली-भांति जानते हैं, हिन्दुस्तान के किसी भी कोने में चले जाइए, अमीर-से-अमीर के घर में चले जाइए, ग़रीब-से-ग़रीब की झोपड़ी में चले जाइए, दिवाली के त्योहार में, हर परिवार में स्वच्छता का अभियान चलता दिखता है। घर के हर कोने की सफ़ाई होती है। ग़रीब अपने मिट्टी के बर्तन होंगे, तो मिट्टी के बर्तन भी ऐसे साफ़ करते हैं, जैसे बस ये दिवाली आयी है। दिवाली एक स्वच्छता का अभियान भी है। लेकिन, समय की माँग है कि सिर्फ़ घर में सफ़ाई नहीं, पूरे परिसर की सफ़ाई, पूरे मोहल्ले की सफ़ाई, पूरे गाँव की सफ़ाई, हमने हमारे इस स्वभाव और परम्परा को विस्तृत करना है, विस्तार देना है। दीपावली का पर्व अब भारत की सीमाओं तक सीमित नहीं रहा है। विश्व के सभी देशों में किसी-न-किसी रूप में दीपावली के पर्व को याद किया जाता है, मनाया जाता है। दुनिया की कई सरकारें भी, वहाँ की संसद भी, वहाँ के शासक भी, दीपावली के पर्व के हिस्से बनते जा रहे हैं। चाहे देश पूर्व के हों या पश्चिम के, चाहे विकसित देश हों या विकासमान देश हों, चाहे Africa हो, चाहे Ireland हो, सब दूर दिवाली की धूम-धाम नज़र आती है। आप लोगों को पता होगा, America की US Postal Service, उन्होंने इस बार दीपावली का postage stamp जारी किया है। Canada के प्रधानमंत्री जी ने दीपावली के अवसर पर दिया जलाते हुए अपनी तस्वीर Twitter पर share की है।

Britain की प्रधानमंत्री ने London में दीपावली के निमित्त, सभी समाजों को जोड़ता हुआ एक Reception का कार्यक्रम आयोजित किया, स्वयं ने हिस्सा लिया और शायद U.K. में तो कोई ऐसा शहर नहीं होगा, कि जहाँ पर बड़े ताम-झाम के साथ दिवाली न मनाई जाती होI Singapore के प्रधानमंत्री जी ने Instagram पर तस्वीर रखी है और उस तस्वीर को उन्होंने दुनिया के साथ share किया है और बड़े गौरव के साथ किया है। और तस्वीर क्या है। Singapore Parliament की 16 महिला MPs भारतीय साड़ी पहन करके Parliament के बाहर खड़ी हैं और ये photo viral हुई है। और ये सब दिवाली के निमित्त किया गया हैI Singapore के तो हर गली-मोहल्ले में इन दिनों दिवाली का जश्न मनाया जा रहा हैI Australia के प्रधानमंत्री ने भारतीय समुदाय को दीपावाली की शुभकामनायें और Australia के विभिन्न शहरों में दीपावली के पर्व में हर समाज को जुड़ने के लिए आह्वान किया है। अभी New Zealand के प्रधानमंत्री आए थे, उन्होंने मुझे कहा कि मुझे जल्दी इसलिए वापस जाना है कि मुझे वहाँ दिवाली के समारोह में शामिल होना है। कहने का मेरा तात्पर्य यह है कि दीपावली, ये प्रकाश का पर्व, विश्व समुदाय को भी अंधकार से प्रकाश की ओर लाए जाने का एक प्रेरणा उत्सव बन रहा है।fb

दीपावली के पर्व पर अच्छे कपड़े, अच्छे खान-पान के साथ-साथ पटाखों की भी बड़ी धूम मची रहती है। और बालकों को, युवकों को बड़ा आनंद आता है । लेकिन कभी-कभी बच्चे दुस्साहस भी कर देते हैं। कई पटाखों को इकठ्ठा कर-कर के बड़ी आवाज़ करने की कोशिश में एक बहुत बड़े अकस्मात को निमंत्रण दे देते हैं। कभी ये भी ध्यान नहीं रहता है कि आसपास में क्या चीजें हैं, कहीं आग तो नहीं लग जाएगी। दीपावली के दिनों में अकस्मात की ख़बरें, आग की ख़बरें, अपमृत्यु की ख़बरें, बड़ी चिंता कराती हैं। और एक मुसीबत ये भी हो जाती है कि दिवाली के दिनों में डॉक्टर भी बड़ी संख्या में अपने परिवार के साथ दिवाली मनाने चले गए होते हैं, तो संकट में और एक संकट जुड़ जाता है। मेरा खास कर के माता-पिताओं को, parents को, guardians को खास आग्रह है कि बच्चे जब पटाखे चलाते हों, बड़ों को साथ खड़े रहना चाहिए, कोई ग़लती न हो जाए, उसकी चिंता करनी चाहिए और दुर्घटना से बचना चाहिए । हमारे देश में दीपावली का पर्व बहुत लम्बा चलता है। वो सिर्फ एक दिन का नहीं होता है। वो गोवर्धन पूजा कहो, भाई दूज कहो, लाभ पंचमी कहो, और कार्तिक पूर्णिमा के प्रकाश-पर्व तक ले जाइए, तो एक प्रकार से एक लंबे कालखंड चलता है। इसके साथ-साथ हम दीपावली का त्योहार भी मनाते हैं और छठ-पूजा की तैयारी भी करते हैं। भारत के पूर्वी इलाके में छठ-पूजा का त्योहार, एक बहुत बड़ा त्योहार होता है। एक प्रकार से महापर्व होता है, चार दिन तक चलता है, लेकिन इसकी एक विशेषता है – समाज को एक बड़ा गहरा संदेश देता है। भगवान सूर्य हमें जो देते हैं, उससे हमें सब कुछ प्राप्त होता है। प्रत्यक्ष और परोक्ष, भगवान सूर्य देवता से जो मिलता है, उसका हिसाब अभी लगाना ये हमारे लिये कठिन है, इतना कुछ मिलता है और छठ-पूजा, सूर्य की उपासना का भी पर्व है । लेकिन कहावत तो ये हो जाती है कि भई, दुनिया में लोग उगते सूरज की पूजा करते हैं। छठ-पूजा एक ऐसा उत्सव है, जिसमें ढलते सूरज की भी पूजा होती है। एक बहुत बड़ा सामाजिक संदेश है उसमें ।

मैं दीपावली के पर्व की बात कहूँ, छठ-पूजा की बात कहूँ – ये समय है आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनायें देने का, लेकिन साथ-साथ मेरे लिये समय और भी है, ख़ासकर के देशवासियों का धन्यवाद करना है, आभार व्यक्त करना है। पिछले कुछ महीनों से, जो घटनायें आकार ले रही हैं, हमारे सुख-चैन के लिये हमारे सेना के जवान अपना सब कुछ लुटा रहे हैं। मेरे भाव-विश्व पर सेना के जवानों की, सुरक्षा बलों के जवानों की, ये त्याग, तपस्या, परिश्रम, मेरे दिल-दिमाग पर छाया हुआ रहता है। और उसी में से एक बात मन में कर गई थी कि यह दिवाली सुरक्षा बलों के नाम पर समर्पित हो। मैंने देशवासियों को ‘Sandesh to Soldiers’ एक अभियान के लिए निमंत्रित किया। लेकिन मैं आज सिर झुका कर के कहना चाहता हूँ, हिंदुस्तान का कोई ऐसा इन्सान नहीं होगा, जिसके दिल में देश के जवानों के प्रति जो अप्रतिम प्यार है, सेना के प्रति गौरव है, सुरक्षा-बलों के प्रति गौरव है। जिस प्रकार से उसकी अभिव्यक्ति हुई है, ये हर देशवासी को ताक़त देने वाली है। सुरक्षा-बल के जवानों को तो हम कल्पना नहीं कर सकते, इतना हौसला बुलंद करने वाला, आपका एक संदेश ताक़त के रूप में प्रकट हुआ है। स्कूल हो, कॉलेज हो, छात्र हो, गाँव हो, ग़रीब हो, व्यापारी हो, दुकानदार हो, राजनेता हो, खिलाड़ी हो, सिने-जगत हो – शायद ही कोई बचा होगा, जिसने देश के जवानों के लिए दिया न जलाया हो, देश के जवानों के लिए संदेश न दिया हो। मीडिया ने भी इस दीपोत्सव को सेना के प्रति आभार व्यक्त करने के अवसर में पलट दिया और क्यों न करें, चाहे BSF हो, CRPF हो, Indo-Tibetan Police हो, Assam Rifles हो, जल-सेना हो, थल-सेना हो, नभ-सेना हो, Coast Guard हो, मैं सब के नाम बोल नहीं पाता हूँ, अनगिनत। ये हमारे जवान किस-किस प्रकार से कष्ट झेलते हैं – हम जब दिवाली मना रहे हैं, कोई रेगिस्तान में खड़ा है, कोई हिमालय की चोटियों पर, कोई उद्योग की रक्षा कर रहा है, तो कोई airport की रक्षा कर रहा है। कितनी-कितनी जिम्मेवारियाँ निभा रहे हैं। हम जब उत्सव के मूड में हों, उसी समय उसको याद करें, तो उस याद में भी एक नई ताक़त आ जाती है। एक संदेश में सामर्थ्य बढ़ जाता है और देश ने कर के दिखाया। मैं सचमुच में देशवासियों का आभार प्रकट करता हूँ। कइयों ने, जिसके पास कला थी, कला के माध्यम से किया। कुछ लोगों ने चित्र बनाए, रंगोली बनाई, cartoon बनाए, जो सरस्वती की जिन पर कृपा थी, उन्होंने कवितायें बनाईं I कइयों ने अच्छे नारे प्रकट किये। ऐसा मुझे लग रहा है, कि जैसे मेरा Narendra Modi App या मेरा My Gov, जैसे उसमें भावनाओं का सागर उमड़ पड़ा है – शब्द के रूप में, पिंछी के रूप में, कलम के रूप में, रंग के रूप में, अनगिनत प्रकार की भावनायें, मैं कल्पना कर सकता हूँ, मेरे देश के जवानों के लिये कितना गर्व का एक पल है। ‘Sandesh to Soldiers’ इस Hashtag पर इतनी सारी चीज़ें-इतनी सारी चीज़ें आई हैं, प्रतीकात्मक रूप में।

मैं श्रीमान अश्विनी कुमार चौहान ने एक कविता भेजी है, उसे पढ़ना पसंद करूँगाI

अश्विनी जी ने लिखा है –

“मैं त्योहार मनाता हूँ, ख़ुश होता हूँ, मुस्कुराता हूँ, मैं त्योहार मनाता हूँ, ख़ुश होता हूँ, मुस्कुराता हूँ, ये सब है, क्योंकि, तुम हो, ये तुमको आज बताता हूँ, मेरी आज़ादी का कारण तुम, ख़ुशियों की सौगात हो, मैं चैन से सोता हूँ, क्योंकि, मैं चैन से सोता हूँ, क्योंकि तुम सरहद पर तैनात हो, शीश झुकाएँ पर्वत अम्बर और भारत का चमन तुम्हें, शीश झुकाएँ पर्वत अम्बर और भारत का चमन तुम्हें, उसी तरह सेनानी मेरा भी है शत-शत नमन तुम्हें, उसी तरह सेनानी मेरा भी है शत-शत नमन तुम्हें ।। ”

मेरे प्यारे देशवासियो, जिसका मायका भी सेना के जवानों से भरा हुआ है और जिसका ससुराल भी सेना के जवानों से भरा हुआ है, ऐसी एक बहन शिवानी ने मुझे एक टेलीफोन message दिया। आइए, हम सुनते हैं, फ़ौजी परिवार क्या कहता है: –

“नमस्कार प्रधानमंत्री जी, मैं शिवानी मोहन बोल रही हूँ। इस दीपावली पर जो ‘Sandesh to Soldiers’ अभियान शुरू किया गया है, उससे हमारे फ़ौजी भाइयों को बहुत ही प्रोत्साहन मिल रहा है। मैं एक Army Family से हूँ। मेरे पति भी Army ऑफिसर हैं। मेरे Father और Father-in-law, दोनों Army Officers रह चुके हैं। तो हमारी तो पूरी family soldiers से भरी हुई है और सीमा पर हमारे कई ऐसे Officers हैं, जिनको इतने अच्छे संदेश मिल रहे हैं और बहुत प्रोत्साहन मिल रहा है Army Circle में सभी को। और मैं कहना चाहूँगी कि Army Officers और Soldiers के साथ उनके परिवार, उनकी पत्नियाँ भी काफ़ी sacrifices करती हैं। तो एक तरह से पूरी Army Community को बहुत अच्छा संदेश मिल रहा है और मैं आपको भी Happy Diwali कहना चाहूँगी। Thank You .”

मेरे प्यारे देशवासियो, ये बात सही है कि सेना के जवान सिर्फ़ सीमा पर नहीं, जीवन के हर मोर्चे पर खड़े हुए पाए जाते हैं। प्राकृतिक आपदा हो, कभी क़ानूनी व्यवस्था के संकट हों, कभी दुश्मनों से भिड़ना हो, कभी ग़लत राह पर चल पड़े नौजवानों को वापिस लाने के लिये साहस दिखाना हो – हमारे जवान ज़िंदगी के हर मोड़ पर राष्ट्र भावना से प्रेरित हो करके काम करते रहते हैं।

एक घटना मेरे ध्यान में लाई गई – मैं भी आपको बताना चाहता हूँI अब मैं इसलिए बताना चाहता हूँ कि सफलता के मूल में कैसी-कैसी बातें एक बहुत बड़ी ताक़त बन जाती हैं। आप ने सुना होगा, हिमाचल प्रदेश खुले में शौच से मुक्त हुआ, Open Defecation Free हुआ। पहले सिक्किम प्रान्त हुआ था, अब हिमाचल भी हुआ, 1 नवम्बर को केरल भी होने जा रहा है। लेकिन ये सफलता क्यों होती है ? कारण मैं बताता हूँ, देखिए, सुरक्षाबलों में हमारा एक ITBP का जवान, श्री विकास ठाकुर – वो मूलतः हिमाचल के सिरमौर ज़िले के एक छोटे से गाँव से हैं। उनके गाँव का नाम है बधाना। ये हिमाचल के सिरमौर ज़िले से हैं। अब ये हमारे ITBP के जवान अपनी ड्यूटी पर से छुट्टियों में गाँव गए थे। तो गाँव में वो उस समय शायद कहीं ग्राम-सभा होने वाली थी, तो वहाँ पहुँच गए और गाँव की सभा में चर्चा हो रही थी, शौचालय बनाने की और पाया गया कि कुछ परिवार पैसों के अभाव में शौचालय नहीं बना पा रहे हैं। ये विकास ठाकुर देशभक्ति से भरा हुआ एक हमारा ITBP का जवान, उसको लगा – नहीं-नहीं, ये कलंक मिटाना चाहिये। और उसकी देशभक्ति देखिए, सिर्फ़ दुश्मनों पर गोलियाँ चलाने के लिये वो देश की सेवा करता है, ऐसा नहीं है। उसने फटाक से अपनी Cheque Book से सत्तावन हज़ार रुपया निकाला और उसने गाँव के पंचायत प्रधान को दे दिया कि जिन 57 घरों में शौचालय नहीं बना है, मेरी तरफ से हर परिवार को एक-एक हज़ार रूपया दे दीजिए, 57 शौचालय बना दीजिए और अपने बधाना गाँव को Open Defecation Free बना दीजिए। विकास ठाकुर ने करके दिखाया। 57 परिवारों को एक-एक हज़ार रूपया अपनी जेब से दे करके स्वच्छता के अभियान को एक ताक़त दी। और तभी तो हिमाचल प्रदेश Open Defecation Free करने की ताक़त आई। वैसा ही केरल में, मैं सचमुच में, नौजवानों का आभार व्यक्त करना चाहता हूँ। मेरे ध्यान में आया, केरल के दूर-सुदूर जंगलों में, जहाँ कोई रास्ता भी नहीं है, पूरे दिन भर पैदल चलने के बाद मुश्किल से उस गाँव पहुँचा जा सकता है, ऐसी एक जनजातीय पंचायत इडमालाकुडी, पहुँचना भी बड़ा मुश्किल है। लोग कभी जाते नहीं। उसके नज़दीक में, शहरी इलाके में, Engineering के छात्रों के ध्यान में आया कि इस गाँव में शौचालय बनाने हैं। NCC के cadet, NSS के लोग, Engineering के छात्र, सबने मिलकर के तय किया कि हम शौचालय बनाएँगे। शौचालय बनाने के लिए जो सामान ले जाना था, ईंटें हो, सीमेंट हो, सारे सामान इन नौजवानों ने अपने कंधे पर उठा करके, पूरा दिन भर पैदल चल के उन जंगलों में गए। खुद ने परिश्रम करके उस गाँव में शौचालय बनाए और इन नौजवानों ने दूर-सुदूर जंगलों में एक छोटे से गाँव को Open Defecation Free किया। उसी का तो कारण है कि केरल Open Defecation Free हो रहा है। गुजरात ने भी, सभी नगरपालिका-महानगरपालिकायें, शायद 150 से ज़्यादा में, Open Defecation Free घोषित किया है। 10 ज़िले भी Open Defecation Free किए गए हैं। हरियाणा से भी ख़ुशख़बरी आई है, हरियाणा भी 1 नवम्बर को उनकी अपनी Golden Jubilee मनाने जा रहा है और उनका फ़ैसला है कि वो कुछ ही महीनों में पूरे राज्य को Open Defecation Free कर देंगे। अभी उन्होंने सात ज़िले पूरे कर दिए हैं। सभी राज्यों में बहुत तेज़ गति से काम चल रहा है। मैंने कुछ का उल्लेख किया है। मैं इन सभी राज्यों के नागरिकों को इस महान कार्य के अन्दर जुड़ने के लिये देश से गन्दगी रूपी अन्धकार मिटाने के काम में योगदान देने के लिये ह्रदय से बहुत-बहुत अभिनन्दन देता हूँ।

मेरे प्यारे देशवासियो, सरकार में योजनायें तो बहुत होती हैं। और पहली योजना के बाद, उसी के अनुरूप दूसरी अच्छी योजना आए, तो पहली योजना छोड़नी होती है। लेकिन आम तौर पर इन चीज़ों पर कोई ध्यान नहीं देता है। पुरानी वाली योजना भी चलती रहती है, नयी वाली भी योजना चलती रहती है और आने वाली योजना का इंतज़ार भी होता रहता है, ये चलता रहता है। हमारे देश में जिन घरों में गैस का चूल्हा हो, जिन घरों में बिजली हो, ऐसे घरों को Kerosene की ज़रुरत नहीं है। लेकिन सरकार में कौन पूछता है, Kerosene भी जा रहा है, गैस भी जा रहा है, बिजली भी जा रही है और फिर बिचौलियों को तो मलाई खाने का मौका मिल जाता है। मैं हरियाणा प्रदेश का अभिनन्दन करना चाहता हूँ कि उन्होंने एक बीड़ा उठाया है। हरियाणा प्रदेश को Kerosene मुक्त करने का। जिन-जिन परिवारों में गैस का चूल्हा है, जिन-जिन परिवारों में बिजली है, ‘आधार’ नंबर से उन्होंने verify किया और अब तक मैंने सुना है कि सात या आठ ज़िले Kerosene free कर दिए, Kerosene मुक्त कर दिए। जिस प्रकार से उन्होंने इस काम को हाथ में लिया है, पूरा राज्य, मुझे विश्वास है कि बहुत ही जल्द Kerosene free हो जायेगा। कितना बड़ा बदलाव आयेगा, चोरी भी रुकेगी, पर्यावरण का भी लाभ होगा, हमारी foreign exchange की भी बचत होगी और लोगों की सुविधा भी बढ़ेगी। हाँ, तकलीफ़ होगी, तो बिचौलियों को होगी, बेईमानों को होगी।

मेरे प्यारे देशवासियो, महात्मा गाँधी हम सब के लिए हमेशा-हमेशा मार्गदर्शक हैं। उनकी हर बात आज भी देश कहाँ जाना चाहिए, कैसे जाना चाहिए, इसके लिये मानक तय करती है। गाँधी जी कहते थे, आप जब भी कोई योजना बनाएँ, तो आप सबसे पहले उस ग़रीब और कमज़ोर का चेहरा याद कीजिए और फिर तय कीजिए कि आप जो करने जा रहे हैं, उससे उस ग़रीब को कोई लाभ होगा कि नहीं होगा। कहीं उसका नुकसान तो नहीं हो जाएगा। इस मानक के आधार पर आप फ़ैसले कीजिए। समय की माँग है कि हमें अब, देश के ग़रीबों का जो aspirations जगा है, उसको address करना ही पड़ेगा। मुसीबतों से मुक्ति मिले, उसके लिए हमें एक-के-बाद एक कदम उठाने ही पड़ेंगे। हमारी पुरानी सोच कुछ भी क्यों न हो, लेकिन समाज को बेटे-बेटी के भेद से मुक्त करना ही होगा। अब स्कूलों में बच्चियों के लिये भी toilet हैं, बच्चों के लिये भी toilet हैं। हमारी बेटियों के लिये भेदभाव-मुक्त भारत की अनुभूति का ये अवसर है।

सरकार की तरफ़ से टीकाकरण तो होता ही है, लेकिन फिर भी लाखों बच्चे टीकाकरण से छूट जाते हैं। बीमारी के शिकार हो जाते हैं। ‘मिशन इन्द्रधनुष’ टीकाकरण का एक ऐसा अभियान, जो छूट गए हुए बच्चों को भी समेटने के लिए लगा है, जो बच्चों को गंभीर रोगों से मुक्ति के लिए ताक़त देता है। 21वीं सदी हो और गाँव में अँधेरा हो, अब नहीं चल सकता और इसलिये गाँवों को अंधकार से मुक्त करने के लिये, गाँव बिजली पहुँचाने का बड़ा अभियान सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहा है। समय सीमा में आगे बढ़ रहा है। आज़ादी के इतने सालों के बाद, गरीब माँ, लकड़ी के चूल्हे पर खाना पका करके दिन में 400 सिगरेट का धुआं अपने शरीर में ले जाए, उसके स्वास्थ्य का क्या होगा। कोशिश है 5 करोड़ परिवारों को धुयें से मुक्त ज़िंदगी देने के लिये। सफलता की ओर आगे बढ़ रहे हैं।

छोटा व्यापारी, छोटा कारोबारी, सब्जी बेचनेवाला, दूध बेचनेवाला, नाई की दुकान चलानेवाला, साहूकारों के ब्याज के चक्कर में ऐसा फँसा रहता था – ऐसा फँसा रहता था। मुद्रा योजना, stand up योजना, जन-धन account, ये ब्याजखोरों से मुक्ति का एक सफल अभियान है। ‘आधार’ के द्वारा बैंकों में सीधे पैसे जमा कराना। हक़दार को, लाभार्थी को सीधे पैसे मिलें। सामान्य मानव के ज़िंदगी में ये बिचौलियों से मुक्ति का अवसर है। एक ऐसा अभियान चलाना है, जिसमें सिर्फ़ सुधार और परिवर्तन नहीं, समस्या से मुक्ति तक का मार्ग पक्का करना है और हो रहा है।

मेरे प्यारे देशवासियो, कल 31 अक्टूबर, इस देश के महापुरुष – भारत की एकता को ही जिन्होंने अपने जीवन का मंत्र बनाया, जी के दिखाया – ऐसे सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म-जयंती का पर्व है। 31 अक्टूबर, एक तरफ़ सरदार साहब की जयंती का पर्व है, देश की एकता का जीता-जागता महापुरुष, तो दूसरी तरफ़, श्रीमती गाँधी की पुण्यतिथि भी है। महापुरुषों को पुण्य स्मरण तो हम करते ही हैं, करना भी चाहिए। लेकिन पंजाब के एक सज्जन का फ़ोन, उनकी पीड़ा, मुझे भी छू गई: –

“प्रधानमंत्री जी, नमस्कार, सर, मैं जसदीप बोल रहा हूँ पंजाब से। सर, जैसा कि आप जानते हैं कि 31 तारीख़ को सरदार पटेल जी का जनमदिन है। सरदार पटेल ओ शख्सियत हैं, जिनाने अपनी सारी ज़िंदगी देश नु जोड़न दी बिता दित्ती and ओ उस मुहिम विच, I think, सफ़ल भी होये, he brought everybody together. और we call it irony or we call it, एक बुरी किस्मत कहें देश की कि उसी दिन इंदिरा गाँधी जी की हत्या भी हो गई। and जैसा हम सबको पता है कि उनकी हत्या के बाद देश में कैसे events हुए। सर, मैं ये कहना चाहता था कि हम ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण जो events होते हैं, जो घटनायें होती हैं, इनको कैसे रोक सकते हैं। ”

मेरे प्यारे देशवासियो, ये पीड़ा एक व्यक्ति की नहीं है। एक सरदार, सरदार वल्लभ भाई पटेल, इतिहास इस बात का गवाह है कि चाणक्य के बाद, देश को एक करने का भगीरथ काम, सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया। आज़ाद हिंदुस्तान को, एक झंडे के नीचे लाने का सफल प्रयास, इतना बड़ा भगीरथ काम जिस महापुरुष ने किया, उस महापुरुष को शत-शत नमन। लेकिन यह भी तो पीड़ा है कि सरदार साहब एकता के लिए जिए, एकता के लिए जूझते रहे; एकता की उनकी प्राथमिकता के कारण, कइयों की नाराज़गी के शिकार भी रहे, लेकिन एकता के मार्ग को कभी छोड़ा नहीं; लेकिन, उसी सरदार की जन्म-जयंती पर हज़ारों सरदारों को, हज़ारो सरदारों के परिवारों को श्रीमती गाँधी की हत्या के बाद मौत के घाट उतार दिया गया । एकता के लिये जीवन-भर जीने वाले उस महापुरुष के जन्मदिन पर ही और सरदार के ही जन्मदिन पर सरदारों के साथ ज़ुल्म, इतिहास का एक पन्ना, हम सब को पीड़ा देता है ।

लेकिन, इन संकटों के बीच में भी, एकता के मंत्र को ले करके आगे बढ़ना है। विविधता में एकता यही देश की ताक़त है। भाषायें अनेक हों, जातियाँ अनेक हों, पहनावे अनेक हों, खान-पान अनेक हों, लेकिन अनेकता में एकता, ये भारत की ताक़त है, भारत की विशेषता है। हर पीढ़ी का एक दायित्व है। हर सरकारों की ज़िम्मेवारी है कि हम देश के हर कोने में एकता के अवसर खोजें, एकता के तत्व को उभारें। बिखराव वाली सोच, बिखराव वाली प्रवृत्ति से हम भी बचें, देश को भी बचाएँ। सरदार साहब ने हमें एक भारत दिया, हम सब का दायित्व है श्रेष्ठ भारत बनाना। एकता का मूल-मंत्र ही श्रेष्ठ भारत की मज़बूत नींव बनाता है।

सरदार साहब की जीवन यात्रा का प्रारम्भ किसानों के संघर्ष से हुआ था। किसान के बेटे थे। आज़ादी के आंदोलन को किसानों तक पहुँचाने में सरदार साहब की बहुत बड़ी अहम भूमिका रही। आज़ादी के आंदोलन को गाँव में ताक़त का रूप बनाना सरदार साहब का सफल प्रयास था। उनके संगठन शक्ति और कौशल्य का परिणाम था। लेकिन सरदार साहब सिर्फ संघर्ष के व्यक्ति थे, ऐसा नहीं, वह संरचना के भी व्यक्ति थे। आज कभी-कभी हम बहुत लोग ‘अमूल’ का नाम सुनते हैं। ‘अमूल’ के हर product से आज हिंदुस्तान और हिंदुस्तान के बाहर भी लोग परिचित हैं। लेकिन बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि सरदार साहब की दिव्यदृष्टि थी कि उन्होंने co-operative milk producers के union की कल्पना की थी। और खेड़ा district, उस समय केरा district बोला जाता था, और 1942 में इस विचार को उन्होंने बल दिया था, वो साकार रूप, आज का ‘अमूल’ किसानों के सुख-समृद्धि की संरचना सरदार साहब ने कैसे की थी, उसका एक जीता-जागता उदाहरण हमारे सामने है। मैं सरदार साहब को आदरपूर्वक अंजलि देता हूँ और इस एकता दिवस पर 31 अक्टूबर को हम जहाँ हों, सरदार साहब को स्मरण करें, एकता का संकल्प करें।

मेरे प्यारे देशवासियो, इन दीवाली की श्रृंखला में कार्तिक पूर्णिमा – ये प्रकाश उत्सव का भी पर्व है। गुरु नानक देव, उनकी शिक्षा-दीक्षा पूरी मानव-जाति के लिये, न सिर्फ़ हिंदुस्तान के लिये, पूरी मानव-जाति के लिए, आज भी दिशादर्शक है। सेवा, सच्चाई और ‘सरबत दा भला’, यही तो गुरु नानक देव का संदेश था। शांति, एकता और सद्भावना यही तो मूल-मंत्र था। भेदभाव हो, अंधविश्वास हो, कुरीतियाँ हों, उससे समाज को मुक्ति दिलाने का वो अभियान ही तो था गुरु नानक देव की हर बात में। जब हमारे यहाँ स्पृश्य-अस्पृश्य, जाति-प्रथा, ऊँच-नीच, इसकी विकृति की चरम सीमा पर थी, तब गुरु नानक देव ने भाई लालो को अपना सहयोगी चुना। आइए, हम भी, गुरु नानक देव ने जो हमें ज्ञान का प्रकाश दिया है, जो हमें भेदभाव छोड़ने के लिए प्रेरणा देता है, भेदभाव के ख़िलाफ़ कुछ करने के लिए आदेश करता है, ‘सबका साथ सबका विकास’ इसी मंत्र को ले करके अगर आगे चलना है, तो गुरु नानक देव से बढ़िया हमारा मार्गदर्शक कौन हो सकता है। मैं गुरु नानक देव को भी, इस ‘प्रकाश-उत्सव’ आ रहा है, तब अन्तर्मन से प्रणाम करता हूँ।

मेरे प्यारे देशवासियो, फिर एक बार, देश के जवानों के नाम ये दिवाली, इस दिवाली पर आपको भी बहुत-बहुत शुभकामनायें। आपके सपने, आपके संकल्प हर प्रकार से सफल हों। आपका जीवन सुख-चैन की ज़िंदगी वाला बने, यही आप सबको शुभकामनायें देता हूँ। बहुत-बहुत धन्यवाद।

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम के 22वें एपिसोड में रविवार को देशवासियों को संबोधित किया. प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में रियो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने जा रहे खिलाड़ियों के मनोबल को बढ़ाते हुए देशवासियों से भी ऐसा करने की बात कही. उन्होंने देश वासियों से खिलाडियों को उनके माध्यम से शुभकामना देने की बात कही. उन्होंने कहा कि आप मुझे ‘NarendraModi App’ पर खिलाड़ियों के नाम शुभकामनाएं भेजिए, मैं आपकी शुभकामनाएं उन तक पहुंचाऊंगा.

प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार ने ‘प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व’ अभियान शुरू किया है. इस अभियान के तहत हर महीने की 9 तारीख को सभी गर्भवती महिलाओं की सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों में निशुल्क जांच की जाएगी.

यहाँ पढ़े पूरा ‘मन की बात’
मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार,

आज सुबह-सुबह मुझे दिल्ली के नौजवानों के साथ कुछ पल बिताने का अवसर मिला और मैं मानता हूँ कि आने वाले दिनों में पूरे देश में खेल का रंग हर नौजवान को उत्साह-उमंग के रंग से रंग देगा। हम सब जानते हैं कि कुछ ही दिनों में विश्व का सबसे बड़ा खेलों का महाकुम्भ होने जा रहा है। Rio हमारे कानों में बार-बार गूँजने वाला है। सारी दुनिया खेलती होगी, दुनिया का हर देश अपने खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर बारीकी से नज़र रखता होगा, आप भी रखेंगे। हमारी आशा-अपेक्षायें तो बहुत होती हैं, लेकिन Rio में जो खेलने के लिये गए हैं, उन खिलाड़ियों को, उनका हौसला बुलंद करने का काम भी सवा-सौ करोड़ देशवासियों का है। आज दिल्ली में भारत सरकार ने ‘Run for Rio’, ‘खेलो और जिओ’, ‘खेलो और खिलो’ – एक बड़ा अच्छा आयोजन किया। हम भी आने वाले दिनों में, जहाँ भी हों, हमारे खिलाड़ियों को प्रोत्साहन के लिये कुछ-न-कुछ करें। यहाँ तक जो खिलाड़ी पहुँचता है, वो बड़ी कड़ी मेहनत के बाद पहुंचता है। एक प्रकार की कठोर तपस्या करता है। खाने का कितना ही शौक क्यों न हो, सब कुछ छोड़ना पड़ता है। ठण्ड में नींद लेने का इरादा हो, तब भी बिस्तर छोड़ करके मैदान में भागना पड़ता है और न सिर्फ़ खिलाड़ी, उनके माँ-बाप भी, उतने ही मनोयोग से अपने बालकों के पीछे शक्ति खपाते हैं। खिलाड़ी रातों-रात नहीं बनते। एक बहुत बड़ी तपस्या के बाद बनते हैं। जीत और हार उतने महत्वपूर्ण हैं, लेकिन साथ-साथ इस खेल तक पहुँचना, वो भी उससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है और इसीलिए हम सभी देशवासी Rio Olympic के लिए गए हुए हमारे सभी खिलाड़ियों को शुभकामनायें दें। आपकी तरफ़ से ये काम मैं भी करने के लिए तैयार हूँ। इन खिलाड़ियों को आपका सन्देश पहुँचाने के लिए देश का प्रधानमंत्री postman बनने को तैयार है।

आप मुझे ‘NarendraModi App’ पर खिलाड़ियों के नाम शुभकामनायें भेजिए, मैं आपकी शुभकामनायें उन तक पहुँचाऊंगा। मैं भी सवा-सौ करोड़ देशवासियों की तरह एक देशवासी, एक नागरिक के नाते हमारे इन खिलाड़ियों की हौसला अफज़ाई के लिए आपके साथ रहूँगा। आइये, हम सब आने वाले दिनों में एक-एक खिलाड़ी को जितना गौरवान्वित कर सकते हैं, उसके प्रयासों को पुरस्कृत कर सकते हैं, करें और आज जब मैं Rio Olympic की बात कर रहा हूँ, तो एक कविता प्रेमी – पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय के विद्यार्थी सूरज प्रकाश उपाध्याय – उन्होंने एक कविता भेजी है। हो सकता है, और भी बहुत कवि होंगे, जिन्होंने कवितायें लिखी होंगी, शायद कवितायें लिखेंगे भी, कुछ लोग तो उसको स्वरबद्ध भी करेंगे, हर भाषा में करेंगे, लेकिन मुझे सूरज जी ने जो कविता भेजी है, मैं आपसे share करना चाहता हूँ: –

“शुरू हुई ललकार खेलों की,

शुरू हुई ललकार खेलों की, प्रतियोगिताओं के बहार की,

खेलों के इस महाकुम्भ में, Rio की रुम-झुम में,

खेलों के इस महाकुम्भ में, Rio की रुम-झुम में,

भारत की ऐसी शुरुआत हो,

भारत की ऐसी शुरुआत हो, सोने, चाँदी और काँसे की बरसात हो,

भारत की ऐसी शुरुआत हो, सोने, चाँदी और काँसे की बरसात हो,

अब हमारी भी बारी हो, ऐसी अपनी तैयारी हो,

हो निशाना सोने पे,

हो निशाना सोने पे, न हो निराश तुम खोने पे,

न हो निराश तुम खोने पे ||

करोड़ों दिलों की शान हो, अपने खेलों की जान हो,

करोड़ों दिलों की शान हो, अपने खेलों की जान हो,

ऐसे कीर्तिमान बनाओ, Rio में ध्वज लहराओ,

Rio में ध्वज लहराओ ||”
सूरज जी, आपके भावों को मैं इन सभी खिलाड़ियों को अर्पित करता हूँ और मेरी तरफ़ से, सवा-सौ करोड़ देशवासियों की तरफ़ से Rio में हिन्दुस्तान का झंडा फहराने के लिए बहुत-बहुत शुभकामनायें देता हूँ।

एक नौजवान कोई श्रीमान अंकित करके हैं, उन्होंने मुझे राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी की पुण्यतिथि का स्मरण करवाया है। गत सप्ताह अब्दुल कलाम जी की पुण्यतिथि पर देश और दुनिया ने श्रद्धांजलि दी, लेकिन जब भी अब्दुल कलाम जी का नाम आता है, तो science, technology, missile – एक भावी भारत के सामर्थ्य का चित्र हमारी आँखों के सामने अंकित हो जाता है और इसीलिए अंकित ने भी लिखा है कि आपकी सरकार अब्दुल कलाम जी के सपनों को साकार करने के लिए क्या कर रही है ? आपकी बात सही है। आने वाला युग technology driven है और technology सबसे ज़्यादा चंचल है। आये दिन technology बदलती है, आये दिन नया रूप धारण करती है, आये दिन नया प्रभाव पैदा करती है, वो बदलती रहती है। आप technology को पकड़ नहीं सकते, आप पकड़ने जाओगे, तब तक तो कहीं दूर नये रूप-रंग के साथ सज जाती है और उसको अगर हमने क़दम मिलाने हैं और उससे आगे निकलना है, तो हमारे लिए भी research और innovation – ये technology के प्राण हैं। अगर research और innovation नहीं होंगे, तो जैसे ठहरा हुआ पानी गंदगी फैलाता है, technology भी बोझ बन जाती है। और अगर हम research और innovation के बिना पुरानी technology के भरोसे जीते रहेंगे, तो हम दुनिया में, बदलते हुए युग में कालबाह्य हो जाएँगे और इसलिए नयी पीढ़ी में विज्ञान के प्रति आकर्षण, technology के प्रति research और innovation और इसी के लिए सरकार ने भी कई क़दम उठाए हैं। और इसलिए तो मैं कहता हूँ – let us aim to innovate और जब मैं let us aim to innovate कहता हूँ, तो मेरा AIM का मतलब है ‘Atal Innovation Mission’। नीति आयोग के द्वारा ‘Atal Innovation Mission’ को बढ़ावा दिया जा रहा है। एक इरादा है कि इस AIM के द्वारा, ‘Atal Innovation Mission’ के द्वारा पूरे देश में एक eco-system तैयार हो, innovation, experiment, entrepreneurship, ये एक सिलसिला चले और उससे नये रोज़गार की सम्भावनायें भी बढ़ने वाली हैं। हमने next generation innovators अगर तैयार करने हैं, तो हमारे बालकों को उसके साथ जोड़ना पड़ेगा और इसलिए भारत सरकार ने एक ‘Atal Tinkering Labs’ का initiative लिया है। जहाँ-जहाँ भी स्कूलों में ऐसी Tinkering Lab establish होंगी, उनको 10 लाख रुपये दिए जाएँगे और पाँच वर्ष दौरान रख-रखाव के लिये भी 10 लाख रुपये दिए जाएँगे। उसी प्रकार से, innovation के साथ सीधा-सीधा संबंध आता है Incubation Centre का। हमारे पास सशक्त और समृद्ध अगर Incubation Centre हैं, तो innovation के लिये, start ups के लिये, प्रयोग करने के लिये, उसको एक स्थिति पर लाने तक के लिये एक व्यवस्था मिलती है। नये Incubation Centre का निर्माण भी आवश्यक है और पुराने Incubation Centre को ताक़त देने की भी आवश्यकता है। और जो मैं Atal Incubation Centre की बात करता हूँ, उसके लिये भी 10 करोड़ रुपये जैसी बहुत बड़ी रकम देने की दिशा में सरकार ने सोचा है। उसी प्रकार से भारत अनेक समस्याओं से जूझ रहा है। रोज़मर्रा की ज़िंदगी में हमें समस्याएँ नज़र आती हैं। अब हमें technological solution ढूँढ़ने पड़ेंगे। हमने एक ‘Atal Grand Challenges’ देश की युवा पीढ़ी को आह्वान किया है कि आपको समस्या नज़र आती है, समाधान के लिए technology के रास्ते खोजिए, research कीजिये, innovation कीजिये और ले आइए। भारत सरकार हमारी समस्याओं के समाधान के लिये खोजी गयी technology को विशेष पुरस्कार देकर के बढ़ावा देना चाहती है। और मुझे खुशी है कि इन बातों में लोगों की रूचि है कि जब हमने Tinkering Lab की बात कही, क़रीब तेरह हज़ार से अधिक स्कूलों ने आवेदन किया और जब हमने Incubation Centre की बात की, academic और non-academic 4 हज़ार से ज़्यादा institutions Incubation Centre के लिए आगे आए। मुझे विश्वास है कि अब्दुल कलाम जी को सच्ची श्रद्धांजलि – research, innovation, हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी की समस्याओं के समाधान के लिए technology, हमारी कठिनाइयों से मुक्ति के लिए सरलीकरण – उस पर हमारी नयी पीढ़ी जितना काम करेगी, उनका योगदान 21वीं सदी के आधुनिक भारत के लिए अहम होगा और वही अब्दुल कलाम जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

मेरे प्यारे देशवासियो, कुछ समय पहले हम लोग अकाल की चिंता कर रहे थे और इन दिनों वर्षा का आनंद भी आ रहा है, तो बाढ़ की ख़बरें भी आ रही हैं। राज्य सरकार और केंद्र सरकार मिल कर के बाढ़-पीड़ितों की सहायता करने के लिये कंधे से कंधा मिला कर के भरपूर प्रयास कर रही हैं। वर्षा के कारण कुछ कठिनाइयाँ होने के बावज़ूद भी हर मन, हर मानवीय मन पुलकित हो जाता है, क्योंकि हमारी पूरी आर्थिक गतिविधि के केंद्र-बिंदु में वर्षा होती है, खेती होती है।

कभी-कभी ऐसी बीमारी आ जाती है कि हमें जीवन भर पछतावा रहता है। लेकिन अगर हम जागरूक रहें, सतर्क रहें, प्रयत्नरत रहें, तो इससे बचने के रास्ते भी बड़े आसान हैं। Dengue ही ले लीजिए। Dengue से बचा जा सकता है। थोड़ा स्वच्छता पर ध्यान रहे, थोड़े सतर्क रहें और सुरक्षित रहने का प्रयास करें, बच्चों पर विशेष ध्यान दें और ये जो सोच है न कि ग़रीब बस्ती में ही ऐसी बीमारी आती है, Dengue का case ऐसा नहीं है। Dengue सुखी-समृद्ध इलाके में सबसे पहले आता है और इसलिए इसे हम समझें। आप TV पर advertisement देखते ही होंगे, लेकिन कभी-कभी हम उस पर जागरूक action के संबंध में थोड़े उदासीन रहते हैं। सरकार, अस्पताल, डॉक्टर – वो तो अपना काम करेंगे ही, लेकिन हम भी, अपने घर में, अपने इलाक़े में, अपने परिवार में Dengue न प्रवेश करे और पानी के कारण होने वाली कोई बीमारी न आए, इसके लिए सतर्क रहें, यही मैं आपसे प्रार्थना करूँगा।

एक और मुसीबत की ओर मैं, प्यारे देशवासियो, आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। ज़िंदगी इतनी आपा-धापी वाली बन गई है, इतनी दौड़-धूप वाली बन गई है कि कभी-कभी हमें अपने लिये सोचने का समय नहीं होता है। बीमार हो गए, तो मन करता है, जल्दी से ठीक हो जाओ और इसलिए कोई भी antibiotic लेकर के डाल देते हैं शरीर में। तत्काल तो बीमारी से मुक्ति मिल जाती है, लेकिन मेरे प्यारे देशवासियो, ये रास्ते चलते-फिरते antibiotic लेने की आदतें बहुत गंभीर संकट पैदा कर सकती हैं। हो सकता है, आपको तो कुछ पल के लिए राहत मिल जाए, लेकिन डॉक्टरों की सलाह के बिना हम antibiotic लेना बंद करें। डॉक्टर जब तक लिख करके नहीं देते हैं, हम उससे बचें, हम ये short-cut के माध्यम से न चलें, क्योंकि इससे एक नई कठिनाइयाँ पैदा हो रही हैं, क्योंकि अनाप-शनाप antibiotic उपयोग करने के कारण patient को तो तत्कालीन लाभ हो जाता है, लेकिन इसके जो जीवाणु हैं, वे इन दवाइयों के आदी बन जाते हैं और फिर दवाइयाँ इन जीवाणुओं के लिए बेकार साबित हो जाती हैं और फिर इस लड़ाई को लड़ना, नई दवाइयाँ बनाना, वैज्ञानिक शोध करना, सालों बीत जाते हैं और तब तक ये बीमारियाँ नई मुसीबतें पैदा कर देती हैं और इसलिये इस पर जागरूक रहने की ज़रूरत है। एक और मुसीबत आई है कि डॉक्टर ने कहा हो कि भाई, ये antibiotic लीजिए और उसने कहा कि भाई, 15 गोली लेनी है, पाँच दिन में लेनी है; मैं आपसे आग्रह करता हूँ कि डॉक्टर ने जितने दिन लेने के लिये कहा है, course पूरा कीजिए; आधा-अधूरा छोड़ दिया, तो भी वो जीवाणु के फ़ायदे में जाएगा, आवश्यकता से अधिक ले लिया, तो भी जीवाणु के फ़ायदे में जाएगा और इसलिये जितने दिन का, जितनी गोली का course तय हुआ हो, उसको पूरा करना भी उतना ही ज़रूरी है; तबीयत ठीक हो गई, इसलिये अब ज़रूरत नहीं है, ये अगर हमने किया, तो वो जीवाणु के फ़ायदे में चला जाता है और जीवाणु ताक़तवर बन जाता है। जो जीवाणु TB और Malaria फैलाते हैं, वो तेज़ गति से अपने अन्दर ऐसे बदलाव ला रहे हैं कि दवाइयों का कोई असर ही नहीं होता है। medical भाषा में इसे antibiotic resistance कहते हैं और इसलिए antibiotic का कैसे उपयोग हो, इसके नियमों का पालन भी उतना ही ज़रूरी है। सरकार antibiotic resistance को रोकने के लिए प्रतिबद्ध है और आपने देखा होगा, इन दिनों antibiotic की जो दवाइयाँ बिकती हैं, उसका जो पत्ता रहता है, उसके ऊपर एक लाल लकीर से आपको सचेत किया जाता है, आप उस पर ज़रूर ध्यान दीजिए।

जब health की ही बात निकली है, तो मैं एक बात और भी जोड़ना चाहता हूँ। हमारे देश में गर्भावस्था में जो मातायें हैं, उनके जीवन की चिंता कभी-कभी बहुत सताती है। हमारे देश में हर वर्ष लगभग 3 करोड़ महिलायें गर्भावस्था धारण करती हैं, लेकिन कुछ मातायें प्रसूति के समय मरती हैं, कभी माँ मरती है, कभी बालक मरता है, कभी बालक और माँ दोनों मरते हैं। ये ठीक है कि पिछले एक दशक में माता की असमय मृत्यु की दर में कमी तो आई है, लेकिन फिर भी आज भी बहुत बड़ी मात्रा में गर्भवती माताओं का जीवन नहीं बचा पाते हैं। गर्भावस्था के दौरान या बाद में खून की कमी, प्रसव संबंधी संक्रमण, high BP – न जाने कौन सी तकलीफ़ कब उसकी ज़िंदगी को तबाह कर दे। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने पिछले कुछ महीनों से एक नया अभियान शुरू किया है – ‘प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान’। इस अभियान के तहत हर महीने की 9 तारीख को सभी गर्भवती महिलाओं की सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों में निशुल्क जाँच की जायेगी। एक भी पैसे के ख़र्च के बिना सरकारी अस्पतालों में हर महीने की 9 तारीख़ को काम किया जाएगा। मैं हर ग़रीब परिवारों से आग्रह करूँगा कि सभी गर्भवती मातायें 9 तारीख़ को इस सेवा का लाभ उठाएँ, ताकि 9वें महीने तक पहुँचते-पहुँचते अगर कोई तकलीफ़ हो, तो पहले से ही उसका उपाय किया जा सके। माँ और बालक – दोनों की ज़िन्दगी बचाई जा सके और मैंने तो Gynecologist को ख़ास कि क्या आप महीने में एक दिन 9 तारीख़ को ग़रीब माताओं के लिए मुफ़्त में ये सेवा नहीं दे सकते हैं। क्या मेरे डॉक्टर भाई-बहन एक साल में बारह दिन गरीबों के लिये इस काम के लिये नहीं लगा सकते हैं ? पिछले दिनों मुझे कइयों ने चिठ्ठियाँ लिखी हैं। हज़ारों ऐसे डॉक्टर हैं, जिन्होंने मेरी बात को मान कर के आगे बढ़ाया है, लेकिन भारत इतना बड़ा देश है, लाखों डॉक्टरों ने इस अभियान में जुड़ना चाहिये। मुझे विश्वास है, आप ज़रूर जुड़ेंगे।

मेरे प्यारे देशवासियो, आज पूरा विश्व – climate change, global warming, पर्यावरण – इसकी बड़ी चिंता करता है। देश और दुनिया में सामूहिक रूप से इसकी चर्चा होती है। भारत में सदियों से इन बातों पर बल दिया गया है। कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में भी भगवान कृष्ण वृक्ष की चर्चा करते हैं, युद्ध के मैदान में भी वृक्ष की चर्चा चिंता करना मतलब कि इसका माहात्म्य कितना होगा, हम अंदाज़ कर सकते हैं। गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं – ‘अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणां’ अर्थात् सभी वृक्षों में मैं पीपल हूँ। शुक्राचार्य नीति में कहा गया है – ‘नास्ति मूलं अनौषधं’ – ऐसी कोई वनस्पति नहीं है, जिसमें कोई औषधीय गुण न हो। महाभारत का अनुशासन पर्व – उसमें तो बड़ी विस्तार से चर्चा की है और महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है – ‘जो वृक्ष लगाता है, उसके लिए ये वृक्ष संतान रूप होता है, इसमें संशय नहीं है। जो वृक्ष का दान करता है, उसको वह वृक्ष संतान की भाँति परलोक में भी तार देते हैंI’ इसलिये अपने कल्याण की इच्छा रखने वाले माता-पिता अच्छे वृक्ष लगाएँ और उनका संतानों के समान पालन करें। हमारे शास्त्र -गीता हो, शुक्राचार्य नीति हो, महाभारत का अनुशासन पर्व हो – लेकिन आज की पीढ़ी में भी कुछ लोग होते हैं, जो इन आदर्शों को जी कर के दिखाते हैं। कुछ दिन पहले मैंने, पुणे की एक बेटी सोनल का एक उदाहरण मेरे ध्यान में आया, वो मेरे मन को छू गया। महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा है न कि वृक्ष परलोक में भी संतान की ज़िम्मेवारी पूरी करता है। सोनल ने सिर्फ़ अपने माता-पिता की नहीं, समाज की इच्छाओं को पूर्ण करने का जैसे बीड़ा उठाया है। महाराष्ट्र में पुणे के जुन्नर तालुका में नारायणपुर गाँव के किसान खंडू मारुती महात्रे, उन्होंने अपनी पोती सोनल की शादी एक बड़े प्रेरक ढंग से की। महात्रे जी ने क्या किया, सोनल की शादी में जितने भी रिश्तेदार, दोस्त, मेहमान आए थे, उन सब को ‘केसर आम’ का एक पौधा भेंट किया, उपहार के रूप में दिया और जब मैंने social media में उसकी तस्वीर देखी, तो मैं हैरान था कि शादी में बराती नहीं दिख रहे थे, पौधे ही पौधे नज़र आ रहे थे। मन को छूने वाला ऐसा दृश्य उस तस्वीर में था। सोनल जो स्वयं एक agriculture graduate है, ये idea उसी को आया और शादी में आम के पौधे भेंट देना, देखिए, प्रकृति का प्रेम कितना उत्तम तरीके से प्रकट हुआ। एक प्रकार से सोनल की शादी प्रकृति प्रेम की अमर गाथा बन गई। मैं सोनल को और श्रीमान महात्रे जी को इस अभिनव प्रयास के लिए बहुत-बहुत शुभकामनायें देता हूँ। और ऐसे प्रयोग बहुत लोग करते हैं। मुझे स्मरण है, मैं जब गुजरात मैं मुख्यमंत्री था, तो वहाँ अम्बा जी के मंदिर में भाद्र महीने में बहुत बड़ी मात्रा में पदयात्री आते हैं, तो एक बार एक समाजसेवी संगठन ने तय किया कि मंदिर में जो आएँगे, उनको प्रसाद में पौधा देंगे और उनको कहेंगे कि देखिए, ये माता जी का प्रसाद है, इस पौधे को अपने गाँव-घर जाकर के ये बड़ा बने, माता आपको आशीर्वाद देती रहेगी, इसकी चिंता कीजिये। और लाखों पदयात्री आते थे और लाखों पौधे बाँटे थे उस वर्ष मंदिर भी इस वर्षा ऋतु में प्रसाद के बदले में पौधे देने की परंपरा प्रारम्भ कर सकते हैं। एक सहज जन-आन्दोलन बन सकता है वृक्षारोपण का। मैं किसान भाइयों को तो बार-बार कहता हूँ कि हमारे खेतों के किनारे पर जो हम बाड़ लगा करके हमारी जमीन बर्बाद करते हैं, क्यों न हम उस बाड़ की जगह पर टिम्बर की खेती करें। आज भारत को घर बनाने के लिए, furniture बनाने के लिये, अरबों-खरबों का टिम्बर विदेशों से लाना पड़ता है। अगर हम हमारे खेत के किनारे पर ऐसे वृक्ष लगा दें, जो furniture और घर काम में आएँ, तो पंद्रह-बीस साल के बाद सरकार की permission से उसको काट करके बेच भी सकते हैं आप और वो आपके आय का एक नया साधन भी बन सकता है और भारत को टिम्बर import करने से बच भी सकते हैं। पिछले दिनों कई राज्यों ने इस मौसम का उपयोग करते हुए काफ़ी अभियान चलाए हैं, भारत सरकार ने भी एक ‘CAMPA’ कानून अभी-अभी पारित किया, इसके कारण वृक्षारोपण के लिए करीब चालीस हजार करोड़ से भी ज्यादा राज्यों के पास जाने वाले हैं। मुझे बताया गया है कि महाराष्ट्र सरकार ने एक जुलाई को पूरे राज्य में करीब सवा-दो करोड़ पौधे लगाये हैं और अगले साल उन्होंने तीन करोड़ पौधे लगाने का संकल्प किया है। सरकार ने एक जन-आन्दोलन खड़ा कर दिया। राजस्थान, मरू-भूमि – इतना बड़ा वन-महोत्सव किया और पच्चीस लाख पौधे लगाने का संकल्प किया है। राजस्थान में पच्चीस लाख पौधे छोटी बात नहीं हैं। जो राजस्थान की धरती को जानते हैं, उनको मालूम है कि कितना बड़ा बीड़ा उठाया है। आंध्र प्रदेश ने भी Twenty Twenty-Nine (2029) तक अपना green cover fifty percent बढ़ाने का फ़ैसला किया है। केंद्र सरकार ने जो ‘Green India Mission’ चल रहा है, इसके तहत रेलवे ने इस काम को उठाया है। गुजरात में भी वन महोत्सव की एक बहुत बड़ी उज्जवल परंपरा है। इस वर्ष गुजरात ने आम्र वन, एकता वन, शहीद वन – ऐसे अनेक प्रकल्पों को वन महोत्सव के रूप में उठाया है और करोड़ों वृक्ष लगाने का अभियान चलाया है। मैं सभी राज्यों का उल्लेख नहीं कर पा रहा हूँ, लेकिन बधाई के पात्र हैं।

मेरे प्यारे देशवासियो, पिछले दिनों मुझे South Africa जाने का अवसर मिला। ये मेरी पहली यात्रा थी और जब विदेश यात्रा है, तो diplomacy होती है, trade की बातें होती हैं, सुरक्षा के संबंध में चर्चायें होती हैं, कई MoU होते हैं – ये तो सब होना ही है। लेकिन मेरे लिये South Africa की यात्रा एक प्रकार से तीर्थ यात्रा थी। जब South Africa को याद करते हैं, तो महात्मा गाँधी और Nelson Mandela की याद आना बहुत स्वाभाविक है। दुनिया में अहिंसा, प्रेम, क्षमा – ये शब्द जब कान पर पड़ते हैं, तो गाँधी और Mandela – इनके चेहरे हमारे सामने दिखाई देते हैं। मेरे South Africa के tour के दरम्यिान मैं Phoenix Settlement गया था, महात्मा गाँधी का निवास स्थान सर्वोदय के रूप में जाना जाता है। मुझे – महात्मा गाँधी ने जिस train में सफ़र किया था और जिस train की घटना ने एक मोहनदास को महात्मा गाँधी बनाने का बीजारोपण किया था, वो Pietermaritzburg Station – उस रेल यात्रा का भी मुझे सद्भाग्य प्राप्त हुआ। लेकिन मैं जो बात बताना चाहता हूँ, मुझे इस बार ऐसे महानुभावों से मिलने का अवसर मिला, जिन्होंने समानता के लिये, समान अवसर के लिये, अपनी जवानी समाज के लिये खपा दी थी। Nelson Mandela के साथ कंधे से कंधा मिला करके वो लड़ाई लड़े थे, बीस-बीस, बाइस-बाइस साल तक जेलों में Nelson Mandela के साथ जिन्दगी गुज़ारी थी। एक प्रकार से पूरी जवानी उन्होंने आहुत कर दी थी और Nelson Mandela के करीब साथी श्रीमान अहमद कथाड़ा (Ahmed Kathrada), श्रीमान लालू चीबा (Laloo Chiba), श्रीमान जॉर्ज बेज़ोस (George Bizos), रोनी कासरिल्स (Ronnie Kasrils) – इन महानुभावों के दर्शन करने का मुझे सौभाग्य मिला। मूल भारतीय, लेकिन जहाँ गए, वहाँ के हो गए। जिनके बीच जीते थे, उनके लिये जान लगाने के लिये तैयार हो गए। कितनी बड़ी ताकत, और मज़ा ये था, जब मैं उनसे बातें कर रहा था, उनके जेल के अनुभव सुन रहा था, किसी के प्रति कोई कटुता नहीं थी, द्वेष नहीं था। उनके चेहरे पर, इतनी बड़ी तपस्या करने के बाद भी लेना – पाना – बनना, कहीं पर भी नज़र नहीं आता था। एक प्रकार का अपना कर्तव्य भाव – गीता में जो कर्तव्य का लक्षण बताया है न, वो बिलकुल साक्षात रूप दिखाई देता था। मेरे मन को वो मुलाकात हमेशा-हमेशा याद रहेगी – समानता और समान अवसर। किसी भी समाज और सरकार के लिए इससे बड़ा कोई मंत्र नहीं हो सकता। सम-भाव और मम-भाव, यही तो रास्ते हैं, जो हमें उज्ज्वल भविष्य की ओर ले जाते हैं। हम सब बेहतर ज़िन्दगी चाहते हैं। बच्चों का अच्छा भविष्य चाहते हैं। हर किसी की ज़रूरतें भिन्न-भिन्न होंगी। priority भिन्न-भिन्न होगी, लेकिन रास्ता एक ही है और वो रास्ता है विकास का, समानता का, समान अवसर का, सम-भाव का, मम-भाव का। आइए, हमारे इन भारतीयों पर गर्व करें, जिन्होंनें South Africa में भी हमारे जीवन के मूल मन्त्रों को जी करके दिखाया है।

मेरे प्यारे देशवासियो, मैं शिल्पी वर्मा का आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे सन्देश दिया है और उनकी चिंता बहुत स्वाभाविक है। उन्होंने मुझे एक घटना से अवगत कराया है।

‘‘प्रधानमंत्री जी, मैं शिल्पी वर्मा बोल रही हूँ, बैंगलुरू से और मैंने कुछ दिन पहले एक news में article पढ़ा था कि एक महिला ने fraud और cheat e-mail के धोखे में आ के ग्यारह लाख रुपये गँवाए और उन्होंने ख़ुदकुशी कर ली। एक महिला होने के नाते मुझे उसके परिवार से काफ़ी अफ़सोस है। मैं जानना चाहूंगी कि ऐसे cheat और fraud e-mail के बारे में आपका क्या विचार है।’’

और ये बातें आप सबके ध्यान में भी आती होंगी कि हमारे mobile phone पर, हमारी e-mail पर बड़ी लुभावनी बातें कभी-कभी हमें जानने को मिलती हैं, कोई message देता है कि आप को इतने रूपये का इनाम लगा है, आप इतने रूपये दे दीजिए और इतने पैसे ले लीजिए और कुछ लोग भ्रमित हो करके रुपयों के मोह में फंस जाते हैं। ये technology के माध्यम से लूटने के एक नये तरीक़े विश्व भर में फ़ैल रहे हैं। और जैसे technology आर्थिक व्यवस्था में बहुत बड़ा role कर रही है, तो उसके दुरूपयोग करने वाले भी मैदान में आ जाते हैं। एक retired शख्स, जिन्हें अभी अपनी बेटी की शादी करनी थी और घर भी बनवाना था। एक दिन उनको एक SMS आया कि विदेश से उनके लिए एक कीमती उपहार आया है, जिसे पाने के लिए उनको custom duty के तौर पर 2 लाख़ रूपये एक bank के खाते में जमा करने हैं और ये सज्जन बिना कुछ सोचे-समझे अपनी ज़िन्दगी भर की मेहनत की कमाई में से 2 लाख़ रूपये निकाल करके अनजान आदमी को भेज दिए और वो भी एक SMS पर और कुछ ही पल में उनको समझ आया कि सब कुछ लुट चुका है। आप भी कभी-कभी भ्रमित हो जाते होंगे और वो इतना बढ़िया ढंग से आपको चिट्ठी लिखते हैं, जैसे लगता है, सही चिट्ठी है। कोई भी फ़र्ज़ी letter pad बना करके भेज देते हैं, आपका credit card number, debit card number पा लेते हैं और technology के माध्यम से आपका खाता ख़ाली हो जाता है। ये नये तरीक़े की धोखाधड़ी है, ये digital धोखाधड़ी है। मैं समझता हूँ कि इस मोह से बचना चाहिये, सजग रहना चाहिये और ऐसी कोई झूठी बातें आती हैं, तो अपने यार-दोस्तों को share करके उनको थोड़ा जागरूक करना चाहिए। मैं चाहूँगा कि शिल्पी वर्मा ने अच्छी बात मेरे ध्यान में लाई है। वैसे अनुभव तो आप सब करते होंगे, लेकिन शायद उतना गंभीरता से नहीं देखते होंगें, लेकिन मुझे लगता है कि देखने की आवश्यकता है।

मेरे प्यारे देशवासियो, इन दिनों Parliament का सत्र चल रहा है, तो संसद के सत्र के दरम्यिान मुझे देश के बहुत सारे लोगों से मिलने का अवसर भी मिलता है। हमारे सांसद महोदय भी अपने-अपने इलाक़े से लोगों को लाते हैं, मिलवाते हैं, बातें बताते हैं, अपनी कठिनाइयाँ भी बताते हैं। लेकिन इन दिनों मुझे एक सुखद अनुभव हुआ। अलीगढ़ के कुछ छात्र मेरे पास आए थे। लड़के-लड़कियों का बड़ा उत्साह देखने को था और बहुत बड़ा album ले के आए थे और उनके चेहरे पर इतनी ख़ुशी थी। और वहाँ के हमारे अलीगढ़ के सांसद उनको ले करके आए थे। उन्होंने मुझे तस्वीरें दिखाईं। उन्होंने अलीगढ़ रेलवे स्टेशन का सौन्‍दर्यीकरण किया है। स्टेशन पर कलात्मक painting किये हैं। इतना ही नहीं, गाँव में जो प्लास्टिक की बोतलें या oil के can ऐसे ही कूड़े-कचरे में पड़े हुए, उसको उन्होंने खोज-खोज करके इकट्ठा किया और उनमें मिट्टी भर कर के, पौधे लगा कर के उन्होंने vertical garden बनाए। और रेलवे स्टेशन की तरफ़ प्लास्टिक बोतलों में ये vertical garden बना करके बिल्कुल उसको एक प्रकार से नया रूप दे दिया। आप भी कभी अलीगढ़ जाएँगे, तो ज़रूर स्टेशन को देखिए। हिन्दुस्तान के कई रेलवे स्टेशनों से आजकल मुझे ये ख़बरें आ रही हैं। स्थानीय लोग रेलवे स्टेशन की दीवारों पर अपने इलाके की पहचान अपनी कला के द्वारा प्रस्तुत कर रहे हैं। एक नयापन महसूस हो रहा है। जन-भागीदारी से कैसा बदलाव लाया जा सकता है, इसका ये उदाहरण है। देश में इस प्रकार से काम करने वाले सबको बधाई, अलीगढ़ के मेरे साथियों को विशेष बधाई।

मेरे प्यारे देशवासियो, वर्षा की ऋतु के साथ-साथ हमारे देश में त्योहारों की भी ऋतु रहती है। आने वाले दिनों में सब दूर मेले लगे होंगें। मंदिरों में, पूजाघरों में उत्सव मनाए जाते होंगे और आप भी घर में भी, बाहर भी उत्सव में जुड़ जाते होंगे। रक्षाबंधन का त्योहार हमारे यहाँ एक विशेष महत्व का त्योहार है। पिछले साल की भाँति इस साल भी रक्षाबंधन के अवसर पर अपने देश की माताओं-बहनों को क्या आप प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना या जीवन ज्योति बीमा योजना भेंट नहीं कर सकते ? सोचिए, बहन को ऐसी भेंट दें, जो उसको जीवन में सचमुच में सुरक्षा दे। इतना ही नहीं, हमारे घर में खाना बनाने वाली महिला होगी, हमारे घर में साफ़-सफ़ाई करने वाली कोई महिला होगी, गरीब माँ की बेटी होगी यह रक्षाबंधन के त्योहार पर उनको भी तो सुरक्षा बीमा योजना या जीवन ज्योति बीमा योजना भेंट दे सकते हैं आप और यही तो सामाजिक सुरक्षा है, यही तो रक्षाबंधन का सही अर्थ है।

मेरे प्यारे देशवासियो, हम में से बहुत लोग हैं, जिनका जन्म आज़ादी के बाद हुआ है। और मैं देश का पहला ऐसा प्रधानमंत्री हूँ, जो आज़ाद हिंदुस्तान में पैदा हुआ हूँ। 8 August ‘Quit India Movement’ का प्रारंभ हुआ था। हिंद छोड़ो, भारत छोड़ो – इसे 75 साल हो रहे हैं। और 15 August को आज़ादी के 70 साल हो रहे हैं। हम आज़ादी का आनंद तो ले रहे हैं। स्वतंत्र नागरिक होने का गर्व भी अनुभव कर रहे हैं। लेकिन इस आज़ादी दिलाने वाले उन दीवानों को याद करने का ये अवसर है। हिंद छोड़ो के 75 साल और भारत की आज़ादी के 70 साल हमारे लिए नई प्रेरणा दे सकते हैं, नयी उमंग जगा सकते हैं, देश के लिये कुछ करने के लिये संकल्प का अवसर बन सकते हैं। पूरा देश आज़ादी के दीवानों के रंग से रंग जाए। चारों तरफ़ आज़ादी की ख़ुशबू को फिर से एक बार महसूस करें। ये माहौल हम सब बनाएँ और आज़ादी का पर्व – ये सरकारी कार्यक्रम नहीं, ये देशवासियों का होना चाहिए। दीवाली की तरह हमारा अपना उत्सव होना चाहिए। मैं आशा करता हूँ कि आप भी देशभक्ति की प्रेरणा से जुड़ा कुछ-न-कुछ अच्छा करेंगें। उसकी तस्वीर ‘NarendraModi App’ पर ज़रूर भेजिए। देश में एक माहौल बनाइए।

प्यारे देशवासियो, 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से मुझे देश के साथ बात करने का एक सौभाग्य मिलता है, एक परंपरा है। आपके मन में भी कुछ बातें होंगी, जो आप चाहते होंगे कि आपकी बात भी लाल किले से उतनी ही प्रखरता से रखी जाए। मैं आपको निमंत्रण देता हूँ, आपके मन में जो विचार आते हों, जिसको लगता है कि आपके प्रतिनिधि के रूप में, आपके प्रधान सेवक के रूप में मुझे लाल किले से ये बात बतानी चाहिए, आप मुझे ज़रूर लिख करके भेजिए। सुझाव दीजिए, सलाह दीजिए, नया विचार दीजिए। मैं आपकी बात देशवासियों तक पहुँचाने का प्रयास करूँगा और मैं नहीं चाहता हूँ कि लाल किले की प्राचीर से जो बोला जाए, वो प्रधानमंत्री की बात हो; लाल किले की प्राचीर से जो बोला जाए, वो सवा-सौ करोड़ देशवासियों की बात हो। आप ज़रूर मुझे कुछ-न-कुछ भेजिए। ‘NarendraModi App’ पर भेज सकते हैं, MyGov.in पर भेज सकते हैं और आजकल तो technology के platform इतने आसान हैं कि आप आराम से चीज़ें मुझ तक पहुँचा सकते हैं। मैं आपको निमंत्रण देता हूँ, आइये, आज़ादी के दीवानों का पुण्य स्मरण करें। भारत के लिए ज़िंदगी खपाने वाले महापुरुषों को याद करें और देश के लिए कुछ करने का संकल्प ले कर के आगे बढ़ें। बहुत-बहुत शुभकामनायें। बहुत-बहुत धन्यवाद.

साभार: PIB, India

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ कार्यक्रम के रविवार को होने वाले प्रसारण की चुनाव आयोग ने मंजूरी दी है. आयोग ने निर्देश दिया है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर लागू आदर्श आचार संहिता का पालन किया जाना चाहिए.

आपको बता दें कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने आयोग से संपर्क कर आचार संहिता के कारण मासिक रेडियो कार्यक्रम के प्रसारण को मंजूरी देने का अनुरोध किया था.

आगामी चार अप्रैल को पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल और पुडुचेरी में चुनाव होने जा रहे हैं. आदर्श आचार संहिता चार मार्च को प्रभाव में आ गयी थी जब आयोग ने चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा की थी।