इतिहास के पराक्रम से सुनहरे भविष्य के निर्माण की जरूरत: हरिवंश

इतिहास के पराक्रम से सुनहरे भविष्य के निर्माण की जरूरत: हरिवंश

Chhapra: बाबू वीर कुंवर सिंह का विजयोत्सव रविवार को विकास मंच के तत्वावधान में प्रेक्षा गृह में मनाया गया। विजयोत्सव समारोह का उद्घाटन राज्यसभा के सभापति हरिवंश ने किया।

मुख्य अतिथि हरिवंश ने भोजपुरी में संबोधन शुरु करते हुए  कहा कि बाबू वीरकुंवर सिंह के कारण हमें अपने इतिहास पर गर्व करने का अवसर मिला है। इतिहास को याद करने का अवसर सारण विकास मंच ने कराया है। इतिहास ने दर्ज है कि नौ महीनों में 15 भीषण युद्ध की अगुवाई उन्होंने 80 वर्ष की उम्र में किया। जीवन मे कुछ करना चाहते हैं तो कुंवर सिंह से सीखिए। उनकी रणनीति और दूरदृष्टि अद्भुत थी। 

हरिवंश ने कहा कि बाबू कुंवर सिंह को एक वर्ग का नायक न बनाएं। कुंवर सिंह के साथ हर जाति के लोग थे। कुंवर सिंह जब गंगा पार कर रहे थे तब अंग्रेजों ने सारी नावें हटा ली थीं। लेकिन कुंवर को पार करने नावों की भीड़ आ गई थी।

उन्होंने कहा कि आज समाज में नैतिकता का अभाव है, जो बाबू कुंवर सिंह  की ताकत थी। अगर हमें अपने समाज में और भी कुंवर सिंह चाहिए तो हमें भी उनके जैसी नैतिकता का पालन करना होगा। 

हरिवंश ने कहा कि समाज को अलग हटकर यह सोच लानी होगी जिसमें कुंवर सिंह पर लिखी पुस्तकों की लाइब्रेरी बनाएं। ताकि कुंवर सिंह के बारे में आने वाली पीढ़ी जान सके। क्योंकि किताबें समाज को बनाती हैं। जब हम कमजोर होते हैं तो बल और ऊर्जा देती हैं। अतीत से प्रेरणा लेकर सुनहरे भविष्य का निर्माण हो सकता है। लेकिन रस्मअदायगी से बाहर निकलने की जरूरत है।

इस दौरान सारण विकास मंच के संयोजक शैलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि 1857 की क्रांति के आइने में देखें तो कुंवर सिंह इकलौती हस्ती हैं जिनके संघर्ष का फलक व्यापक है। 1857 में कई रियासतों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह किया। लेकिन, एक या दो लड़ाई के बाद टूट गए। कुंवर सिंह लगातार नौ महीने तक चलते रहे। लड़ते रहे। यह लड़ाइयां उस जमीन पर लड़ी गईं जो उनकी अपनी नहीं थीं लेकिन नारा अपना था। … और वह नारा था… जहां कुंवर सिंह, वही जगदीशपुर। उन्होंने जहां भी लड़ाई लड़ी, उस जमीन को अपना जगदीशपुर मान कर लड़ा। कुंवर सिंह के संघर्ष को समकालीन किसी दूसरे नायक का संपूर्ण साथ अंतिम दम तक नहीं मिला। मिला होता तो इतिहास कुछ और होता।

शैलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि बाबू साहब हिन्दु-मुस्लिम भाईचारे के झंडाबरदार थे। उन्होंने मस्जिदें बनवाईं, पीर-फकीरों को दान दिया, जगदीशपुर में पठान टोला बसाया। ड्योढ़ी से ताजिया निकालने की परिपाटी शुरू की। 27 जुलाई 1857 को जब आरा में आजाद सरकार बनीं तो तुराब अली और खादिम अली शहर कोतवाल बने। गुलाम याहिया, शहर के मजिस्ट्रेट नियुक्त हुए। बाद के दिनों में इन सबकों फांसी की सजा हुई। कुंवर सिंह की सरकार में सभी जातियों-ब्राह्मण, ग्वाला, माली, मुसलमान, कायस्थ, राजपूत आदि जाति के लोग थे।

उन्होंने कहा कि कुंवर सिंह ने आजीवन किसी के भरोसे का कत्ल नहीं किया बल्कि कई मौकों पर लोगों ने उनके भरोसे की हत्या की। नायक वही होता है जो भरोसे पर खरा उतारता है। भरोसे से खेलता नहीं है। वैसे विडंबना ये है कि बाबू कुंवर सिंह हमारे उन नायकों में शामिल हैं, जो शुरू से ही उपेक्षित रहे। इतिहास की किताबों में जगह नहीं मिली। उनके शौर्य को प्रेरणाश्रोत बनाने के प्रयास नहीं हुए। जबकि कुंवर सिंह का नायकत्व दूसरे कई योद्धाओं से कहीं अलग और महान था। कुंवर सिंह राजपूतों के नेता नहीं थे। उनके पक्ष में जो जन समर्थन था, उसकी एक खास बात यह है कि इसमें विभिन्न जातियों ने एकजुटता तो दिखाई ही थी, हिंदू-मुस्लिम एकता भी बिना द्वेष के कायम थी। अंग्रेजों की नीति थी फूट डालो और राज करो। कुंवर सिंह ने इसी नीति को भारतीय जनमानस से निकाल कर स्वतंत्रता का पहला आंदोलन खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा कि कुंवर सिंह का संघर्ष बताता है कि लड़ने, जीतने, सफल होने और जुल्म के प्रतिकार के लिए संसाधन नहीं आत्मबल होना चाहिए।

वहीं वक़्ता मोहित सिंह ने कहा कि महापुरुषों की जाति नहीं होती। भारत अभी जिस स्थिति में खड़ा है, उसमें आगे भी वीर कुंवर सिंह की जरूरत है। हमारे समाज मे ऐसे महापुरुष हुए हैं जिन्होंने ज्ञान, तप की पराकाष्ठा तोड़ दी। पुराने वैभव को पाना है तो कमहापुरुषों की भावना सभी को अपने अंदर भी जागृत करनी होगी।

विजयोत्सव के दौरान बाबू वीर कुंवर सिंह पर कई पुस्तकें लिखने वाले वरिष्ठ लेखक व पत्रकार शशि भूषण, वरिष्ठ शिक्षाविद महामाया प्रसाद विनोद और बिहार आर्ट थिएटर के महासचिव अभिषेक राय को सम्मानित किया गया। साथ ही डॉ राजीव कुमार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश, क्षत्रिय महासभा की महिला प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंह, जिला परिषद अध्यक्ष प्रतिनिधि अमर राय को भी सम्मानित किया गया।

इससे पहले व्यास शैली में कुंवर सिंह की विजययात्रा और जीवनगाथा की संगीतमय प्रस्तुति उदय नारायण सिंह और सृष्टि शांडिल्य ने की। वहीं धर्मेंद्र द्वारा बाबू वीर कुंवर सिंह की ओजस्वी वीरगाथाओं के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। धन्यवाद ज्ञापन इसुआपुर के जिला पार्षद छबिनाथ सिंह ने किया।

इस अवसर पर छपरा नगर निगम की मेयर राखी गुप्ता, भारतीय पुलिस सेवा के पदाधिकारी जेपी सिंह, तरैया प्रमुख प्रतिनिधि धनवीर सिंह बिक्कू, इसुआपुर प्रमुख मितेन्द्र राय, डॉ धीरज सिंह, राजकुमार सिंह, रमाकांत सोलंकी, माधवेन्द्र आदि भी मौजूद रहे।

0Shares
A valid URL was not provided.

छपरा टुडे डॉट कॉम की खबरों को Facebook पर पढ़ने कर लिए @ChhapraToday पर Like करे. हमें ट्विटर पर @ChhapraToday पर Follow करें. Video न्यूज़ के लिए हमारे YouTube चैनल को @ChhapraToday पर Subscribe करें