इंटरनेट की तलाश में बॉर्डर का चक्कर लगाते छपरा के लोग

इंटरनेट की तलाश में बॉर्डर का चक्कर लगाते छपरा के लोग

CT Desk से प्रभात किरण हिमांशु की रिपोर्ट

छपरा: गर्मी में सर्दी की चाह रखने वाले लोग ज्यादातर कुल्लू मनाली या शिमला की बर्फीली वादियों की सैर करने जाते हैं वहीँ शांति और ध्यान की चाह लिए लोग अक्सर धार्मिक स्थलों पर जाते हुए देखे जाते हैं, पर बिहार में इन दिनों चर्चा का केंद्र बने छपरा शहर के लोग आजकल एक खास चीज़ की तलाश में बिहार-यूपी बॉर्डर का चक्कर लगाते देखे जा रहे हैं, और उस ख़ास तलाश का नाम है ‘इंटरनेट’.

जी हाँ बात सुनने में जरूर अटपटी लगती हो पर है सोलह आने सच. आज कल छपरा जिले के लोग इंटरनेट की खोज में छपरा से सटे बिहार-यूपी बॉर्डर या अन्य सीमावर्ती जिलों का भ्रमण कर रहे हैं.

छपरा में पिछले 5 अगस्त की मध्यरात्री से ही इंटरनेट सेवा पूरी तरह बंद है,कारण सर्वविदित है. वायरल हुए वीडियो के बाद हंगामे की आशंका को देखते हुए जिला प्रशासन ने जिले में धारा 144 लगाते हुए इंटरनेट सेवा को ठप कर दिया है. हालांकि इस दौरान हंगामा भी खूब हुआ,पर हंगामों से इतर इंटरनेट के जरिये फेसबुक और व्हाट्सऐप इस्तेमाल करने वाले लोग इंटरनेट की तालाश में काफी परेशान दिख रहे हैं.
छत की मीनार से लेकर खुले मैदान में लोगों को इंटरनेट की खोज करते देखना इन दिनों आम बात हो गई है.

बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद जिले के लोगों का शराब की तलाश में सीमावर्ती राज्यों में भटकने की ख़बरें तो अक्सर सुनने को मिल रही थीं पर 21वीं सदी में संचार क्रांति के इस सुनहरे दौर में इंटरनेट का बंद होना क्षेत्र के लोगों को इमरजेंसी के दौर की याद दिलाती है.

डिजिटल इंड़िया से लेकर स्किल इंडिया की बात आज भले ही पूरे देश में जोर-शोर से हो रही हो पर पर देश में युवा शक्ति को आधार बनाकर सोशल नेटवर्किंग के जरिये राजनीतिक सफ़र तय करने वाले राजनेताओं और उनके रहनुमाओं की विफलता का ही परिणाम है की देशरत्न और लोकनायक जैसे पुराधाओं की धरती फिर से विषमता के उस कठिन राह पर आकर खड़ी हो चुकी है.

ये खबर पढ़ने में आपको जरूर थोड़ी अटपटी सी लग रही होगी पर बिहार में बाहर और बदलते देश की परिकल्पना को साकार करने वाले नेताओं के लिए छपरा की घटना एक बड़ा सबक है. इंटरनेट सेवा फिर से बहाल कर दी जाएगी, स्थिति दिन-प्रतिदिन सामान्य होते जाएगी पर रोजमर्रा के जरूरतों में शामिल बिजली, पानी और उससे भी जरूरी बन चुके संचार माध्यमों को बंद करना समस्या का निदान नहीं होगा. आत्ममंथन और आत्मचिंतन के साथ खोखली  राजनीति से परे गंगा-यमुना तहजीब को बरक़रार रखने की जरूरत है.

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