मानव मन की अंतरंगताओं को पकड़ने और संप्रेषित करने की क्षमता है सिनेमा : National Cinema Day

मानव मन की अंतरंगताओं को पकड़ने और संप्रेषित करने की क्षमता है सिनेमा : National Cinema Day

Written by : Abhinandan Dwivedi (Former RJ)

National Cinema Day : क्यों मनाया जाता है, कब से मनाया जाता है, ऐसे तम्माम प्रश्नवाचक संज्ञा आपके ज़हन में गोते लगा रहें होंगे। इन सबका जवाब टटोलने से पहले, जरूरत है ‘सिनेमा’ को समझने की। आमतौर पर देश का दर्शक वर्ग फ़िल्म और सिनेमा को एक समान ही मानता आया है और आज के परिपेक्ष्य में भी इस विषय पर सोचने की क्षमता में कोई बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिलता है। सिनेमा क्या है ? और फ़िल्म क्या है ?

डॉ कुमार विमलेंदु सिंह (युवा साहित्यकार और फ़िल्म समीक्षक) अपनी पुस्तक ‘सिनेमा और टीवी’ में लिखते हैं कि “सिनेमा कई कलात्मक विधाओं का संगम है और इसमें अद्भुत सम्भावनाएं हैं। हमारे देश में बहुत दिनों तक सिनेमा को कला की श्रेणी में नहीं देखा गया।” वहीं जब बात फ़िल्म और फिल्मों के इतिहास पर की जाए, तब एक लंबा अध्याय शाहरुख खान की तरह अपनी बाहें खोल इंतज़ार में खड़ा मिलता है। फ़िल्म कला का एक रूप है जिसका निर्माण प्रकाश, गति के भ्रम, स्थान और समय के हेरफेर से होता है। एक फिल्मकार किसी सीन को फिल्माने के लिए प्रकाश दृश्यों और छवियों को प्रकाशित करता है। प्रकाश भी स्वयं सिनेमाई कला का एक औपचारिक तत्व है। फिल्म निर्माता मूड बनाने, पात्रों को प्रकट करने या छिपाने और कहानी की सेटिंग स्थापित करने के लिए प्रकाश का उपयोग करते हैं।

प्रख्यात उर्दू कहानीकार सआदत हसन मंटो लिखते हैं कि “मैं अदब और फ़िल्म को एक ऐसा मय-ख़ाना समझता हूँ, जिसकी बोतलों पर कोई लेबल नहीं होता।” किसी फ़िल्म के निर्माण की रूह को गहराई से समझने के लिए हमें निर्देशक और अदाकारा की अंतरात्मा से जुड़ना होता है। डॉ कुमार विमलेंदु सिंह (युवा साहित्यकार और फ़िल्म समीक्षक) लिखते हैं कि “अदाकारा की ज़िंदगी का फलसफा होता है कि, किरदार को खुद में और खुद को किरदार में ऐसे शामिल कर लेना कि फिर जहाँ भी, उसकी बात हो, किरदार का ख़्याल पहले आए और उसके नाम की याद बाद में।

सिनेमा की ताकत और फ़िल्म के अतीत पर नज़र डालने पर ये पता चलता है कि 1936 में आई फ़िल्म ‘संत तुकाराम’ को जनता और कला प्रेमियों ने इस कदर प्यार दिया जिसके परिणाम स्वरूप ये फ़िल्म एक ही सिनेमा घर में 57 हफ्ते तक चली। अगले साल यानी 1937 में संत तुकाराम को वेनिस फ़िल्म महोत्सव में पुरस्कृत किया गया।

वापस अपने मूल विषय National Cinema Day पर बात करें तो इसकी शुरुआत सबसे पहले 2022 में मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (MAI) द्वारा की गई थी। MAI ने कोविड-19 महामारी के बाद सिनेमा हॉलों को फिर से खोलने के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय सिनेमा दिवस की शुरुआत की। एसोसिएशन ने इस दिन मूवी टिकटों पर महत्वपूर्ण छूट देने का निर्णय लिया, जिससे मूवी देखने वालों को सिनेमा हॉल मालिकों का समर्थन करने के लिए प्रोत्साहित किया गया, जिन्हें कोविड -19 महामारी के दौरान भारी नुकसान हुआ। राष्ट्रीय सिनेमा दिवस मनाने का एक अन्य प्रमुख कारण ओटीटी प्लेटफार्मों के उदय से उत्पन्न प्रतिस्पर्धा का मुकाबला करना है, खासकर कोविड-19 महामारी के दौरान। यह सिनेमा हॉल मालिकों द्वारा बड़े पर्दे के जादू को फिर से जगाने और जवान, गदर 2 और ओएमजी 2 जैसी हालिया ब्लॉकबस्टर फिल्मों की सफलता की सराहना करने का एक प्रयास है, जिन्होंने दर्शकों को सिनेमाघरों में वापस लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

फिल्मकारों की ज़ुबा में सिनेमा को समझें तो मशहूर फ़िल्म निर्देशक, लेखक सत्यजीत रे ने सिनेमा को यूं परिभाषित किया था “सिनेमा की विशिष्ट विशेषता मानव मन की अंतरंगताओं को पकड़ने और संप्रेषित करने की क्षमता है।”

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