‘विध्वंस की लड़ाई’, राजनीति और कुकर्म पर बेरहम वार, निवेदन नहीं नरसंहार की परिभाषा को गढ़ती है फ़िल्म Bhaiyya Ji

 One Word Review : Excellent

Review by : Abhinandan Kumar Dwivedi (Former RJ)

“निवेदन नहीं, नरसंहार होगा…”, “कुकर्मी अपना कुकर्म त्याग देगा…”, “सरकार भी वही, प्रजा भी वही, अपराध भी वही, कानून भी वही…” ऐसे ही कुछ सिट्टीमार संवाद, एक बड़े भाई की संवेदना, माँ की ममता, बिहार की पृष्ठभूमि से निकली आवाज़ दर्शक का दिल जीत लेती है।

फ़िल्मी भाषा में बात करें तो कहानी, पटकथा और संवाद, तीनों ही विधा में फ़िल्म आपके दिल पर चोट करती है। कहानी में बिहारी अंदाज़ है, बिहारी संवेदना है, वक्त के साथ बदलती बिहार की संस्कृति आपके अंतरात्मा तक पहुँचती है। छोटे भाई की मौत से जुड़ी एक प्रेम और मर्म की कहानी को निर्देशक अपूर्व सिंह कार्की ने 70mm के पर्दे पर बहुत ही संजीदगी के साथ दिखाया है। मनोज बाजपेयी का जोरदार एक्शन अवतार आपके अंदर खलबली पैदा करती है, एक्शन करते मनोज बाजपेयी का हर एक फ्रेम भव्य दिखाई पड़ता है। फ़िल्म की पटकथा दर्शक को बांधे रखती है, फ़िल्म का पहला हिस्सा रफ्तार के साथ आगे बढ़ता है, वहीं दूसरे भाग में फ़िल्म थोड़ी धीमी होती है और अपनी मजबूत पटकथा की दम पर निष्कर्ष तक पहुँचती है। खतरनाक एक्शन, रमणीक संगीत, धूम-धड़ाम के साथ बम और गोलियों की आवाज़, साथ में फावड़ा का जोरदार वार, मनोज बाजपेयी का शाश्वत अभिनय, सुविंदर विक्की का भयानक किरदार, ज़ोया हुसैन, विपिन शर्मा, आकाश मखीजा की शानदार एक्टिंग, संदीप चौटा का मार्मिक बैकग्राउंड स्कोर और गीतकार डॉ. सागर के बेहतरीन गीतों से सजी है फ़िल्म ‘भैया जी’।

Special Mention

बिहार की सुप्रसिद्ध ‘इमरती’ के साथ फ़िल्म का पहला फ्रेम, दर्शक को बिहार की आंचल में समाहित कर लेता है। अगले ही दृश्य में शादी की चकाचौंध में रंगा एक परिवार और घर के द्वार पर लगा एक छोटा सा नाच का मंच, आपको किसी भी बिहारी शादी की याद दिलाता है। फ़िल्म हर पड़ाव पर बिहार के अस्तित्व को पकड़े रखती है। कई बार ऐसा लगता है कि फ़िल्म में बिहार के कलाकारों को पहली प्राथमिकता दी गई है, जो कि जायज़ भी है। बिहार के रहने वाले दीपक ठाकुर की आवाज़ में पहला गाना सीधे दर्शकों के दिल तक पहुँचता है। मनोज तिवारी की आवाज़ में फ़िल्म का दूसरा गाना सिनेमा हॉल में बैठे हर उस आत्मा को भावुक होने पर मजबूर करता है, जो खुद में माँ की ममता और भाई के प्रेम और बलिदान को संजोए है। रमणीक और खनक जैसे विशेषण के साथ मर्म को परिभाषित करते मनोज तिवारी की आवाज़ मात्र से दर्शकों की संवेदना फ़िल्म से जुड़ी रहती है। ‘बंबई में का बा…’ से मशहूर गीतकार डॉ. सागर के लिखे गीत फ़िल्म की जान हैं।

एक दृश्य में जहां मनोज बाजपेयी का छोटा भाई बिहार के लिए ट्रेन पकड़ने जाता है, वहां नई दिल्ली जंक्शन का एरियल शॉट 70mm के पर्दे पर भव्य दिखता है। एक फ्रेम में मनोज बाजपेयी का माँ गंगा नदी में आस्तियों का प्रवाह करते सूर्यास्त का फ्रेम आंखों को सुकून देता है। फावड़ा के साथ मनोज बाजपेयी की स्लो मोशन में एंट्री का शॉट आपके अंदर खलबली मचाता है। फावड़ा के साथ एक्शन करते हर फ्रेम में निर्देशक ने एक खांटी स्वाद को जिंदा रखने, गाँव से शहर जाते छोटे भाई का अपने बड़े भाई का पैर छू कर जाना जैसे कुछ फ्रेम से निर्देशक ने दर्शक के दिल पर अमिट छाप छोड़ने की कोशिश की है। खलनायक की अवतार में सुविंदर विक्की का एंट्री फ्रेम आपको पागल करता है। ऐसे कुछ फ्रेम को देख सिनेमैटोग्राफर को सलाम करना बनता है।

Story

ये फ़िल्म ‘विध्वंस की लड़ाई’ की है, ये फ़िल्म ‘बेरहम वार’ की है, ये फ़िल्म ‘नरसंहार’ की है। कर्म और कुकर्म की गाथा कहते लेखक दीपक किंगरानी और निर्देशक अपूर्व सिंह कार्की की कोशिश सफल साबित हुई है। फ़िल्म की कहानी शुरू होती है भैया जी (मनोज बाजपेयी) के घर से जहां शादी की रस्म अपने परवान पर रहती है। ऐसी शादी में भैया जी का छोटा भाई अपने घर बिहार आने के लिए नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर ट्रेन पकड़ने पहुँचता है।

जहां छोटे भाई की बेरहम हत्या हो जाती है। इस हत्या के पीछे एक स्वाभिमानी और बाहुबली बाप-बेटे हैं। स्थानीय पुलिस के जरिए भैया जी को अपने छोटे भाई के मरने की सूचना मिलती है। कहानी आगे बढ़ती है और भैया जी के खोज पूछ के बाद अपने छोटे भाई के हत्यारे का पता चलता है। यहां से शुरू होती है विध्वंस और नरसंहार की कहानी और भैया जी का रौद्र रूप पर्दे पर सामने आता है। शांत स्वभाव रखने वाले भैया जी कैसे कुकर्मी से उसके कुकर्म का बदला लेते हैं, ये देखना दिलचस्प है। क्या भैया जी अपने भाई की मौत का बदला ले पाते हैं? क्या शादी वाले घर में फिर शहनाई बजती है? सरकार, प्रजा, अपराध और कानून के बीच इस कहानी में उमड़ते सारे सवालों के जवाब आपको फ़िल्म के खत्म होते मिल जाते हैं।

Actors Performance

भैया जी के किरदार में मनोज बाजपेयी की एक्टिंग पर कुछ भी कहना छोटी मुँह बड़ी बात होगी। जितनी बार भी मनोज साहब पर्दे पर आते हैं, दर्शकों में एक अलग जोश देखने को मिलता है। मनोज बाजपेयी के किरदार को बहुत ही संजीदगी के साथ लिखा गया है। एक दृश्य में फावड़ा उठाने के साथ मनोज बाजपेयी की आंखों में आक्रोश देखना किसी भी दर्शक के लिए अलौकिक पल होगा। अपनी आंखों की कलाकारी से उन्होंने दर्शक का दिल जीता है। खलनायक के किरदार में सुविंदर विक्की को देख खौफ़ पैदा होता है। अपने किरदार के साथ उन्होंने बखूबी न्याय किया है। पर्दे पर मनोज वाजपेयी और सुविंदर विक्की को एक साथ फ्रेम में देखना अद्भुत प्रतीत होता है। दोनों के बीच इंतकाम और एक दूसरे को अपनी ताकत से वार करना दर्शक को रोचक लगता है। ज़ोया हुसैन अपने किरदार में खूबसूरत लगती हैं। हालांकि कुछ एक दृश्य को छोड़ दे तो उनके पास फ़िल्म में करने के लिए कुछ बड़ा नहीं था। लेकिन ये कहना पड़ेगा कि जितना भी स्क्रीन टाइम उन्हें मिली है, उसमें उन्होंने अपनी जोरदार एक्टिंग से दर्शकों के दिल में छाप छोड़ी है। विपिन शर्मा, आकाश मखीजा जैसे कई और कलाकारों ने अपना काम बखूबी निभाया है।

Direction & Technical Aspects

अपूर्व सिंह कार्की के निर्देशन में बनी फिल्म ‘भैया जी’ मनोज वाजपेयी के फिल्मी करियर की यादगार फिल्मों में शुमार होने का दमखम रखती है। इससे पहले अपूर्व सिंह ने ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ के जरिए ओटीटी पर अपनी शानदार मौजूदगी दर्ज कराई थी। अपूर्व सिंह के निर्देशन में हमेशा एक सवाल रहता है, जो वो दर्शक पर छोड़ जाते हैं, दर्शक को सोचने पर मजबूर करते हैं। पिछली दो फिल्मों के साथ उन्होंने अपनी निर्देशन से मनोज बाजपेयी को नई धारा में ला कर खड़ा किया है, जिससे मनोज वाजपेयी के फिल्मी करियर में एक लंबा उछाल देखा जा सकता है। ‘भैया जी’ फ़िल्म अपूर्व सिंह के करियर में महत्वपूर्ण पड़ाव बन कर आई है। कहानी के मूल उद्देश्य को छोड़े बिना उसकी सच्चाई से इंसाफ करते हुए, हर कलाकार को प्राथमिकता देने के साथ कहानी के निष्कर्ष तक पहुँचने की कला ही निर्देशक अपूर्व सिंह को अलग बनाती है। प्रमुख किरदार के साथ बाकी चरित्र कलाकारों को भी पर्दे पर एक मजबूत और यादगार छण स्थापित करने में निर्देशक अपूर्व सिंह ने इंसाफ किया है।

अर्जुन कुकरेती का कैमरा वर्क आपको हमेशा याद आएगा। मनोज वाजपेयी का क्लोज़ अप शॉट आपके अंतरात्मा में अपना कोना ढूंढ लेगा। मुकेश चौहान और अंकुश प्रशांत का आर्ट डायरेक्शन आपको रियल फील देता है। एक बिहारी लहजे को फिल्माने और फिल्म में शुरू से अंत तक बिहार को जिंदा रखने में दोनों का काम अतुलनीय है। फ़िल्म में कास्टिंग का जिम्मा रोहन गुप्ता के हाथों में रहा। रोहन गुप्ता की कास्टिंग एक दम सही और सटीक लगती है। ऐसा लगता है कि हर किरदार को उसके व्यक्तित्व के साथ ही अदाकारी करने का मौका दिया गया है।

क्यों देखें ये फ़िल्म?

विध्वंस की आग में आक्रोशित मनोज वाजपेयी की जबरदस्त एक्टिंग और भाई के प्रति प्रेम के मर्म को करीब से महसूस करना चाहते हैं, तो ये फ़िल्म आपके लिए है।

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