गौरैया पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण है: डा. प्रशान्त सिन्हा

गौरैया पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण है: डा. प्रशान्त सिन्हा

मानव और पशु – पक्षी प्रेम की अनेकों छवियों भारत के कला, धर्म और संस्कृति में समाई हुई है। पशु – पक्षी प्रेम और उनके प्रति किए जाने वाला व्यवहार के अनेक सामाजिक पहलु हैं। यह भी सच्चाई है कि जहां पशु – पक्षी स्वयं को सुरक्षित अनुभव करते थे ऐसे स्थान धीरे – धीरे घटकर बहुत कम रह गए हैं। आधुनिकीकरण, औद्योगीकरण और बढ़ते हुए जनसंख्या के दवाब के कारण बहुत से पशु – पक्षी विलुप्त होने के कगार पर आ गए हैं। उनमें से एक है फुदक फुदक कर चीं- चीं , चूं – चूं करती गौरैया। व

क्त के साथ कब गौरैया की चहचहाट कानों में पड़नी बंद हो गई, पता ही नही चला। पहले लगता था कि समय के साथ उस चहचहाट पर ध्यान देना बंद कर दिया है, लेकिन जब गौर किया तो गौरैया तो वाकई में गायब हो गई है। वर्तमान में भूले बिसरे मई के महीने में एक – दो गौरैया के दर्शन हो जाते हैं, वरना ये चिड़िया तो ईद की चांद हो गई है। जंगलों एवं खत्म होते हरियाली पेड़ों के कारण इनका निवास खत्म होते गए। बढ़ते प्रदुषण व जलवायु परिर्वतन के कारण भी गौरैया के संख्या में कमी आई है। मोबाइल फोन एवं मोबाइल टावरों से निकलने वाली सूक्ष्म तरंगें गौरैया के अस्तित्व के लिए खतरा बन रही है।

गौरैया सिर्फ एक चिड़िया का नाम नही है, बल्कि हमारे परिवेश, कला, संस्कृति से भी उसका संबंध रहा है। लेकिन हम मानव ने उनकी दुनिया उजाड़ दी। उनके घोंसले, पेड़ – पौधे, उनके जलाशय, हरियाली सब खत्म कर दी। सारे आसमान में धुआं और जहर भर दिया। पर्यावरण को ज्वालामुखी बना डाला। नदियां,नहरों, कुओं और बावड़ियों में जहर बहा दिया। बादलों से चली निर्दोष बूंदें हमारी हवाओं से गुजरकर जहर बरसाती है जिससे वे हमसे रूठकर हमारी नजरों से दूर हो गईं।

देर से ही सही कुछ लोगों के साथ सरकारें अब जगी हैं। पर्यावरणविद मुहम्मद ई दिलावर जैसे लोगों के कारण पूरे विश्व में 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाने लगा। दिल्ली एवं बिहार में गौरैया को राज्य पक्षी का दर्जा देते हुए उसके सरंक्षण पर जोर दिया है। भारतीय डाक विभाग ने भी गौरैया पर डाक टिकट जारी किया।

ज्ञात रहे गौरैया पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण है। ये छोटे पक्षी जैव विविधता को और विकसित करने और पारिस्थितिकी तंत्र में पौधों के विकास में सहायता करते हैं जिसके परिणाम स्वरूप स्वस्थ और हरा भरा वातावरण बनता है। गौरैया बीज खाती हैं और छोड़ती हैं जिससे पौधों के बीजों के बेहतर प्रसार में मदद मिलती है और हमारे आस – पास की जलवायु समृद्ध होती हैं। गौरैया हमारी फसलों को कीड़ों से बचाती हैं।

गौरैया की संख्या बढ़ाने के लिए लोगों को जागरुक करने की आवश्यकता है। घर की छत पर दाना रखना चाहिए और घरों के आस पास ज्यादा से ज्यादा वृक्ष लगाना चाहिए क्योंकि गौरैया का यही प्रकृतिक परिवेश है। गौरैया अगर किसी के घर में घोसला बनाए तो उसे नही हटाना चाहिये। रोजाना आंगन, बालकनी, छतों पर दाना पानी रखना चाहिये। जूते के डिब्बे, प्लास्टिक की बड़ी बोतलें या मटकी को टांगना चाहिये जिससे उसमें घोस्ला बन सके।छतों पर बाजारों में मिलने वाले कृत्रिम घोसलों की व्यवस्था करना चाहिए।

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