रक्षाबंधन कब है, कब बांधे राखी, क्या है शुभ मुहुर्त, जानें

रक्षाबंधन कब है, कब बांधे राखी, क्या है शुभ मुहुर्त, जानें

सावन की पूर्णिमा को भाई -बहन के स्नेह की डोर में बांधने वाला त्योहार रक्षाबंधन मनाया जाता है। इस दिन बहन भाई के हाथ में रक्षा बांधती है तथा उनकी मंगल कमाना के लिए चंदन का टिका लगाती है।

रक्षा बंधन का अर्थ है ( रक्षा+बंधन) अर्थात किसी को अपनी रक्षा के लिए बांध लेना। रक्षाबंधन में राखी या रक्षा सूत्र का सबसे अधिक महत्व है। रक्षाबंधन भाई -बहन के रिश्ते का प्रसिद्ध त्योहार है। राखी सामान्तः बहने भाई को ही बंधती हैं।  परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओ और परिवार में छोटी लड़की द्वारा सम्मानित सम्बंधित के रूप में जैसे (पुत्री अपने पिता को) प्रतिष्ठित वयोक्ति को राखी बांधी जाती है। गुरु शिष्य को राखी बांध सकते है। राखी बांधने के उपलक्ष में भाई अपने बहन को खुश करने के लिए कुछ भेंट में देते है। जिसे भाई बहन के प्यार और मजबूत बनता है। विवाह के बाद भी बहन भाई के घर जाकर अपने स्नेह के बंधन राखी को अपने भाई के कलाई में बांधती है। इसलिए इस दिन का बहनें बड़ी बेसब्री से इंतजार करती हैं। 

कब है रक्षाबंधन
पूर्णिमा तिथि का शुरुआत 30 अगस्त 2023 दिन बुधवार सुबह 10 :13 मिनट से। 
पूर्णिमा तिथि का समाप्ति 31 अगस्त 2023 दिन गुरुवार सुबह 07 :46 मिनट तक। 
रक्षाबंधन कब मनाये इस बात को लेकर शंका बना हुआ है, रक्षाबंधन शुभ मुहूर्त 30 अगस्त 2023 दिन बुधवार समय रात्रि 08 :47 के बाद रक्षाबंधन किया जाये तो शुभ रहेगा। तथा 31 अगस्त दिन गुरुवार इस दिन पूणिमा पड़ रहा है जो रक्षाबंधन के लिए शुभ समय 07:46 मिनट तक है इस समय तक रक्षाबंधन किया जायेगा। 

रक्षाबंधन के दिन बन रहा है भद्रा योग
भद्रा का शुरुआत 30 अगस्त 2023 दिन बुधवार सुबह 10 :13 मिनट से
भद्रा काल की समाप्ति 30 अगस्त 2023 दिन बुधवार रात्रि 08 :47 मिनट तक रहेगा
भद्रा का समय रक्षाबंधन करना निषिद्ध माना गया है सभी शुभ कायो के लिए भद्रा का त्याग करना चाहिए भद्रा के पूर्व -अर्ध भाग में व्याप्त रहती है अतः भद्रा काल में रक्षाबंधन नहीं करना
चाहिए यह समय शुभ कार्यो के लिए शुभ नहीं होता है। 

कैसे मनाना चाहिए रक्षाबंधन

एक थाली लें। उसमें रोली, चंदन, अक्षत, दही, रक्षा सूत्र और मिठाई रखें। साथ में देसी घी का दीपक भी प्रज्ज्वलित करके रखे। पूजा का थाली तैयार करके सर्वप्रथम भगवान को समर्पित करें। इसके उपरांत भाई को पूरब या उत्तर की तरफ मुंह करवाकर के बैठाएं। सर्वप्रथम भाई का तिलक करें फिर रक्षासूत्र बांधने के उपरांत आरती करें। तदुपरान्त मिठाई खिलाकर भाई की मंगलकामना करें। यहां ध्यान रखने योग्य बात यह है रक्षासूत्र बांधने के समय भाई-बहन का सिर खुला हुआ नहीं होना चाहिए तथा रक्षासूत्र बांधने के उपरांत अपने माता पिता एवं गुरु का आशीर्वाद लें। तत्पश्चात अपनी बहन को सामर्थ्य के अनुसार उपहार देना चाहिए।

जाने रक्षाबंधन का कथा :

पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में राजा बलि जब अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे, तो उस समय भगवान श्री विष्णु राजा बलि को छलने के लिए वामन अवतार का रूप धारण कर राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांगी थी. उस समय राजा बलि ने बिना सोचे भगवान विष्णु को तीन पग देने का वचन दे दिया. देखते ही देखते भगवान विष्णु ने अपने छोटे से पांव से दो पग में आकाश और पाताल को नाप लिया. तीसरे पग के लिए राजा बलि के पास कोई जगह नहीं थी. इसलिए उन्होंने अपने सिर को भगवान विष्णु के चरण के नीचे रख दिया.

यह देखकर भगवान विष्णु राजा बलि से बहुत प्रसन्न हुए. तब राजा बलि ने भगवान विष्णु से वचन मांगा कि वह जब देखें तो उसे भगवान विष्णु भी दिखाई दें. यह सुनकर भगवान विष्णु ने राजा बलि को वचन दिया और तथास्तु कहकर पाताल लोक में चले गए. जब भगवान विष्णु पाताल लोक में चले जाने से माता लक्ष्मी को बहुत चिंता होने लगी. माता लक्ष्मी की चिंता को देखकर देवर्षि नारद ने माता एक को सुझाव दिया, कि वह राजा बलि को अपना भाई बना लें.

ऐसा करने से उनके स्वामी वापस उनके पास आ जाएंगे.नारद मुनि की बात सुनकर माता लक्ष्मी स्त्री का वेश धारण करके रोती हुई पाताल लोक में राजा बलि के पास पहुंची. राजा बलि ने जब उन्हें रोता हुआ देखा, तो उन्होंने उनसे रोने का कारण पूछा तब माता लक्ष्मी ने कहा कि मेरा कोई भाई नहीं है. इस वजह से मैं बहुत दुखी हूं. यह सुनकर राजा बलि ने माता लक्ष्मी से कहा तुम मेरी बहन बन जाओं. इसके बाद माता लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधकर अपनी स्वामी भगवान विष्णु को वापस मांग लिया. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है, कि उसी समय से रक्षाबंधन का त्योहार संसार में प्रचलित हो गया.

दूसरी कथा के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया, तब उनकी कनिष्ठा उंगली सुदर्शन चक्र की से कट गई थी. उंगली कटने की वजह से रक्त की धार बहने लगी थी. उसी समय द्रोपदी ने अपने साड़ी के एक टुकड़े को भगवान श्री कृष्ण की उंगली में बांध दिया. उसके बाद से ही भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को अपने बहन के रूप में स्वीकार कर उन्हें हर संकट से बचाने का वचन दिया था. इसी वजह से भगवान श्री कृष्ण ने द्रोपदी को चीर हरण में निर्वस्त्र होने से भी बचाया था.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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