जलालपुर (अखिलेश्वर पांडेय): पटना से बैदा बोलाई द नजरा गई नी गुईंयां, नजरा गईनी गुईंयां जैसे सैकड़ों कालजई रचनाओं के जनक पूर्वी धुन के महान सम्राट, स्वतंत्रता सेनानी पंडित महेंद्र मिश्र आज भी उपेक्षित हैं. उन्हे आजादी के पचहतर साल बाद भी स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा नहीं मिल पाया. इस बावत अपना रोष व्यक्त करते हुए उनके प्रपौत्र पंडित रामनाथ मिश्र कहते हैं कि 1920 के दशक में जब ब्रिटिश मुद्रा लंदन में छपती थी, उस समय बाबा महेंद्र मिश्र कांही मिश्रवलिया में जाली नोट छापने का काम करते थे .उनका मकसद अंग्रेजों की अर्थव्यवस्था को तबाह करने का था..वे स्वतंत्रता सेनानियों को सही मुद्रा देकर आर्थिक मदद करते थे. नोट छापने की खुफिया जानकारी होने पर अंग्रेजी सरकार ने सीआईडी सुरेन्द्र लाल घोष को लगाया जिन्होंने गोपीचंद नाम महेन्द्र मिश्र की मुखबिरी की .उसे तीन साल तक पंडित महेंद्र मिश्र के यहां नौकर बन कर रहना पड़ा.वह महेन्द्र बाबा की सेवा करते हुए उनका विश्वास पात्र बन गया तथा उनके नोट छापने की गोपनीय बात का पता लगा लिया .16अप्रैल 1924 में जब महेंद्र मिश्र नोट छापने के षड्यंत्र में पकड़े गए तो उस समय लंदन टाइम्स में इस बावत खबर छपी थी कि एक भारतीय षड्यंत्र कारी जिसने नोट छाप छाप कर अंग्रेजों की अर्थव्यवस्था को तबाह करने का काम किया है ,पकड़ा गया .
इस खबर को पढ़कर जर्मनी जो अंग्रेजो का गुलाम था द्वितीय विश्व युद्ध के समय वहां के संत सन ह्यूजन कैम्प के स्टापो प्रमुख बर्नार्ड क्रूबर ने महेन्द्र मिश्र से प्रेरणा लेकर जर्मनी मे 1943 मे नोट छापना शुरू किया .उसने अंग्रेजो को भारी आर्थिक नूकसान पहुंचा कमजोर कर जर्मनी को आजाद करा दिया. पंडित महेंद्र मिश्र के प्रपौत्र विनय कुमार मिश्र कहते हैं कि जर्मनी के बर्नाडो क्रूबर ने महेन्द्र मिश्र से प्रेरणा लेकर नोट छाप कर जर्मनी को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करा दिया लेकिन भारत में पंडित मिश्र आज भी उपेक्षित है .आजादी के बाद के जन्म लेनेवाले स्वतंत्रता सेनानियों की सूची में शामिल है जबकि उन्होंने इतना बड़ा काम किया फिर भी वे आजादी के सेनानियों की सूची से गायब है .वहीं उनकी जन्मस्थली आज भी उपेक्षित है . काहीं मिश्रवलिया के ग्रामीण बताते हैं कि महेंद्र बाबा ने प्रथम विश्व युद्ध के बाद जब बिहार मे अकाल पड़ा था ,लोग भूख से मर रहे थे तो उन्होंने सैकड़ों लोगों को 90 हजार गिन्नियां देकर जिन्दगी बचाने का काम किया था .ऐसी व्यक्ति का जन्म स्थली का उपेक्षित रहना बहुत दुखद बात है.
पं पंडित मिश्र पहलवानी भी करते थे तथा अपने दोस्त के लिए हमेशा तत्पर रहते थे .उन्होंने छपरा के अपने जमींदार दोस्त हलिवंत सहाय के लिए मुजफ्फरपुर से गीत गाने वाली की बेटी ढेलाबाई का अपहरण भी किया.बाद में उन्हें अपने इस कृत्य पर अफसोस हुआ .हलिवंत सहाय के जाने के बाद ढेला बाई को हक दिलाने के लिए कोई कसर भी नहीं छोड़ी .
यदि महेंद्र बाबा के साथ न्याय नहीं किया गया तो करूंगा हाई कोर्ट में मुकदमा प्रपौत्र राम नाथ मिश्र कहते हैं कि यदि महेंद्र बाबा के साथ न्याय नहीं किया गया हाईकोर्ट में उनका सम्मान का हक दिलाने के लिए मुकदमा करूंगा .उन्होंने बताया कि उनके स्वतंत्रता सेनानी होने का और अंग्रेजो के खिलाफ लड़ रहे स्वतंत्रता सेनानियों को आर्थिक मदद करने का सीआईडी ऑफिस से 900 पन्ना का साक्ष्य पड़ा है.इसी को लेकर वे हाईकोर्ट में केस करेंगे .वे बताते हैं कि अब तक स्वतंत्रता सेनानी का उन्हे दर्जा नहीं दिया गया न ही उनके पुश्तैनी मकान को बनवाया गया .वे कहते हैं कि पंडित राम महेंद्र मिश्र के वे सब तीसरी पीढ़ी के संतान है .अभी हाल ही में उन्होंने अपने जर्जर घर को बनाया है .महेंद्र मिश्र के नाम पर 5 कट्ठा भी जमीन नहीं है न ही उनसे संबंधित पांच ₹5 ही है .यह बहुत दुखद बात है .वे बताते हैं कि दूसरे प्रदेश में पंडित महेंद्र मिश्र रहते तो म्यूजियम होता घर पर्यटक स्थल के रूप में रहता है हां बिहार सरकार 10 -12 लाख रुपया देकर उनके जन्मोत्सव पर खानापूर्ति जरूर करती है.
भोजपुरी यदि आठवीं अनुसूची में शामिल हो जाए तो महेंद्र बाबा को पढ़कर के भोजपुरी जानने वाले युवक भी बन सकते हैं सिविल सेवा से पदाधिकारी महेन्द्र बाबा के प्रपौत्र पंडित विनय कुमार मिश्र कहते हैंकि भोजपुरी यदि आठवीं अनुसूची में शामिल कर दी जाती है तो भोजपुरी भाषा भाषी क्षेत्र के कई युवा महेंद्र मिसिर के रचनाओ अपूर्व रामायण सहित अन्य को पढ़कर सिविल सेवा की परीक्षा को आसानी से निकाल सकते हैं. उन्होंने कहा कि बाबा महेंद्र मिश्र की महेन्द्र संगीत अपूर्व रामायण 900 पृष्ठों की है जो राजभाषा विभाग से छपने के अंतिम क्रम में है जो भोजपुरी साहित्य के लिए एक बड़ी उपलब्धि है .मिथिलांचल के लोग मैथिली भाषा की आठवीं अनुसूची में शामिल होने से विद्यापति को पढ़कर सिविल सेवा में आसानी से चयनित होते हैं उसी तरह से महेन्द्र बाबा को पढ़कर बहुत सारे लड़के सिविल सेवा में आसानी से सफलता पा सकते हैं .यदि ऐसा होता है तो भोजपुरी भाषियों के लिए यह गौरव की बात होगी.
अमृत महोत्सव में भी महेंद्र बाबा को नहीं रखा गया है
महेंद्र बाबा को आजादी के 75 वे साल पर मनाया जा रहे अमृत महोत्सव में भी शामिल नहीं किया गया है .स्थानीय स्तर पर भी उनकी उपेक्षा की गई है जबकि उन्होंने अपना सारा जीवन देश के लिए लगा दिया .देश व समाज के लिए जीए और इसी मे सब कुछ कुर्बान कर दिया.ऐसे व्यक्ति का नाम स्वतंत्रता सेनानियों के सूची शामिल नहीं किया गया है तो इससे बड़ा दुख क्या हो सकता है .उक्त बातें उनके प्रपौत्र राम नाथ मिश्र कहते हैं.
महेंद्र बाबा के पूर्वी गीतों को सुनकर कठोर दिल इंसान भी सहृदय बन जाता है. महेंद्र बाबा के पूर्वी गीतों की इतनी महत्ता है कि जो भी सुनता है उसका दिल खुशियों से भर जाता है. इस संबंध में जानकारी देते हुए राम जानकी संगीत महाविद्यालय के प्राचार्य विनोद मिश्र ने बताया कि एक से बढ़कर एक पूर्वी गीत हैं. जिसे सुनने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता है. उनके गीतों को गुनगुनाते हुए पानी भरे जात रहनी ,पकवा इनरवा बनवारी हो लग ग ईले ठग बंटवार, बहिया मरोरे मोरा अंगिया निहारे बनवारी हो तुर देले मोतियन के हार ,
हंसी हंसी पूछ ली ललिता विशाखा से नए नवा काहे के लग ईल हो श्याम,
वही युवा गायक हिमांशु कुमार सिंह कहते हैं कि पटना से बैदा बुलाई द नजर आ गईली गुईयां, कहता महेंद्र मोरा कुछ ना भावे ससुर जी के पटना भेजा ही द ,
नजर आ गईली गुईयां,
वही राम जानकी संगीत महाविद्यालय की बाल कलाकार गाते हुए कहती हैं सासु मोरा मारे राम बांस के छिउकिया ननदिया मोरी हो सिसुकत पनिया के जास,
भैया के जगा द …
नशे नशे उठेला लहरिया रे, ननदी अंगूरी में डस्ले बिया नगीनिया ,
शंकर नाम उदास भजे ले मन शंकर नाम उदास कर्णप्रिय गीत सभी सभी को भातें हैं.