डिजिटल युग ने भले ही बाजार को एक नया आयाम दिया हो, लोग चांद और मंगल ग्रह पर जमीन खरीदने की बातें कर रहे हों, लेकिन प्राचीन काल से गांवों में लगने वाली साप्ताहिक हाट का महत्व जरा भी कम नहीं हुआ है। ग्रामीण हाट बाजार प्राचीन परंपराओं से जुड़े व्यवसाय के साथ आपसी संबंधों की बुनियाद को आज भी बरकरार रखे हुए है।

गांवों में तो साप्ताहिक हाट का महत्व है ही, यह परंपरागत हाट शहरों में भी आज भी अपनी पहचान कायम रखी हुई है। सप्ताह के किसी नीयत दिन पर किसी खास स्थान पर लगने वाली हाट में आज भी परंपरागत लोहे के सामान से लेकर मवेशी और पारंपरिक खाद्य सामग्री, जूते-चप्पल कपड़ा, श्रृंगार प्रसाधन हर कुछ उपलब्ध है।

आम तौर पर हाट का नामकरण दिन या हाट लगने वाले गांव के नाम पर होता है, जैसे बुधवार को लगने वाली हाट को बुध बाजार कहा जाता है,।वहीं इसकी पहचान गांव से भी होती है तोरपा बाजार आदि। सही मायने में कहा जाए, तो साप्ताहिक हाट ही ग्रामीण व्यवस्था की रीढ़ है। दूर-दराज के लोग अपनी रोजमर्रा की वस्तुओं की खरीद-बिक्री वहां करते हैं। जानकार बताते हैं कि एक बड़ी साप्ताहिक हाट में एक करोड़ रुपये से अधिक का करोबार होता है। मवेशियों की खरीद-बिक्री का एकमात्र स्थान हाट ही है। गाय, बैल, बकरी, मुर्गी, बत्तख सब कुछ हाट में मिल जाते हैं।

सगे-संबंधियों का मिलन स्थल
साप्ताहिक हाट को सगे-संबंधियों और परिचितों का मिलन स्थल के रूप में भी जाना जाता है। हाट के दिन किसी व्यक्ति का रिश्तेदार से मुलाकात हाट में होना तय है। हाट में आसपास के लगभग सभी गांवों के हाट जरूर जाते हैं। बाजार के दिन सुबह से ही आसपास के क्षेत्रों में यहल-पहल शुरू हो जाती है। अब तो सुबह से ही साप्ताहिक हाट शुरू जाती है, पर लगभग 10-15 वर्ष पूर्व तक हाट का समय दोपहर बारह बजे के बाद ही निर्धारित था। अड़की प्रखंड के हेमरोम जैसे कई गांव में तो बाजार सूर्यास्त के बाद शुरू होता था और रात भर चलता था, लेकिन उग्रवाद के बढ़ने के कारण अब कहीं भी रात को हाट नहीं लगती। पहले डाकिया भी हाट में ही चिट्ठियां बांटता था। गांव के किसी एक व्यक्ति को सारे गांव की चिट्ठी सौंप दी जाती थी। कई लोग तो सिर्फ चिट्ठी लेने के लिए हाट में पहुंचत थे, लेकिन अब यह प्रथा लगभग खत्म हो गयी है।

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Chhapra: अपने संकलन के माध्यम से छात्रों के लिये शोध की कई आवश्यक सामग्रियां छपरा शहर के काशीबाजार के रहने वाले राजेश कुमार सिंह ने तैयार की हैं. राजेश पिछले 25 वर्षों से अखबार के कतरनों का संकलन तैयार कर रहे हैं. वहीं हाल ही में उन्होंने सामान्य अध्ययन का तथ्यात्मक संकलन कर प्रारंभिक कक्षा से लेकर उच्च कक्षाओं तक में अध्ययनरत छात्रों के लिये एक पुस्तक भी तैयार की है. जिसका प्रकाशन जल्द ही होने वाला है.

विदित हो कि अपने संकलन के माध्यम से इन्होंने साहित्य, संस्कृति, खेल, राजनीति आदि विविध विषयों पर एक समृद्ध लाइब्रेरी भी बनायी है. शोध से जुड़े छात्रों के लिये इनके लाइब्रेरी में वह सभी जानकारियां उपलब्ध हैं जो कई बार इंटरनेट पर भी ढूंढने से नहीं मिल पाती. अपनी लाइब्रेरी में पिछले दो दशक से भारतीय राजनीति से जुड़े समाचारों, गतिविधियों, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था, प्रमुख घटनाक्रम, ओलंपिक में भारत आदि विषयों की सामग्री व तसवीरों को अखबार से संकलित कर शामिल किया है.

कोरोना चित्रावली व बिहार धरोहर पर भी किया है काम
राजेश ने बीते दो वर्षों में कोरोना के प्रभाव को दर्शाती अखबार की खबरों को एकत्रित कर एक समृद्धि शोध मटेरियल इकट्ठा किया है. इसमें देश-विदेश के अंतरराष्ट्रीय अखबारों समेत स्थानीय स्तर के समाचार पत्र व पत्रिकाओं का कलेक्शन शामिल है. इसमें कोरोना के प्रारंभिक दौर से लेकर अब तक के घटनाक्रम दर्शाये गये हैं. वहीं बिहार के धरोहरों को लेकर भी उन्होंने अखबार की कतरनों को इकट्ठा किया है. जिसमें बिहार में बड़े आयोजनों से लेकर यहां की संस्कृति व सभ्यता को दर्शाती खबरें एक फोल्डर में रखी गयी हैं. राजेश भारतीय विज्ञान कांग्रेस व भारतीय इतिहास कांग्रेस से जुड़कर अपने संकलन को और समृद्ध बनाने की लिये भी कार्य कर रहे हैं.

स्थानीय विश्वविद्यालय के छात्र मांगते हैं जानकारी
सोशल मीडिया पर राजेश के साथ कई शोध छात्र-छात्राएं जुड़े हैं. महत्वपूर्ण विषयों पर संकलित की गयी सामग्री को यह शोध छात्रों को उपलब्ध कराते हैं. इनकी लाइब्रेरी घर पर ही है. स्थानीय विश्वविद्यालय के छात्र भी कई बार इनकी लाइब्रेरी देखनी आते हैं और जानकारीयां इकट्ठा करते हैं. राजेश ने 1995 से अखबार के कतरनों से उपयोगी संकलन तैयार करना शुरू किया. वह जिले के एकमा प्रखंड स्थित अलखनारायण सिंह उच्च विद्यालय में लाइब्रेरियन पद पर कार्यरत हैं. वर्ष 2018 में बिहार के प्लानर का प्रजेंटेशन त्रिपुरा विश्वविद्यालय में जाकर करने वाले के राज्य के एकमात्र स्कूल लाइब्रेरियन हैं.

साभार: प्रभात किरण हिमांशु 

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‘मिसाइल मैन’ और ‘जनता के राष्ट्रपति’ जैसे नामों से मशहूर भारत के पूर्व राष्ट्रपति और सुविख्यात वैज्ञानिक रहे अबुल पकिर जैनुल आब्दीन अब्दुल कलाम (एपीजे अब्दुल कलाम) का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु स्थित रामेश्वरम के धनुषकोडी गांव में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। अत्यंत कठिन परिस्थितियों के बीच एपीजे कलाम ने अपनी शिक्षा जैसे-तैसे जारी रखी।

अपनी मेधा के दम पर उन्होंने 1950 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके पश्चात हावर क्राफ्ट परियोजना पर काम करने के लिए भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में प्रवेश लिया। साल 1962 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन पहुंचे, जहां कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं में अहम भूमिका निभाई।

उन्होंने चार दशक तक डीआरडीओ और इसरो को संभाला और अंतरिक्ष एवं सैन्य मिसाइल के विकास कार्यक्रमों में शामिल रहे। बैलेस्टिक मिसाइल एवं प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के विकास कार्यों की वजह वे मिसाइल मैन के नाम से सुविख्यात हुए। उन्होंने 1974 के पहले परमाणु परीक्षण और 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण में निर्णायक और संगठनात्मक नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभाई। वर्ष 2002 में देश के राष्ट्रपति बनने के बाद भी उन्होंने सादगी और ईमानदारी का बेहतरीन उदाहरण पेश किया।

अपने जीवन के जरिये उन्होंने युवाओं को सिखाया कि जिंदगी में चाहे कैसी भी परिस्थितियां हों, जब आप अपने सपने को पूरा करने की ठान लेते हैं तो उन्हें पूरा करके ही रहते हैं। उनका संदेश था- यदि आप सूरज की तरह चमकना चाहते हैं तो पहले सूरज की तरह तपना सीखें। राष्ट्रपति के पद से मुक्ति के बाद वे देशभर में घूम-घूमकर स्कूल-कॉलेज के युवाओं को अपने विचारों से प्रेरित करते रहे। इसी बीच 27 जुलाई 2015 को शिलॉन्ग के भारतीय प्रबंधन संस्थान में ऐसे ही एक व्याख्यान के दौरान उन्हें दिल का दौरा पड़ा और कुछ घंटों बाद उनके निधन की खबर आई।

एपीजे कलाम की लिखी कई पुस्तकें आनेवाली कई पीढ़ियों तक युवाओं को प्रेरित करती रहेंगी। इनमें ‘इंडिया 2020 ए विजन फॉर द न्यू मिलेनियम’, ‘माई जर्नी’ और ‘इग्नाटिड माइंड्स-अनलीशिंग द पावर विदिन इंडिया’ शामिल हैं। उनकी आत्मकथा ‘विंग्स ऑफ फायर’ भी काफी लोकप्रिय है, जिसके जरिये उनकी कठिन जीवन यात्रा को समझा जा सकता है। एपीजे कलाम को उनके उल्लेखनीय सेवाकार्यों के लिए भारत रत्न सहित कई प्रतिष्ठित सम्मान मिले। खासतौर पर देश की जनता के बीच उन्हें गहरा सम्मान और प्यार मिला।

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(अभिषेक)

हमारी पृथ्वी हमारे सौरमंडल का एकमात्र सुंदर ग्रह है, जिसमें जीवन है। जिस धरती ने इंसानों को अपनाया, अब इंसान उसी को नस्ट करने पर तुले है। सब कुछ अब बदल गया है इंसान, और दूसरे जानवरों ने अलग तरह से व्यवहार करना शुरू कर दिया है हम ने प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग और अंतिल सीमा तक दुरुपयोग करना शुरू कर दिया है।

आज की पीढ़ी पिछले बिस पच्चीस वर्षों में पृथ्वी के इतिहास में सबसे लापरवाह पीढ़ी है। हम केवल प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग और दुरुपयोग करते हैं और हम पौधों, वन, जल, वायु, आदि की परवाह नहीं कोई परवाह नही हैं। हमे लगता की हम क्या कर सकते और हम ही ये सब क्यों करे? हमे अपने स्वार्थ की चिंता है। अपना काम बनता तो भार मैं जाए दुनिया।

मुझे लगता है कि इन सभी समस्याओं का मुख्य कारण ये है की हम इस सच्चाई को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं कि जिस तरह से हम अपने जीवन को जी रहे हैं ये धरती के अंत का कारण बन गया है।

हमारा पर्यावरण पूरी तरह से प्रदूषित हो गया है, हम प्रदूषित पानी पीने पर मजबूर है धूल भरी हवा मे सास ले रहे है.. इत्यादि , और इसी वजह से हम अनेक बीमारियों से ग्रस्त होते जा रहे है।

हम में से प्रत्येक का विकास, पौधों और जंगल के कारण संभव हुआ है। जंगल हमे ऑक्सीजन, भोजन, आश्रय, चिकित्सा, फर्नीचर इत्यादि देते हैं। जंगल हमें सूरज की गर्मी, ठंडी लहरों और तेज बारिश से बचाते हैं।

वन प्रकृति पर्यावरण के मौसम और वायुमंडल के संतुलन को बनाए रखता है। वास्तव में, जंगल ही हमारा जीवन है, लेकिन हम जंगल को जी नष्ट कर रहे है जिसका मतलब है कि हम अपने जीवन और भविष्य को नष्ट कर रहे हैं।

पिछले कुछ वर्षों मे जो सकारात्मकता आई वो ये है कि दुनिया ने जलवायु परिवर्तन के बारे में बात करना शुरू कर दिया है। अमेरिका ,चाइना, भारत ,रूस और जापान इत्यादि के नेताओं ने इस महत्वपूर्ण विषय पर बोल रहे हैं। दुनिया भर के छात्र अपनी सरकार के खिलाफ दुनिया को बचाने के लिए विरोध कर रहे हैं। दूसरी जो सबसे बड़ी चुनौती इस समय दुनिया मे पहली बार आई है की वो लोग जो दुनिया को चला रहे हैं। जैसे ट्रंप , पुतिन ,मोदी, शी जिनपिंग और शिंजो अबे ये सभी लोग अपने आपको सबसे महान नेता साबित करने में लगे हुए हैं और अपना बहुत बड़ा पैसा इस पर खर्च कर रहे हैं। ये लोग दिखावे के लिए दुनिया को बचाने का नाटक कर रहे हैं। जमीन पर कोई ठोस बदलाव नजर नहीं आ रहे हैं।

सभी मानवीय गतिविधियों के परिणाम स्वरूप ओजोन छिद्र,समुद्र में वृद्धि, अंटार्कटिक आइकैप्स पिघल रहा है। अब ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन से सिर्फ धरती मां खतरे में नहीं है जीवन खतरे में है।

आइए हम अपनी धरती मां को जीवन देकर हमारे जीवन को बचाने के लिए एकजुट हो।

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(श्वेता गोयल)

वर्ष 1964 में प्रधानमंत्री बनने से पहले लाल बहादुर शास्त्री विदेश मंत्री, गृहमंत्री और रेल मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद संभाल चुके थे। ईमानदार छवि और सादगीपूर्ण जीवन जीने वाले लाल बहादुर शास्त्री नैतिकता की मिसाल थे। जब शास्त्री जी प्रधानमंत्री बने, उन्हें सरकारी आवास के साथ इंपाला शेवरले कार भी मिली थी लेकिन उसका उपयोग वे बेहद कम किया करते थे। किसी राजकीय अतिथि के आने पर ही वह गाड़ी निकाली जाती थी।

एकबार शास्त्री जी के बेटे सुनील शास्त्री किसी निजी कार्य के लिए यही सरकारी कार उनसे बगैर पूछे ले गए और अपना काम पूरा करने के पश्चात कार चुपचाप लाकर खड़ी कर दी। जब शास्त्री जी को इस बात का पता चला तो उन्होंने ड्राइवर को बुलाकर पूछा कि गाड़ी कितने किलोमीटर चली ? ड्राइवर ने बताया कि गाड़ी कुल 14 किलोमीटर चली है। उसी क्षण शास्त्री जी ने उसे निर्देश दिया कि रिकॉर्ड में लिख दो, ‘चौदह किलोमीटर प्राइवेट यूज।’ उसके बाद उन्होंने पत्नी ललिता देवी को बुलाकर निर्देश दिया कि निजी कार्य के लिए गाड़ी का इस्तेमाल करने के लिए वह सात पैसे प्रति किलोमीटर की दर से सरकारी कोष में पैसे जमा करवा दें।

प्रधानमंत्री बनने के बाद शास्त्री जी पहली बार अपने घर काशी आ रहे थे, तब पुलिस-प्रशासन उनके स्वागत के लिए चार महीने पहले से ही तैयारियों में जुट गया था। चूंकि उनके घर तक जाने वाली गलियां काफी संकरी थी, जिसके चलते उनकी गाड़ी का वहां तक पहुंचना संभव नहीं था, इसलिए प्रशासन द्वारा वहां तक रास्ता बनाने के लिए गलियों को चौड़ा करने का निर्णय लिया गया। शास्त्री जी को यह पता चला तो उन्होंने तुरंत संदेश भेजा कि गली को चौड़ा करने के लिए कोई भी मकान तोड़ा न जाए, मैं पैदल ही घर जाऊंगा।

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान 1940 के दशक में लाला लाजपत राय की संस्था ‘सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसायटी’ द्वारा गरीब पृष्ठभूमि वाले स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को जीवनयापन हेतु आर्थिक मदद दी जाती थी। उसी समय की बात है, जब लाल बहादुर शास्त्री जेल में थे। उन्होंने उस दौरान जेल से ही पत्नी ललिता देवी को एक पत्र लिखकर पूछा कि उन्हें संस्था से पैसे समय पर मिल रहे हैं या नहीं और क्या इतनी राशि परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त है ? पत्नी ने उत्तर लिखा कि उन्हें प्रतिमाह पचास रुपये मिलते हैं, जिसमें से करीब चालीस रुपये ही खर्च हो पाते हैं, शेष राशि वह बचा लेती हैं। पत्नी का यह जवाब मिलने के बाद शास्त्री जी ने संस्था को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने धन्यवाद देते हुए कहा कि अगली बार से उनके परिवार को केवल चालीस रुपये ही भेजे जाएं और बचे हुए दस रुपये से किसी और जरूरतमंद की सहायता कर दी जाए।

रेलमंत्री रहते हुए शास्त्री जी एक बार रेल के एसी कोच में सफर कर रहे थे। उस दौरान वे यात्रियों की समस्या जानने के लिए जनरल बोगी में चले गए। वहां उन्होंने अनुभव किया कि यात्रियों को कितनी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इससे वे काफी नाराज हुए और उन्होंने जनरल डिब्बे के यात्रियों को भी सुविधाएं देने का निर्णय लिया। रेल के जनरल डिब्बों में पहली बार पंखा लगवाते हुए रेलों में यात्रियों को खानपान की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए पैंट्री की सुविधा भी उन्होंने शुरू करवाई।

2 अक्तूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में जन्मे भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की आज हम 117वीं जयंती मना रहे है। उनके बाद कई प्रधानमंत्रियों ने देश की बागडोर संभाली लेकिन उनके जितना सादगी वाला कोई दूसरा प्रधानमंत्री देखने को नहीं मिला। सही मायनों में शास्त्री जी को उनकी सादगी, कुशल नेतृत्व और जनकल्याणकारी विचारों के लिए ही स्मरण किया जाता है और सदैव किया भी जाता रहेगा। उनके पदचिह्नों पर चलने का संकल्प लेना ही सच्चे अर्थों में उन्हें हमारी श्रद्धांजलि होगी।

(इनपुट एजेंसी से..  लेखिका शिक्षिका हैं।)

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लेखनी में रुचि रखने वाली 18 वर्षीय तस्नीम कौसर की नॉवेल ‘There is Story Behind Every Story’ लोगों को खूब पसंद आ रही है.

तस्नीम कौसर फिलहाल अलीगढ़ विश्वविद्यायल से 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद स्नातक प्रथम वर्ष में हैं. उन्होंने छपरा के भागवत विद्यापीठ से 10वीं पास किया है.

तस्नीम की इस पुस्तक में बताया है कि हर इंसान की अपनी एक अलग कहानी होती है और वह अपनी जिंदगी को खुद के हिसाब से बनाता है. इस नॉवेल में पारिवारिक समस्या, दोस्ती, धैर्य, संघर्ष, प्रेरणा, और निर्णय को बखूबी शब्दों में सजाने की कोशिश की गई है.

तस्नीम बताती हैं कि इस उपन्यास को लिखने में उनकी बुआ और बहन ने भी मदद की है. साथ ही उनके नाना ने काफी प्रेरित किया है.

यह पुस्तक ऑनलाइन फ्लिपकार्ट, अमेजन और नोशनप्रेस पर उपलब्ध है.

पुस्तक: There is Story Behind Every Story
लेखिका: तस्नीम कौसर
मूल्य: 130 रुपये
प्रकाशक: एक्सप्रेस पब्लिसिंग

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Chhapra: राष्ट्रीय सेवा योजना दिवस के अवसर पर जयप्रकाश विश्वविद्यालय के एनएसएस स्वयंसेवकों ने कुलपति डॉ फारूक अली के नेतृत्व में स्वच्छता अभियान चलाया.

इस दौरान कार्यक्रम पदाधिकारियों एवं स्वयंसेवक,स्वयंसेविकाओं ने राजेंद्र सरोवर परिसर में स्वच्छता अभियान चलाकर विश्वविद्यालय की ओर से राष्ट्रीय सेवा योजना का स्थापना दिवस मनाया.

कुलपति प्रो फारूक अली ने स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए कहा कि सेवा भावना से ही आगे बढ़ा जा सकता है. इसी सेवा भावना को आत्मसात करने वाली एक बेटी आज राष्ट्रपति के हांथो सम्मानित हो रही है. जिससे विश्वविद्यालय का मान बढ़ाया है. ये हम सब के लिए गर्व की बात है.

वहीं एनएसएस समन्वयक प्रो हरिश्चंद्र ने कहा कि राष्ट्रीय सेवा योजना में स्वयंसेवकों में उत्साहवर्धन के लिए कुलपति स्वयं स्वच्छता अभियान में शामिल हुए. उन्होंने कहा कि हम सब ने राष्ट्रीय सेवा योजना पुरस्कार से सम्मानित हो रही जेपीयू कि छात्रा ममता कुमारी को लाइव प्रसारण में टेलीविजन पर देखा जो अपने आप में गौरव का क्षण था.

इस दौरान रामजयपाल महाविद्यालय के कार्यक्रम पदाधिकारी डा सत्येंद्र कुमार सिंहा एवं डा ऐमन रियाज, राजेंद्र महाविद्यालय के कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ रमेश कुमार, जगदम महाविद्यालय की कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ राजश्री, गंगा सिंह महाविद्यालय की कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ माधवी उपस्थित थीं

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बेगूसराय (एजेंसी): बिहार कि सांस्कृतिक, साहित्यिक और औद्योगिक राजधानी बेगूसराय ने अपनी उर्वर भूमि पर एक से एक विभूति को पैदा किया है, जो बीते और वर्तमान काल खंड में ही नहीं, भविष्य में भी सदैव याद किए जाते रहेंगे।

वैसे ही विभूतियों में एक हैं राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर। 23 सितम्बर 1908 को मुंगेर जिला (अब बेगूसराय) के सिमरिया गांव में मनरूप देवी एवं रवि सिंह के घर द्वितीय पुत्र के रूप में पैदा हुए रामधारी के बारे में किसी को कहां पता था कि यह कभी राष्ट्रीय फलक पर ध्रुवतारा सा चमकते हुए दिनकर बन जाएगा। दिनकर की प्रारंभिक शिक्षा उनके घर गांव सिमरिया तथा बारो स्कूल से शुरू हुआ। लेकिन उच्च विद्यालय की पढ़ाई करने के लिए 15 किलोमीटर पैदल चलकर गंगा के पार मोकामा उच्च विद्यालय जाना होता था। कभी तैरकर तो कभी नाव से गंगा नदी पार कर जाने की मजबूरी थी, लेकिन स्कूल जाते रोज थे।

1928 में मोकामा उच्च विद्यालय से प्रवेशिका (मैट्रिक) पास करने बाद इनका नामांकन पटना विश्वविद्यालय के पटना कॉलेज पटना में इतिहास विभाग में हो गया। 1932 में वहां से इतिहास में ऑनर्स (प्रतिष्ठा) की डिग्री हासिल कर, 1933 में बरबीघा उच्च विद्यालय के प्रधानाध्यापक पद पर तैनात हुए। सरकारी सेवा में रहने के बाद भी कभी नाम बदलकर तो कभी अपने नाम से, अपनी रचनाओंं के माध्यम से जोश भरने के कारण लगातार स्थानांतरण का दंश भी झेलना पड़ा। एक साल में ही वहां से हटाकर दिनकर को निबंधन विभाग के अवर निबंधक के रूप में नियुक्त कर दिया गया। 1943 से 1945 तक संगीत प्रचार अधिकारी तथा 1947 से 1950 तक बिहार सरकार के जनसंपर्क विभाग में निदेशक के पद पर कार्यरत रहे।

संविधान बनने के बाद जब प्रथम निर्वाचन हुआ तो तेजस्वी वाणी, प्रेरक कविता एवं राष्ट्र प्रेरक कविता की धारणा के कारण दिनकर को कांग्रेस द्वारा राज्यसभा सदस्य मनोनीत कर दिया गया। पहली बार 1952 से 1958 तक तथा इसके बाद 1958 से 1963 तक दूसरी बार राज्यसभा के सदस्य रहे। 1962 में लोकसभा का चुनाव हारने वाले ललित नारायण मिश्रा ने जब अपने लिए उनसे इस्तीफा देने का अनुरोध किया था तो बगैर सोचे समझे राज्यसभा सदस्य पद से इस्तीफा देे दिया। 1963 से 1965 तक बेमन से ही सही, लेकिन भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। इसके बाद रामधारी सिंह दिनकर को 1965 से लेकर जून 1971 तक (सेवानिवृत्त होने तक) भारत सरकार के हिंदी विभाग में सलाहकार का दायित्व निर्वहन करना पड़ा। 1959 में उन्हें अपने अनमोल कीर्ति ”संस्कृति के चार अध्याय” के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। 1959 में ही भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद से उन्होंने पद्मभूषण प्राप्त किया था। भागलपुर विश्वविद्यालय के चांसलर डॉ. जाकिर हुसैन (बाद में भारत के राष्ट्रपति बने) से साहित्य के डॉक्टर का सम्मान मिला।

गुरुकुल महाविद्यालय द्वारा विद्याशास्त्री के रूप में अभिषेक मिला। आठ नवंबर 1968 को दिनकर को साहित्य-चूड़मानी के रूप में राजस्थान विद्यापीठ उदयपुर में सम्मानित किया गया। 1972 में उर्वशी के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अपनी लेखनी के माध्यम से सदा अमर रहने वाले राष्ट्रकवि द्वारा द्वापर युग की ऐतिहासिक घटना महाभारत पर आधारित प्रबन्ध काव्य ”कुरुक्षेत्र” को विश्व के एक सौ सर्वश्रेष्ठ काव्यों में 74 स्थान दिया गया है। 1972 का ज्ञानपीठ पुरस्कार दिनकर के जीवन में एक नई आशा का संचार लाया। लेकिन 24 अप्रैल 1974 की शाम गंगा की गोद में उत्पन्न दिनकर के अस्ताचल जाने की शाम थी। उसी रात राष्ट्रकवि ने तिरुपति बालाजी से लौटने के दौरान मद्रास में अंतिम सांसे ली। राष्ट्रकवि और दिनकर की उपाधि से विभूषित रामधारी सिंह गांव में पैदा हुए और सदा जमीन से जुड़े रहे। जीवन भर संघर्ष करते हुए राष्ट्र की भावना को निरंतर सशक्त भाषा में अभिव्यक्त कर अपनी अद्वितीय रचनाओं के कारण हिंदी साहित्य के इतिहास में अमर हो गए।

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स्वयं पर विश्वास होना बेहद जरुरी है, जिन्हें स्वयं पर विश्वास होता है, वे निसंदेह ही कामयाब होते है. ऐसा मूलमंत्र देती लेखक प्रशांत सिन्हा की पुस्तक “कामयाबी के मार्ग” युवा मन को सही दिशा प्रदान करने में बेहतरीन सिद्ध हो रही है.

लेखक ने इस पुस्तक के माध्यम से अपने अनुभवों को साझा करते हुए युवाओं को अवसर की पहचान, उस अवसर को अपने आत्मविश्वास के बल पर खुद के पक्ष में करने के जज्बे को जगाने की कोशिश की है. 

लेखक ने आत्मविश्वास को बढ़ाने के पांच मूल मंत्र दिए है, जिनमे आत्म जागरूकता, विचारधारा, इरादा, धराये और रचनात्मक कल्पना शामिल है. आत्म विश्वास नकारात्मक परिस्थितियों में भी जीने की प्रेरणा देता है.

लेखक ने पुस्तक में आत्मबल जगाने, प्रभावी संवाद स्थापित करने, दूरदर्शी और लक्ष्य के निर्धारण पर जोर दिया है. इसके साथ ही तनाव और चिंता से दूर रहने के मंत्र दिए है. साथ ही अवसर को पहचानते हुए उसमे खुद को साबित करने और समय के प्रबंधन की प्रेरणा दी है.

पुस्तक में कुछ प्रेरणादायक कहानियों के माध्यम से युवाओं के आत्म विश्वास और उत्साह को बढाने का प्रयास किया गया है.

पुस्तक के लेखक प्रशांत सिन्हा मूल रूप से बिहार के पटना के रहने वाले है, वे दिल्ली के माइक्रोकाउन्ट्स इन्फोसिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक है और समसामयिक स्तंभकार भी हैं.

कुल मिलाकर प्रशांत सिन्हा की यह पुस्तक “कामयाबी के मार्ग” युवाओं में नयी जोश भरेगी. साथ ही उन्हें आत्मविश्वास के साथ जीवन में आगे  बढ़ने की प्रेरणा देगी. 

पुस्तक परिचय

पुस्तक: कामयाबी के मार्ग

प्रकाशक: आंचल प्रकाशन, नई दिल्ली
मूल्य: 100 रुपये

 

लेखक: प्रशांत सिन्हा

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वीर सावरकर ने जलाई विदेशी वस्त्रों की होलीः स्वतंत्रता आंदोलन में विदेशी वस्त्रों की होली जलाना एक बड़ा हथियार बना। यह स्वदेशी का शंखनाद था। वर्ष 1921 में गांधी जी के आह्वान पर बड़ी संख्या में भारतवासियों ने विदेशी कपड़ों की जगह भारतीय वस्त्र अपना लिए थे। उस साल 22 अगस्त को महात्मा गांधी ने ‘स्वदेशी’ का नारा बुलंद करते हुए विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। तब लोगों में राष्ट्रीयता की भावना और अधिक तीव्र हुई, फिर भी इस बारे में इतिहास एक बड़े तथ्य को भुला बैठा है। प्रमाण ये भी हैं कि गांधी जी से पहले 1906 में ही वीर सावरकर ने विदेशी वस्त्रों की होली जलाई थी। संयोग से तब भी 22 अगस्त की ही तारीख थी। उन्हें 13 मार्च, 1910 को लंदन के रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया था। फिर तो वीर सावरकर की अंडमान निकोबार जेल याात्रा की रोमांच भरी कहानियां जहां-तहां मौजूद ही हैं। वीर सावरकर को 20 वर्ष तक इस जेल में रखा गया, जिसे काला पानी की सजा कहते हैं। देर से ही सही, प्रखर राष्ट्रवादी विनायक दामोदर सावरकर को महान स्वतंत्रता सेनानी, प्रखर चिंतक, इतिहासकार और समाज सुधारक के रूप में याद किया जाने लगा है। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पर लिखी उनकी पुस्तक को अंग्रेजों ने प्रेस से ही जब्त कर लिया था। विदेशों में भारतीय महापुरुषों पर इतिहास लेखन में सुधार का भी सावरकर ने महत्वपूर्ण काम किया था।

अन्य महत्वपूर्ण घटनाएंः

1639: ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने तमिलनाडु की राजधानी मद्रास (अब चेन्नै) की स्थापना की।

1848: अमेरिका का न्यू मैक्सिको पर कब्जा हुआ।

1849: इटली के शहर वेनिस पर चालक रहित गुब्बारों से इतिहास का पहला हवाई हमला ऑस्ट्रिया ने किया।

1944: अमेरिका, ब्रिटेन, रूस और चीन के प्रतिनिधियों की संयुक्त राष्ट्र के गठन की योजना पर बैठक।

1969: अमेरिका में आए समुद्री तूफान में 255 लोगों की मौत।

2007: अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की मरम्मत के लिए गया अंतरिक्ष यान एंडेवर फ्लोरिडा में कैनेडी स्पेस सेंटर पर सुरक्षित उतरा।

2007: इसी साल मिस्र के पुरातत्त्वविदों ने पश्चिम रेगिस्तान के सिवा क्षेत्र में करीब 20 लाख साल पुराने मानव पद-चिह्नों को खोजा।

2018: एशियाई खेलों की निशानेबाजी में 25 मीटर पिस्टल निशानेबाजी में स्वर्ण पदक हासिल करने वाली राही सरनोबत पहली भारतीय महिला बनीं।

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युगाब्ध-5123, विक्रम संवत 2078, राष्ट्रीय शक संवत-1943

सूर्योदय 05.50, सूर्यास्त 06.40, ऋतु – वर्षा

श्रावण शुक्ल पक्ष पूर्णिमा, रविवार, 22 अगस्त 2021 का दिन आपके लिए कैसा रहेगा। आज आपके जीवन में क्या-क्या परिवर्तन हो सकता है, आज आपके सितारे क्या कहते हैं, यह जानने के लिए पढ़ें आज का भविष्यफल।

मेष राशि :- आज का दिन अच्छा रहेगा। व्यापार लाभदायक रहेगा, लेकिन अनावश्यक खर्च बढऩे से आर्थिक स्थिति कमजोर हो सकती है। संपर्कों के जरिए प्रगति के नए अवसर मिलेंगे, जिससे ऊर्जा व उत्साह से परिपूर्ण रहेंगे। पैतृक संपत्ति से धनलाभ होने के योग रहेंगे। परिवार में मांगलिक कार्यों की योजना बनेगी। जीवनसाथी का पूरा सहयोग मिलेगा। सेहत का ख्याल रखें। यात्रा लाभदायी रहेगी।

वृषभ राशि :- आज का दिन आर्थिक रूप से लाभकारी रहेगा। कारोबार में अच्छा मुनाफा और नौकरी में तरक्की मिलने के योग रहेंगे। प्रॉपर्टी और शेयर बाजार में निवेश से अच्छा लाभ मिलेगा। नए लोगों से मुलाकात हो सकती है। व्यक्तिगत स्वार्थ हावी हो सकता है। सेहत संबंधी समस्याएं बढ़ सकती हैं। कारोबार के सिलसिले में यात्रा भी कर सकते हैं। परिवार में किसी से मनमुटाव की संभावना रहेगी।

मिथुन राशि :- आज का दिन सामान्य रहेगा। बेरोजगारों को रोजगार के अच्छे अवसर प्राप्त हो सकते हैं। व्यापारियों को थोड़ी अड़चनें आ सकती हैं। कार्यक्षेत्र में कार्यभार बढ़ेगा और खर्च की अधिकता से आर्थिक स्थिति कमजोर रहेगी। सामाजिक कार्यों में मन लगेगा व समाज में प्रतिष्ठा बढ़ेगी। पारिवारिक जिम्मेदारी पूर्ण करेंगे। प्रभावशाली लोगों से मुलाकात होगी। जीवनसाथी का पूरा सहयोग मिलेगा।

कर्क राशि :- आज का दिन उतार-चढ़ाव भरा रहेगा। कारोबार की स्थिति सामान्य रहेगी। सफलता के कई अवसर हाथ आएंगे, लेकिन काम का बोझ बढऩे से कई मौके हाथ से फिसल भी सकते हैं। क्रोध की अधिकता रहेगी, इसलिए वाणी पर संयम रखकर वाद-विवाद से बच सकते हैं। सामाजिक गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं। निवेश सोच समझकर करें। यात्रा पर जाने से बचें और स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

सिंह राशि :- आज का दिन मिला-जुला रहेगा। व्यापार में लाभ के अवसर मिलेंगे, लेकिन उसके लिए कड़ा परिश्रम करना पड़ेगा। कार्यों में सफलता मिलने से नई ऊर्जा का अनुभव करेंगे। निवेश से बचना होगा। पारिवारिक संबंध मधुर होंगे। क्रोध पर नियंत्रण एवं वाणी पर संयम रखें। कार्यक्षेत्र में सहकर्मी से विवाद हो सकता है। सेहत को लेकर चिंतित रहेंगे। किसी धार्मिक यात्रा पर जाने के योग बनेंगे।

कन्या राशि :- आज का दिन सामान्य रहेगा। लंबे समय से अटकी योजना पूरी हो सकती हैं। नौकरी के नए अवसर मिलने की संभावना रहेगी। कार्यभार अधिक होने से शारीरिक और मानसिक रूप से थकान महसूस करेंगे। खर्च की अधिकता रहेगी। परिवार में किसी से मनमुटाव हो सकता है। मित्रों की सलाह काम आएगी। जीवनसाती का पूरा सहयोग मिलेगा। यात्रा सुखद रहेगी। धर्म कर्म के प्रति आस्था बढ़ेगी।

तुला राशि :- आज का दिन मिला-जुला रहेगा। कारोबार की स्थिति यतावत रहेगी। कठिन परिश्रम से सभी कार्य सफल होंगे और मित्रों का पूरा सहयोग मिलेगा, अनावश्यक खर्च बढऩे से तनाव में रह सकते हैं। स्वास्थ्य की स्थिति कमजोर रहेगी। दाम्पत्य जीवन अच्छा रहेगा। धर्म-ध्यान में रुचि बढ़ेगी। मांगलिक आयोजनों में शामिल हो सकते हैं। परिवार में बड़ों का स्नेह व विश्वास प्राप्त होगा।

वृश्चिक राशि :- आज का दिन उतार-चढ़ाव भरा रहेगा। कारोबार में आर्थिक लाभ मिल सकता है, लेकिन फैसले सोच-समझकर लेने होंगे। सौदे संभलकर करें, अन्यथा किसी बड़े नुकसान की भी संभावना रहेगी। मित्रों से अच्छे संबंध रहेंगे और परिवार में हर्ष-उल्लास का वातावरण रहेगा। नौकरीपेशा वर्ग में उत्साह बना रहेगा। जीवनसाथी के साथ संबंध मधुर होंगे। यात्रा पर जाने से बचें और स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

धनु राशि :- आज का दिन शुभ फलदायी रहेगा। कारोबार में अच्छा मुनाफा और नौकरी में तरक्की मिलने की संभावना रहेगी। आकस्मिक धनलाभ के योग भी रहेंगे। आमदनी बढऩे से मानसिक सुख की प्राप्ति होगी और परिवार के साथ धार्मिक यात्रा पर जा सकते हैं। पुराने मित्रों से मुलाकात हो सकती है। जल्दबाजी में निर्णय लेने से बचें। घर में मांगलिक कार्य हो सकते हैं। खान-पान का ध्यान रखना होगा।

मकर राशि :- आज का दिन मिला-जुला रहेगा। कारोबार लाभदायक रहेगा और नौकरी में तरक्की के साथ स्थान परिवर्तन के योग रहेंगे। लम्बे समय से प्रयासरत कार्यों में सफलता मिलेगी। आमदनी में वृद्धि से आर्थिक स्थिति में सुधार होगा, लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारी पूर्ण नहीं होने से तनाव झेलना पड़ सकता है। खान-पान में सावधानी रखें। मित्रों से कार्यों में मदद मिलेगी। सामाजिक कार्यों में रुचि बढ़ेगी।

कुम्भ राशि :- आज का दिन अच्छा रहेगा। कारोबार में आशानुरूप सफलता और फायदा मिलेगा। व्यापार में नई ऊंचाइयों को छू सकते हैं। सामाजिक कार्यों में भाग लेने से समाज में प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी। अधिक परिश्रम से मानसिक एवं शारीरिक रूप से थकान व अस्वस्थता महसूस करेंगे। छोटी मोटी यात्रा करना पड़ सकता है। परिवार के साथ समय बिताएंगे। दांपत्य जीवन में खुशियां आएंगी। स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

मीन राशि :- आज का दिन शुभ फलदायी रहेगा। मेहनत के बेहतर परिणाम मिलेंगे। कारोबार में लाभकारी सौदे होंगे। व्यापारिक रुकावटें दूर होंगी। नए निवेश के अवसर मिलेंगे। नौकरीपेशा लोगों को कार्यक्षेत्र में बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है। अनावश्य खर्चों पर नियंत्रण रखें। परिवार का माहौल सुखमय होगा। जीवनसाथी से सामंजस्य बना रहेगा। खान-पान का ध्यान रखें, स्वास्थ्य संबंधी परेशानी आ सकती है।

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कुमार वीरेश्वर सिन्हा

आज हमारे महान शहनाई वादक स्व बिस्मिल्लाह खां की पुण्यतिथि है। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश, बल्कि हमारे भोजपुरी क्षेत्र के इस महान सपूत ने शहनाई वादन में अभूतपूर्व कीर्तिमान स्थापित किए। हालांकि सिनेमा फिल्मों में शहनाई बजाने से उन्होंने परहेज किया फिर भी एक फिल्म गूंज उठी शहनाई में बस उनकी शहनाई ही गूंजती रही।

बस दो ही सुर के इस कठिन साज पर खां साहब को कमाल की महारत थी। देश की आजादी के प्रथम महोत्सव पर 15 अगस्त 1947 को लालकिले से गूंजने वाली शहनाई खां साहब की ही थी जो वर्षो तक गूंजती रही।

आज दुर्भाग्य से शहनाई भी उन साजों में आ गयी है जो विलुप्त होती जा रही है। इस कठिन साज के साधकों का अभाव होता जा रहा है और आज के शोर भरे संगीत के युग में शहनाई की मधुर संगीत घुट सी रही है। वह जमाना गुजरा जमाना हो गया जब शादियों में नोबतखाने बनते थे और उस पर लुभावने और अवसर अनुकूल धुन बजते थे। यह कहना कदापि अनुचित नहीं होगा कि तब शादी या कोई शुभ अवसर बिना शहनाई वादन के नहीं होता था। मातमों में भी शहनाई के निर्गुण सुनने को
मिलता थे।

गीत संगीत का कोई मजहब नहीं होता और और बनारस में गंगा तट पर खां साहब की संगीत साधना और काशी विश्वनाथ की संगीत अर्चना के किस्से जग जाहिर हैं।

हमारे छपरा शहर में भी शहनाई की परंपरा थी और हाफिज खां साहब जो नई बाजार मुहल्ले के रहने वाले थे एक बहुत ही अजीम शहनाई वादक थे। बडे़ बुजुर्ग कहा करते थे कि एक बार छपरा के किसी तब की बड़ी हस्ती के यहाँ बनारस से कोई बारात आइ थी जिसमें वर पक्ष से बिस्मिल्ला खां साहब आए थे और कन्या पक्ष से हमारे छपरा के हफीज साहब और महफिल में दोनों शहनाई वादकों का भिड़ंत हुआ था। कौन जीता कौन हारा यह तो जानकारों ने ही समझा होगा, पर अंत में खां साहब को भाव विभोर हो यह कहते बहुतों ने सुना, ” मान गए, छपरा में भी कोई शहनाई बजाने वाला है “। खां साहब ने हफीज साहब को अपने साथ चलने को भी आमंत्रित किया था लेकिन हफीज साहब घर छोड़ कर जाने को राजी नहीं हुए।

मुझे खुशी है कि मैंने खां साहब को तो बस रेकोरडेड और गूंज उठी शहनाई में सुना है, पर हफीज साहब को रुबरू और बहुत करीब से। यहां तक कि मैंने सन 1958 में उनके साथ छपरा से चकिया तक का सफर रेल से और फिर चकिया से मधुबन (पूर्वी चम्पारण) का सफर बैलगाड़ी में तय किया था। बैलगाड़ी के डेढ़ घंटे के सफर में कभी तो हफीज साहब अपने कार्यक्रमों की कहानियों सुनाते तो कभी अपने मन से कोई धुन छेड़ देते। मुझे उनसे बहुत अपनापन महसूस होने लगा था जब मुझे
उन्होंने यह कहा कि बेटा हम तुम्हारे वालिद दोनों भाइयों के बारात में बजाए हैं और तुम्हारी बारात में भी बजाएंगे। पर दुःख है मेरी शादी के समय हफीज साहब दुनिया से कुच कर चुके थे।

यह जानकार कर काफी खुशी हुई कि उनके वंश के ही मोहम्मद पंजतन उनकी परंपरा को बखूबी निभा रहे है।

प्रो० कुमार वीरेश्वर सिन्हा

(लेखक राजेन्द्र कॉलेज, छपरा के अंग्रेजी विभाग के पूर्व प्राध्यापक है)

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