भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष के तृतीया तिथि को हरतालिका व्रत यानी तीज का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए रखती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति रूप में पाने के लिए इस व्रत को किया था। देवी पार्वती की घोर तपस्या देखकर

भगवान शिव उनके सामने आए और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। हरतालिका तीज में भगवान शिव ,माता गौरी एवम गणेश जी की पूजा का महत्व है यह व्रत निर्जला रहकर महिलाये इस व्रत को करती है ।यह व्रत संकल्प शक्ति का एक अटूट उदाहरण है अर्थात किसी कर्म लिए मन में निश्चित करना कर्म का मूल संकल्प है।

इस व्रत का एक सामाजिक संदेश विशेषतः महिलायों के संदर्भ में यह है कि आज महिलाये बीते समय की तुलना में अधिक आत्मनिर्भर तथा स्वतंत्र है महिलाये की भूमिका में बदलाव आये है.

कब मनाए हरितालिक यानी तीज व्रत।

18 सितंबर 2023 दिन सोमवार को मनाया जायेगा।

तृतीया तिथि का प्रारंभ 17 सितंबर 23 को सुबह 11 :08 मिनट से
तृतीया तिथि का समाप्त 18 सितंबर 23 दोपहर 12:39 मिनट तक

हरतालिका तीज व्रत के विधि तथा नियम।

इस विशेष दिन पर सुहागिन महिलाये सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करे तथा नए या साफ वस्त्र धारण करे इसके बाद दीपक जलाये तथा व्रत का संकल्प करे.हरतालिका का पूजन
संध्या काल में किया जाता है.इनका पूजन के लिए मिटटी या बालू के रेत से बनाकर भगवान शिव ,पार्वती गणेश एवं रिधि -सिद्धि की प्रतिमा को पूजन करते है पूजन के लिए छोटी चौकी पर लाल या पिला कपडा रखकर सभी मिटटी से बने हुए प्रतिमा को रखे ,कलश रखे कलश के ऊपर नारियल रखे ,नारियल पर कलावा बांधे ,कुमकुम ,चावल ,चंदन
पुष्प चढ़ाकर विधिवत भगवान शिव तथा उनके परिवार को पूजन करे तथा बेलपत्र चढ़ाये ,माता गौरी को श्रृगार की सामान चढ़ाये पूजन करने के बाद कथा का श्रवण करे उसके बाद आरती करे।
रात्रि में जागरण करे सुबह मिटटी से बना शिवलिंग का सुबह में नदी या तालाब में विसर्जन कर दे और सुहाग की सामग्री ब्राह्मण को दान कर दे उसके बाद व्रत का पारण करे ।

तीज में सुहाग की पिटारी का महत्व क्या है।

तीज में सुहाग की पिटारी का महत्व बहुत ज्यादा है पिटारी बास का बना होता है इसमे कुमकुम, मेहदी, बिंदी, काजल, पावडर, सिंदूर चूड़ी, कंघी, समेत अनेक सुहाग की सामग्री रहता है ।

तीज व्रत के लिए पूजन सामग्री

चंदन, जानेव, फुल, नारियल, चावल, पान केपत्ता, इलायची, लौंग, पांच प्रकार का फल, मिठाई, पूजा की चौकी, धतुर के फुल तथा फल, कलश , पूजन करने के लिए तांबे का लोटा, दूर्वा, घी, रुई बत्ती, अगरबती, धुप, कपूर, बेलपत्र आम के पता, शमी के पता.

हरतालिका तीज व्रत कथा

भगवान शिव ने पार्वतीजी को उनके पूर्व जन्म का स्मरण कराने के उद्देश्य से इस व्रत के माहात्म्य की कथा कही थी।
श्री भोलेशंकर बोले- हे गौरी! पर्वतराज हिमालय पर स्थित गंगा के तट पर तुमने अपनी बाल्यावस्था में बारह वर्षों तक अधोमुखी होकर घोर तप किया था। इतनी अवधि तुमने अन्न न खाकर पेड़ों के सूखे पत्ते चबा कर व्यतीत किए। माघ की विक्राल शीतलता में तुमने निरंतर जल में प्रवेश करके तप किया। वैशाख की जला देने वाली गर्मी में तुमने पंचाग्नि से शरीर को तपाया। श्रावण की मूसलधार वर्षा में खुले आसमान के नीचे बिना अन्न-जल ग्रहण किए समय व्यतीत किया।

तुम्हारे पिता तुम्हारी कष्ट साध्य तपस्या को देखकर बड़े दुखी होते थे। उन्हें बड़ा क्लेश होता था। तब एक दिन तुम्हारी तपस्या तथा पिता के क्लेश को देखकर नारदजी तुम्हारे घर पधारे। तुम्हारे पिता ने हृदय से अतिथि सत्कार करके उनके आने का कारण पूछा।
नारदजी ने कहा- गिरिराज! मैं भगवान विष्णु के भेजने पर यहां उपस्थित हुआ हूं। आपकी कन्या ने बड़ा कठोर तप किया है। इससे प्रसन्न होकर वे आपकी सुपुत्री से विवाह करना चाहते हैं। इस संदर्भ में आपकी राय जानना चाहता हूं।
नारदजी की बात सुनकर गिरिराज गद्‍गद हो उठे। उनके तो जैसे सारे क्लेश ही दूर हो गए। प्रसन्नचित होकर वे बोले- श्रीमान्‌! यदि स्वयं विष्णु मेरी कन्या का वरण करना चाहते हैं तो भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है। वे तो साक्षात ब्रह्म हैं। हे महर्षि! यह तो हर पिता की इच्छा होती है कि उसकी पुत्री सुख-सम्पदा से युक्त पति के घर की लक्ष्मी बने। पिता की सार्थकता इसी में है कि पति के घर जाकर उसकी पुत्री पिता के घर से अधिक सुखी रहे।
तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर नारदजी विष्णु के पास गए और उनसे तुम्हारे ब्याह के निश्चित होने का समाचार सुनाया। मगर इस विवाह संबंध की बात जब तुम्हारे कान में पड़ी तो तुम्हारे दुख का ठिकाना न रहा।

तुम्हारी एक सखी ने तुम्हारी इस मानसिक दशा को समझ लिया और उसने तुमसे उस विक्षिप्तता का कारण जानना चाहा। तब तुमने बताया – मैंने सच्चे हृदय से भगवान शिवशंकर का वरण किया है, किंतु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी से निश्चित कर दिया। मैं विचित्र धर्म-संकट में हूं। अब क्या करूं? प्राण छोड़ देने के अतिरिक्त अब कोई भी उपाय शेष नहीं बचा है। तुम्हारी सखी बड़ी ही समझदार और सूझबूझ वाली थी। उसने कहा- सखी! प्राण त्यागने का इसमें कारण ही क्या है? संकट के मौके पर धैर्य से काम लेना चाहिए। नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि पति-रूप में हृदय से जिसे एक बार स्वीकार कर लिया, जीवनपर्यंत उसी से निर्वाह करें। सच्ची आस्था और एकनिष्ठा के समक्ष तो ईश्वर को भी समर्पण करना पड़ता है। मैं तुम्हें घनघोर जंगल में ले चलती हूं, जो साधना स्थली भी हो और जहां तुम्हारे पिता तुम्हें खोज भी न पाएं। वहां तुम साधना में लीन हो जाना। मुझे विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे।

तुमने ऐसा ही किया। तुम्हारे पिता तुम्हें घर पर न पाकर बड़े दुखी तथा चिंतित हुए। वे सोचने लगे कि तुम जाने कहां चली गई। मैं विष्णुजी से उसका विवाह करने का प्रण कर चुका हूं। यदि भगवान विष्णु बारात लेकर आ गए और कन्या घर पर न हुई तो बड़ा अपमान होगा। मैं तो कहीं मुंह दिखाने के योग्य भी नहीं रहूंगा। यही सब सोचकर गिरिराज ने जोर-शोर से तुम्हारी खोज शुरू करवा दी। इधर तुम्हारी खोज होती रही और उधर तुम अपनी सखी के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन थीं। भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र था। उस दिन तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण करके व्रत किया। रात भर मेरी स्तुति के गीत गाकर जागीं। तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन डोलने लगा। मेरी समाधि टूट गई। मैं तुरंत तुम्हारे समक्ष जा पहुंचा और तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर तुमसे वर मांगने के लिए कहा।तब अपनी तपस्या के फलस्वरूप मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा – मैं हृदय से आपको पति के रूप में वरण कर चुकी हूं। यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर आप यहां पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिए।

तब मैं ‘तथास्तु’ कह कर कैलाश पर्वत पर लौट आया। प्रातः होते ही तुमने पूजा की समस्त सामग्री को नदी में प्रवाहित करके अपनी सहेली सहित व्रत का पारणा किया। उसी समय अपने मित्र-बंधु व दरबारियों सहित गिरिराज तुम्हें खोजते-खोजते वहां आ पहुंचे और तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या का कारण तथा उद्देश्य पूछा। उस समय तुम्हारी दशा को देखकर गिरिराज अत्यधिक दुखी हुए और पीड़ा के कारण उनकी आंखों में आंसू उमड़ आए थे।

तुमने उनके आंसू पोंछते हुए विनम्र स्वर में कहा- पिताजी! मैंने अपने जीवन का अधिकांश समय कठोर तपस्या में बिताया है। मेरी इस तपस्या का उद्देश्य केवल यही था कि मैं महादेव को पति के रूप में पाना चाहती थी। आज मैं अपनी तपस्या की कसौटी पर खरी उतर चुकी हूं। आप क्योंकि विष्णुजी से मेरा विवाह करने का निर्णय ले चुके थे, इसलिए मैं अपने आराध्य की खोज में घर छोड़कर चली आई। अब मैं आपके साथ इसी शर्त पर घर जाऊंगी कि आप मेरा विवाह विष्णुजी से न करके महादेवजी से करेंगे।गिरिराज मान गए और तुम्हें घर ले गए। कुछ समय के पश्चात शास्त्रोक्त विधि-विधानपूर्वक उन्होंने हम दोनों को विवाह सूत्र में बांध दिया।

हे पार्वती! भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के फलस्वरूप मेरा तुमसे विवाह हो सका। इसका महत्व यह है कि मैं इस व्रत को करने वाली कुंआरियों को मनोवांछित फल देता हूं। इसलिए सौभाग्य की इच्छा करने वाली प्रत्येक युवती को यह व्रत पूरी एकनिष्ठा तथा आस्था से करना चाहिए।

ज्योतिषाचार्ज संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

0Shares

अयोध्या, 07 सितम्बर (हि.स.)। श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को लेकर खास तैयारियां हैं। भगवान के जन्म के लिए गुरुवार की रात 12 बजे राम मन्दिर का अस्थायी गर्भगृह के कपाट कान्हा के दर्शन के लिए खुलेंगे। पूरे एक घण्टे के लिए राम जन्मभूमि परिसर का मंदिर खोला जाएगा।

रामनगरी में मथुरा की तरह इस उत्सव को बेहद धूमधाम के साथ सभी मंदिरों में मनाया जा रहा है। सभी मंदिरों में भगवान का श्रीकृष्ण का जन्म मध्य रात्रि में होगा। रामनगरी में भी कान्हा के जयकारे लगाए जा रहे हैं। साथ ही साथ कई स्थानों पर भव्य पंडाल में आकर्षक झांकियां भी सजाई गई है।

बुधवार को गृहस्थों ने और गुरुवार को मठ-मंदिरों में उत्सव का आयोजन हो रहा है। इस बार द्वापर की तरह जयंती योग पर भगवान कृष्ण घर-घर जन्मेंगे। इस तिथि पर 36 साल बाद सर्वार्थसिद्ध, रवि, हर्षण और सिद्धि योग का भी संयोग हैं।

0Shares

पंचांग के अनुसार जन्माष्टमी का त्योहार भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष अष्टमीतिथि तथा रोहिणी नक्षत्र में यह उत्सव मनाया जाता है। जन्माष्टमी का त्योहार अधर्म को समाप्त करने के लिए तथा धर्म की रक्षा करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ इसलिए इस दिन भगवान के जन्मोत्सव मनाया जाता है।

इस दिन भगवान श्रीकृष्ण मथुरा नगरी में कंश के कारागार में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन कृष्ण जन्म उत्सव के उपलक्ष्य में सभी घर में पूजन किया जाता है तथा मंदिर में जगह -जगह कीर्तन तथा झाकिया सजाई जाती है। इस दिन महिला तथा पुरुष रात्रि के बारह बजे तक व्रत रहकर भगवान के जन्म के उपरांत उनका पूजन करते है।

हर साल जन्मष्टमी दो दिन मनाया जाता है। पहला दिन गृहस्थ जीवन वाले जन्माष्टमी मानते है। दूसरे दिन वैष्णव संप्रदाय वाले जन्माष्टमी मानते है। इस साल भगवान श्री कृष्ण का 5250 वा जन्मदिवस यानि जन्माष्टमी त्योहार के रूप में मनाया जायेगा। 

कब मनाया जायेगा जन्माष्टमी क्या है शुभ मुहूर्त 
06 सितम्बर 2023 दिन बुधवार की रात्रि में भगवान कृष्ण की जन्मोत्सव मनाया जायेगा इस दिन गृहस्थ जीवन वाले के लिए रहेगा वही 07 सितम्बर 2023 को वैष्णव संप्रदाय वाले जन्माष्टमी मनायेगे। 

इस दिन बन रहा है अद्भुत शुभ संयोग
इस साल जन्माष्टमी के दिन बन रहा है शुभ संयोग इस तरह के संयोग में भगवान का उत्सव मनाने से सभी मनोकामना पूर्ण हो जाते है। परिवार में प्रेम -सौहार्द बना रहता है। पहला संयोग भाद्रपद मास दूसरा कृष्णपक्ष, सर्वार्थ सिद्ध योग, अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, दिन बुधवार, सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है, जो 06 सितम्बर 23 को सुबह 05:32 से लेकर, अगले दिन 07 सितम्बर 23 को सुबह 05:32 मिनट तक रहेगा। 

अष्टमी तिथि का प्रारंभ 06 सितम्बर 23 को 03:37 दोपहर से प्रारंभ होगा.
अष्टमी तिथि का समाप्त 07 सितम्बर 23 को 04:14 संध्या तक रहेगा.

रोहिणी नक्षत्र का आरंभ 06 सितम्बर 23 को सुबह 09 :20 से लेकर अगले दिन 07 सितम्बर 23 को सुबह 10:25 तक मिल रहा है दिन बुधवार जो गणेश जी का दिन है बहुत ही शुभ है।

पूरी होगी सभी मनोकामना

धार्मिक मान्यताओ के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव पृथ्वी लोक पर बढ़ रहे अत्याचारों को खत्म करने तथा धर्म की रक्षा करने के लिए विष्णु भगवान ने अपना आठवा अवतार
भगवान कृष्ण के रूप में लिए थे इसलिए इस दिन पूजन करने से संतान की प्राप्ति ,प्रेम सम्बन्ध मजबूत होगा ,परिवार में सुख भरपूर मिलेगा,इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को माखन या मेवा से भोग लगाये आपके सभी मनोकामना पूर्ण होंगे .

जन्माष्टमी पूजा -विधि

इस दिन सुबह उठकर नित्यकर्म से निवृत्त होकर नया या साफ कपडे धारण करे साथ ही भगवान कृष्ण की प्रतिमा को स्नान कराये ,इसके बाद प्रतिमा पर शहद ,माखन ,दूध ,केशर या
पंचामृत से स्नान कराये , भगवान कृष्ण को पलना में बैठाये ,उनपर फूल ,फूलमाला ,तुलसी पता चंदन ,गंगाजल हल्दी ,कुमकुम आदि को समर्पित करे मोर का पंख बासुरी ,मुकुट , चंदन तथा तुलसी के माला चढ़ाये,धुप -दीप तथा अगरबती दिखाए इसके बाद भगवान को मिश्री का भोग ,मिठाई ,मेवा ऋतुफल का भोग लगाये,इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को श्रधा के साथ
पूजन करे रात्रि में जागरण करे .

जाने भगवान श्री कृष्ण के अलग -अलग नाम ।

भगवान श्री कृष्ण के बाल अवस्था में बड़े प्यार से लोग अलग -अलग नाम से बुलाते थे इन्हे कोई कान्हा, श्रीकृष्ण, गोपाल, श्याम, गोविन्द, मुरारी, मुरलीधर, गोपी, मुकुंद, घनश्याम, बालगोपाल, मधुसुधन, जनार्धन, जगरनाथ आदि के नाम से लोग जानते है तथा पूजन करते है.

भगवान श्रीकृष्ण के मंत्र क्या है

ॐ देविकानन्दनाय विधमहे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्ण:प्रचोदयात।

महामंत्र के जाप करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।

कथा
द्वापर युग में कंस ने अपने पिता उग्रसेन राजा की राज गद्दी छीन कर, उन्हें सिंहासन से उतार दिया था और जेल में बंद कर दिया था। इसके बाद कंस ने गुमान में खुद को मथुरा का राजा घोषित किया था। कंस की एक बहन भी थी। जिनका नाम देवकी था। देवकी की शादी विधि-विधान के साथ वासुदेव की गई थी और कंस ने धूम-धाम से देवकी का विवाह कराया लेकिन कथा अनुसार जब कंस देवकी को विदा कर रहा था, तब आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र कंस का वध करेगा। यह आकाशवाणी सुनकर कंस की रुह कांप गई और वह घबरा गया। 

ऐसी आकाशवाणी सुनने के बाद कंस ने अपनी बहन देवकी की हत्या करने का मन बना लिए लेकिन वासुदेव ने कंस को समझाया कि ऐसा करने का कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि कंस को देवकी से नहीं, बल्कि उसकी आठंवी संतान से भय है.

जिसके बाद वासुदेव ने कंस से कहा कि जब उनकी आठवीं संतान होगी तो वह उसे कंस को सौंप देंगे. ये सुनने के बाद कंस ने वासुदेव और देवकी को जेल में कैद कर लिया.इसके बाद क्रूर कंस ने देवकी और वासुदेव की 7 संतानों को मार दिया. जब देवकी की आठवीं संतान का जन्म होने वाला था, तब आसमान में घने और काले बादल छाए हुए थे और बहुत तेज बारिश हो रही थी. इसके साथ ही आसमान में बिजली भी कड़क रही थी.

मान्यता के मुताबिक मध्यरात्रि 12 बजे जेल के सारे ताले खुद ही टूट गए और वहां की निगरानी कर रहे सभी सैनिकों को गहरी नींद आ गई और वो सब सो गए. कहा जाता है कि उस समय भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्हें वासुदेव-देवकी को बताया कि वह देवकी के कोख से जन्म लेंगे.

इसके बाद उन्होंने कहा कि वह उन्हें यानी उनके अवतार को गोकुल में नंद बाबा के पास छोड़ आएं और उनके घर जन्मी कन्या को मथुरा ला कर कंस को सौंप दें. इसके बाद वासुदेव ने भगवान के कहे अनुसार किया. वह कान्हा को नंद बाबा के पास छोड़ आए और गोकुल से लाई कन्या को कंस को सौंप दिया.

क्रोधित कंस ने जैसे ही कन्या को मारने के लिए अपना हाथ उठाया तो अचानक कन्या गायब हो गई. जिसके बाद एक आकाशवाणी हुई कि कंस जिस शिशु को मारना चाहता है वो गोकुल में है. यह आकाशवाणी सुनकर कंस डर गया को अपने भांजे कृष्ण को मारने के लिए उसने राक्षसों को गोकुल भेज कर कान्हा का असतित्व मिटाने की कोशिश की लेकिन श्रीकृष्ण ने सभी राक्षसों का एक-एक कर वध कर दिया और आखिर में भगवान विष्णु के अवतार ने कंस का भी वध कर दिया.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

0Shares

माता वैष्णो देवी के भक्त दिल्ली से 6 घंटे में पहुंच जायेंगे कटरा

Delhi: भारतीय राष्‍ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण जल्द ही माता वैष्णों देवी के भक्तों के बड़ा तोहफा देने जा रहा है. अगर सबकुछ ठीक रहा तो लोग दिल्ली से सुबह चलकर रात तक माता वैष्णो देवी का दर्शन कर लेंगे.

एनएचएआई तेजी से 670 किलोमीटर वाले दिल्‍ली-कटरा एक्‍सप्रेसवे के निर्माण में जुटा है. आशा व्यक्त की जा रही है कि अगले साल दिसंबर तक यह एक्सप्रेस वे बनकर तैयार हो जाएगा.

इस एक्सप्रेसवे के शुरू होते ही अभी दिल्ली से कटरा की 14 घंटे की दूसरी घटकर महज 6 घंटे की हो जाएगी. यानी यात्रियों के 8 घंटे बचेंगे.

दिल्‍ली-कटरा एक्‍सप्रेसवे के शुरू होते ही दोनों शहरों के बीच की दूरी 8 घंटे कम हो जाएगी. यानी भक्तगण दिल्‍ली से सुबह चलकर शाम तक माता वैष्‍णो देवी के दर्शन कर लेंगे.

4 लेन के बन रहे इस एक्सप्रेसवे को भविष्य में 8 लेन तक बढ़ाने की योजना है. बताते चले कि इसका ज्‍यादातर हिस्‍सा हरियाणा में है. 670 किलोमीटर वाला यह एक्‍सप्रेस वे दिल्‍ली के पास हरियाणा के झज्‍झर जिले से शुरू होकर कटरा तक जाएगा.

जानकारी के मुताबिक दिल्‍ली-कटरा एक्‍सप्रेसवे पर गाड़ियों की अधिकतम स्‍पीड 120 किलोमीटर प्रति घंटे तक निर्धारित की जा सकती है.

दिल्‍ली-कटरा एक्‍सप्रेसवे के बन जाने से दोनों शहर के बीच 140 किलोमीटर की दूरी मौजूदा 730 किलोमीटर से कम होकर 590 किलोमीटर रह जाएगी. इसके साथ 14 घंटे का 8 घंटे कम होकर महज 6 घंटे का रह जाएगा.

इसके बाद यदि कोई व्यक्ति सुबह 5 बजे दिल्‍ली से कटरा के लिए निकलता हैं तो 11 से 12 के बीच कटरा पहुंच जाएगा. यहां अगर वो व्यक्ति 1 से 2 बजे बीच वैष्‍णो माता दरबार के लिए चढ़ाई शुरू करता है तो वो 8 से 9 बजे तक माता रानी की दरबार में पहुंच सकता है.

इतना ही इस एक्सप्रेस वे के बन जाने से दिल्ली से अमृतसर महज 4 घंटे में पहुंचना मुमकिन हो सकता है. ऐसे में दिल्ली से सुबह निकल लोग स्‍वर्ण मंदिर में मत्‍था टेक कर शाम तक वापस भी आ सकता है.

इस एक्सप्रेसवे का निर्माण दो पैकेज यानी फेज में हो रहा है. एक्‍सप्रेसवे के फस्ट फेज करीब 400 किलोमीटर का ग्रीनफील्‍ड एक्‍सप्रेसवे का निर्माण किया जा रहा है जो दिल्‍ली से लुधियाना और गुरदासपुर के बीच बन रहा है. इसके साथ ही नाकोदर से अमृतसर के बीच 99 किलोमीटर के एक कनेक्टिंग रोड का भी निर्माण होना है.

जबकि दिल्‍ली-कटरा एक्‍सप्रेसवे के निर्माण के फेज टू में गुरदासपुर से पठानकोट और जम्‍मू से कटरा तक निर्माण होना है. इसके साथ पठानकोट से गोबिंदसर के बीच 12.34 किलोमीटर के एक लिंक रोड निर्माण की भी योजना है. इससे हरियाणा के झज्‍झर, रोहतक, सोनीपत, जींद, करनाल और कैथल जिले तक जाना आसान हो जाएगा.

इसके साथ ही फेज टू में पंजाब के पटियाला, संगरूर, लुधियाना, जालंधर, कपूरथला, तरनतारन, अमृतसर और गुरदासपुर जिले तक भी लिंक रोड बनाया जाने का प्रस्ताव है.

0Shares

हर साल की भाति इस साल भी रक्षाबंधन का त्योहार को लेकर बहुत ही संशय बना हुआ है। लोग भ्रम में पड़ गए है। कब इस त्योहार को मनाया जाये पंचांग के अनुसार यह त्योहार सावन की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह त्योहार भाई -बहन के स्नेह की डोर में बांधने वाला त्योहार है। इस दिन बहन भाई के हाथ में रक्षा बंधती है तथा मंगल की कमाना के चंदन का टिका लगाती है। रक्षाबंधन में राखी या रक्षा सूत्र का सबसे अधिक महत्व है रक्षाबंधन भाई -बहन के रिश्ते का प्रसिद्ध त्योहार है।  राखी सामान्तः बहने भाई को ही बंधती है परन्तु ब्राह्मणों गुरुओ और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा समानित सम्बंधित के रूप में जैसे (पुत्री अपने पिता को ) प्रतिष्ठित व्यक्ति को राखी बंधी जाती है। 

इसे भी पढ़ें: रक्षाबंधन कब है, कब बांधे राखी, क्या है शुभ मुहुर्त, जानें

कैसे मिला भद्रा को शुभ कार्य करने से मनाही

भद्रा में शुभ कार्य करना शुभ नहीं होता है। यह शनि की तरह कड़क है जन्म लेते ही भद्रा यज्ञ में विध्य -बाधा करने लगती है। मंगल कार्यो में बाधा उत्पन करती है। एक बार ब्रह्मा जी ने भद्रा से कहा की हे भद्रे बव, बालव , कौलव, आदि करण के अंत में निवास करो तथा भद्रा के दौरान विवाह संस्कार, मुंडन संस्कार, यात्रा, यज्ञोपवीत, नया कार्य तथा रक्षा बंधन एवं मांगलिक कार्य करे उसमे में विध्न डालो इस तरह से उपदेश देकर ब्रह्मा जी अपने लोक चले गए उस समय से भद्रा काल में शुभ कार्य नहीं किया जाता है। 

रक्षाबंधन के दिन कब से बन रहा है भद्रा योग
भद्रा का शुरुआत 30 अगस्त 2023 दिन बुधवार सुबह 10 :13 मिनट से
भद्रा काल की समाप्ति 30 अगस्त 2023 दिन बुधवार रात्रि 08 :47 मिनट तक रहेगा। 
भद्रा का समय रक्षाबंधन करना निषिद्ध माना गया है सभी शुभ कायो के लिए भद्रा का त्याग करना चाहिए भद्रा के पूर्व -अर्ध भाग में व्याप्त रहती है अतः भद्रा काल में रक्षाबंधन नहीं करना चाहिए यह समय शुभ कार्यो के लिए शुभ नहीं होता है

पूर्णिमा कब से है जाने समय क्या है 
पूर्णिमा तिथि का शुरुआत 30 अगस्त 2023 दिन बुधवार सुबह 10 :13 मिनट से .
पूर्णिमा तिथि का समाप्ति 31अगस्त 2023 दिन गुरुवार सुबह 07 :46 मिनट तक .

जाने क्या है रक्षाबंधन का शास्त्रीय नियम 
शास्त्रीय नियम के अनुसार रक्षाबंधन और 30 अगस्त दिन बुधवार को रात्रि 08 :48 मिनट से रक्षाबंधन मनाया जायेगा जाएगा। जो अगले दिन यानि 31अगस्त 2023 दिन गुरुवार को
सुबह 07:45 मिनट रक्षाबंधन किया जायेगा। धर्म सिंधु के अनुसार अपराह्न या प्रदोष व्यापिनी श्रावण शुक्ल रक्षाबंधन मनाया जाता है।  किंतु शर्त यह हैं कि उस समय भद्रा व्याप्त नही होनी चाहिए। उपरोक्त विवरण के अनुसार यह योग 30 अगस्त दिन बुधवार के रात में 8:48 मिनट के बाद मिल रहा है उस समय कर सकते है। 

धर्मसिन्धु के अनुसार क्या है रक्षाबंधन का निर्णय 

पूर्णिमायां भद्रारहितायां त्रिमुहुर्ताधिकोदय व्यापिन्यामपराह्ने प्रदोषे वा कार्यम्।
जैसा धर्मसिंधु में उल्लेख है कि भद्रायां द्वे न कर्तव्यम् श्रावणी फाल्गुनी वा। श्रावणी नृपतिं हन्ति,ग्रामों दहति फाल्गुनी।
अर्थात भद्रा काल में दो त्यौहार नहीं मनाने चाहिए.श्रावणी अर्थात रक्षाबंधन,भद्रा काल में रक्षाबंधन मनेगा तो राजा के लिए कष्टकारी है.

जानें, रक्षाबंधन पर भ्रम क्यों बना हुआ है

रक्षाबंधन का त्योहार भाई -बहन के प्रेम का प्रतिक है लौकिक व्यवहार में रक्षा विधान हमेशा सुबह के समय अथवा दोपहर में होता है इसीलिए इस दिन में उदया तिथि ली जाती है इस
बार इस तरह के कोई संयोग नहीं बन रहा है .इसलिए ऐसा कफुजन बना हुआ है . दूसरी कनफूजन यह है बहन अपने भाई के घर अपने ससुराल से आती है जो उनके रात्रि में आने जाने
को लेकर परेशानी होगा ऐसे लोग 31 अगस्त को रक्षाबंधन करे शास्त्रसमय अनुसार .

राखी बांधने का मंत्र:
येन बद्धो बलि राजा दानवेंद्रो महाबल:।
तेनत्वां प्रति बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।

 

संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

0Shares

देवी स्थानों पर गमाला पूजन का हुआ आयोजन

Chhapra: सावन की अंतिम सोमवारी को लेकर एक और जहां शहर से लेकर गांव तक शिवालयों में जलाभिषेक को लेकर भक्तों की भीड़ जुटी रही, वहीं दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्र के देवी मंदिरों में गमाला पूजन का आयोजन किया गया.

गमाला पूजा को लेकर सुबह से ही गांव के देवी स्थान पर भक्तों की भीड़ जुटनी शुरू हो चुकी थी, जैसे-जैसे दिन बढ़ता गया भक्तों की भीड़ जुटने लगी.

जिले के लगभग सभी देवी स्थान पर इस पूजन का आयोजन किया गया, जिसमे शहर में रहने वाले लोगों ने भी अपनी उपस्थिति दिखाई.

गमाला पूजा देवी स्थान पर आयोजित की जाती है जिसमे प्रत्येक घर से माता की पूजा देवी स्थानों पर की जाती है. भक्तों ने पूजा करते हुए सुख, शांति एवं समृद्धि की कामना की. इस अवसर पर स्थानीय लोगों द्वारा पारंपरिक देवी गीत भी गया गया. जिसमें लोगों ने भाग लिया.

ग्रामीण क्षेत्रों में गमला पूजा को पूरे जोश एवं उत्साह के साथ मनाया गया.

0Shares

Chhapra:भगवान शिव के प्रिय मास सावन की अंतिम सोमवारी पर जिले भर के शिवालयों में शिव भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी। सुबह से ही  सभी शिवालयों में शिव भक्तों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया था। खासकर महिलाओं में पूजा अर्चना को लेकर काफी उत्साह देखा गया। शहर समेत ग्रामीण क्षेत्र के शिवालयों में दिन भर शिव भक्तों का तांता लगा रहा।

इस दौरान महिला और पुरुष श्रद्धालुओं ने शिवालय पहुंचकर भगवान भोलेनाथ पर फल, फूल, नैवेद्ध, भांग, धतूरा, बेलपत्र आदि चढ़कर पूजा अर्चना किया। इसके साथ ही श्रद्धालु पूजा कर शिवलिंग पर जलाभिषेक कर भक्ति में लीन दिखे। पूजन को लेकर नगर के बूढ़ानाथ मंदिर, शिव शक्ति मंदिर, भूतनाथ मंदिर, मनसकामना नाथ मंदिर के अलावा सभी शिवालयों में शिव भक्तों का तांता लगा रहा।

बाबा को जल अर्पण करने को लंबी कतार दिखी। अंतिम सोमवारी को शिव भक्तों की उत्साह भी काफी देखी गई। हर शिवालयों आकर्षक ढंग से सजाया गया था। शिव भक्तों की सुरक्षा में महिला और पुरुष पुलिस बल हर शिवालयों और चौक चौराहे तैनात दिखे ।

0Shares

सावन की पूर्णिमा को भाई -बहन के स्नेह की डोर में बांधने वाला त्योहार रक्षाबंधन मनाया जाता है। इस दिन बहन भाई के हाथ में रक्षा बांधती है तथा उनकी मंगल कमाना के लिए चंदन का टिका लगाती है।

रक्षा बंधन का अर्थ है ( रक्षा+बंधन) अर्थात किसी को अपनी रक्षा के लिए बांध लेना। रक्षाबंधन में राखी या रक्षा सूत्र का सबसे अधिक महत्व है। रक्षाबंधन भाई -बहन के रिश्ते का प्रसिद्ध त्योहार है। राखी सामान्तः बहने भाई को ही बंधती हैं।  परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओ और परिवार में छोटी लड़की द्वारा सम्मानित सम्बंधित के रूप में जैसे (पुत्री अपने पिता को) प्रतिष्ठित वयोक्ति को राखी बांधी जाती है। गुरु शिष्य को राखी बांध सकते है। राखी बांधने के उपलक्ष में भाई अपने बहन को खुश करने के लिए कुछ भेंट में देते है। जिसे भाई बहन के प्यार और मजबूत बनता है। विवाह के बाद भी बहन भाई के घर जाकर अपने स्नेह के बंधन राखी को अपने भाई के कलाई में बांधती है। इसलिए इस दिन का बहनें बड़ी बेसब्री से इंतजार करती हैं। 

कब है रक्षाबंधन
पूर्णिमा तिथि का शुरुआत 30 अगस्त 2023 दिन बुधवार सुबह 10 :13 मिनट से। 
पूर्णिमा तिथि का समाप्ति 31 अगस्त 2023 दिन गुरुवार सुबह 07 :46 मिनट तक। 
रक्षाबंधन कब मनाये इस बात को लेकर शंका बना हुआ है, रक्षाबंधन शुभ मुहूर्त 30 अगस्त 2023 दिन बुधवार समय रात्रि 08 :47 के बाद रक्षाबंधन किया जाये तो शुभ रहेगा। तथा 31 अगस्त दिन गुरुवार इस दिन पूणिमा पड़ रहा है जो रक्षाबंधन के लिए शुभ समय 07:46 मिनट तक है इस समय तक रक्षाबंधन किया जायेगा। 

रक्षाबंधन के दिन बन रहा है भद्रा योग
भद्रा का शुरुआत 30 अगस्त 2023 दिन बुधवार सुबह 10 :13 मिनट से
भद्रा काल की समाप्ति 30 अगस्त 2023 दिन बुधवार रात्रि 08 :47 मिनट तक रहेगा
भद्रा का समय रक्षाबंधन करना निषिद्ध माना गया है सभी शुभ कायो के लिए भद्रा का त्याग करना चाहिए भद्रा के पूर्व -अर्ध भाग में व्याप्त रहती है अतः भद्रा काल में रक्षाबंधन नहीं करना
चाहिए यह समय शुभ कार्यो के लिए शुभ नहीं होता है। 

कैसे मनाना चाहिए रक्षाबंधन

एक थाली लें। उसमें रोली, चंदन, अक्षत, दही, रक्षा सूत्र और मिठाई रखें। साथ में देसी घी का दीपक भी प्रज्ज्वलित करके रखे। पूजा का थाली तैयार करके सर्वप्रथम भगवान को समर्पित करें। इसके उपरांत भाई को पूरब या उत्तर की तरफ मुंह करवाकर के बैठाएं। सर्वप्रथम भाई का तिलक करें फिर रक्षासूत्र बांधने के उपरांत आरती करें। तदुपरान्त मिठाई खिलाकर भाई की मंगलकामना करें। यहां ध्यान रखने योग्य बात यह है रक्षासूत्र बांधने के समय भाई-बहन का सिर खुला हुआ नहीं होना चाहिए तथा रक्षासूत्र बांधने के उपरांत अपने माता पिता एवं गुरु का आशीर्वाद लें। तत्पश्चात अपनी बहन को सामर्थ्य के अनुसार उपहार देना चाहिए।

जाने रक्षाबंधन का कथा :

पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में राजा बलि जब अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे, तो उस समय भगवान श्री विष्णु राजा बलि को छलने के लिए वामन अवतार का रूप धारण कर राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांगी थी. उस समय राजा बलि ने बिना सोचे भगवान विष्णु को तीन पग देने का वचन दे दिया. देखते ही देखते भगवान विष्णु ने अपने छोटे से पांव से दो पग में आकाश और पाताल को नाप लिया. तीसरे पग के लिए राजा बलि के पास कोई जगह नहीं थी. इसलिए उन्होंने अपने सिर को भगवान विष्णु के चरण के नीचे रख दिया.

यह देखकर भगवान विष्णु राजा बलि से बहुत प्रसन्न हुए. तब राजा बलि ने भगवान विष्णु से वचन मांगा कि वह जब देखें तो उसे भगवान विष्णु भी दिखाई दें. यह सुनकर भगवान विष्णु ने राजा बलि को वचन दिया और तथास्तु कहकर पाताल लोक में चले गए. जब भगवान विष्णु पाताल लोक में चले जाने से माता लक्ष्मी को बहुत चिंता होने लगी. माता लक्ष्मी की चिंता को देखकर देवर्षि नारद ने माता एक को सुझाव दिया, कि वह राजा बलि को अपना भाई बना लें.

ऐसा करने से उनके स्वामी वापस उनके पास आ जाएंगे.नारद मुनि की बात सुनकर माता लक्ष्मी स्त्री का वेश धारण करके रोती हुई पाताल लोक में राजा बलि के पास पहुंची. राजा बलि ने जब उन्हें रोता हुआ देखा, तो उन्होंने उनसे रोने का कारण पूछा तब माता लक्ष्मी ने कहा कि मेरा कोई भाई नहीं है. इस वजह से मैं बहुत दुखी हूं. यह सुनकर राजा बलि ने माता लक्ष्मी से कहा तुम मेरी बहन बन जाओं. इसके बाद माता लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधकर अपनी स्वामी भगवान विष्णु को वापस मांग लिया. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है, कि उसी समय से रक्षाबंधन का त्योहार संसार में प्रचलित हो गया.

दूसरी कथा के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया, तब उनकी कनिष्ठा उंगली सुदर्शन चक्र की से कट गई थी. उंगली कटने की वजह से रक्त की धार बहने लगी थी. उसी समय द्रोपदी ने अपने साड़ी के एक टुकड़े को भगवान श्री कृष्ण की उंगली में बांध दिया. उसके बाद से ही भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को अपने बहन के रूप में स्वीकार कर उन्हें हर संकट से बचाने का वचन दिया था. इसी वजह से भगवान श्री कृष्ण ने द्रोपदी को चीर हरण में निर्वस्त्र होने से भी बचाया था.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

0Shares

Chhapra: शहर के कटरा मुहल्ला में स्थित अति प्राचीन बाबा मनोकामना नाथ मंदिर का जीर्णोद्धार होगा। इसके लिए अभियान की शुरुआत 28 अगस्त प्रातः 11:00 बजे वैदिक मंत्र उच्चारण के साथ किया  जाएगा।

मंदिर समिति के कार्यकारिणी सदस्य एवं ग्राम वासियों ने सैकड़ो की संख्या में रविवार को बाबा मनोकामना नाथ से प्रार्थना कर वेंकटेश्वर नाथ मंदिर कटरा, जैन मंदिर, रथ वाली दुर्गा जी,  काठ की देवी, काली बाड़ी, सत्यनारायण मंदिर, सांवलिया जी का मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर होते हुए बाबा धर्मनाथ मंदिर, बाबा बटुकेश्वर नाथ पंच मंदिर दौलतगंज, महर्षी दधिचि आश्रम उमानाथ मंदिर दहियावां, बहुरिया कुलपति कुंवर मंदिर, मणिनाथ मंदिर बाबा, अरबरनाथ मंदिर नई बाजार में जाकर पूजा अर्चना किया गया। भूत भावन भोलेनाथ से प्रार्थना की गई कि आपका कार्य आप खुद करा लेंगे हम सभी एक माध्यम है हमें शक्ति प्रदान करें । मंदिर जीर्णोद्धार कायाकल्प का कार्यक्रम निर्विघ्न संपन्न हो।

इस अवसर पर मंदिर समिति के अध्यक्ष उदय प्रताप सिंह मुन्ना एवं सचिव अरुण पुरोहित ने समस्त छपरा वासियों से निवेदन किया कि इस शुभ घड़ी में श्रावण मास की आठवीं सोमवारी 28 अगस्त प्रातः 11:00 बजे मंदिर परिसर में आप सभी सब परिवार आकर पुण्य के भागीदार बने।

इस अवसर पर समिति के कोषाध्यक्ष विनोद कुमार सिंह, कार्यकारिणी के प्रमुख सदस्य संजीव कुमार सिंह, अरुण कुमार सिंह, गुड्डू, गिरधारी प्रसाद स्वर्णकार, माधवेंद्र सिंह, राम सिंह, राजेश गुप्ता, भरत सिंह, पप्पू जैन, अभिमन्यु सिंह, जनक राय, अवधेश राय, विक्की कुमार, ठाकुरी राय, राधे राधे सिंह, रणजीत सिंह समेत सैकड़ो की संख्या में लोग ढोल बाजे गाजे के साथ के साथ सम्मिलित हुए। धर्मनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी कृष्ण कुमार तिवारी उर्फ धन बाबा ने समिति के पदाधिकारी को अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया।

0Shares

पटना/मुजफ्फरपुर, 21 अगस्त (हि.स.)। उत्तर बिहार के सबसे बड़े शिवालय बाबा गरीब नाथ मंदिर की अजीबोगरीब भक्ति की कहानी है। जो भी भक्त अपना मन्नत बाबा से मांगते हैं बाबा उनकी मुरादे पूरी कर देते हैं। श्रावणी मेला में जलाभिषेक का अपना महत्व है लेकिन वैशाली जिले के भगवानपुर का रहने वाला अजय कुमार उर्फ बबलू की बाबा गरीब नाथ के लिए अजीब आस्था है।

अजय बताते हैं कि वर्ष 2001 से लगातार प्रत्येक सोमवारी को जलाभिषेक करने डाक बम आते हैं। अजय ने समाचार एजेंसी से बातचीत में बताया कि सारण जिले के पहलेजा घाट से जल उठाकर करीब 70 से 75 किलोमीटर की दूरी तय कर प्रत्येक सोमवारी की रात बाबा गरीब नाथ को जल चढ़ाने सावन में आता हूं।

अजय बताते हैं कि आज जो भी कुछ मेरा है वह चाहे धन दौलत हो या मेरा स्वास्थ्य, मेरा परिवार सब कुछ बाबा की कृपा और महिमा से है।जब तक बाबा हमारे जल को स्वीकार करेंगे हमें स्वस्थ रखेंगे। हमारे परिवार को ठीक-ठाक रखें तब तक हर साल सोमवारी को प्रत्येक सोमवार डाक कावर चढ़ाने आता रहूंगा।

बाबा गरीब नाथ मंदिर के प्रधान पुजारी विनय पाठक ने कहा कि बीते 2001 से लगातार अजय जी डाक कावड़ बाबा गरीब नाथ को चढ़ाते हैं।हर सोमवार को श्रावणी मेले में बाबा के लिए जलाभिषेक करने चले आते हैं। यह सब कुछ बाबा की महिमा है जिससे आस्था जुड़ी हुई है जो दिल से मांगता है, बाबा गरीब नाथ पूरा करते हैं।

उल्लेखनीय है कि डाक बम का जलाभिषेक करने वाले भक्त 24 घंटे के भीतर बिना रुके कांवड़ का जल लेकर बाबा भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं। इसको आस्था की प्रकाष्ठा और प्रभु के प्रति बागवान की आस्था से जोड़कर देखा जाता है।

0Shares

सावन का महीना तो बहुत ही पावन है धार्मिक दृष्टि से बहुत ही पूज्य मास है. भगवान शिव का बहुत ही प्रिये मास है इस मास में पूजा -पाठ करना बहुत ही शुभ होता है.

हिन्दू पंचांग के अनुसार सावन मास के शुक्लपक्ष के पंचमी तिथि को विशेष पूजन किया जाता है इस दिन का बहुत ही महत्व है इस दिन नागो की प्रधान के रूप में पूजा की जाती है, इसलिए इस दिन को नाग पंचमी कहते है।

इस दिन नाग यानि सर्प की पूजा की जाती है। इस दिन सुबह में नाग और नागिन के जोड़े को दूध से पूजन करते है। जिसे मनुष्य के सांप के भय से दुर रहते है। इस दिन घर के दोनों बगल में नाग की मूर्ति खीचकर पूजन किया जाता है. इस सावन के नागपंचमी को बन रहा है शुभ दिन इस दिन सावन शुद्ध शुक्लपक्ष का प्रथम सोमवारी है तथा पुरे सावन का तिसरा सोमवार पड़ रहा है. जो शिव भक्तो के उतम फलदायी है। इस दिन नाग की पूजन के साथ भगवान शिव का जलाभिषेक करे तो सभी मनोरथ पूर्ण होता है।

ज्योतिष शास्त्र के पंचमी तिथि के देवता नागराज है एवं इस समय भगवान विष्णु ने शेष शयन पर रहते है, सावन मास में भगवान शिव का पूजन किया जाता है और सर्प उनका सवारी है।

समुंद्र मंथन के समय साधन रूप बनकर वासुकी नाग ने प्रभु के कार्य में निमित्त बनने का मार्ग खुला कर दिया है इसलिए सर्पराज का पूजन पंचमी को किया जाता है।

कब है नाग पंचमी क्या है मुहूर्त2

1 अगस्त 2023 दिन सोमवार को मनाया जायेगा .पंचमी तिथि का शुरूआत 21 अगस्त 2023 रात्रि 12:21 मिनट से

पंचमी तिथि की समाप्ति 22 अगस्त 2023 दिन मंगलवार रात्रि 02:00 तक मिल रहा है

नागपंचमी के दिन कितने नाग देवता का पूजन किया जाता है।

नाग पंचमी के दिन जिन नाग देवता का पूजन की जाती है वह इस प्रकार है। वासुकी, कालिया, शेषनाग, काकोटक, मणिभद्रक, धृतराष्ट्र, शंखपाल, तक्षक है इनका पूजन नाग पंचमी के दिन किया जाता है। इनके पूजन करने से परिवार में सर्प भय से मुक्त होते है।

साथ जिन लोगो को कालसर्प दोष बना हुआ है इन नाग देवता का पूजन करने से उनके दोष में कमी होती है सभी काम पूर्ण होते है।

पूजा विधि :

(1) नाग पंचमी के एक दिन पहले चर्तुथी को एक समय ही भोजन करे।

( 2) नाग पंचमी के दिन सुबह उठकर घर की सफाई करे, उसके बाद स्नान कर के साफ वस्त्र धारण करे तथा व्रत का संकल्प ले।

(3) नागपंचमी के दिन अपने घर के दरवाजे के दोनों तरफ गोबर से सांप बनाये.

(4 ) सांप को दही, दूर्वा, कुशा, अक्षत, फूल तथा मोदक को समर्पित करे। उनकी पुजा करने से सर्प के डर से मुक्ति मिलती है।

 

(5) एक पात्र में दूध के साथ चीनी मिलकर नाग देवता को इसका भोग लगाये।

(6) इस दिन ब्राह्मण को भोजन कराये और व्रत को करे ऐसा करने से घर में सांप से भय नहीं रहता है।

(7) इसके आलावा नाग को दूध से स्नान कराये।

(8) पूजन करने के बाद किसी सपेरे को कुछ दक्षिणा दे।

कथा :

कथा के अनुसार एक ब्राह्मण के सात पुत्रबधूये थी .सावन मास लगते ही छः बहुए तो भाई के साथ मायके चली गई परन्तु आभागी सातवी के कोई भाई नहीं था कौन बुलाने आता बेचारी ने अति दुखित होकर पृथ्वी को धारण करने वाले शेषनाग को भाई के रूप में याद किया. करुनायुक्त ,दीन वाणी को सुनकर शेष जी वृद्ध ब्राह्मण के रूप में आये ,और फिर उसे लेकर चल दिये थोड़ी दुर रास्ता तय करने पर उन्होंने अपना असली रूप धारण कर लिए। तब अपने फन पर बैठाकर नाग लोक ले गए, वहा वह निचिन्त होकर रहने लगी पाताल लोक में जब वह निवास कर रही थी उसी समय शेष जी की कुल परम्परा में नागो के बहुत से बच्चे ने जन्म लिया उस नाग के बच्चे को सर्वत्र विचरण करते देख शेष नाग रानी ने उस वधु को पीतल का एक दीपक दिया तथा बताया की इसके प्रकाश से तुम अँधेरे में भी सब कुछ देख सकोगी एक दिन आकस्मात उसके हाथ से दीपक निचे टहलते हुए नाग बच्चो पर गिर गया परिणाम स्वरुप उन सबकी थोड़ी पूंछ कट गई।

यह घटना घटित होते ही कुछ समय बाद वह ससुराल भेज दी गई जब अगला सावन आया तो वह बधू दिवाल पर नाग देवता को बनाकर उसकी विधवत पूजा तथा मंगल कामना करने लगी हुई थी, इधर क्रोधित नाग बालक माताओं से अपनी पूंछ काटने का आदिकारण इस वधु को मारकर अपनी बदला चुकाने आये थे। लेकिन अपनी ही पूजा में श्रद्धा से उसे देखकर वे प्रसन्न हुए और उनका क्रोध समाप्त हुआ, बहन स्वरूपा उस वधु के हाथ से प्रसाद के रूप में उन लोगो को दूध के साथ चावल खाया। नागो ने उसे सर्पकुल से निर्भय होने के वरदान तथा उपहार में मणियो की माला दी उन्होंने यह भी बताया की सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को हमें भाई के रूप में जो पूजेगा उसकी हम रक्षा करते है।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा 

ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ 

8080426594/9545290847

0Shares

Chhapra:  तीसरे सोमवारी पर मंदिरों में श्रद्धालुओं ने जलाभिषेक किया। इस दौरान शहर के प्रमुख मंदिरों में भक्तों की भीड़ देखि गई। सुबह से ही जलाभिषेक करने को लेकर लंबी कतारें मंदिरों के बाहर देखी गई। 

सावन में इस बार 8 सोमवार हैं। तीसरी सोमवारी पर शहर के धर्मनाथ मंदिर में बाबा का रुद्राक्ष से श्रृंगार किया गया। सोनपुर स्थित बाबा हरिहरनाथ, सिलहौरी में बाबा शीलानाथ मंदिर समेत जिले के मंदिरों में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचे।       

0Shares