इसुआपुर में शास्त्र मर्मज्ञ विद्वान पंडितों की हुई बैठक, 7 अक्टूबर को मनाए जीवत्पुत्रिका व्रत

Isuapur: इसुआपुर बाजार स्थित बिशुनपुरा धर्मशाला परिसर में जिले के शास्त्र मर्मज्ञ विद्वान पंडितो, मनीषियों, आचार्यों की बैठक पूर्व प्राचार्य आचार्य सुधाकर दत्त उपाध्याय की अध्यक्षता में हुई। जिसमें व्रत त्योहारों की तिथि में अलग-अलग तर्क व मतभेदों पर विस्तार से मंथन व चर्चा की गई।

जीवत्पुत्रिका व्रत के बारे में बताया गया कि 7 अक्टूबर को अष्टमी तिथि में सूर्योदय हो रहा है। जीवत्पुत्रिका का व्रत उदय कालीन अष्टमी तिथि को ही किया जाना चाहिए। सप्तमी अष्टमी यानी जीवात्पुत्रिका व्रत कदापि करने योग्य नहीं है।

” यात्रोदयं वै कुरुते दिनेश: तथा भवएज्जईवइत पत्रिका सा ”

साथ ही कहा गया कि ज्योतिषशास्त्र षट्शास्त्रों का नेत्र है। इस शास्त्र में मानव जीवन के कल्याणार्थ मांगलिक मुहूर्त निर्धारित किए गए हैं।

” देवता मंत्राधीना ते मंत्रा: ब्रह्मणाधीना ” अर्थात् चतुर्वर्गाश्रम व्यवस्था महाराज मनु के द्वारा रचित ग्रंथ में इसकी विशद व्याख्या की गई है। सभी वर्णों में ब्राह्मणों को श्रेष्ठ माना गया है। क्योंकि ब्राह्मण ही समाज का सम्यक दशा और दिशा के ज्ञान और भान कराने वाले होते हैं। जीवत्पुत्रिका व्रत की तिथि के बारे में वैसे तो ” नैकोमतिर्यस्य मतं विभिन्ने ” इस सिद्धांत के द्वारा महाजनों येन गत: स पश्चात ” इस निर्णय से मनीषियों के द्वारा प्रत्येक व्रत त्योहारों के संबंध में अपना सटिक, उचित एवं व्यवहारयुक्त निर्णय दिया गया है। प्रत्येक व्यावहारिक पंचांगों में किसी भी व्रत त्यौहार के संबंध में ठोस प्रमाणों के द्वारा सही निर्णय दिया जाता रहा है।

वहीं निर्णय सर्वजन हृदयग्राही माना जाता रहा है। किंतु इस वर्ष जीवत्पुत्रिका व्रत के संबंध में विगत निर्णयों को दरकिनार करते हुए कुछ भ्रामक, तथ्यहीन एवं परंपरा से हटकर पंचांगकारों ने ब्राह्मण समाज को आपस में वाद विवाद कराने का कार्य किया है।

पूर्व प्राचार्य आचार्य रामेश्वर दुबे ने कहा कि आज भी इस समाज में शास्त्रों के मर्मज्ञ मनीषी विद्वान विद्यमान हैं। विद्वानों, ब्राह्मणों को समाज में जो इज्जत, प्रतिष्ठा मिल रही है, हमें उसे बरकरार रखना होगा। खासकर हमारी अगली पीढ़ी को अपने शिक्षा, संस्कार, चरित्र व कर्तव्यों से हमारी संस्कृति को संजोए रखना होगा।

बैठक में पूर्व प्राचार्य आचार्य यदुनंदन पाठक, पूर्व प्राचार्य आचार्य भागवत पाठक, पूर्व प्राचार्य आचार्य सुरेन्द्र उपाध्याय, पूर्व प्राचार्य आचार्य विश्वनाथ तिवारी, पूर्व प्राचार्य आचार्य रामेश्वर दुबे, आचार्य अशोक तिवारी, शिक्षक आचार्य बबन तिवारी, आचार्य अनंत उपाध्याय, पंडित नंदकिशोर चतुर्वेदी, हरिवंश दुबे, दीपक शांडिल्य, सुजीत चौबे, कमलाकांत तिवारी, वशिष्ठ नारायण पांडेय व अन्य थे।

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अनंत चतुर्दशी पर गुरुवार को सभी मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ सुबह से ही रही। लोगों ने भगवान को जलाभिषेक कर पूजा-अर्चना की। बड़ी संख्या में महिलाओं ने पूजा-अर्चना कर कथा श्रवण किया।  सुबह ही श्रद्धालुओं ने कतारबद्ध होकर जलार्पण करके मंगलकामना किया। जलार्पण के बाद श्रद्धालु मंदिर परिसर में विभिन्न अनुष्ठान संपन्न कराए।

शास्त्रों के अनुसार महाभारत में युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से कष्टों के निवारण के संबंध में पूछा था। इसके जवाब में भगवान ने अनंत चतुर्दशी पर व्रत, पूजा और कथा सुनने को कहा। उसी समय से यह परंपरा चली आ रही है। इस दिन महिला और पुरुष व्रत रखकर कथा सुनते हैं। साथ ही हाथ पर अनंत डोरा बांधा जाता है। कहते हैं कि दस दिनों तक डोरा बांधने सभी तरह के कष्टों का निवारण हो जाता है और इच्छा पूरी होती है।

अनंत चतुर्दशी के दिन पूजा के बाद बाजू में बांधे जाने वाले अनंत सूत्र में 14 गांठें होती हैं। पुराणों के अनुसार ये चौदह गांठों वाला अनंत सूत्र 14 लोकों भू, भुव, स्व, मह, जन, तपो, ब्रह्म, अतल, वितल, सतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल लोक के प्रतीक हैं। अनंत सूत्र की हर गांठ हर लोक का प्रतिनिधित्व करता है।इसके अलावा अनंत चतुर्दशी के दिन बांधें जाने वाले रक्षासूत्र की 14 गांठें भगवान विष्णु के 14 रूपों अनंत, ऋषिकेश, पद्मनाभ, माधव, वैकुण्ठ, श्रीधर, त्रिविक्रम, मधुसूदन, वामन, केशव, नारायण, दामोदर और गोविन्द का प्रतीक भी मानी जाती है।

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हिन्दू धर्म के मान्यताओ के अनुसार मृत्युलोक पर हमारे पूर्वज की आत्माए अपने परिवार के उपर उनका नजर बना हुआ रहता है. जिन परिवार में अपने पूर्वजो का पूजन पाठ नहीं करते है या उनको कष्ट देते है जिससे उनको पितृदोष लग जाता है.

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जन्मकुंडली में सूर्य के साथ राहू की यूति हो तब पितृदोष बन जाता है। पितृदोष कुण्डली के अलग -अलग भाव में पितृ दोष बनने से उसका प्रभाव भी अलग -अलग तरीके से पड़ता है. व्यक्ति के कुंडली में यह ऐसा दोष है जो सभी प्रकार के कष्ट एक साथ मिलता है कई बार व्यवहार में यह भी देखा जाता है। व्यक्ति कर्म कर रहा है काम में उसका कोई दोष नहीं है फिर भी उसे कष्ट मिलते रहता है मानसिक तनाव में दुखी तथा अशांत रहते है. वह शाररिक कष्ट  धन की कमी, पराक्रम का अभाव माता -पिता के सुख में कमी, भूमि भवन मकान व्यापार में कमी, जीवन साथी के साथ अन -बन बना रहता है.

पितृदोष में पिता के साथ अनबन ज्यादा बना रहता है। कुंडली में नवा घर पिता का घर होता है इस हर में सूर्य के साथ राहू केतु या शनि बैठे है तब इस भाव को दूषित कर देते है. जिसे कारण पिता के साथ अनबन होता है पिता और पुत्र दोनों एक साथ एक मकान में नहीं रह पाते है। व्यक्ति  किसी प्रकार से हमेशा टेंशन में बना रहता है अगर पढाई कर रहा है उसको शिक्षा में मन नहीं लगता है। 

जाने पितृदोष कैसे लगता है.
लगन कुंडली में सूर्य के साथ राहू केतु का युति बना हो या सूर्य के उपर शनि की दिर्ष्टि अगर बन रहा हो तब पितृदोष बनता है। सूर्य अगर शनि के राशि मकर तथा कुम्भ राशि में विराजमान हो तब भी पितृदोष माना जाता है। 

पितृ दोष का लक्षण क्या होता है.
(1)पितृदोष वंशनाश का धोतक है जातक के परिवार में कन्याये पुत्रो की अपेक्षा ज्यादा होती है किसी -किसी को पुत्र की प्राप्ति नहीं हो पाता है .
(2)पितृदोष जब लग जाता है उनके मामा के साथ रिश्ता ठीक नहीं रहता है यदि मामा होते है तो उनकी स्थति बहुत नाजुक व ख़राब होती है
(3)पितृ दोष का विशेष प्रभाव सबसे बड़े या सबसे छोटे या उस संतान पर अधिक रहता है जो लाडला हो .
(4)पितृ दोष में जातक हमेशा भाग्यहीन व पीड़ित रहता है .

पितृदोष के कारण क्या होता है.

(1)घर परिवार में जातक के सगे सम्बंधित की आकाल मृतु होना.

(2) व्यक्ति के पिता या माता के जन्मपत्रिका में पितृ दोष हो तभी पितृदोष लगता है .

(3) व्यक्ति के पूर्वजो के यहाँ किसी का पैसा अनैतिक तरीके से आया हो तब भी जन्मपत्रिका में पितृदोष लगता है.

(4) व्यक्ति के पिता या दादा की एक से अधिक पत्नी हो तब भी पितृ दोष लगता है.

(5) व्यक्ति के परिवार में मृत वयोक्ति के आत्मा के शांति के लिए विधि -विधान से पूजन अर्चन नहीं करने से भी पितृदोष लगता है.

पितृ दोष का उपाय :

पितृ पक्ष में अपने पूर्वजो को तर्पण करे.
पितृ पक्ष में पंचबली श्राद्ध करे .पितरो को प्रसन्न करने के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध करे.
प्रत्येक दिन सूर्य भगवान को जल चढ़ाये.
अमावस्या के दिन दोपहर में पीपल के पेड़ में जल चढ़ाये राहत मिलेगा.
अमावस्या के दिन गरीबो को भोजन कराये.
रविवार को सूर्य के मन्त्र ॐ सूर्याय नमः एक माला का जाप करे.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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पटना/गया (बिहार), 27 सितम्बर (हि.स.)। पितरों को मोक्ष देने वाली भूमि गया में 28 सितम्बर यानी गुरुवार से पितृपक्ष मेला शुरू होगा, जो आगामी 14 अक्टूबर तक चलेगा। इसके मद्देनजर जिला प्रशासन ने आने वाले पिंडदानियों के लिए आकर्षक, सुंदर और मनमोहक टेंट सिटी का निर्माण कराया है। टेंट सिटी में आवासन, चिकित्सा, लॉकर, सुरक्षा सहित अन्य सुविधाएं मुफ्त मिलेंगी। सिर्फ शुद्ध और स्वादिष्ट शाकाहारी भोजन अल्प शुल्क में मिलेंगे।

जिला प्रशासन के मुताबिक एक साथ 25 सौ पिंडदानियों के ठहरने की व्यवस्था टेंट सिटी में हुई है। टेंट सिटी में कोई पिंडदानी आकर विश्राम कर सकते हैं। उनके लिए यहां उत्तम व्यवस्था की गई है। जिला प्रशासन की सोच है कि गया आने वाले पिंडदानी हर स्तर के होते हैं। कई बार देखा गया है कि होटल व धर्मशाला में पिंडदानियों को जगह नहीं मिलने के कारण सड़क पर सो जाते थे लेकिन टेंट सिटी बनने के बाद ऐसा नहीं होगा। यहां पर्याप्त बेड की व्यवस्था की गई है। इससे पिंडदानी सड़क किनारे विश्राम नहीं करेंगे। जिला प्रशासन ने सभी तीर्थ यात्रियों से अपील किया है कि गांधी मैदान में आवासन के लिए बनाए गए टेंट सिटी का उपयोग अवश्य करें।

मिलेंगी ये सुविधाएं

– आवासन की व्यवस्था।
– समान रखने के लिए लाकर की व्यवस्था।
– मे आइ हेल्प यू काउंटर की व्यवस्था।
– सुरक्षा के लिए पर्याप्त सिक्योरिटी गार्ड एवं सीसीटीवी की व्यवस्था।
– शुद्ध पेयजल की व्यवस्था।
– पर्याप्त चेंजिंग रूम की भी व्यवस्था।
– टेंट सीटी में यात्रियों के गंगाजल।
– डीलक्स शौचालय की व्यवस्था।
– 24 घंटे निर्बाध बिजली आपूर्ति।
– टेंट सिटी के अंदर जीविका एवं सुधा डेयरी के जरिए बिना शुल्क के शुद्ध शाकाहारी भोजन की व्यवस्था।
– प्रत्येक दिन शाम में मेलावधि में भजन-कीर्तन के साथ रामलीला।

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पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने वाला पितृपक्ष 29 सितम्बर (शुक्रवार) को अगस्त मुनि को जल देने के साथ शुरू हो जाएगा। शास्त्रों के अनुसार जिनका निधन हो चुका है, वे सभी पितृ पक्ष के दिनों में अपने सूक्ष्म रूप के साथ धरती पर आते हैं तथा परिजनों का तर्पण स्वीकार करते हैं, प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।

29 सितम्बर को अगस्त मुनि का तर्पण करने के बाद 30 सितम्बर से लोग अपने पितरों-पूर्वजों को याद करते हुए तर्पण करेंगे। इसके बाद पिता के मृत्यु तिथि के अनुसार श्राद्ध तर्पण करेंगे। पितृ पक्ष 29 सितम्बर से 14 अक्टूबर तक चलेगा, जिसमें सभी तिथि का अपना अलग-अलग महत्व है। लेकिन पितृ पक्ष में पूर्णिमा श्राद्ध, महाभरणी श्राद्ध और सर्वपितृ अमावस्या का विशेष महत्व तथा एकादशी तिथि को दान सर्वश्रेष्ठ होता है।

इस वर्ष पूर्णिमा श्राद्ध 29 सितम्बर को, प्रतिपदा एवं द्वितीय श्राद्ध 30 सितम्बर, तृतीय श्राद्ध एक अक्टूबर, चतुर्थ श्राद्ध दो अक्टूबर, पंचमी श्राद्ध तीन अक्टूबर, षष्ठी श्राद्ध चार अक्टूबर, सप्तमी श्राद्ध पांच अक्टूबर, अष्टमी श्राद्ध छह अक्टूबर, नवमी श्राद्ध (मातृ नवमी) सात अक्टूबर, दशमी श्राद्ध आठ अक्टूबर, एकादशी श्राद्ध (मघा श्राद्ध) दस अक्टूबर को होगा।

द्वादशी श्राद्ध, संन्यासी, यति, वैष्णव जनों का श्राद्ध 11 अक्टूबर को, त्रयोदशी श्राद्ध 12 अक्टूबर तथा चतुर्दशी श्राद्ध एवं शस्त्रादि से मृत लोगों का श्राद्ध 13 अक्टूबर को होगा। इसके बाद 14 अक्टूबर को पितृ पक्ष के 16 वें दिन अमावस्या तिथि को अमावस्या श्राद्ध, अज्ञात तिथि में मृत का श्राद्ध, सर्वपितृ अमावस्या एवं पितृ विसर्जन के साथ ही महालया का समापन हो जाएगा।

सुहागिन महिलाओं के निधन की तिथि ज्ञात नहीं रहने पर नवमी तिथि को उनका श्राद्ध होगा। अकाल मृत्यु अथवा अचानक मृत्यु को प्राप्त पूर्वजों का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को होगा। यदि पितरों की मृत्यु तिथि का पता नहीं हो तो अमावस्या के दिन उन सबका श्राद्ध करना चाहिए। इसलिए पितरों की आत्म तृप्ति के लिए हर वर्ष भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि से आश्विन की अमावस्या तक पितृपक्ष होता है।

पंडित आशुतोष झा ने बताया कि पितृपक्ष में किये गए दान-धर्म के कार्यों से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है, कर्ता पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिंड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है। श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि उनके पुत्र-पौत्रादि पिंड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे, इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं।

यही कारण है कि हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है। श्राद्ध के दिन स्मरण करने से पितर घर आते हैं और भोजन पाकर तृप्त हो जाते हैं। इस पक्ष में अपने पितरों का स्मरण तथा उनकी आत्म तृप्ति के लिए तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध कर्म आदि किए जाते हैं। पितरों की आत्म तृप्ति से व्यक्ति पर पितृदोष नहीं लगता है, परिवार की उन्नति होती है, पितरों के आशीर्वाद से वंश वृद्धि होती है।

श्रद्धा हिंदू धर्म का एक अंग है, इसलिए श्राद्ध उसका धार्मिक कृत्य है। पितृपक्ष में प्रतिदिन या पितरों के निधन की तिथि को पवित्र भाव से दोनों हाथ की अनामिका उंगली में पवित्री धारण करके जल में चावल, जौ, दूध, चंदन, तिल मिलाकर विधिवत तर्पण करना चाहिए। इससे पूर्वजों को परम शांति मिलती है, तर्पण के बाद पूर्वजों के निमित्त पिंड दान करना चाहिए। पिंडदान के बाद गाय, ब्राह्मण, कौआ, चींटी या कुत्ता को भोजन कराना चाहिए।

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गणेश पूजन के दौरान सोनरपट्टी में बाल भोग का हुआ आयोजन

Chhapra: शहर के सोनरपट्टी में राष्ट्रीय शांति संघ द्वारा आयोजित गणेश पूजन के दौरान रविवार को बाल भोग का आयोजन किया. अगले दो दिनों तक चलने वाले इस बाल भोग कार्यक्रम में पहले दिन हजारों लोगों ने शामिल होकर भगवान गणेश का प्रसाद ग्रहण किया गया. स्वर्ण व्यवसाई अमित कुमार के सौजन्य से आयोजित इस बाल भोग में हजारों लोग शामिल हुए और प्रसाद ग्रहण किया. वही दूसरे दिन सोमवार को भी बाल भोग का आयोजन किया जाएगा.

बताते चले कि विगत कई दशकों से शहर के सोनारपट्टी में मुंबई की तर्ज पर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित कर भव्य तरीके से पूजा अर्चना की जाती है. पूरे एक सप्ताह तक चलें वाले इस गणेश उत्सव की अलग ही धूम स्वर्ण समाज के द्वारा यहाँ देखने को मिलती है. इसी क्रम में बाल भोग का आयोजन किया जाता है. जिसमे समाज के सभी वर्ग के लोगों को आमंत्रित कर प्रसाद ग्रहण कराया जाता है.

इस मौके पर लक्ष्मण कुमार, अरविंद कुमार, संजीत कुमार, मनीष कुमार, प्रमोद कुमार, सुधीर कुमार मिंटू, अमित कुमार सहित स्वर्णकार समाज के दर्जनों लोगों ने शामिल होकर अपनी सेवा प्रदान की.

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भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष के तृतीया तिथि को हरतालिका व्रत यानी तीज का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए रखती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति रूप में पाने के लिए इस व्रत को किया था। देवी पार्वती की घोर तपस्या देखकर

भगवान शिव उनके सामने आए और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। हरतालिका तीज में भगवान शिव ,माता गौरी एवम गणेश जी की पूजा का महत्व है यह व्रत निर्जला रहकर महिलाये इस व्रत को करती है ।यह व्रत संकल्प शक्ति का एक अटूट उदाहरण है अर्थात किसी कर्म लिए मन में निश्चित करना कर्म का मूल संकल्प है।

इस व्रत का एक सामाजिक संदेश विशेषतः महिलायों के संदर्भ में यह है कि आज महिलाये बीते समय की तुलना में अधिक आत्मनिर्भर तथा स्वतंत्र है महिलाये की भूमिका में बदलाव आये है.

कब मनाए हरितालिक यानी तीज व्रत।

18 सितंबर 2023 दिन सोमवार को मनाया जायेगा।

तृतीया तिथि का प्रारंभ 17 सितंबर 23 को सुबह 11 :08 मिनट से
तृतीया तिथि का समाप्त 18 सितंबर 23 दोपहर 12:39 मिनट तक

हरतालिका तीज व्रत के विधि तथा नियम।

इस विशेष दिन पर सुहागिन महिलाये सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करे तथा नए या साफ वस्त्र धारण करे इसके बाद दीपक जलाये तथा व्रत का संकल्प करे.हरतालिका का पूजन
संध्या काल में किया जाता है.इनका पूजन के लिए मिटटी या बालू के रेत से बनाकर भगवान शिव ,पार्वती गणेश एवं रिधि -सिद्धि की प्रतिमा को पूजन करते है पूजन के लिए छोटी चौकी पर लाल या पिला कपडा रखकर सभी मिटटी से बने हुए प्रतिमा को रखे ,कलश रखे कलश के ऊपर नारियल रखे ,नारियल पर कलावा बांधे ,कुमकुम ,चावल ,चंदन
पुष्प चढ़ाकर विधिवत भगवान शिव तथा उनके परिवार को पूजन करे तथा बेलपत्र चढ़ाये ,माता गौरी को श्रृगार की सामान चढ़ाये पूजन करने के बाद कथा का श्रवण करे उसके बाद आरती करे।
रात्रि में जागरण करे सुबह मिटटी से बना शिवलिंग का सुबह में नदी या तालाब में विसर्जन कर दे और सुहाग की सामग्री ब्राह्मण को दान कर दे उसके बाद व्रत का पारण करे ।

तीज में सुहाग की पिटारी का महत्व क्या है।

तीज में सुहाग की पिटारी का महत्व बहुत ज्यादा है पिटारी बास का बना होता है इसमे कुमकुम, मेहदी, बिंदी, काजल, पावडर, सिंदूर चूड़ी, कंघी, समेत अनेक सुहाग की सामग्री रहता है ।

तीज व्रत के लिए पूजन सामग्री

चंदन, जानेव, फुल, नारियल, चावल, पान केपत्ता, इलायची, लौंग, पांच प्रकार का फल, मिठाई, पूजा की चौकी, धतुर के फुल तथा फल, कलश , पूजन करने के लिए तांबे का लोटा, दूर्वा, घी, रुई बत्ती, अगरबती, धुप, कपूर, बेलपत्र आम के पता, शमी के पता.

हरतालिका तीज व्रत कथा

भगवान शिव ने पार्वतीजी को उनके पूर्व जन्म का स्मरण कराने के उद्देश्य से इस व्रत के माहात्म्य की कथा कही थी।
श्री भोलेशंकर बोले- हे गौरी! पर्वतराज हिमालय पर स्थित गंगा के तट पर तुमने अपनी बाल्यावस्था में बारह वर्षों तक अधोमुखी होकर घोर तप किया था। इतनी अवधि तुमने अन्न न खाकर पेड़ों के सूखे पत्ते चबा कर व्यतीत किए। माघ की विक्राल शीतलता में तुमने निरंतर जल में प्रवेश करके तप किया। वैशाख की जला देने वाली गर्मी में तुमने पंचाग्नि से शरीर को तपाया। श्रावण की मूसलधार वर्षा में खुले आसमान के नीचे बिना अन्न-जल ग्रहण किए समय व्यतीत किया।

तुम्हारे पिता तुम्हारी कष्ट साध्य तपस्या को देखकर बड़े दुखी होते थे। उन्हें बड़ा क्लेश होता था। तब एक दिन तुम्हारी तपस्या तथा पिता के क्लेश को देखकर नारदजी तुम्हारे घर पधारे। तुम्हारे पिता ने हृदय से अतिथि सत्कार करके उनके आने का कारण पूछा।
नारदजी ने कहा- गिरिराज! मैं भगवान विष्णु के भेजने पर यहां उपस्थित हुआ हूं। आपकी कन्या ने बड़ा कठोर तप किया है। इससे प्रसन्न होकर वे आपकी सुपुत्री से विवाह करना चाहते हैं। इस संदर्भ में आपकी राय जानना चाहता हूं।
नारदजी की बात सुनकर गिरिराज गद्‍गद हो उठे। उनके तो जैसे सारे क्लेश ही दूर हो गए। प्रसन्नचित होकर वे बोले- श्रीमान्‌! यदि स्वयं विष्णु मेरी कन्या का वरण करना चाहते हैं तो भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है। वे तो साक्षात ब्रह्म हैं। हे महर्षि! यह तो हर पिता की इच्छा होती है कि उसकी पुत्री सुख-सम्पदा से युक्त पति के घर की लक्ष्मी बने। पिता की सार्थकता इसी में है कि पति के घर जाकर उसकी पुत्री पिता के घर से अधिक सुखी रहे।
तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर नारदजी विष्णु के पास गए और उनसे तुम्हारे ब्याह के निश्चित होने का समाचार सुनाया। मगर इस विवाह संबंध की बात जब तुम्हारे कान में पड़ी तो तुम्हारे दुख का ठिकाना न रहा।

तुम्हारी एक सखी ने तुम्हारी इस मानसिक दशा को समझ लिया और उसने तुमसे उस विक्षिप्तता का कारण जानना चाहा। तब तुमने बताया – मैंने सच्चे हृदय से भगवान शिवशंकर का वरण किया है, किंतु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी से निश्चित कर दिया। मैं विचित्र धर्म-संकट में हूं। अब क्या करूं? प्राण छोड़ देने के अतिरिक्त अब कोई भी उपाय शेष नहीं बचा है। तुम्हारी सखी बड़ी ही समझदार और सूझबूझ वाली थी। उसने कहा- सखी! प्राण त्यागने का इसमें कारण ही क्या है? संकट के मौके पर धैर्य से काम लेना चाहिए। नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि पति-रूप में हृदय से जिसे एक बार स्वीकार कर लिया, जीवनपर्यंत उसी से निर्वाह करें। सच्ची आस्था और एकनिष्ठा के समक्ष तो ईश्वर को भी समर्पण करना पड़ता है। मैं तुम्हें घनघोर जंगल में ले चलती हूं, जो साधना स्थली भी हो और जहां तुम्हारे पिता तुम्हें खोज भी न पाएं। वहां तुम साधना में लीन हो जाना। मुझे विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे।

तुमने ऐसा ही किया। तुम्हारे पिता तुम्हें घर पर न पाकर बड़े दुखी तथा चिंतित हुए। वे सोचने लगे कि तुम जाने कहां चली गई। मैं विष्णुजी से उसका विवाह करने का प्रण कर चुका हूं। यदि भगवान विष्णु बारात लेकर आ गए और कन्या घर पर न हुई तो बड़ा अपमान होगा। मैं तो कहीं मुंह दिखाने के योग्य भी नहीं रहूंगा। यही सब सोचकर गिरिराज ने जोर-शोर से तुम्हारी खोज शुरू करवा दी। इधर तुम्हारी खोज होती रही और उधर तुम अपनी सखी के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन थीं। भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र था। उस दिन तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण करके व्रत किया। रात भर मेरी स्तुति के गीत गाकर जागीं। तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन डोलने लगा। मेरी समाधि टूट गई। मैं तुरंत तुम्हारे समक्ष जा पहुंचा और तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर तुमसे वर मांगने के लिए कहा।तब अपनी तपस्या के फलस्वरूप मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा – मैं हृदय से आपको पति के रूप में वरण कर चुकी हूं। यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर आप यहां पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिए।

तब मैं ‘तथास्तु’ कह कर कैलाश पर्वत पर लौट आया। प्रातः होते ही तुमने पूजा की समस्त सामग्री को नदी में प्रवाहित करके अपनी सहेली सहित व्रत का पारणा किया। उसी समय अपने मित्र-बंधु व दरबारियों सहित गिरिराज तुम्हें खोजते-खोजते वहां आ पहुंचे और तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या का कारण तथा उद्देश्य पूछा। उस समय तुम्हारी दशा को देखकर गिरिराज अत्यधिक दुखी हुए और पीड़ा के कारण उनकी आंखों में आंसू उमड़ आए थे।

तुमने उनके आंसू पोंछते हुए विनम्र स्वर में कहा- पिताजी! मैंने अपने जीवन का अधिकांश समय कठोर तपस्या में बिताया है। मेरी इस तपस्या का उद्देश्य केवल यही था कि मैं महादेव को पति के रूप में पाना चाहती थी। आज मैं अपनी तपस्या की कसौटी पर खरी उतर चुकी हूं। आप क्योंकि विष्णुजी से मेरा विवाह करने का निर्णय ले चुके थे, इसलिए मैं अपने आराध्य की खोज में घर छोड़कर चली आई। अब मैं आपके साथ इसी शर्त पर घर जाऊंगी कि आप मेरा विवाह विष्णुजी से न करके महादेवजी से करेंगे।गिरिराज मान गए और तुम्हें घर ले गए। कुछ समय के पश्चात शास्त्रोक्त विधि-विधानपूर्वक उन्होंने हम दोनों को विवाह सूत्र में बांध दिया।

हे पार्वती! भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के फलस्वरूप मेरा तुमसे विवाह हो सका। इसका महत्व यह है कि मैं इस व्रत को करने वाली कुंआरियों को मनोवांछित फल देता हूं। इसलिए सौभाग्य की इच्छा करने वाली प्रत्येक युवती को यह व्रत पूरी एकनिष्ठा तथा आस्था से करना चाहिए।

ज्योतिषाचार्ज संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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अयोध्या, 07 सितम्बर (हि.स.)। श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को लेकर खास तैयारियां हैं। भगवान के जन्म के लिए गुरुवार की रात 12 बजे राम मन्दिर का अस्थायी गर्भगृह के कपाट कान्हा के दर्शन के लिए खुलेंगे। पूरे एक घण्टे के लिए राम जन्मभूमि परिसर का मंदिर खोला जाएगा।

रामनगरी में मथुरा की तरह इस उत्सव को बेहद धूमधाम के साथ सभी मंदिरों में मनाया जा रहा है। सभी मंदिरों में भगवान का श्रीकृष्ण का जन्म मध्य रात्रि में होगा। रामनगरी में भी कान्हा के जयकारे लगाए जा रहे हैं। साथ ही साथ कई स्थानों पर भव्य पंडाल में आकर्षक झांकियां भी सजाई गई है।

बुधवार को गृहस्थों ने और गुरुवार को मठ-मंदिरों में उत्सव का आयोजन हो रहा है। इस बार द्वापर की तरह जयंती योग पर भगवान कृष्ण घर-घर जन्मेंगे। इस तिथि पर 36 साल बाद सर्वार्थसिद्ध, रवि, हर्षण और सिद्धि योग का भी संयोग हैं।

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पंचांग के अनुसार जन्माष्टमी का त्योहार भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष अष्टमीतिथि तथा रोहिणी नक्षत्र में यह उत्सव मनाया जाता है। जन्माष्टमी का त्योहार अधर्म को समाप्त करने के लिए तथा धर्म की रक्षा करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ इसलिए इस दिन भगवान के जन्मोत्सव मनाया जाता है।

इस दिन भगवान श्रीकृष्ण मथुरा नगरी में कंश के कारागार में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन कृष्ण जन्म उत्सव के उपलक्ष्य में सभी घर में पूजन किया जाता है तथा मंदिर में जगह -जगह कीर्तन तथा झाकिया सजाई जाती है। इस दिन महिला तथा पुरुष रात्रि के बारह बजे तक व्रत रहकर भगवान के जन्म के उपरांत उनका पूजन करते है।

हर साल जन्मष्टमी दो दिन मनाया जाता है। पहला दिन गृहस्थ जीवन वाले जन्माष्टमी मानते है। दूसरे दिन वैष्णव संप्रदाय वाले जन्माष्टमी मानते है। इस साल भगवान श्री कृष्ण का 5250 वा जन्मदिवस यानि जन्माष्टमी त्योहार के रूप में मनाया जायेगा। 

कब मनाया जायेगा जन्माष्टमी क्या है शुभ मुहूर्त 
06 सितम्बर 2023 दिन बुधवार की रात्रि में भगवान कृष्ण की जन्मोत्सव मनाया जायेगा इस दिन गृहस्थ जीवन वाले के लिए रहेगा वही 07 सितम्बर 2023 को वैष्णव संप्रदाय वाले जन्माष्टमी मनायेगे। 

इस दिन बन रहा है अद्भुत शुभ संयोग
इस साल जन्माष्टमी के दिन बन रहा है शुभ संयोग इस तरह के संयोग में भगवान का उत्सव मनाने से सभी मनोकामना पूर्ण हो जाते है। परिवार में प्रेम -सौहार्द बना रहता है। पहला संयोग भाद्रपद मास दूसरा कृष्णपक्ष, सर्वार्थ सिद्ध योग, अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, दिन बुधवार, सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है, जो 06 सितम्बर 23 को सुबह 05:32 से लेकर, अगले दिन 07 सितम्बर 23 को सुबह 05:32 मिनट तक रहेगा। 

अष्टमी तिथि का प्रारंभ 06 सितम्बर 23 को 03:37 दोपहर से प्रारंभ होगा.
अष्टमी तिथि का समाप्त 07 सितम्बर 23 को 04:14 संध्या तक रहेगा.

रोहिणी नक्षत्र का आरंभ 06 सितम्बर 23 को सुबह 09 :20 से लेकर अगले दिन 07 सितम्बर 23 को सुबह 10:25 तक मिल रहा है दिन बुधवार जो गणेश जी का दिन है बहुत ही शुभ है।

पूरी होगी सभी मनोकामना

धार्मिक मान्यताओ के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव पृथ्वी लोक पर बढ़ रहे अत्याचारों को खत्म करने तथा धर्म की रक्षा करने के लिए विष्णु भगवान ने अपना आठवा अवतार
भगवान कृष्ण के रूप में लिए थे इसलिए इस दिन पूजन करने से संतान की प्राप्ति ,प्रेम सम्बन्ध मजबूत होगा ,परिवार में सुख भरपूर मिलेगा,इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को माखन या मेवा से भोग लगाये आपके सभी मनोकामना पूर्ण होंगे .

जन्माष्टमी पूजा -विधि

इस दिन सुबह उठकर नित्यकर्म से निवृत्त होकर नया या साफ कपडे धारण करे साथ ही भगवान कृष्ण की प्रतिमा को स्नान कराये ,इसके बाद प्रतिमा पर शहद ,माखन ,दूध ,केशर या
पंचामृत से स्नान कराये , भगवान कृष्ण को पलना में बैठाये ,उनपर फूल ,फूलमाला ,तुलसी पता चंदन ,गंगाजल हल्दी ,कुमकुम आदि को समर्पित करे मोर का पंख बासुरी ,मुकुट , चंदन तथा तुलसी के माला चढ़ाये,धुप -दीप तथा अगरबती दिखाए इसके बाद भगवान को मिश्री का भोग ,मिठाई ,मेवा ऋतुफल का भोग लगाये,इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को श्रधा के साथ
पूजन करे रात्रि में जागरण करे .

जाने भगवान श्री कृष्ण के अलग -अलग नाम ।

भगवान श्री कृष्ण के बाल अवस्था में बड़े प्यार से लोग अलग -अलग नाम से बुलाते थे इन्हे कोई कान्हा, श्रीकृष्ण, गोपाल, श्याम, गोविन्द, मुरारी, मुरलीधर, गोपी, मुकुंद, घनश्याम, बालगोपाल, मधुसुधन, जनार्धन, जगरनाथ आदि के नाम से लोग जानते है तथा पूजन करते है.

भगवान श्रीकृष्ण के मंत्र क्या है

ॐ देविकानन्दनाय विधमहे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्ण:प्रचोदयात।

महामंत्र के जाप करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।

कथा
द्वापर युग में कंस ने अपने पिता उग्रसेन राजा की राज गद्दी छीन कर, उन्हें सिंहासन से उतार दिया था और जेल में बंद कर दिया था। इसके बाद कंस ने गुमान में खुद को मथुरा का राजा घोषित किया था। कंस की एक बहन भी थी। जिनका नाम देवकी था। देवकी की शादी विधि-विधान के साथ वासुदेव की गई थी और कंस ने धूम-धाम से देवकी का विवाह कराया लेकिन कथा अनुसार जब कंस देवकी को विदा कर रहा था, तब आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र कंस का वध करेगा। यह आकाशवाणी सुनकर कंस की रुह कांप गई और वह घबरा गया। 

ऐसी आकाशवाणी सुनने के बाद कंस ने अपनी बहन देवकी की हत्या करने का मन बना लिए लेकिन वासुदेव ने कंस को समझाया कि ऐसा करने का कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि कंस को देवकी से नहीं, बल्कि उसकी आठंवी संतान से भय है.

जिसके बाद वासुदेव ने कंस से कहा कि जब उनकी आठवीं संतान होगी तो वह उसे कंस को सौंप देंगे. ये सुनने के बाद कंस ने वासुदेव और देवकी को जेल में कैद कर लिया.इसके बाद क्रूर कंस ने देवकी और वासुदेव की 7 संतानों को मार दिया. जब देवकी की आठवीं संतान का जन्म होने वाला था, तब आसमान में घने और काले बादल छाए हुए थे और बहुत तेज बारिश हो रही थी. इसके साथ ही आसमान में बिजली भी कड़क रही थी.

मान्यता के मुताबिक मध्यरात्रि 12 बजे जेल के सारे ताले खुद ही टूट गए और वहां की निगरानी कर रहे सभी सैनिकों को गहरी नींद आ गई और वो सब सो गए. कहा जाता है कि उस समय भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्हें वासुदेव-देवकी को बताया कि वह देवकी के कोख से जन्म लेंगे.

इसके बाद उन्होंने कहा कि वह उन्हें यानी उनके अवतार को गोकुल में नंद बाबा के पास छोड़ आएं और उनके घर जन्मी कन्या को मथुरा ला कर कंस को सौंप दें. इसके बाद वासुदेव ने भगवान के कहे अनुसार किया. वह कान्हा को नंद बाबा के पास छोड़ आए और गोकुल से लाई कन्या को कंस को सौंप दिया.

क्रोधित कंस ने जैसे ही कन्या को मारने के लिए अपना हाथ उठाया तो अचानक कन्या गायब हो गई. जिसके बाद एक आकाशवाणी हुई कि कंस जिस शिशु को मारना चाहता है वो गोकुल में है. यह आकाशवाणी सुनकर कंस डर गया को अपने भांजे कृष्ण को मारने के लिए उसने राक्षसों को गोकुल भेज कर कान्हा का असतित्व मिटाने की कोशिश की लेकिन श्रीकृष्ण ने सभी राक्षसों का एक-एक कर वध कर दिया और आखिर में भगवान विष्णु के अवतार ने कंस का भी वध कर दिया.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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माता वैष्णो देवी के भक्त दिल्ली से 6 घंटे में पहुंच जायेंगे कटरा

Delhi: भारतीय राष्‍ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण जल्द ही माता वैष्णों देवी के भक्तों के बड़ा तोहफा देने जा रहा है. अगर सबकुछ ठीक रहा तो लोग दिल्ली से सुबह चलकर रात तक माता वैष्णो देवी का दर्शन कर लेंगे.

एनएचएआई तेजी से 670 किलोमीटर वाले दिल्‍ली-कटरा एक्‍सप्रेसवे के निर्माण में जुटा है. आशा व्यक्त की जा रही है कि अगले साल दिसंबर तक यह एक्सप्रेस वे बनकर तैयार हो जाएगा.

इस एक्सप्रेसवे के शुरू होते ही अभी दिल्ली से कटरा की 14 घंटे की दूसरी घटकर महज 6 घंटे की हो जाएगी. यानी यात्रियों के 8 घंटे बचेंगे.

दिल्‍ली-कटरा एक्‍सप्रेसवे के शुरू होते ही दोनों शहरों के बीच की दूरी 8 घंटे कम हो जाएगी. यानी भक्तगण दिल्‍ली से सुबह चलकर शाम तक माता वैष्‍णो देवी के दर्शन कर लेंगे.

4 लेन के बन रहे इस एक्सप्रेसवे को भविष्य में 8 लेन तक बढ़ाने की योजना है. बताते चले कि इसका ज्‍यादातर हिस्‍सा हरियाणा में है. 670 किलोमीटर वाला यह एक्‍सप्रेस वे दिल्‍ली के पास हरियाणा के झज्‍झर जिले से शुरू होकर कटरा तक जाएगा.

जानकारी के मुताबिक दिल्‍ली-कटरा एक्‍सप्रेसवे पर गाड़ियों की अधिकतम स्‍पीड 120 किलोमीटर प्रति घंटे तक निर्धारित की जा सकती है.

दिल्‍ली-कटरा एक्‍सप्रेसवे के बन जाने से दोनों शहर के बीच 140 किलोमीटर की दूरी मौजूदा 730 किलोमीटर से कम होकर 590 किलोमीटर रह जाएगी. इसके साथ 14 घंटे का 8 घंटे कम होकर महज 6 घंटे का रह जाएगा.

इसके बाद यदि कोई व्यक्ति सुबह 5 बजे दिल्‍ली से कटरा के लिए निकलता हैं तो 11 से 12 के बीच कटरा पहुंच जाएगा. यहां अगर वो व्यक्ति 1 से 2 बजे बीच वैष्‍णो माता दरबार के लिए चढ़ाई शुरू करता है तो वो 8 से 9 बजे तक माता रानी की दरबार में पहुंच सकता है.

इतना ही इस एक्सप्रेस वे के बन जाने से दिल्ली से अमृतसर महज 4 घंटे में पहुंचना मुमकिन हो सकता है. ऐसे में दिल्ली से सुबह निकल लोग स्‍वर्ण मंदिर में मत्‍था टेक कर शाम तक वापस भी आ सकता है.

इस एक्सप्रेसवे का निर्माण दो पैकेज यानी फेज में हो रहा है. एक्‍सप्रेसवे के फस्ट फेज करीब 400 किलोमीटर का ग्रीनफील्‍ड एक्‍सप्रेसवे का निर्माण किया जा रहा है जो दिल्‍ली से लुधियाना और गुरदासपुर के बीच बन रहा है. इसके साथ ही नाकोदर से अमृतसर के बीच 99 किलोमीटर के एक कनेक्टिंग रोड का भी निर्माण होना है.

जबकि दिल्‍ली-कटरा एक्‍सप्रेसवे के निर्माण के फेज टू में गुरदासपुर से पठानकोट और जम्‍मू से कटरा तक निर्माण होना है. इसके साथ पठानकोट से गोबिंदसर के बीच 12.34 किलोमीटर के एक लिंक रोड निर्माण की भी योजना है. इससे हरियाणा के झज्‍झर, रोहतक, सोनीपत, जींद, करनाल और कैथल जिले तक जाना आसान हो जाएगा.

इसके साथ ही फेज टू में पंजाब के पटियाला, संगरूर, लुधियाना, जालंधर, कपूरथला, तरनतारन, अमृतसर और गुरदासपुर जिले तक भी लिंक रोड बनाया जाने का प्रस्ताव है.

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हर साल की भाति इस साल भी रक्षाबंधन का त्योहार को लेकर बहुत ही संशय बना हुआ है। लोग भ्रम में पड़ गए है। कब इस त्योहार को मनाया जाये पंचांग के अनुसार यह त्योहार सावन की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह त्योहार भाई -बहन के स्नेह की डोर में बांधने वाला त्योहार है। इस दिन बहन भाई के हाथ में रक्षा बंधती है तथा मंगल की कमाना के चंदन का टिका लगाती है। रक्षाबंधन में राखी या रक्षा सूत्र का सबसे अधिक महत्व है रक्षाबंधन भाई -बहन के रिश्ते का प्रसिद्ध त्योहार है।  राखी सामान्तः बहने भाई को ही बंधती है परन्तु ब्राह्मणों गुरुओ और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा समानित सम्बंधित के रूप में जैसे (पुत्री अपने पिता को ) प्रतिष्ठित व्यक्ति को राखी बंधी जाती है। 

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कैसे मिला भद्रा को शुभ कार्य करने से मनाही

भद्रा में शुभ कार्य करना शुभ नहीं होता है। यह शनि की तरह कड़क है जन्म लेते ही भद्रा यज्ञ में विध्य -बाधा करने लगती है। मंगल कार्यो में बाधा उत्पन करती है। एक बार ब्रह्मा जी ने भद्रा से कहा की हे भद्रे बव, बालव , कौलव, आदि करण के अंत में निवास करो तथा भद्रा के दौरान विवाह संस्कार, मुंडन संस्कार, यात्रा, यज्ञोपवीत, नया कार्य तथा रक्षा बंधन एवं मांगलिक कार्य करे उसमे में विध्न डालो इस तरह से उपदेश देकर ब्रह्मा जी अपने लोक चले गए उस समय से भद्रा काल में शुभ कार्य नहीं किया जाता है। 

रक्षाबंधन के दिन कब से बन रहा है भद्रा योग
भद्रा का शुरुआत 30 अगस्त 2023 दिन बुधवार सुबह 10 :13 मिनट से
भद्रा काल की समाप्ति 30 अगस्त 2023 दिन बुधवार रात्रि 08 :47 मिनट तक रहेगा। 
भद्रा का समय रक्षाबंधन करना निषिद्ध माना गया है सभी शुभ कायो के लिए भद्रा का त्याग करना चाहिए भद्रा के पूर्व -अर्ध भाग में व्याप्त रहती है अतः भद्रा काल में रक्षाबंधन नहीं करना चाहिए यह समय शुभ कार्यो के लिए शुभ नहीं होता है

पूर्णिमा कब से है जाने समय क्या है 
पूर्णिमा तिथि का शुरुआत 30 अगस्त 2023 दिन बुधवार सुबह 10 :13 मिनट से .
पूर्णिमा तिथि का समाप्ति 31अगस्त 2023 दिन गुरुवार सुबह 07 :46 मिनट तक .

जाने क्या है रक्षाबंधन का शास्त्रीय नियम 
शास्त्रीय नियम के अनुसार रक्षाबंधन और 30 अगस्त दिन बुधवार को रात्रि 08 :48 मिनट से रक्षाबंधन मनाया जायेगा जाएगा। जो अगले दिन यानि 31अगस्त 2023 दिन गुरुवार को
सुबह 07:45 मिनट रक्षाबंधन किया जायेगा। धर्म सिंधु के अनुसार अपराह्न या प्रदोष व्यापिनी श्रावण शुक्ल रक्षाबंधन मनाया जाता है।  किंतु शर्त यह हैं कि उस समय भद्रा व्याप्त नही होनी चाहिए। उपरोक्त विवरण के अनुसार यह योग 30 अगस्त दिन बुधवार के रात में 8:48 मिनट के बाद मिल रहा है उस समय कर सकते है। 

धर्मसिन्धु के अनुसार क्या है रक्षाबंधन का निर्णय 

पूर्णिमायां भद्रारहितायां त्रिमुहुर्ताधिकोदय व्यापिन्यामपराह्ने प्रदोषे वा कार्यम्।
जैसा धर्मसिंधु में उल्लेख है कि भद्रायां द्वे न कर्तव्यम् श्रावणी फाल्गुनी वा। श्रावणी नृपतिं हन्ति,ग्रामों दहति फाल्गुनी।
अर्थात भद्रा काल में दो त्यौहार नहीं मनाने चाहिए.श्रावणी अर्थात रक्षाबंधन,भद्रा काल में रक्षाबंधन मनेगा तो राजा के लिए कष्टकारी है.

जानें, रक्षाबंधन पर भ्रम क्यों बना हुआ है

रक्षाबंधन का त्योहार भाई -बहन के प्रेम का प्रतिक है लौकिक व्यवहार में रक्षा विधान हमेशा सुबह के समय अथवा दोपहर में होता है इसीलिए इस दिन में उदया तिथि ली जाती है इस
बार इस तरह के कोई संयोग नहीं बन रहा है .इसलिए ऐसा कफुजन बना हुआ है . दूसरी कनफूजन यह है बहन अपने भाई के घर अपने ससुराल से आती है जो उनके रात्रि में आने जाने
को लेकर परेशानी होगा ऐसे लोग 31 अगस्त को रक्षाबंधन करे शास्त्रसमय अनुसार .

राखी बांधने का मंत्र:
येन बद्धो बलि राजा दानवेंद्रो महाबल:।
तेनत्वां प्रति बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।

 

संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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देवी स्थानों पर गमाला पूजन का हुआ आयोजन

Chhapra: सावन की अंतिम सोमवारी को लेकर एक और जहां शहर से लेकर गांव तक शिवालयों में जलाभिषेक को लेकर भक्तों की भीड़ जुटी रही, वहीं दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्र के देवी मंदिरों में गमाला पूजन का आयोजन किया गया.

गमाला पूजा को लेकर सुबह से ही गांव के देवी स्थान पर भक्तों की भीड़ जुटनी शुरू हो चुकी थी, जैसे-जैसे दिन बढ़ता गया भक्तों की भीड़ जुटने लगी.

जिले के लगभग सभी देवी स्थान पर इस पूजन का आयोजन किया गया, जिसमे शहर में रहने वाले लोगों ने भी अपनी उपस्थिति दिखाई.

गमाला पूजा देवी स्थान पर आयोजित की जाती है जिसमे प्रत्येक घर से माता की पूजा देवी स्थानों पर की जाती है. भक्तों ने पूजा करते हुए सुख, शांति एवं समृद्धि की कामना की. इस अवसर पर स्थानीय लोगों द्वारा पारंपरिक देवी गीत भी गया गया. जिसमें लोगों ने भाग लिया.

ग्रामीण क्षेत्रों में गमला पूजा को पूरे जोश एवं उत्साह के साथ मनाया गया.

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