वो भी क्या दिन थे, ना फेसबुक था ना ही ट्विटर, फिर भी हम देशभक्त थे

वो भी क्या दिन थे, ना फेसबुक था ना ही ट्विटर, फिर भी हम देशभक्त थे

वो भी क्या दिन थे
ना फेसबुक था ना ही ट्विटर
फिर भी हम देशभक्त थे

वो भी क्या दिन थे
हाथ की कलाई में रंग बिरेंगे रिबन बांधे
और हाथ में तिरंगा लेकर
हम स्कूल की तरफ दौर पड़ते थे

वो भी क्या दिन थे
जब स्कूल में हम गांधी जी, नेहरु जी, सरदार पटेल, सुभाष चंद्र बोष और भगत सिंह इत्यादि के नाम लेकर
जोर जोर से जयकारे लगाते

वो भी क्या दिन थे
स्कूल से सीधे हम पार्क जाते, जलेबी और मिठाई खाते
घर आकर देश भक्ती फिल्में देखते
और दादा- दादी से आज़ादी के वीरों के अफसाने सुनते

वो भी क्या दिन थे
ना हमें किसी को अपनी देशभक्ति साबित करनी थी
ना ही देश और राष्ट्रवाद के नाम पर
हमे अपने पड़ोसी और दोस्तो से लड़ने की जरूरी थी

वो भी क्या दिन थे
ना हम किसी को व्हाट्सएप्प पर तिरंगा भेजते थे
ना ही किसी देश प्रेम के उपदेश देते थे

वो भी क्या दिन थे
जब हमारे घर के चारो तरफ
मेरा रंग दे बसंती चोला, हो आज रंग दे बसंती चोला
जैसे देश भक्ति गीत सुनाई पड़ते थे

वो भी क्या दिन थे
जब 15 अगस्त के दिन
हम दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने जाते थे

वो भी क्या दिन थे
हम मोबाइल में तिरंगे की जगह
दिल में तिरंगा लिए घूमते थे

 

(लेखक की अपनी राय है)

 

 

अभिषेक @ABGYAN

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