धर्मेन्द्र कुमार रस्तोगी/सुरभित दत्त सिन्हा
किसी भी देश में समय-समय पर प्रचलित मुद्राओं में वहां के इतिहास की झलक मिलती है. जब किसी एक ही स्थान पर विभिन्न देशों की प्राचीन मुद्राओं का संग्रह हो तो यह अपने आप में अद्भुत है. छपरा शहर के शत्रुघ्न प्रसाद उर्फ नन्हे ने विभिन्न देशों के प्राचीन सिक्कों तथा नोटों का अनूठा संग्रह कर रखा है. उनके पास मुगलकालीन एवं ईस्ट इंडिया कंपनी तथा ब्रिटिश क्राउन की याद दिलाने वाले प्राचीन सिक्कों के साथ ही एशिया और यूरोप के विभिन्न देशों के पुराने नोटों का बेहतरीन खजाना है.
शहर के मुख्य चौराहे नगरपालिका चौक पर चाय की दूकान लगाने वाले शत्रुधन प्रसाद उर्फ नन्हे को 8 साल की उम्र (1980) से ही सिक्कों को संग्रह करने का शौक लग गया. समय गुजरने के साथ ही उनका यह शौक जुनून में बदल गया. उन्हें पता चले कि किसी के पास कोई प्राचीन सिक्का है तो वे उससे संपर्क कर उसे अपने संग्रह में शामिल करते.
इस समय उनके पास करीब 175 देशों के विभिन्न प्राचीन सिक्के और करेंसी नोटों का संग्रह हैं. इनमें 16वीं सदी में मुगलकालीन कुछ सिक्के तो ऐसे हैं जिन पर चांद, सितारा के साथ ही अरबी भाषा में लिखा है. ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा जारी अनेक सिक्के उन्होंने सहेज कर रखे हैं. ब्रिटिश शासन के लंबे दौर में भारत में प्रचलित रहे किंग जार्ज पंचम व षष्टम तथा रानी विक्टोरिया की तस्वीर वाले तमाम सिक्के अपने इतिहास को समेटे हैं.
आज की पीढ़ी को आश्चर्य हो सकता है कि इस देश में कभी एक पैसे का तांबे का सिक्का भी चलन में था. इस संग्रह में एक पैसे के सैकड़ों सिक्के आज भी चमचमा रहे हैं. शत्रुघ्न के पास सिर्फ भारत के ही नहीं बल्कि नेपाल, बंग्लादेश, पाकिस्तान, सऊदी अरब, ईरान, कुवैत, जर्मनी, यूरोपियन देशों समेत 175 देशों के पुराने नोट व सिक्के एकत्र हैं.
शत्रुघ्न को अपने जीवन में काफी संघर्ष भी करना पड़ा. चाय की दूकान से अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करते है. वह कहते हैं कि “सिक्कों, नोटों के संग्रह में उन्हें अपने पिता स्व. सुखनंदन प्रसाद तथा भाई मोहन जी का पूरा सहयोग मिलता रहा है”. प्राचीन सिक्कों, नोटों के संग्रह का उद्देश्य पूछे जाने पर वह कहते हैं कि “सिर्फ शौक है. मेरे इस शौक को गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में जगह मिले”.
मुद्राओं के संकलन का शौक रखने वाले शत्रुघ्न के पास अपना घर नही है. जन्म से लेकर वर्तमान तक किराये के मकान में रहते चले आ रहे है. शत्रुघ्न की पत्नी ने बताया कि विदेशी मुद्राओ का संकलन के शौक में वह अपने पति का सहयोग करती है. हालाँकि इतनी विदेशी मुद्राओं को एकत्र करने वाले के बच्चे पैसे के आभाव में सरकारी स्कूलो में पढाई कर पाते है.
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