- घरेलू हिंसा की घटनाओं से 85 प्रतिशत से अधिक पुरुष अवगत
- 90 प्रतिशत से अधिक पुरुष दैनिक कार्यों में महिलाओं की नहीं करते सहयोग
- सहयोगी संस्था द्वारा कराये गए सर्वेक्षण से हुआ खुलासा
- 1600 घरों के 1015 पुरुषों से ली गयी राय
पटना: नारी सशक्तिकरण के इस दौर में लिंग आधारित भेदभाव एवं घरेलू हिंसा की घटनाओं में कमी आने की जगह बढ़ोतरी ही देखने को मिल रही है. इन विषयों पर सिर्फ़ बौद्धिक चर्चा समस्या का निदान नहीं है, अपितु इसके लिए जमीनी स्तर पर कार्य करने की बेहद जरूरत है. लिंग आधारित भेदभाव एवं घरेलू हिंसा जैसे सामयिक मुद्दों पर आर्थिक एवं सामाजिक स्तर पर जूझते समुदाय के साथ कार्य करने वाली सहयोगी संस्था द्वारा पटना जिले के सेमी अर्बन एवं ग्रामीण क्षेत्रों के 1600 घरों में घर-घर जाकर इन मुद्दों पर 1015 पुरुषों से राय ली गयी.
सर्वेक्षण के बाद कुछ चौंकाने वाले आंकड़े प्राप्त हुए. एक तरफ़ लिंग आधारित भेदभाव पुरुष प्रधान समाज की परिभाषा को सार्थक करता प्रतीत होता है, वहीं दूसरी तरफ घरेलू हिंसा रोज आस-पास होने वाली एक सामान्य घटना तक ही सीमित रह जाती है.
लिंग आधारित भेदभाव प्रत्येक घर में
लिंग आधारित भेदभाव की सर्वप्रथम शुरुआत घर से हो जाती है. महिलाओं को घर का खाना बनाने, कपड़े साफ करने एवं घर की सफाई करने जैसे अन्य घरेलू कार्यों को अकेले ही करने की सामाजिक ज़िम्मेदारी जन्म के बाद ही प्राप्त हो जाती है. सहयोगी संस्था द्वारा कराये गए सर्वेक्षण से भी ज्ञात होता है कि लगभग 98 प्रतिशत पुरुष घर में खाना नहीं बनाते एवं रसोई में महिला को सहयोग भी नहीं करते हैं. लगभग 95 प्रतिशत पुरुष अपने कपड़े खुद साफ़ नहीं करते. लगभग 60 प्रतिशत पुरुष घर कि साफ़-सफाई में कोई योगदान नहीं देते. लगभग 66 प्रतिशत महिलाएं घर में सभी के खाना खाने के बाद आखिरी में खाना खातीं है. यह कुछ ऐसे आंकड़ें हैं जो लिंग आधारित भेदभाव के हिस्से होकर भी हमारे मन में कोई सवाल खड़े करने में असफल रहते हैं. कारण यह है कि हमारी परवरिश ही ऐसे माहौल में हुई है जहाँ घर के कामों को सिर्फ माँ या बहनों को ही करते हुए देखा गया है. हम इसे लिंग आधारित भेदभाव की श्रेणी में रखते ही नहीं है.
घरेलू हिंसा को रोकना चुनौती
सहयोगी कि कार्यकारी निदेशिका रजनी ने बताया कि घरेलु हिंसा एवं जेंडर आधारित हिंसा में और घर में पुरुषों की भागीदारी में सीधा सम्बन्ध है, जिसको समझने के लिए यह अध्ययन किया गया. सहयोगी द्वारा कराये गए इस सर्वेक्षण से ज्ञात होता है कि लगभग 90 प्रतिशत पुरुष अपने समाज या गाँव में घरेलू हिंसा की घटनाओं से वाकिफ़ हैं. लगभग 11 प्रतिशत पुरुष प्रायः ऐसी घटनाओं को देखते हैं, जबकि 79 प्रतिशत पुरुष कभी ना कभी ऐसी घटनाओं के विषय में अवगत होते रहते हैं. इससे यह साबित होता है कि घरेलू हिंसा आज भी हमारे समाज में एक सामान्य घटना है. जबकि 5 प्रतिशत पुरुष इस बात को स्वीकार भी करते हैं कि उनके द्वारा घर या परिवार के महिलाओं के साथ कभी ना कभी घरेलू हिंसा की गयी है. घरेलू हिंसा को रोकने में सबसे बड़ी चुनौती है समुदाय में इसके प्रति संवेदनाओं का विकसित ना होना. घर से लेकर आस-पास में होने वाली घरेलू हिंसा के प्रति पुरुषों की उदासीनता इसकी गंभीरता को व्यक्त करने में अभी भी असमर्थ है.
एक कदम समाधान की ओर
लिंग आधारित भेदभाव एवं घरेलू हिंसा सामाजिक, वैयक्तिक एवं आर्थिक संरचना से प्रभावित होती है. इसके लिए प्रत्येक स्तर पर समान रूप से कार्य करने की जरूरत है. सहयोगी संस्था द्वारा लिंग आधारित भेदभाव एवं घरेलू हिंसा में कमी लाने के कुछ उपाय भी बताए गए हैं.
विद्यालय स्तर पर लड़कों एवं लड़कियों दोनों को जेंडर आधारित गैरबराबरी के प्रति जागरूक करना
लड़का एवं लड़की दोनों को एक दुसरे के अधिकारों के प्रति संवेदनशील बनाना
दोनों को एक दुसरे का सम्मान करने के लिए तैयार करना
शिक्षक एवं शिक्षिकाओं को जेंडर आधारित व्यवहार के प्रति संवेदनशील बनाना
बेटियों को शिक्षा एवं रोजगार के सामान अवसर उपलब्ध करना
किशोरों को नियमित रूप से परामर्श प्रदान करना
बेटियों को भी बेटे की तरह संपत्ति में अधिकार प्रदान करना
शादी के विषय में बेटियों से भी राय लेना
समुदाय के लोगों को आय बढ़ाने वाली गतिविधियों से जोड़ना
लड़कों को घर के काम में हाथ बंटाने के लिए प्रोत्साहित करना
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