शिक्षक आंदोलन को समर्थन लेकिन नेतृत्व पर सवाल : प्रो रणजीत

शिक्षक आंदोलन को समर्थन लेकिन नेतृत्व पर सवाल : प्रो रणजीत

Chhapra: छपरा जयप्रकाश विश्वविद्यालय स्नातकोत्तर शिक्षक संघ के सचिव तथा बिहार शिक्षा मंच के संयोजक प्रो रणजीत कुमार ने बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के महासचिव शत्रुघ्न प्रसाद सिंह को एक खुला पत्र भेजकर 25 फरवरी से अपनी न्यायोचित माँगो की पूर्ति हेतु शिक्षकों द्वारा जारी आंदोलन को अपना समर्थन व्यक्त करते हुए कहा कि मैंने नियोजित शिक्षकों की मूल मांगों जैसे वेतनमान, पेंशन, सेवांत लाभ, अंतरजिला स्थानांतरण, राज्यकर्मी का दर्जा, भविष्य निधि कटौती, उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों के मान सम्मान तथा समय से वेतन भुगतान के मुद्दे पर बेबाकी से समय समय पर सरकार को दर्जनों पत्र लिखकर समस्याओं एवम मांगों से अवगत कराया है. लेकिन एक सोची समझी राजनीति के तहत धरने को सम्बोधित करने से मुझे मना कर दिया गया. इस निर्देश को केवल सारण शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र के दायरे में आने वाले सारण, सिवान, गोपालगंज, पूर्वी एवम पश्चिमी चंपारण में सख्ती से लागू किया गया जबकि उसी दिन आपने हड़ताल का समर्थन करने के लिए बिहार की जनता के नाम से एक अपील पत्र भी जारी किया.

सरकार से लोकतांत्रिक मूल्यों एवम परम्पराओं के निर्वहन की अपेक्षा करने वाले अपने संकीर्ण सियासी लाभ के लिए इन शाश्वत मूल्यों को दफन करने में जरा भी संकोच नहीं करते. ऐसा प्रतीत होता है कि संघ और सियासत के शतरंजी बिसात पर आपको मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है.

इन सवालों का जवाब दे माननीय

प्रो कुमार ने आम शिक्षकों की तरह संघ नेतृत्व की नीति एवम नीयत को लेकर सवाल खड़ा किया है जिसमे नियोजन वाद का संघ का समर्थन, शिक्षकों के वोट की बदौलत 18 वर्ष से विधान पार्षद के पद पर रहने के बावजूद शिक्षक शोषित हो रहे है. इनकी आवाज नही उठायी गयी. वस्तुतः शिक्षकों की रहनुमाई के नाम पर लगातार शिक्षक हितों की सौदेबाज़ी होती रही है. सत्ता के साए में सुविधा की सियासत करने वाले शिक्षकों के दुःख दर्द को क्या समझेगें? अभी हाल में ही विधानमंडल में राज्यपाल के अभिभाषण पर शिक्षक प्रतिनिधियों द्वारा उठाए गए सवाल का जबाब देने के क्रम में जब मुख्यमंत्री शिक्षकों को जलील करने वाली भाषा का प्रयोग कर रहे थे तो आपके विधान पार्षद महोदय प्रतिकार करने के बदले सदन से ही अनुपस्थित हो गए.

मुख्यमंत्री का यह कहना कि ज्यादा बोलिएगा तो सारा पोल पट्टी खोलकर रख देंगे. क्या राज है जिसके खुलने से माननीय भयभीत हैं? बिहार सरकार वर्ष 2006 से ही नियोजित शिक्षकों के नाम पर कुल 37500/-(60%केंद्र तथा 40%राज्य) उठाती रही है और शिक्षकों को वेतन मद में 6000 रु से प्रारंभ कर आजकल अधिकतम 30000 रु दे रही है. सब कुछ जानते हुए भी क्या विधान पार्षद ने कभी शोषण एवम अन्याय के खिलाफ सदन में अपनी आवाज़ बुलंद किया ?शिक्षकों के इस अनवरत शोषण में क्यों नहीं माननीय की भी संलिप्तता मानी जाय?

वामपंथी नेताओं के बारे में आम धारणा है कि उनमें पदलोलुपता एवम कुर्सी प्रेम अन्य दलों की तुलना में कम होता है लेकिन यहाँ तो उल्टा दिखाई पर रहा है. संघ के दोनों महत्वपूर्ण पदों पर ताउम्र काबिज़ रहने के लिए संघ के संविधान में संशोधन कर पदों की अदला बदली कर ली गई. क्या संघ में कोई दूसरा काबिल व्यक्ति नहीं है जो इन पदों को सँभाल सके?नियोजित शिक्षकों को अपने हाल पर रोना आ रहा है और नेता शिक्षकों से प्राप्त चंदे की राशि से 27 लाख की गाड़ी खरीदकर सवारी कर रहे हैं.

बी एस टी ए राजनीतिक संगठन है और अध्यक्ष क्या विधानपार्षद पद हेतु संघ के घोषित उम्मीदवार हैं? यदि नहीं तो संघ का व्यक्तिगत सियासी महत्वाकांक्षा के लिए दुरुपयोग क्यों ? अप्रैल में विधानपार्षद का चुनाव होना था इसे ध्यान में रखते हुए 25 फरवरी से अनिश्चितकालीन हड़ताल की घोषणा की गई. इससे इनका छिपा हुआ सियासी एजेंडा सामने आ गया. सरकार की हठधर्मिता की वजह से शिक्षक निलंबित हुए हैं.उनके ऊपर प्राथमिकी दर्ज किया गया है. कार्यरत अवधि का भी वेतन रोक दिया गया है. अप्रत्याशित कोरोना महामारी एवम लॉक डाउन की वजह से आंदोलन की धार भी कुंद पर गई है.

कुल मिलाकर शिक्षकों को प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है. सवाल है कि जब सब कुछ शिक्षकों को ही करना और भोगना है तो फिर नेता क्या करेंगे ? विधान मंडल सत्र के दौरान सरकार की हठधर्मिता के विरुद्ध अपने सहयोगियों के साथ अध्यक्ष जी विधानमंडल के समक्ष भूख हड़ताल पर क्यों नहीं बैठे ?सरकार के साथ वफादारी भी निभाएंगे और चुनाव नजदीक आने पर शिक्षकों को सब्जबाग भी दिखाएगें. शिक्षक समाज इस सियासी खेल पर बारीकी से नजर बनाए हुए हैं.

पत्र में उठाये गए मसलों पर आपका तथ्यात्मक जवाब शिक्षकों को मिलेगा, मुझे ऐसी आशा है. पुनश्च मैं चार लाख नियोजित शिक्षकों की न्यायोचित मांगों का समर्थन करता हूँ तथा उनके संघर्ष में शामिल हूँ.

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