महिला दिवस विशेष: सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी छोड़ अब छपरा में पति के बिजनेस में हाथ बंटा रही हैं चांदनी

महिला दिवस विशेष: सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी छोड़ अब छपरा में पति के बिजनेस में हाथ बंटा रही हैं चांदनी

Chhapra: कहा जाता है कि पुरुष की सफलता के पीछे महिला का हाथ होता है. महिला अपने परिवार के लिए अपनी प्रोफेशनल लाइफ छोड़कर पति का हाथ बंटाने लगे तो सफलता निश्चित हो जाती है. कुछ ऐसा ही छपरा की चांदनी प्रकाश ने अपने पति के लिए किया.

महिला त्याग का प्रतिक होती है और अपने परिवार के लिए किसी भी तरह की जिम्मेवारी को निभाने के लिए तैयार रहती है. चांदनी ने भी ऐसा ही किया. बेंगलुरु में 6 लाख सालाना पैकेज पर आईटीसी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर कार्यरत चांदनी ने छपरा के स्वर्ण व्यवसायी अरुण प्रकाश से शादी के बाद नौकरी छोड़ दी. अच्छी खासी सैलरी मिलने के बावजूद उन्होंने जॉब छोड़कर छपरा में अपने पति के साथ उनके ज्वेलरी शॉप पर हाथ बटाना ही सही समझा. दोनों ने साथ साथ अपने प्रतिष्ठान को छपरा में एक अलग मुकाम तक पहुंचाया है. हम बात कर रहे हैं शहर के हथुआ मार्केट स्थित प्रकाश ऑर्नामेंट्स की ऑनर अरुण प्रकाश और उनकी पत्नी चांदनी प्रकाश की.

चांदनी ITC कम्पनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर थी. कोलकाता जैसे मेट्रोपॉलिटन सिटी में जन्मी चांदनी शुरू से ही महानगरों की चकाचौंध में पली बढ़ी. सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद 2012 में उन्हें बैंगलोर में आईटीसी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर नौकरी मिली. इसके बाद उन्होंने NVDIA जॉइन किया. 2015 में फिर से उन्होंने ITC जॉइन कर लिया. उस समय सालाना पैकेज लगभग 6 लाख था.

चांदनी बताती है कि 2016 में उनकी शादी छपरा के अरुण प्रकाश से तय हो गई. शादी के बाद उन्हें जॉब छोड़कर छपरा जैसे छोटे शहर में आना पड़ा समय. 2 महीने बाद उनके पति ने हथुआ मार्केट में प्रकाश ऑर्नामेंट के नाम से ज्वेलरी शॉप खोली.

उन्होंने बताया कि घर में मेरा मन नहीं लगता देख मेरी Mother-in-Law ने मुझे भी दुकान पर जाने को कहा करती. धीरे धीरे मैं वहां रोज जाकर बैठने लगी. वहां मैं बिलिंग सॉफ्टवेर के साथ टेक्निकल कार्यों में हाथ बटाने लगी. धीरे धीरे दुकान चलाना भी सीख लिया. अब हम दोनों मिलकर एक साथ दुकान चला लेते हैं. हम दोनों की मेहनत से हमारी दुकान एक अलग ही मुकाम पर पहुंची है.

चांदनी बताती हैं कि

एक बड़े मेट्रोपोलिटन सिटी से निकलकर छोटे शहर में आकर सेटल होना बहुत कठिन था. बेंगलुरु से नौकरी छोड़कर छपरा आना इतना आसान नहीं था. वहां के मुकाबले यहां चीजें अलग बिल्कुल थी. शुरुआत के 2 महीने बहुत मुश्किल से गुजरे. समय मानो रुक सा गया था. लेकिन अब इसी शहर ने मुझे और मेरे पति को एक अलग पहचान दिलायी है. हालांकि समय बीतने के साथ खुद को यहां सेट कर चुकी हूँ.

जॉब के दौरान बच्चों की नहीं होती है सही पैरेंटिंग
चांदनी बताती हैं कि जॉब छूटने का उन्हें कोई गम नहीं है. अपने अनुभवों को साझा करते हुए उन्होंने बताया कि जब वो जॉब करती थी तब उनके जिन दोस्तों की शादी हो चुकी थी वे अपने बच्चों की देखभाल नहीं कर पाते थे. जब वो आफिस आते थे तब अपने बच्चे को क्रेचेस में छोड़ कर जाते थे. लेकिन यहां कम से कम बच्चे सामने तो रहते हैं.

चांदनी ने अपने पति और परिवार के लिए जो त्याग किया है. नौकरी के बाद अब वे अपने पति का बिजनेस बखूबी संभाल रही है. वह अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणादायक है.

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