(प्रशांत सिन्हा)
देश स्वतंत्रता की 77 वीं वर्षगांठ मना रहा है। 15 अगस्त का दिन हमारे देश के लिए गौरवशाली और ऐतिहासिक दिन है। हमारे देश ने इन सालों में हर नए क्षेत्र में नए नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। विकास की दौड़ में हम विकसित देशों के साथ दौड़ लगा रहे हैं। भारत आज विश्व शक्ति बनने के सपने देख रहा है लेकिन इन सबके बीच बहुत कुछ है जो हम खो रहे हैं। विकास की अंधी दौड़ में हम नई नई समस्याएं पैदा कर रहे हैं। हमारे जंगल खत्म हो रहे है , हमारी नदियां प्रदुषित हो चुकी हैं। हमारी हवा सांस लेने लायक नही बची है। खेत और मिट्टी जहरीली हो चुकी है। अब हमें वायु प्रदुषण, गंदे ऊर्जा श्रोतों, रसायनिक खेती, डीजल वाहनों, ट्रैफिक समस्या, जी एम फसलों और कचरे से आज़ादी चाहिए।
इसके निवारण के लिए सभी यही सोचते हैं कि कौन सबसे पहला कदम उठाए। सभी यह सोचते हैं कि हम इससे नही लड़ सकते लेकिन स्वतंत्रता संग्राम सेनापतियों के आज़ादी के लड़ाई से सीख लें कि उस समय कुछ लोग यही सोचते थे कि क्या इतनी बड़ी हुकूमत को हराया जा सकता है। लेकिन हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने भारत को गुलामी की जंजीर से आज़ादी करा दी। स्वतंत्रता दिवस के इस पावन पर्व पर प्रकृति एवं पर्यावरण को बचाने के लिए लोगों को संकल्प लेना होगा और अपने कर्तव्य का पालन करना होगा।
आमतौर हम देश से अपेक्षाएं रखते हैं लेकिन खुद से कोई अपेक्षा नहीं रखते हैं ये जानते हुए भी हमसे ही बनता है देश। हम देश के लिए कुछ नही करते उसकी आर्थिक, सांस्कृतिक, समृद्धि में योगदान नही करते और देश से अपेक्षा करते हैं कि वह हमारे लिए करे। हमसे ही देश बनता है। हमारे कार्यों से देश प्रगति के रास्ते पर जाएगा। स्वतंत्रता दिवस के समय जरूर हम लोगों में देश के प्रति देश भक्ति उजागर होने लगती है। रेडियो, टेलीविजन में देशभक्ति के गाने हमें कुछ समय के लिए अपने कर्तव्यों के लिए प्रोत्साहित करते हैं। परन्तु कुछ समय के बाद हमारा मन भी और चीज़ों में उलझ जाता है। दरअसल व्यक्ति पांच स्तरों पर जीता है। आर्थिक, शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक तथा अद्ध्यात्मिक स्तरों पर। हर स्तर मे देश की एक प्रमुख भूमिका होती है। हम सब पर देश का उधार है। देश ने हमारी झोली में इतना कुछ दिया है फिर भी हम देश के सामने अपनी मांग ही रखते हैं।
कर्त्तव्यपालन के प्रति सतत जागरुकता से ही हम अपने अधिकारों का निरापद रखने वाले आज़ादी का पर्व सार्थक रूप से मना सकेंगे। तभी लोकतंत्र और संविधान को बचाए रखने का हमारा संकल्प साकार होगा। प्रायः कुछ से सुना जाता है कि स्वतंत्रता के इतने वर्षो के बाद भी हमें देश से कुछ नही मिला लेकिन क्या कुछ लोग यह सोचते हैं कि उन्होंने देश को क्या दिया ? यदि सभी लोग याचना छोड़कर देश के प्रति अपने कर्त्तव्य निभाएं तो देश को उन्नति को कोई नहीं रोक सकता। स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है लेकिन यह अधिकार तब तक अधूरा है जब तक देश के सामने मौजूद चुनौतियां को ख़त्म नहीं कर देते हैं। आज देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती है पर्यावरण। बढ़ते प्रदूषण और वैश्विक तापमान, जलवायु परिर्वतन आदि के कारण पृथ्वी पर संकट मंडराने लगा है।
पर्यावरण संरक्षण आज सबसे ज्यादा आवश्यक हो गया है। अकेले सरकार और नौकरशाहों का ही काम नहीं है बल्कि देश की प्रत्येक जनता को इसमें सहयोग देना होगा। आम लोग पर्यावरण के नुकसान से तो परिचित है लेकिन उन तौर तरीकों को रोकने के लिए सजग नही जो पर्यावरण को प्रदुषित कर रहे हैं। पर्यावरण अनमोल धरोहर है, इसकी सुरक्षा करना हमारा कर्त्तव्य है। युवाओं को तो इनके बारे में पता तक नहीं है। उन्हें जागरुक करने की जरूरत है। संविधान में अनु• 51 A ( g ) में भी उल्लेख किया गया है कि प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी एवं वन्य जीव आदि भी हैं रक्षा करें, उनका संवर्धन करें तथा प्राणिमात्र के प्रति दया भाव रखें।
आज़ादी की सार्थकता तभी होगी जब हरेक व्यक्ति को काम, भोजन एवं स्वच्छ पर्यावरण मिले। संविधान में जो हमारे कर्त्तव्य तय किए गए हैं उसका हम सही ढंग से पालन करें तभी हमारा देश भी महान बनेगा। सबसे बड़ी बात अपने अपने मौलिक अधिकारों को पहचाने ही साथ ही अपने मौलिक कर्तव्यों को भी निर्वहन करें। देशभक्ति का भाव किसी अवसर का मोहताज नहीं होता। यह हमारे भीतर का स्थाई भाव होना चाहिए। देशभक्ति का मतलब देश से अपेक्षा नहीं बल्कि देश के लिए देश के लिए कुछ करने की प्रवृति पैदा होना है।